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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

May 28, 2018


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लखनऊ का बुढवा मंगल - बजरंगबली और अली को जोड़ता अवध पर्व
माडर्न प्रभाव अब शर्बत और बूंदी का प्रसाद नहीं वरन पिज्जा -बर्गर - चाउमीन और पूड़ी का भंडारा !

क्या कोई आज के सांप्रदायिक माहौल मे विश्वास करेगा की अवध की राजधानी लखनऊ का महत्वपूर्ण पर्व पंचांग के अनुसार जेठ माह के मंगल को बजरंगबली के नाम पर मनाए जाने वाले बुड्वामंगल की शुरुआत नवाब शुजौदौला की हिन्दू पत्नी छत्र कुँवर ,जिनहे इतिहास "”मलिक-- आलिया "”के नाम से जानता है उनके द्वारा शुरू किया गया था !


अवध के नवाबो की अनेक हकीकते ऐसी है ,जिनहे आज के लोग किस्से कहानी के मानिंद समझते है | उनही मे एक है लखनऊ का बुदवा मंगल , | इस की शुरुआत नवाब शुजौदौल्ला की दूसरी पत्नी छात्रकुँवर की मन्नत से शुरू होती है | वे राइकवार ठाकुर घराने से थी - उन्होने मन्नत मांगी की अगर उनका बेटा सुल्तान बना तो वे "”हज़रत अली की याद मे एक बस्ती बसएंगी और अपने इष्ट बजरंगबली का मंदिर बंवाएगी | 1797 मे उनका बेटा यामिनुडौला सुल्तान बना |जिसे इतिहास सादत अली खान दोयम के नाम से जानता है बेगम ने अपने माने हुए वादे के अनुसार लखनऊ के किनारे "”अलीगंज नामक बस्ती बसाई | और उसी के मध्य हनुमान जी जिनहे अवध मे बजरंगबली ही कहा जाता है उनका एक मंदिर बनवाया | इस मंदिर के ऊपर चाँद तारा लग वाया गया 1801 मे मोहर्रम के माह मे कर्बला की याद मे नवाबीन कर्बला के पास ही शर्बत और तबरुक लोगो मे वितरित किया गया था | वह जेठ का मंगलवार था | यह भी कहा जाता है की मलके आलिया सआदत अली खान को '''मंगलू '' बुलाती थी --क्योंकि उनका जनम मंगलवार को हुआ था |

अली और बजरंगबली की समानता का एक कारण था | इस्लाम मे हज़रत अली को शारीरिक शक्ति का प्रतीक माना जाता है , जैसे पौराणिक कथाओ मे पवनपुत्र - हनुमान -बजरंगबली को माना जाता है | हिन्दू रानी ने इस प्रकार दोनों ही धर्मो को सम्मान देने का प्रयाश किया | इतिहास गवाह है की अवध मे हिन्दू -मुस्लिम झगड़े नहीं हुए | यानहा तक की जब 1949 मे फ़ैज़ाबाद के तत्कालीन जिलाधिकारी केकेके नय्यर की लापरवाही से मस्जिद को तोड़ कर अखंड रामायण शुरू करा दी गयी | तब भी कोई सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ | जब मस्जिद गिराई गयी तब भी लखनऊ औयर फ़ैज़ाबाद शांत ही रहे |

दो सौ साल चले आ रहे इस लखनवी पर्व मे अब बहुत बदलाव हो गया है | पहले अपनी कामना पूर्ति के लिए लोग तपती धूप मे नगे बदन लेट कर मंदिर तक की दूरी तय की जाती थी | यह कठिन तपस्या उन श्र्धलुओ को कितना संतोष अथवा फल देती थी -इसके बहुत से किस्से लखनऊ मे सुने जा सकते है | परंतु दो सौ साल से चली आ रही इस परंपरा मे विगत कुच्छ वर्षो से धार्मिक श्र्धा और आस्था का स्थान आज विज्ञापन और शो बाज़ी ने ले लिया है | जैसे भोपाल मे रंगपंचमी और पूना मे गणेश चतुर्थी का स्थानीय अवकाश होता है , वैसे ही शामे अवध की इस नागरी मे भी छुट्टी रहती है |
अपनी यात्रा के दौरान मैंने देखा की समाचार पात्रो मे तथा देवरो मे चिपके इश्तिहारों मे सूचना दी गयी थी की अबकी मंगल को फलां स्थान पर भंडारा है -जिसमे प्रसाद के रूप मे पूड़ी सब्जी के साथ , कलाकंद मिलेगा या आइस्क्रीम कोण दी जाएगी | गणेशगंज और फतेहगंज के गल्ला व्यापारियो ने इस अवसर पर लोगो को बर्गर और पिज्जा बांटने का ऐलान किया | अमीनबाद के व्यापारियो ने कचौड़ी और मटर के साथ कोल्ड ड्रिंक बांटने का इंतज़ाम किया था | जिन बजरंगबली को बताशे और लड्डू का प्रसाद चदाए जाने की परंपरा रही हो ---- वे अमर हनुमान जी अपने भक्तो के इस आधुनिक प्रसाद से कितना प्रसन्न होंगे या अप्रसन्न होगे यह तो आने वाला समय बताएगा | वैसे प्रति वर्ष जेठ के चारो मंगल को उत्सव समान माहौल रहता है |परंतु इस वर्ष इस उत्साह मे दो गुनी व्रधी हुई है |कारण इस वर्ष "”अधिक मास "” होने से दो जेठ माह हो गए है | इस लिए आठ मंगलवार को भंडारे और मंदिर दर्शन होंगे |


प्रसाद चड़ाने की अवधारणा मे अधिकतर लड्डू और मोदक तथा बूंदी मिठाई आदि ही मंदिरो मे चड़ाई जाती है | परंतु बजरंगबली के भक्तो द्वारा आम जनता को को जो प्रसाद वितरित किया जाता है ---- उसके लिए कोई बाध्यता नहीं है | मैंने प्रबंध समिति के एक सदस्य से इस बारे मे पूच्छा तो उनका कहना था ----हम बजरंगबली की शान मे लोगो को शर्बत आदि पीला रहे है |जो समितीय सक्छ्म है वे जनता की मांग पर उनके लिए खाने का प्रबंध कर रही है | कितने भंडारे शहर भर लगे होंगे उन्होने कहा आज तक किसी ने गिना नहीं ,जिसकी जनहा श्रद्धा हुई ----उसने लोगो को खिलाया |इस भंडारे मे सिख और मुस्लिम व्यापारी भी लोगो को डिब्बे बाँट रहे थे | कनही कोई धर्म या जाति का कोई झगड़ा नहीं | यही है अवध की गंगा - जमुनी तहजीब जिसकी मिसाल आज भी लखनऊ मे देखने को मिलती है |