सहारा हुआ अब बेसहारा , सूप्रीम कोर्ट का फैसला
देश के आर्थिक और वित्तीय जगत मे सात मई यादगारी दिन साबित हुआ जब सूप्रीम कोर्ट ने स्वयंभू सहारा श्री सुब्रतों रॉय को आखिरी बार निर्देश दिया की की वो अपनी और अपनी कंपनी के डाइरेक्टर के जायदाद के कागजात सेबी को सौप दे , जिस से 24000हज़ार करोड़ की रकम की वसूली हो सके | नॉन बैंकिंग फ़ाइनेंस कंपनी द्वारा किस प्रकार आम जनता को भोले - भाले वादो मे फंसा कर उनकी ज़िंदगी भर की कमाई को जमा करा लिया , फिर वादे से मुकर गए | छटे दशक मैं गोरखपुर मैं चित फ़ंड कंपनी की शुरुआत करने वाले सुब्रत रॉय और उनके सहयोगी श्रीवास्तव ने दो - दो रुपये प्रतिदिन की लोगो से उगाही कर के उन्हे लॉटरी का प्रलोभन दिया जाता
था | परंतु लाटरी मिलने वाले का कभी आता पता नहीं होता था | जमा करता , मन - मसोस कर अपनी जमा रकम पर साधारण ब्याज से संतुस्त हो लेता था | इस आशा मे की अगली बार उसे ही लाखो रुपये वाली लॉटरी मिलेगी , पर ऐसा होता नहीं था | वित्तीय गड्बड़ियों की शिकायत जब गोरखपुर मे ज़्यादा होने लगी तो सुब्रत रॉय परिवार सहित लखनऊ मे डेरा जमाया | वजह यह थी की इनाम पाने वाले की कई लोगो ने खोज -खबर लेनी शुरू कर दी थी , परंतु जब उस आदमी का वजूद ही नहीं होता तब लोग इनसे पता ठिकाना पूछते | हिला - हवाला कर के बहाने बनाते और कह देते की ''देखो उसने पूरी रकम हुमसे वसूल ली हैं जिसकी यह रसीद हैं '', यह कुछ वैसे ही होता था जैसे उन्होने अभी सूप्रीम कोर्ट के आदेश पर कहा की चौबीस हज़ार करोड़ की रकम को उन्होने उनके जमा कर्ताओ तक पहुंचा दिया हैं | जबकि ऐसा कुछ नहीं होता था , वरन फर्जी दस्तावेजो द्वारा रकम के वसूले जाने का दावा किया जाता था |
कानून के दायरे मे सहारा तब आया जब लखनऊ मे इनहोने गोल्डन की या सुनहरी चाभी योजना का ऐलान किया | परंतु राजधानी होने के कारण इन्हे यंहा काफी जमाकर्ता और उनसे काफी धनराशि भी मिली ,|जिसे इनहोने बाज़ार मे महाजनी पर चलाया और काफी फायदा उठाया , इसी समय इनहोने ''बाहु बलियो '' का इस्तेमाल भी शुरू किया , छोटे - छोटे व्यापारियो को अनाप - शनाप ब्याज की दरो पर रकम उधार देते और कड़ाई से वसूलते | , अक्सर दूकानदार वक़्त पर ब्याज नहीं चुका पाते , तब फिल्मी सेठो की भांति कंपनी के आदमी उसकी वस्तुओ को उठा लेते | इस तरह से बड़ी जल्दी ही लखनऊ मेन इनकी तूती बोलने लगी | फिर क्या था देखते ही देखते सहारा ने जमीने खरीद कर मल्टी स्टोरी खड़ी करना शुरू कर दिया | इस काम मे इनहोने राजनीतिक मदद भी हासिल की | फिर क्या था कुछ सालो मे ही ये शहर तो शहर प्रदेश के धन कुबेर बन गए | पाँच सालो मे सुब्रत राय की कंपनी एक से अनेक हो गयी | लगभग बीस - बाईस कंपनिया खड़ी हो गयी और फ़ाइनेंस के अलावा भवन निर्माण ,इन्फ्रा स्ट्रक्चर तथा मनोरंजन मे इंका दखल हो गया | अब इंका कार्यछेत्र सारा देश बन गया था |बैंकिंग का काम सारे देश मे फ़ेल गया ,तथा महाराष्ट्र मे पुणे मे ऐमबी वैली तथा पिछले वर्ष एक स्टे दीयम का निर्माण कराया , आई पी एल मैं पुणे वारीयर की क्रिकेट टीम को खरीदा | अकेले इस टीम को खरीदने मैं अरबों रुपये का खेल हुआ | यह सारा बिजनेस साम्राज्य महज़ तीस वर्षो मे हुआ | अब किसी राजनेता की संपति मे अगर इस रफ्तार से बदोतरी हुई होती तो अखबार और मीडिया जान ले लेते , परंतु सहारा तो स्वयं अखबार और चैनल का मालिक था इसलिए मीडिया ने इनकी कारगुजारियों को नज़र अंदाज़ किया |
परंतु सूप्रीम कोर्ट मे एक याचिका ने न केवल इनके खेल को उजागर किया वरन गैर बैंकिंग कंपनी होते हुए भी रियल स्टेट मैं इनके निवेश पर उंगली उठाई | फलस्वरूप सेबी को भी कारवाई करने पर मजबूर होना पड़ा | फिर सहारा ग्रुप ने कानून के हर उस तरकीब को अपनाया जो इनकी संपति और व्यापारिक साम्राज्य की रक्षा कर सकता था | परंतु सूप्रीम कोर्ट ने सेबी को जांच का आदेश दिया और एक जांचकर्ता भी नियुक्त किया | जिसने 24000हज़ार करोड़ की बेनामी धनराशि को उजागर किया | बस यही एक चूक थी जिसने इनको पराभव का रास्ता दिखा दिया | फिलहाल अब एक ही चिंता हैं की क्या उन करोड़ो लोगो की जमा पूंजी कोर्ट वापस दिलाएगा जो इनहोने भ्रम फैला कर एकत्र की हैं |
देश के आर्थिक और वित्तीय जगत मे सात मई यादगारी दिन साबित हुआ जब सूप्रीम कोर्ट ने स्वयंभू सहारा श्री सुब्रतों रॉय को आखिरी बार निर्देश दिया की की वो अपनी और अपनी कंपनी के डाइरेक्टर के जायदाद के कागजात सेबी को सौप दे , जिस से 24000हज़ार करोड़ की रकम की वसूली हो सके | नॉन बैंकिंग फ़ाइनेंस कंपनी द्वारा किस प्रकार आम जनता को भोले - भाले वादो मे फंसा कर उनकी ज़िंदगी भर की कमाई को जमा करा लिया , फिर वादे से मुकर गए | छटे दशक मैं गोरखपुर मैं चित फ़ंड कंपनी की शुरुआत करने वाले सुब्रत रॉय और उनके सहयोगी श्रीवास्तव ने दो - दो रुपये प्रतिदिन की लोगो से उगाही कर के उन्हे लॉटरी का प्रलोभन दिया जाता
था | परंतु लाटरी मिलने वाले का कभी आता पता नहीं होता था | जमा करता , मन - मसोस कर अपनी जमा रकम पर साधारण ब्याज से संतुस्त हो लेता था | इस आशा मे की अगली बार उसे ही लाखो रुपये वाली लॉटरी मिलेगी , पर ऐसा होता नहीं था | वित्तीय गड्बड़ियों की शिकायत जब गोरखपुर मे ज़्यादा होने लगी तो सुब्रत रॉय परिवार सहित लखनऊ मे डेरा जमाया | वजह यह थी की इनाम पाने वाले की कई लोगो ने खोज -खबर लेनी शुरू कर दी थी , परंतु जब उस आदमी का वजूद ही नहीं होता तब लोग इनसे पता ठिकाना पूछते | हिला - हवाला कर के बहाने बनाते और कह देते की ''देखो उसने पूरी रकम हुमसे वसूल ली हैं जिसकी यह रसीद हैं '', यह कुछ वैसे ही होता था जैसे उन्होने अभी सूप्रीम कोर्ट के आदेश पर कहा की चौबीस हज़ार करोड़ की रकम को उन्होने उनके जमा कर्ताओ तक पहुंचा दिया हैं | जबकि ऐसा कुछ नहीं होता था , वरन फर्जी दस्तावेजो द्वारा रकम के वसूले जाने का दावा किया जाता था |
कानून के दायरे मे सहारा तब आया जब लखनऊ मे इनहोने गोल्डन की या सुनहरी चाभी योजना का ऐलान किया | परंतु राजधानी होने के कारण इन्हे यंहा काफी जमाकर्ता और उनसे काफी धनराशि भी मिली ,|जिसे इनहोने बाज़ार मे महाजनी पर चलाया और काफी फायदा उठाया , इसी समय इनहोने ''बाहु बलियो '' का इस्तेमाल भी शुरू किया , छोटे - छोटे व्यापारियो को अनाप - शनाप ब्याज की दरो पर रकम उधार देते और कड़ाई से वसूलते | , अक्सर दूकानदार वक़्त पर ब्याज नहीं चुका पाते , तब फिल्मी सेठो की भांति कंपनी के आदमी उसकी वस्तुओ को उठा लेते | इस तरह से बड़ी जल्दी ही लखनऊ मेन इनकी तूती बोलने लगी | फिर क्या था देखते ही देखते सहारा ने जमीने खरीद कर मल्टी स्टोरी खड़ी करना शुरू कर दिया | इस काम मे इनहोने राजनीतिक मदद भी हासिल की | फिर क्या था कुछ सालो मे ही ये शहर तो शहर प्रदेश के धन कुबेर बन गए | पाँच सालो मे सुब्रत राय की कंपनी एक से अनेक हो गयी | लगभग बीस - बाईस कंपनिया खड़ी हो गयी और फ़ाइनेंस के अलावा भवन निर्माण ,इन्फ्रा स्ट्रक्चर तथा मनोरंजन मे इंका दखल हो गया | अब इंका कार्यछेत्र सारा देश बन गया था |बैंकिंग का काम सारे देश मे फ़ेल गया ,तथा महाराष्ट्र मे पुणे मे ऐमबी वैली तथा पिछले वर्ष एक स्टे दीयम का निर्माण कराया , आई पी एल मैं पुणे वारीयर की क्रिकेट टीम को खरीदा | अकेले इस टीम को खरीदने मैं अरबों रुपये का खेल हुआ | यह सारा बिजनेस साम्राज्य महज़ तीस वर्षो मे हुआ | अब किसी राजनेता की संपति मे अगर इस रफ्तार से बदोतरी हुई होती तो अखबार और मीडिया जान ले लेते , परंतु सहारा तो स्वयं अखबार और चैनल का मालिक था इसलिए मीडिया ने इनकी कारगुजारियों को नज़र अंदाज़ किया |
परंतु सूप्रीम कोर्ट मे एक याचिका ने न केवल इनके खेल को उजागर किया वरन गैर बैंकिंग कंपनी होते हुए भी रियल स्टेट मैं इनके निवेश पर उंगली उठाई | फलस्वरूप सेबी को भी कारवाई करने पर मजबूर होना पड़ा | फिर सहारा ग्रुप ने कानून के हर उस तरकीब को अपनाया जो इनकी संपति और व्यापारिक साम्राज्य की रक्षा कर सकता था | परंतु सूप्रीम कोर्ट ने सेबी को जांच का आदेश दिया और एक जांचकर्ता भी नियुक्त किया | जिसने 24000हज़ार करोड़ की बेनामी धनराशि को उजागर किया | बस यही एक चूक थी जिसने इनको पराभव का रास्ता दिखा दिया | फिलहाल अब एक ही चिंता हैं की क्या उन करोड़ो लोगो की जमा पूंजी कोर्ट वापस दिलाएगा जो इनहोने भ्रम फैला कर एकत्र की हैं |
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