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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Dec 5, 2017


मंदिर -मस्जिद विवाद के 25 साल अथवा --मूर्ति रखे जाने के 78 साल ??

22 दिसम्बर 1949 को फ़ैज़ाबाद के तत्कालीन कलेक्टर के के के नायर ने लखनऊ मे तत्कालीन गृह मंत्रालय को भेजे रेडिओग्राम मे राज्य सरकार को सूचित किया था की बाबरी मस्जिद के प्रांगण मे मूर्ति "”रख दी गयी है "” | मूर्तियो के रखे जाने अथवा "”चमत्कारिक रूप से प्रकट होने की "” बात तत्कालीन गोरखनाथ मठ के महंत दिग्विजयनाथ और हिन्दू महासभा के कार्यकर्ताओ द्वारा कही गयी !! इस विवाद को अदालत ने स्थगन देते हुए जनहा पुजारिओ को राम की मूर्ति की सेवा - श्रुषा करने के लिए आगे दी --वनही मस्जिद को मुस्लिमो को नमाज़ पढने की भी इजाजत दी | मामला अदालत के विचारधीन रहा |
6 दिसम्बर 1992 को विश्व हिन्दू परिषद तथा भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओ ने लाल कृष्ण आडवाणी -मुरली मनोहर जोशी तथा उमा भारती के नेत्रत्व मे मस्जिद के गुंबद को धराशायी कर दिया | कल्याण सिंह सरकार ने यद्यपि अदालत मे शपथ पत्र दिया था की --””उनकी सरकार मस्जिद को सुरक्षित रखने के लिए संकल्पित है "”” | परंतु फिर भी भीड़ ने मस्जिद के भवन को धराशायी कर दिया !!! घटना के बाद मुंबई – दिल्ली --हैदराबाद तथा भोपाल मे हिन्दू -मुस्लिम दंगे हुए | भयानक हिंसा का ज्वार फैला | लेकिन फ़ैज़ाबाद और लखनऊ मे कोई दंगा नहीं हुआ !!! बताया जाता है की लखनऊ के नदवा -तुल - उलेमा के रेकटर मौलाना अली मिया ने उत्तेजित मुसलमानो को संयम से रहने की सलाह देते हुए अदालत के फैसले पर भरोसा करने को कहा | वे तब मुस्लिम पर्सनल लॉं बोर्ड के अध्यक्ष थे |यह थी एक धर्म के गुरु की शक्ति --की हजारो गुस्साये मुसलमानो को शांत कर दिया | आग लगाना तो आसान है --पर उसे बद्ने ना देना - मुश्किल काम है |


6 दिसंबर 2017 को उस घटना को किस रूप मे याद रखे ?? जबकि सुप्रीम कोर्ट मे यह मामला विचारधीन है | यद्यपि प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा का यह कहना की "”उनके लिए यह मामला सिर्फ ज़मीन की मिल्कियत का है --- वे इस बात से बिलकुल चिंतित नहीं है की अदालत के बाहर क्या हो रहा है !!!!

अगर अयोध्या विवाद की जयंती मना रहे है तो यह 43 वर्ष की होनी चाहिए ना की 25 वर्ष की जिसको लेकर समाज मे फूट पड़े | फिर अदालत का यह कथन भी कुछ खटकने वाला है की बाहर क्या हो रह है वह विचारणीय विषय नहीं है | क्योंकि इस मामले मे बहुसंख्यक और मुस्लिम अल्प संख्यक दोनों ही बानहे चदाए है | धार्मिक भावना का अतिरेक अरब प्रायद्वीप मे कितनी मारकाट मचाए हुए है | इसके अलावा ब्रिटेन और अमेरिका फ्रांस मे कुछ लोग सामान्य नागरिक जीवन को कितना "”असुरक्षित बना देते है "” | अतः अदालत का यह कथन समीचीन नहीं है | इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वरा इस मामले मे दिया गया फैसला "” विधि के इतिहास मे अनूठा है "” जिससे सभी पक्षो को अगर संतोष नहीं हुआ तो आशंतोष भी नहीं हुआ | क्योंकि विवादित भूमि को तीनों पक्षो मे वितरित करने से '''समवेदनाए अगर पूर्ण नहीं हुई ----तो अपूर्ण भी नहीं रही "” क्योंकि सभी को कुछ मिला | संतोष भले ही ना हुआ हो परंतु ''असन्तोष '' भी नहीं हुआ | एवं अदालत पर भरोसा बना रहे सुप्रीम कोर्ट को ऐसी ही युक्ति खोजनी होगी | तभी देश और समाज का भला होगा | वरना फिर कोई ............