गांधी
को याद करने की मजबूरी बनाम
महात्मा को अपने हिसाब से
ढालना !!!
हमारे
एक पत्रकार मित्र ने अपने
आलेख मैं मोहनदास करमचंद
गांधी को 2
अक्तूबर
को 150
वी
जन्म दिन पर याद करने की मजबूरी
जताई है !!
हक़ीक़त
मैं यह मजबूरी उस विचारधारा
के प्रमुख के एक इंटरव्यू
के प्रकाशन मैं दिखाई पड़ती
हैं !!
एक
प्रमुख दैनिक समाचार पत्र
मैं राष्ट्रीय स्वयं सेवक
संघ के सरसंघ चालक डॉ भागवत
ने उस मै जिस प्रकार "”
महात्मा
गांधी "”
की
प्रासंगिकता को भरपूर तरीके
से -
"”
सराहा
गया हैं ------उससे
यह तो सिद्ध हो गया की "”राष्ट्र
पिता "”
को
याद करने की मजबूरी उस संगठन
की भी हैं ,
जिसके
सदस्यो पर राष्ट्र पिता की
हत्या का आरोप लगा था |
जिस
कारण तत्कालीन उप प्रधान
मंत्री और गृह मंत्री सरदार
बल्लभ भाई पटेल ने
संघ पर सार्वजनिक रूप से
प्रतिबंध लगाया था !
उन्होने
गुरु गोलवलकर को लिखे पत्र
मैं "”कहा
था की आपके मंच से नफरत फैलाने
वाले भासन दिये जाते हैं "””
| गौर
तलब हैं की हमारे प्रधान मंत्री
नरेंद्र मोदी के लिए सरदार
सर्वोपरि देश के नेता हैं !!!
इसीलिए
उन्होने "”
मजबूरी
मैं अथवा श्रद्धा वश उनकी
इतनी बड़ी प्रतिमा खड़ी करा दी
की ----दुनिया
मैं वह सबसे बड़ी "”मूर्ति
"”
हो
गयी !!
अपने
जनम दिन पर प्रधान मंत्री मोदी
ने सरदार सरोवर को पानी से
"”लबालब
"”
भरे
जाने का आदेश दिया----
और
जलाशय भरा गया |
भले
ही इस आदेश के परिणाम स्वरूप
निमाड के 70
गावों
के 8
हज़ार
से ज्यादा लोगो के घर -
खेत
और मकान दूकान सब पानी डूब
गए !!!
मित्र
ने महात्मा बुद्ध और महात्मा
गांधी को "भक्ति
रूप "”
अथवा
स्वार्थ वश याद करते हैं !!!
उन्होने
गांधी दर्शन का निचोड़ मजबूरी
बताया – अब हर व्यकरते स्त्री
-
पुरुष
को अपनी रॉय रखने का अधिकार
हैं |
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बॉक्स बॉक्स
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यही
विचारधारा हैं जो राम नवमी
और जन्माष्टमी को बड़े ज़ोर शोर
से स्मरण करती है {उनके
भक्त }
यद्यपि
उन दोनों महा पुरुषो को सतत
"”याद
"”
करते
-करते
ही अवतार माना गया |
उनके
किए गए कार्यो को हम धर्म
पुस्तकों मैं पड़ते हैं |
पर
मोहन दास करमचंद गांधी से
बापू फिर महात्मा और आखिर मे
देश ने उन्हे "”राष्ट्र
पिता "”
का
सम्मान दिया !उन्होने
महात्मा बुद्ध और महात्मा
गांधी "”के
समाज पर प्रभाव और-------
उनके
डी एन ए की मौजूदगी जानना चाहते
हैं ?
बुद्ध
का डी एन ए तो दुनिया के करोड़ो
बौद्ध धर्म के अनुयायियों
मैं मिल जाएगा |
क्योंकि
सिधार्थ से बुद्ध हुए महात्मा
ने हमारे धर्म के कर्मकांड
---यूञ्च
-
नीच
और छुआ छूत के विरोध मैं नया
मत चलाया था |
उसका
संविधान और विधान आदि त्रिपितक
मैं दिये गए हैं |
इसलिए
वे भारत से निकाल कर श्री लंका
{{रावण
}}
से
लेकर चीन -
जापान
-कोरिया
और थायलैंड -
आदि
मैं पहुंचा |
हमारे
पड़ोसी देश नेपाल {जिसे
राष्ट वादी एकमात्र हिन्दू
राष्ट्र कहते है }}
और
भूटान का तो "”राज
धरम "”
हैं
|
जिसे
राष्ट्र वादी स्वीकार नहीं
करते {{
अटल
बिहारी वाजपायी }}
वही
मोहनदास कर्मचंद् गांधी का
डी एन ए उनके पुत्र --पौत्रो
और प्रपौत्रों मैं तो मिलेगा
ही – भावनात्मक रूप से हर उस
"”भारतवासी
"”
मैं
भी मिलेगा जिनके पूर्वजो ने
अंग्रेज़ो की दासता से देश को
मुक्त कराने की लड़ाई मैं लाठी
खाई --जेल
गए और गोरी सरकार के अत्याचार
सहे |
हाँ
उन राष्ट्र वादियो मैं नहीं
मिलेगा जिनहोने दूसरे विश्व
युद्ध मैं ब्र्तिश सरकार का
समर्थन किया और सेना मैं
देशवासियों को भर्ती कराने
का इनाम पाया |
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बॉक्स बॉक्स बॉक्स
बॉक्स
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पत्रकार
मित्र की मजबूरी बताने --का
एक तर्क यह है की देश की मुद्रा
पर अभी भी उनही का अक्स हैं
!!!
किसी
अन्य राष्ट्र वादी का नहीं
!
एवं
बुद्ध तथा महात्मा किसी भी
संगठन या धर्म या समुदाय के
चेहरे के बदनुमा दाग -
धब्बे
छुपाने के
फेस पैक नहीं हैं !
बुद्ध
के करोड़ो अनुयायी जो दुनिया
भर मैं फैले हैं वे किसी की
हत्या या नफरत फैलाने का काम
नहीं करते |
वैसे
ही महात्मा के फैसले अनेकों
नेताओ को अप्रिय अथवा "”
सिद्धांतों
की अति "”
भले
ही लगे हो परंतु वे उनसे अशमत
होते हुए भी उनके साथ ही रहे
|
चौरी
-चौरा
हत्यकाण्ड के बाद जब उनहोने
ब्रिटिश सरकार के वीरुध होने
वाले राष्ट्रीय आंदोलन को
"””स्थगित
"”
कर
दिया तब काँग्रेस प्रबंध
समिति का बहुमत उनसे असहमत
था |
परंतु
आंदोलन मैं "”
हिंसा"”
को
गर्हित पाप मानते हुए उन्होने
आंदोलन को रोक दिया था !
यह
थी उस "”
नंगे
फकीर "”
की
ताकत !
उन्होने
सत्य और अहिंसा पर अडिग रहते
हुए बीमार कस्तूरबा को सफाई
करने को कहा |
उन्होने
तो बुद्ध और गांधीनाम को बुराई
को छुपाने का "””फेसपैक
"”
भी
कह दिया !!
अब
उनकी सोच इसी से पता चलती हैं
की इन लोगो को चेहरे की दाग -
ढाबे
मिटाने वाली क्रीम से तुलना
कर दी!!
सवाल
यह उठता हैं -----
दोनों
ही अहिंसा के पुजारी ----किसी
हत्यारे या बजरंगियों या गाय
के रक्षा के नाम पर गैर वेदिक
{{
राष्ट्र
वादियो की भाषा मैं हिन्दू
}}}
लोगो
को मारना पीटना या घर जलाना
-
आदि
जैसा काम तो नहीं किया !
जो
उनके डीएनए के लोगो के चेहरे
पर "”दाग
"”
लगे
|
हाँ
जिनके हिंसा का इतिहास हो
-जिनके
नेताओ द्वरा अंगेज़ों से माफी
मांगने के प्रमाण हो --ऐसे
लोगो के समर्थको के चेहरे दाग
-
धब्बे
से भरे हैं |
ना
की बुद्ध और महतमा गांधी के
|
बुद्ध
ने धर्म चलाया ,
उनके
शिस्यों मैं एक प्रखर नाम है
--दलाई
लामा |
महात्मा
गांधी -न
विचार दिया ---
भय
से मुक्ति – सत्य पर डटे रहने
का साहस |
और
उन्होने वेदिक धर्म -
इस्लाम
और ईसाई धर्म के मूल तत्वो
------प्रेम
-
दया
और साहिस्नुता की शिक्षा दी
|
सुखो
का त्याग किया -
अपने
नियमो का कठोरता से पालन किया
|
असत्य
और हिंसा से कभी सम्झौता नहीं
किया |
भले
ही वे अकेले पद गए हो |
1922 मैं
चौरी -
चौरा
कांड को के बाद उन्होने काँग्रेस
पार्टी द्वरा किए जाने वाले
देश व्यापी आंदोलन को "”स्थगित
"”
किए
जाने को कहा |
कार्य
समिति के अधिकान्स या यू कहे
बहुमत बापू के फैसले से अस ह
मत थे |
परंतु
बापू ने कान्हा की हिंसा से
आंदोलन शुरू नहीं होगा |
क्योकि
हिंसा '’असत्य"”
का
साथ देती है |
यानहा
पर साबरमती आश्रम मैं प्रधान
मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा
देश को '’’’खुले
मैं शौच से मुक्ति "””
की
घोसना की गयी |
यह
घोसना शिवपुरी जिले मैं दो
दलित बालको की दबंगों द्वारा
खुले मे शौच करने के कारण सर
पर लाठी मार कर हत्या कर दी
गयी !!!
अब
यह घटना भी प्रधान मंत्री के
दावे को असत्य सिद्ध करती है
|
पर
वे राष्ट्र के मुखिया है --उन्हे
क्या कहा जा सकता हैं |