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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Apr 9, 2014

संवैधानिक संस्थाओ को चुनौती देते राजनीतिक दल



संवैधानिक संस्थाओ को चुनौती देते राजनीतिक दल

बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग के उन निर्देशों को मानने से इंकार कर दिया की वे जिसमे उन्होने
सात अधिकारियों के तबादले करने को कहा था| बंगाल की शेरनी जब दहाड़ी तब लगा की कोई संवैधानिक संकट खड़ा होगा | परंतु जब
चुनाव आयोग ने सम्पूर्ण प्रदेश के चुनाव स्थगित करने का निश्चय किया , तब मुख्य मंत्री को लगा की उनकी ज़िद्द उनकी पार्टी और सरकार
पर भारी पड़ेगा | तब उन्होने मजबूरी मे सर झुका कर मंजूर किया | दिन भर चली रस्साकशी के बाद सब कुछ वापस सामान्य हो गया |
परंतु ममता का आरोप की आयोग छोटे डालो के साथ भेदभाव करता हैं और काँग्रेस और बीजेपी के कहने पर चलता हैं | साथ ही उन्होने यह भी
स्पष्ट कर दिया की चुनाव के बाद हटाये गए अधिकारियों को पुनः उनही स्थानो पर पदस्थ करेंगी | कुछ ऐसी ही गुत्थी मध्य परदेश मे भी फंस
गयी | जब चुनाव आयोग ने तीन जिलाधिकारियों को बदलने का निर्देश दिया | राज्य सरकार ने विरोध जताया और कहा की विधान सभा
चुनाव मे इनहि अधिकारियों को आयोग ने अच्छे होने का प्रमाण पत्र दिया | परंतु बाद मे मामले की नज़ाकत को समझते हुए राज्य सरकार ने
आयोग के निर्देशों के अनुसार उन सभी अधिकारियों को पद मुक्त कर दिया |

उत्तर प्रदेश मे भी आयोग को भारतीय जनता पार्टी से मुकाबला करना पड़ा ,जहा
बीजेपी नेता के विवादास्पद बयान की सीडी के बाद उन्हे कारण बताओ नोटिस दिया था जिस पर पार्टी का कहना था की चुनाव आयोग द्वारा
भेजी गयी सीडी ''सही;; नहीं है|पार्टी की ओर से प्रवक्ता राम कृष्ण ने कहा की प्रदेश सरकार ने अमित शाह के विरुद्ध भड़काऊ भासण
देने के आरोप मे आपराधिक मुकदमा दर्ज़ किया हैं | अतः बीजेपी का कहना था की अगर आयोग को सुनवाई करना है तो उसे दुबारा
नोटिस भेजना चाहिए | काँग्रेस शाह की गिरफ्तारी की मांग कर रही है , बीजेपी भी स्थिति को उस हालत मे ले जाना चाहती हैं जनहा
गिरफ्तारी हो --और चुनावी माहौल मे गर्मी आए | देखना होगा की आगे क्या होता हैं

उधर काँग्रेस भी इस मामले मे पीछे नहीं रहना चाहती हैं --उसके नेता दिग्विजय सिंह ने
कहा अदलते न्याय नहीं स्टे दे रही हैं | यह बयान सीधे तौर पर अवमानना की श्रेणी मे आता हैं | हालांकि उन्होने किस संबंध मे ऐसा कहा
यह साफ नहीं हैं , लेकिन भ्रष्ट आचरण के लिए उन्होने प्रदेश की सरकार और मुख्य मंत्री पर आरोप लगाए | उन्होने कहा की वे अपनी बात
पर कायम है भले ही इसके लिए उन्हे जैल ही क्यो न जाना पड़े |चुनाव की गर्मी मे संवैधानिक संस्थानो को पहली बार ऐसी समस्याओ से
जूझना पद रहा हैं |



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विश्वास और भरोसा टूटने का परिणाम --क्या थप्पड़ और जूता है - तब चुनाव परिणाम ?


विश्वास और भरोसा टूटने का परिणाम --क्या थप्पड़ और जूता है - तब चुनाव परिणाम ?

केजरीवाल को थपप्ड और घूंसा मारे जाने के बाद अनेक तरह की प्रतिकृया सामने आई है , अधिकांश ने
इन घटनाओ को उनके द्वारा इस्तीफा दिये जाने के फैसले से जोड़ कर , बयान दिया है | जिसमे उनकी भर्त्स्ना ही की गयी हैं | घटना
को विद्रुप बना कर राजनीति का हथियार बना कर भी टिप्पणिया की गयी हैं | बयान बाज़ी की इस भीड़ मे ''समझ और संयम " का तो
अभाव ही हैं | परंतु अति उत्साही इन नेताओ और ''समर्थको''' को इस घटना के दूरगामी परिणाम की कोई जान करी नहीं हैं | वे
समझ रहे हैं की इस चुनावी संग्राम मे वे जितना आगे"" बढ """ कर हमले की मुद्रा का ''प्रदर्शन'' करेंगे उतना ही वे अपने नेता की
"" नजरों """ मे आ जाएंगे |परंतु वे भूल जाते है की ''लाभ के साथ हानि "" भी आती है |क्या होगा जब वायदे की झाड़ी के
आश्वासन पूरे नहीं हो पाये ? तब वही हालत होगी जो चिट फंड कंपनी के उन अधिकारियों की होती हैं , जो लोगो से रोज बचत की रकम
एकत्र करते हैं -- गुस्साये लोगो की भीड़ , जिसे वह उनका पैसा लौटाने मे असमर्थ होता हैं | यह अंडे स्याही और घूंसा की घटनाए उसी
का परिणाम अगर है तब तो भगवान ही मालिक है |

इसलिए आज जो लोग बयान देकर आगे बड़ रहे है ,वे भावी की पदचाप
को पहचान नहीं रहे है | यह समय '' संयम ''का हैं , चुनावी प्रति स्पर्धा को महा भारत बनाने का नहीं | और अगर बिना महाभारत
के राजनीतिक आकांछा नहीं पूरी हो रही हैं ---तब यह भी स्पष्ट है की उसका परिणाम भी कनही वैसा ही ना हो जाये जैसे पोहले हुआ था
अर्थात हिंसा का दावानल |नफरत और नापसंदगी को वैमनस्य मे परिवर्तित करने से परिणाम भी स्पर्धा ''जैसा''नहीं होता है |


17 मई को चुनाव परिणाम आने को है ---संभावना गैर कांग्रेस सरकार की है , अब वह पूर्ण बहुमत की होगी
तब तो देश को एक स्पष्ट दिशा मिलेगी | भले ही कुछ लोगो को वह ना पसंद हो , परंतु यथार्थ को झुठलाया नहीं जा सकता परंतु
उसे सच्चे मन से मंजूर करना चाहिए |