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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Dec 22, 2019


धर्म और नागरिकता को जोड़ने के खतरे --देश विभाजन !


जनगणना फिर मतदाता सूची और आधार के बाद भी --पहचान की मांग ?



आप दुपहिया अथवा चार पहिया वहाँ चलते हुए सड़क पर जा रहे हैं - अचानक सफ़ेद वर्दी में एक पुलिस वाला आपसे पहचान पत्र मांगता हैं ---तब आप उसे अपना ड्राइविंग लाइसेन्स दिखाते हैं वह आपकी शक्ल से फोटो का मिलान करता हैं --- यह हुई सड़क पर आपकी पहचान | आप किसी शिक्षा संस्थान में प्रवेश के लिए फोरम भरते हैं – उसमें अपनी फोटो और जनम प्रमाण पत्र तथा विगत क्लास का परीक्षा प्रमाण पत्र लगाते है ----यह हुआ स्कूल या कोलज में आपकी पहचान | परीक्षा हाल में भी आपका फोटो युक्त पहचान पत्र देख कर ही आपको प्रवेश दिया जाता हैं ---- यह भी हुई आपकी पहचान \| मोदी सरकार ने सभी भारतीय नागरिकों को आधार कार्ड बनवाना अनिवार्य कर दिया – उसमें भी नागरिक का फोटो और उसकी उँगलियो के निशान लिए जाते हैं --- यह हुआ नौकरी या सरकारी योजनाओ में लाभ पाने की जरूरी शर्त ---- यह भी नागरिक की की ही पहचान हैं | आप 18 वर्ष से अधिक आयु के हैं – तब चुनावो के लिए मतदाता होने के लिए मतदाता सूची में आपकी फोटो युक्त पहचान पत्र आपकी --पहचान हैं | अब नए नियमो में आयकर का फॉर्म भर् ना जरूरी हैं ----उसके लिए भी आपको पैन नंबर मिलता हैं ---यह भी आपकी सरकारी पहचान हैं | इतनी सरकारी पहचानो के प्रमाण पत्र होने के बावजूद अमित शाह जी को ---- नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स के लिए देश के नागरिकों से एक और पहचान पत्र साबित करने की क्या ज़रूरत हैं ?? अब या तो सरकार उपरयुक्त सभी पहचान पत्रो को गैर कानूनी करार दे --की अब से सिर्फ एनआरसी ही एक मात्र पहचान होगी ? क्या संसद में इन सवालो पर चर्चा हुई ? जी नहीं --- क्योंकि अमित शाह जी को अपना चुनाव का एजेंडा भर याद था --यह नहीं मालूम था -नागरिकों के इतने पहचान पत्र वर्तमान में चलन में हैं !!



सनातन धर्मियों में जाति को लेकर एक चुटकुला बहुत प्रचलित हैं -----कहते हैं की मुगल काल में एक समय किसी रियासत के एक क़िले पर घेराबंदी बहुत समय से जारी थी | बादशाह बेचैन हो रहे थे ----की क़िले के अंदर महीने भर से ज्यादा लोग कैसे रह रहे हैं ?? उन्होने एक मुस्लिम को जासूस बना कर क़िले के हाल चाल लेने के लिए एक सैनिक को तलाक लगा कर और धोती पहना कर क़िले के अंदर भेजा " क़िले के दरवाजे पर भेदिये से परिचाय पूछा गया तो तो उसने अपना नाम रामलाल और जाति ब्रामहन बताया | जब किलेदारों ने पूछा की कौन से ब्रामहन हो तो उसने कहा "”गौड़ " फिर पुच्छा गया गौड़ों में कौन शाखा – तब उसके मुंह से निकाल गया "”या खुदा गौड़ों में भी और ......”” यह चुटकुला हमारे सनातनी समाज की दुरूह संरचना का प्रमाण हैं | हालांकि आज मुसलमानो में भी भारत आने से पहले से भी भेद था | जैसे सुन्नी में शेख और सय्यद , फिर मूल रूप से कान्हा के आदि | इस संदर्भ में प्रस्तावित एनआरसी का उद्देश्य क्या हैं ? नागरिकों की पहचान या देश की आबादी का डाटा बेस बना कर व्यापारिक उपयोग ?

मोदी सरकार के नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीज़न्स की कवायद का मूल ही विषाक्त हैं --जी हाँ , क्योंकि जो सरकार अपनी ज़िम्मेदारी आम शहरी पर डाले उसकी नियत में ईमानदारी तो नहीं हो सकती ! क्योंकि प्रत्येक भारतीय की पहचान उपरोक्त योजनाओ के तहत एकत्र जानकारी में हैं | जनहा तक बायो मेट्रिक जानकारी की बात हैं --तो वह '’’आधार कार्ड "” में हैं | उसमें व्यक्ति का चित्र और अंगूठे का निशान होता है | मतदाता कार्ड में भी व्यक्ति का चित्र और निवास का पता पिता /पति का नाम भी दिया होता हैं ---- अब इसके अलावा कौन सी जानकारी अमित शह जी को चाहिए +
जैसा की आलेख के शीर्षक से साफ है की ---- ब्रिटिश राज से आरंभ जनगणना आज भी प्रति दस वर्ष में की जाती है | उसमें व्यक्ति और उसके परिवार के बारे में जानकारी होती दर्ज़ होती हैं | हाँ उसमें पाँच पीड़ी का ईतिहास नहीं दर्ज़ होता है ! परंतु यह स्वयंसिद्ध रहता हैं की दी गयी जानकारी सही हैं | असत्य जानकारी देना दंडनीय भी हैं | 1930 तक हुई जनगणना में धरम और जाति तथा मूल स्थान का ज़िक्र किया गया हैं | परंतु 1935 में ब्रिटिश छेत्र के प्रांतो में बनी काँग्रेस सरकारो ने वायस्रॉय इन काउंसिल से इस प्रथा को रोकने की मांग की थी | जिस पर ब्रिटिश राज ने धर्म को ऐछिक और जाति के उल्लेख को प्रतिबंधित कर दिया था ! फौज और नागरिक सेवाओ में भी यही नियम लागू होगया | अब 89 साल बाद धर्म बताने की "”अनिवार्यता"” लागू की जा रही हैं !घोर इस्लामी राष्ट्र सऊदी अरब ने भी डेढ हज़ार साल पुरानी अपनी रस्मों को खतम कर रहा हैं ---और भारत में धर्म और जाति को फिर लागू किउया जा रहा हैं ! छूआ छुत निवारण अधिनियम का पालन कैसे होगा जब लोग मोटर कार में "”ब्रामहन --चौहान - पांडे और राठौर लिखवा कर सार्वजनिक रूप से बताएँगे की वे सब कुछ हैं पर "”इंसान "” नहीं हैं !! बदते औड़ोगीकरण में जब इस पहचान का कोई अर्थ नहीं रह जाता तब इसकी शुरुआत के लिए फिर किसी राजा राम मोहन रॉय या महात्मा गांधी की ज़रूरत होगी !! क्योंकि इस कुप्रथा का परिणाम होगा अंतरजातीय विवाह करने वालो को उनके परिवार वाले '’’’ इज्ज़त के लिए हत्या करेंगे '’’’’ इस आनर किलिंग को सरकार के ये फैसले बड़वा देंगे | अभी धर्म के नाम पर राष्ट्र की आबादी को बांटेंगे फिर जाति में समाज विभाजित होगा | जैसे इस्लामिक राष्ट्र पाकिस्तान में शिया और अहमदिया लोगो को कत्ले -आम किया जाता हैं | बिहार और उत्तर प्रदेश में जाति आधारित हिंसक वारदातो का इतिहास रहा हैं |
अब बैंको को हिदायत देने के लिए एक कानून लाया जा रहा हैं की वे अपने "”ग्राहको से उनके धरम के बारे में जानकारी ले !!!!!””” क्यो भाई ---- क्या होगा क्या मुसलमानो को बैंक क़र्ज़ देना बंद कर देंगे अथवा उनके खाते खोलने से मना कर देंगे ? आम तौरपर किसी भी व्यक्ति के धर्म का अंदाज़ा उसके नाम से ही लग जाता हैं ----- अब कोई सनातनी अपना नाम मुहम्मद या अल्ल्हरख़ा तो नहीं रखेगा --और ना ही कोई मुसलमान अपना नाम ईश्वर या राम नहीं रखेगा !! हाँ कुछ कनफुयजन ईसाई मतावलंबियों में होता हैं -----उनके नाम अमित या अनिल होते हैं | परंतु फिलहाल वे अभी इस विवाद से दूर हैं | हालांकि मुसलमानो के पहले आरएसएस के आनुसंगिक संगठन जैसे बजरंग दल आदि ने ईसाई मिसनरियो पर पर गरीब आदिवासियो का धरम परिवर्तन करने का आरोप लगाया था | उड़ीसा में फादर माइकल स्टेंस की जलाकर हत्या किए जाने के अभियुक्त अब देश के मंत्री हैं |
जब नागरिक की पहचान के लिए पहले से ही इतने दस्तावेज़ मौजूद हैं फिर --ज़बरदस्ती की यह कवायद अहंकार भरी ज़िद्द ही हैं |की हम सरकार हैं !!!!



Dec 20, 2019


नागरिकता संशोधन विधि और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर


सड़के जब सूनी हो -तो संसद आवारा हो जाया करती हैं --राम मनोहर लोहिया




2019 के वर्ष ने जाते -जाते संसद में प्रचंड बहुमत वाली सरकार को कड़ाके की सर्दी में भी पसीने छुडा दिये --- अब संसद आवारा होने से बच गयी ----क्योंकि सड़के अब आंदोलनकारी छात्र और छात्राओ तथा बेरोजगार नौजवानो से गतिमान हैं ! सात दिसंबर को पूर्वोतर से उठी चिंगारी ने मोदी - शाह की ज़िद्द को की नागरिकता रजिस्टर भी बनाएँगे और नागरिकता संशोधन विधि भी लागू करेंगे !! संसद में बहुमत से "”सही और गलत "” का फैसला कानूनी तौर पर भले ही हो ---पारा देश के भले के लिए हैं यह तो सड्को पर ही तय होगा , सो हो रहा हैं ! भारतीय जनता पार्टी शासित छह राज्यो के साथ 11 राज्यो में जनता इन मुद्दो पर सड़क पर विरोध कर रही हैं | समाचार पत्रो के अनुसार अभी तक 5000 से अधिक लोगो को पुलिस ने हिरासत में लिया हैं | दिल्ली की और अलीगढ में छात्रों के साथ जो हुआ उसका कुछ हिस्से का सच तो देश की पालतू टीवी मीडिया ने भी दिखाया हैं |

मोदी जी के प्यारे दोस्त '’डोनाल्ड '’ भी उधर अमेरिका में महाभियोग के आरोपी हो गए हैं | {जन} प्रतिनिधि सभा ने तो उन्हे "” राजनीतिक लाभ के लिए पद के दुरुपयोग "” का आरोपी पाया हैं | “” हालांकि सीनेट में ट्रम्प की भक्त "”रिपब्लिकन पार्टी का बहुमत हैं ------और यह पक्का हैं की ट्रम्प का बहुमत प्रतिनिधि सभा के आरोपो की जांच करने से इंकार कर सकता हैं | एवं उन्हे दोष मुक्त कर सकता हैं ! जैसे भारत में भी अनेक मंत्रियो को न्यायिक आयोग और अदालत "”क्लीन चिट'’ पा चुके हैं | लोकसभा चुनाव के दौरान भी सत्तासीन नेताओ को निर्वाचन आयोग की ओर से क्लीन चिट मिल चुकी हैं !
पर भारत और अमेरिका में एक समानता तो दिखाई ही दे रही है ----वह हैं की क्रिष्मास और नव वर्ष के बावजूद लोग सड्को पर आंदोलन कर रहे हैं ----- राम मनोहर लोहिया को सच साबित करने के लिए |

2019 का आखिरी माह लगता हैं की देश का नौजवान , केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को उनकी हैसियत दिखा रहा हैं ! उन्होने जब जम्मू -काश्मीर के त्रि -भाग किए ,उसका विशेस दर्जा छीना तब -हिंदुस्तान नामक देश में कोई विरोध नहीं हुआ ! क्योंकि सरकार मुसलमानो के खिलाफ कारवाई कर रही थी ! उनको घेरने के लिए सेना तैनात की गयी थी | जे एन यू में और दूसरी राष्ट्रीय शिक्षा संस्थानो की भी फीस में व्रद्धि की तब कुछ छात्र संगठनो ने विरोध किया | दिल्ली - खड़गपुर आदि में पुलिस ने छात्र प्रदर्शन को रोका थोड़ी लाठी भी लहराई | परंतु नागरिक रजिस्टर और नागरिकता संशोधन विधि के पारित होते ही पूर्वोतर "”जल उठा "” | हालांकि इन दोनों कानूनों का निशाना इस्लाम के बंदो पर था , परंतु भाषा - संसक्राति की रक्षा के लिए पूर्वोतर के जन जातीय और सामान्य निवासी सड्कों पर उतर आए | झारखंड में विधान सभा चुनावो में प्रचार कर रहे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा "” आन्दोलंकारियों के पहनावे से उन्हे पहचाना जा सकता हैं ! यह भाषा है विश्व के दूसरे सबसे बड़े लोकतान्त्रिक राष्ट्र की !! जो सदैव राष्ट्रवाद और इंडिया फ़र्स्ट कहता हैं ! राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी तथा गोवा के सनातन आदि समान विचार धारा के संगठनो के लोग "”” इसे भारत जो की इंडिया के नरेटिव को हिन्दी -हिन्दू और हिंदुस्तान ने बदलना चाहते हैं | इनके अनुसार जो मुसलमान नहीं वह हिन्दू !! क्योंकि नागरिक संशोधन विधि की भाषा तो यही बता रही हैं !! काश्मीर से कन्या कुमारी के मध्य पंजाबी - डोगरी - मारवाड़ी - भोजपुरी - अवधि -बुन्देली -बघेली – तेलगु- तमिल - कडिगा और मलयालम के अलावा सैकड़ो जन जातीय भाषये अथवा बोलिया भी हैं ! इसलिए सिर्फ हिन्दी को जबरिया देश की पहचान नहीं बताया जा सकता | उसी प्रकार हिन्दू के अलावा इस देश में मुसलमान -ईसाई – सिख और जैन तथा बौद्ध पारसी भी रहते हैं | उनके अपने धर्म है जिनमे उनकी आस्था हैं | इसलिए भारत कभी भी सिर्फ तथा कथित '’’हिन्दुओ का अकेला नहीं हो सकता "” | इसमे यानहा के सभी जाति या धरम के निवासियों का हक़ हैं ! सनातन धरम के समर्थक अगर हैं तो उन्हे समझना चाहिए की – किस प्रकार आर्य और द्रविड़ संसक्राति हजारो साल से कुछ नरम होकर कुछ गरम होकर साथ साथ रहते आए हैं | भाषा – खान पान और रहन -सहन में भिन्नता ने वैमनस्या नहीं पैदा किया | परंतु 21 वी सदी के हिन्दू महासभा और संघ द्वरा जिस प्रकार दो धर्मो के लोगो के बीच नफरत फैलाने की कोशिस भारत को बहुत नुकसान पहुंचाएगी | धर्म आधारीत एक विभाजन देश भुगत चुका हैं , अब यह नफरत देश को अनेकों भागो में विभाजित कर देगी |








भारतीय जनता पार्टी के नरेंद्र मोदी के नेत्रत्व में 2014 में सहयोगी राजनीतिक दलो की जो सरकार बनी थी --- उसके शासन में अनेकों परंपराए टूटी हैं , खास कर मर्यादा और विनम्रता की | मोदी और अमित शाह की जोड़ी को यह यश जरूर मिलेगा की उन्होने ऐसी सरकार चलायी – जैसे आज़ादी के बाद ना तो नेहरू और ना ही अटल जी ने चलायी थी ! परंतु संसदीय बहुमत के चलते उन्होने जीएसटी जैसे वित्त विधेयक को '’’’सामन्य विधेयक की भाति ही पारित कराया और अदालत ने इसमे दखल नहीं दिया | जम्मू - काश्मीर के संविधान में विशेस स्थिति को को संविधान में बिना संशोधन किए ही खतम किया , और उसके तीन "”” टुकड़े - टुकड़े "”कर दिये |तब तक देश के कुछ बुद्धिजीवियों { जिनहे मोदी भक्त राष्ट्र द्रोही कहते है } को छोड़कर मीडिया और लेखक भी चुपचाप बैठे थे !! परंतु जैसे ही महाराष्ट्र में बीजेपी सरकार के गठन के लिए सारी स्थापित और मान्य परंपराए तोड़ी, और शिवसेना के उद्धव ठाकरे ने बीजेपी को छोड़ा और एनसीपी तथा काँग्रेस से मिलकर सरकार बनाई | तबसे यह साफ हो गया की "”खरीद फरोख़्त के विधायकों से सरकार बनाने के लिए राज्यपालों को जिस प्रकार "”झुकाया गया "” { कर्नाटका - महाराष्ट्र } उसके बाद आम नागरिक का भी "””प्रताड़णा का भय "”” समाप्त हो गया !
क्योंकि तब सरकार चलाने वाले जुनटा का अंतिम शस्त्र को लोगो ने देख और समझ लिया था !!
इसीलिए राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर और नागरिकता संशोधन विधि के संसद से पास हो जाने के बाद जनता को समझ में आ गया था की उसे अपनी लड़ाई खुद ही करनी होगी , क्योंकि सरकार विरोधी दलो के नेताओ पर तो सीबीआई और ईडी तथा एंटी करापप्शन विंग को लगा दिया जाता है | फलस्वरूप वे लोग अपनी '’जान और इज्ज़त बचाने में लग जाते है |
हमेशा की तरह ही इस बार ही देश के छात्रों ने सरकार के दोनों के फैसले के खिलाफ सड़क पर उतर आए |
बस फिर क्या था --- चीन और बंगला देश भूटान और नेपाल से सटे पूर्वोतर के आठ राज्यो में सात दिसंबर से छात्रों ने जो मोर्चा निकालना शुरू किया तो विरोध किया चिंगारी सारे देश में व्याप्त हो गयी !! इसके पहले जे एन यू के छात्रों ने सरकार द्वरा फीस बढाये जाने को लेकर भी राजधानी में प्रदर्शन किया था | पुलिस ने छात्रों के जुलूस को रोकने के लिए "”थोड़ा लाठी चार्ज किया "” जिसमें एक दिव्याङ्ग { नेत्रहीन } को भी दिल्ली पुलिस के बहादुर जवानो ने घायल करने से नहीं छोड़ा | इसके बाद दिल्ली विस्वविद्यालय के अतिथि शिक्षको के प्रदर्शन को भी पुलिस की "”क्रूरता "” का सामना करना पड़ा | तब तक सारे देश में नागरिकता संशोधन विधि और एनआरसी के खिलाफ उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक प्रदर्शनो का दौर लग गया | कुछ स्थानो पर हिनशा भी हुई - पूर्वोतर में युवको
ने सेना और पुलिस के अत्याचारो से बचाव के लिए --- दिन में ही आंदोलन करने का फैसला लिया |
परंतु जब दिल्ली के जामिया मिलिया के छात्रो ने सरकार के फैसलो के वीरुध मार्च निकाला तब "”” तो दिल्ली पुलिस का घिनौना सांप्रदायिक चेहरा सामने आया "” – जिस प्रकार पुलिस ने बर्बरता पूर्वक पुस्तकालय में बैठे छात्र और छात्राओ को लाठी से पीटा उसके वीडियो उजागर हैं | पुलिस के डीआईजी कहते हैं की गोली नहीं चली __ परंतु गोली से घायल छात्र और एक नागरिक के इलाज़ में डाक्टरों ने पहले तो गोली के होने की तसदीक़ की --- और दूसरे दिन पता नहीं किस के दबाव में होली फैमिली और सफदारगंज अस्पताल के डाक्टर कहने लगे हाँ चोट तो लगी थी प्रोसिजर भी किया था !!!! डाक्टरों के व्यवहार और वचन में बदलाव के कारण को समझने में ज़्यदा दिक़्क़त नहीं आएगी ---आखिर ये हिंदुस्तान हैं प्यारे यानहा सरकार का हो सर पर हाथ तो बड़ी से बड़ी इमारत भी गिराई जा सकती हैं !! बड़ी मासूमियत से इसे समझा जा सकता हैं !! की निज़ाम कैसा हैं --आर हुक्काम कैसा हैं ??



बॉक्स
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जी झारखंड में बड़े ज़ोर -शोर से पहले कह रहे थे की "”देखो काँग्रेस ने मंदिर निर्माण को रोक रखा था -हमने आते ही सुलझा दिया और सीएचआर माह में मंदिर बनना शुरू हो जाएगा ! “”” एनआरसी सारे देश में लागू करूंगा | “” जब देश में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर और नागरिकता संसोधन विधि के विरोध में लाखो - लाखो लोग सड्कों पर निकल आए तब , उनकी भाषा बदल गयी | कहने लगे जो इस देश के नागरिक हैं उन्हे कोई हानी नहीं होगी !! अब इसका मतलब की ----क्या सिर्फ धरम विशेस के लोगो को ही अपनी नागरिकता का प्रमाण देना होगा ?? दूसरे धर्मो के लोगो को क्यो नहीं ? क्या दो हज़ार साल पहले की पराजय का बदला अब लिया जाएगा !

हक़ीक़त तो यह हैं की अमित शाह अगर पाकिस्तान और अफगानिस्तान के हिन्दू और सिखो को नागरिकता देना चाहते हैं तो उसके लिए इतना बड़ा "”आपरेशन करने की ज़रूरत नहीं थी !
आंकड़े बताते हैं की --- 2016 ---18 की अवधि में कुल 1988 लोगो को नागरिकता प्रदान की गयी | इनमे 1595 लोग पाकिस्तान के थे 381 अफगानिस्तान के थे | 2019 में अभी तक 712 पाकिस्तानी और 40 अफगान शरणार्थियो को भारतीय नागरिकता प्रदान की गयी |
नागरिकता संशोधन विधि ने सिर्फ इतना ही किया है की – जनहा पहले इन लोगो को भारत में निवास की मियाद 11 वर्ष थी , जिसे अब 5 वर्ष कर दिया गया हैं | इस कानून से पाकिस्तान और अफगानिस्तान में बसे हुए हिन्दू और सिखो पर स्थानीय कट्टर पंथियो ने अब दबाव बनाना शुरू कर दिया --तो उनके जीवन में और कठिनाइया आ जाएंगी \



Dec 14, 2019


आंदोलन और अशांति क्या न्याय में अड़ंगा बनेंगे ?

सबरीमाला में महिला प्रवेश -और सुप्रीम कोर्ट का हिंसा का भय क्या न्याय हैं ?

केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओ के प्रवेश पर मंदिर प्रशासन द्वरा पाबंदी लगाए जाने को ,यूं तो सर्वोच्च न्यायालय 28 सितंबर 2018 को फैसला दे चुका हैं की राज्य सरकार समानता के संवैधानिक मूल अधिकार के तहत सभी आयु की महिलाओ को प्रवेश दे | पाँच न्यायाधीशो की पीठ का यह बहुमत का फैसला था | इस फैसले के तहत कुछ नारी आंदोलन की करायकर्ताओ को मंदिर में प्रवेश भी देना पड़ा था | परंतु इस फैसले पर कट्टर पंथियो की जमात ने इसे '’आस्था '’ से छेड़छाड़ बाते था ,और प्रदर्शन भी हुआ था |
परंतु इस वर्ष केरल सरकार ने महिलाओ को मंदिर जाने के लिए "”पुलिस की सुरक्षा नहीं सुलभ कराई "” काँग्रेस के नेत्रत्व वाली विजयन सरकार आम लोगो "सनातनी " को नाराज नहीं करने के लिए –यह फैसला लिया | जब राज्य सरकार की इस कारवाई के वीरुध इस सप्ताह प्रधान न्यायाधीश शरद बोवड़े की तीन सदस्यीय पीठ में महिला संगठनो ने अदालत द्वारा प्रदेश सरकार को उचित निदेश ईईए जाने की मांग की -तब प्रधान न्यायाधीश बोवड़े ने माना पुराने फैसले पर कोई रोक नहीं हैं – वह फैसला अंतिम भी नहीं हैं !! उन्होने यह भी कहा की कानून आपके पक्ष में हैं -यदि इसके पालन हुआ या उल्लंघन किया गया तब हम लोगो को जेल भेज देंगे ! परंतु हम किसी तरह की हिंसा नहीं चाहते !! अब इस फैसले को क्या माना जाए ? अदालत का निर्देश अथवा उनकी बेबसी ? अगर संविधान प्रदत अधिकारो का पालन कराने में सर्वोच्च न्यायालय मदद नहीं कर सकता तब अनुच्छेद 32 के अंतर्गत तीनों न्यायिक उपचार --- रिट ऑफ मानडामेस या {परमादेश का प्रादेश } का क्या अर्थ रहेगा ?
कुछ ऐसी ही आशंका सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई को अयोध्या विवाद पर फैसला देने के पूर्व भी हुआ था ----जब उन्होने खुली अदालत में सम्पूर्ण पीठ का फैसला सुनाने के पहले रात्रि में उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव और पुलिस महा निदेशक को तलब किया था , और उनसे बात की थी | यद्यपि ना तो प्रधान न्यायधीश गोगोई ने अथवा यू पी के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक ने रात की बैठक में क्या हुआ इसका खुयशा नहीं किया !! अनुमान यही लगे जाता है की फैसले के मद्दे नज़र राज्य में शांति - व्यवस्था का जायजा ही लिया होगा |
इन दो हालातो के संदर्भ में अगर हम कानूनी हक़ अथवा सामाजिक सुधारो की बात करे तो राजा राम मोहन रॉय द्वरा सती प्रथा की मांग जब उठाई थी – तब भी समाज के बहुसंख्यक लोग जो "”लकीर के फकीर "” बने चली आ रही प्रथा को बदले जाने के खिलाफ थे ! वह समय था जब भारत पर ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन था | परंतु तब लॉर्ड विलियम बेंटिक जनरल थे , उनहो ने सती प्रथा पर प्रतिबंध -मानवीय आधार पर लगाया | तब ना तो संविधान था और नाही नागरिक अधिकार थे "”लोग कंपनी की प्रजा थे ! उसी काल में ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने बाल विवाह पर रोक और विधवा विवाह और स्त्री शिक्षा का जब बीड़ा उठाया तब भी ईस्ट इंडिया कंपनी का ही राज़ था | आज़ादी के पहले देश की 600 से अधिक रियासतो में जाति प्रथा के आधार छूयाछुत भी सामाजिक और शासकीय रूप से मान्य हिनहि थी वरन उल्ल्ङ्घन दंडनीय भी था !
संविधान के प्रवर्तन के बाद मंदिरो के द्वार सभी जाति के नर -नारियो के लिए खुल गए थे ! आज भी जाति के आधार पर भेदभाव और प्रताड़ना के किस्से सुने जाते और पढे भी जाते हैं ! जबकि अनुसूचित जातियो के साथ भेदभाव और प्रताड़ना कानुनन "”अपराध "” हैं ! तब सुप्रीम कोर्ट की बेबसी देश के जागरूक नागरिक को परेशान करती हैं -जिनमे मै भी हूँ |
आज देश में में नागरिकता संशोधन विधि को लेकर देश के 12 से अधिक राज्यो में प्रदर्शन हो रहे हैं – पूर्वोतर के सभी आठो राज्य आंदोलनरत हैं | छत्रों और युवको का रोष कभी कनही कनही आगजनी और पथराव का भी रूप ले चुका है | केंद्र सरकार ने पूर्वोतर के राज्यो में सेना की भारी -भरकम तैनाती की हैं | दो प्रदर्शनकारियो की सुरक्षा बालो की गोल से मौत भी हो गयी हैं | सरकार ने सभी अशांत छेत्रों में संचार माध्यम इंटरनेट --एसएमएस की सेवाओ को बंद कर दिया हैं | आंदोलन तीसरे दिन भी जारी हैं प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का शांति का आवाहन भी '’’अनसुना हैं '’
नागरिकता संशोधन विधि के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में अनेक याचिकाए दाखिल हैं | अब क्या इस हालत में इन याचिकाओ पर "”गुण -दोष "” के आधार पर न्याय हो सकेगा ---अथवा इन छेत्रों में शांति - व्यवस्था को ध्यान में रख कर सर्वोच्च न्यायालय --भी बेबसी व्यक्त करेगा |

Dec 12, 2019


नागरिक संशोधन कानून ?

अमित शाह जी -खंडित जनादेश से – पूर्वोतर के हिन्दू युवको में आक्रोश क्यो !




सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर आसाम में "”नागरिकों "” की पहचान की कवायद के परिणाम में तीन साल और 1600 करोड़ रुपये के खर्चे के बाद भी संघ और बीजेपी की मुसलमान विरोधी कारस्तानी में "”विदेशी नागरिक {यानि की मुसलमान } तो इतने भी नहीं निकले की असम सरकार द्वरा निर्मित छ डिटेन्सन सेंटर अर्थात यातना गृह, जिनकी बंदी छंमता तीस हज़ार उन्हे भी ! भरा जा सके !! परंतु जैसे हर व्यक्ति के दुर्दिन आते हैं --उसी प्रकार आज़ादी के सत्तर साल बाद भारत अर्थात इंडिया के दुर्दिन शुरू हुए --- या यूं कहे की सनिशचर की साढे साती शुरू हो गयी ! संसद में बहुमत देश का जनादेश नहीं --वह सांकेतिक या प्रतिनिधिस्वरूप है , जो सरकार बनाने के लिए हो सकती हैं ,परंतु देश की आवाज नहीं हो सकती ! संसद जब किसी पार्टी के घोषणा पत्र या अपने कुछ "”जुनटा टाइप "”नेताओ की सनक की गुलाम की तरह व्यव्हार करती हैं ----तब वह उस रोमन सीनेट की तरह व्यवहार करती है ---जो जूलियस सीजर की सदन में हत्या करती है ! भारतीय संविधान की "”मूल भावना "” जो सर्वप्रथम लिखी हुई हैं ---जब उसको ही संसदीय प्रक्रिया और बहुमत के आसरे नकार दिया जाए , तब कैसा लोक तंत्र ! नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी को यह नहीं भूलना चाहिए की उनके बहुमत से कनही अधिक राजीव गांधी को भी बहुमत मिला था | परंतु उन्होने दलबदल कानून बनाया था --जिससे की जन प्रतिनिधि मनमानी तरीके से पैसे पर या मंत्री पद के लालच में जिस पार्टी से जनता द्वरा चुने गए उसे छोड़ दे ! परंतु आज की इस युगल जोड़ी ने अपने धनपती मित्रो की मदद से सारे देश के राज्यो में दल बदल को ही अपने अलपमत को सीबीआई और ईडी की सहायता से सरकारे बनाई --- अदालतों को भी प्रभावित किया |तब अगर कनही संसद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके राजनीतिक मुखौटे भारतीय जनता पार्टी को कानुनन प्रतिबंधित कर देती ---तब भी क्या वह जनदेश होता ? या लोकतान्त्रिक होता ?

अमित शाह जी आपकी रणनीति तो उल्टी पड गयी – क्योंकि अपने "”पोषित पूर्वोतर की "” सेवेन सिस्टर्स "” प्लस वन के लोगो की अस्मिता की रक्षा के नाम पर "’अपने घोषणा पत्र के वादे "” की आड़ में मुसलमानो को यातना ग्रहो में रखने का की जो चाल चली थी --वह तो उल्टी पड़गयी ! समस्त पूर्वोतर में आज युवक -युवतियाँ सड़क पर विरोध कर रहे हैं , और आप काश्मीर की भांति वनहा भी सेना को सन्नध कर रहे हैं ! आंदोलनकारियों ने तो वैसे ही असम - त्रिपुरा -अरुनञ्चल - मणिपुर मे बंद का नारा दिया हुआ हैं --तो आप करफ़्यू लगाने की और सेना को अलर्ट करने का नाटक क्यू ! सबसे बड़ी बात यह हैं की इन आंदोलन कारियों में सभी हिन्दू हैं ! मुसलमान नहीं |

जनादेश का सच :- भारत गणराज्य में मौजूदा 28 राज्यो में कुल विधान सभा सीट है 4139 , जिसमे से भारतीय जनता के पास मात्र 1519 हैं , – क्या इन सभी को देश का जनादेश माना जा सकता हैं ? दूसरे लिटमुस टेस्ट में इन 28 राज्यो में में मात्र 6 राज्यो में – गुजरात - कर्नाटक - हिमांचल - उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड और गोवा में ही इनकी शुद्ध रूप से सरकार हैं ! बाकी बिहार - हरियाणा असम - त्रिपुरा - मणिपुर - मेघालय में "” मिलवाटी" सरकार हैं | चार राज्यो में तो इनकी पार्टी ज़ीरो बट्टा स्न्नटा प्रतिनिधित्व हैं ! इस स्थिति में देश का जनादेश कहना कितना सच हैं आप जाने ! वैसे काँग्रेस की भी शुद्ध सरकार मध्य प्रदेश -पंजाब - छतीसगरह -और राजस्थान में भी हैं | महाराष्ट्र और केरल में उनके मोर्चे की सरकार हैं ----तब क्या सिर्फ लोकसभा और राज्य सभा में "” प्रबंध "” के गणित से नागरिकता विधेयक को पारित कराना – क्या नरेंद्र मोदी जी के शब्दो में "” इस बिल को स्वर्ण अक्षरो "” में लिखे जाने की संज्ञा को प्रपट करता हैं ? विचार करने का विषय हैं |

न्यायाधीशो की नजर में :- भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश श्री लोडा ने इस कानून को पूरी तरह असंवैधानिक बताया हैं | लोढाजी को लोग सरकार के प्रति नरम रवैया रखने वाला मानते हैं | ये वही न्यायाधीश हैं जिनहोने बोर्ड ऑफ क्रिकेट कंट्रोल ऑफ इंडिया --में व्ययप्त धांधलियों को चुस्त और -दुरुस्त करने के लिए नियम बनाया था -की दो बार से अधिक अवधि के लिए पड़ पर निर्वाचित लोग आगे के चुनावो के लिए '’अयोग्य हो जाएब्गे " | उनके इस सुधार के कारण ही दासियो वर्षो से धन और राजनीतिक रसूख से पड़ पर बैठे लोगो को क्रिकेट की राजनीति करने से बाहर कर दिया |

नागरिकता विधि और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजेन्शिप :- सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में असम में "”विदेशियों की पहचान "” करने के लिए की गयी इस कवायद में निम्न कामिया हैं :-
1-- असम में रहने वाले हर रहवासी /निवासी को यह साबित करना है की वह भारत का कानूनन नागरिक हैं | साक्ष्य विधि के अनुसार यह दावित्व सरकार है की वह यह सिद्ध करे अमुक विदेशी घुश्पैठिया हैं | हालांकि अमित शाह जी ने लोक सभा में भले "घुसपीठिए शब्द '’का प्रयोग किया हो परंतु राज्य सभा में उन्होने इस शब्द को बादल कर "” विदेशी "” कहा | अब कोई विदेशी है अथवा नहीं यह तो उसके निवास और जनम प्रमाण पत्र से साबित होता हैं | परंतु नहीं सुप्रीम कोर्ट की निगरानी और श्री हजेला के नेत्रत्व में की गयी कारवाई के अनुसार इस देश के पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय फख़रुडीन आली अहमद के परिवार को को --विदेशी नागरिकों की पहचान के लिए बने ट्रीबुनल के सामने सिद्ध करना हगा की वे भारत के नागरिक हैं !!

2:- किसी नागरिक की पहचान उसके जन्म प्रमाण पत्र से होती है | गावों में भी पंचायत रजिस्टर में ग्रामवासियों की जनम और मौत का रेकॉर्ड रहता हैं | कम से कम उन इलाको में जो आजादी से पूर्व ब्रिटिश शासन के सीधे अधीन थे | आज़ादी के बाद होने वाले चुनाव में जो व्यक्ति 21 वर्ष का था उसका नाम वॉटर लिस्ट में होता हैं | राजीव गांधी के काल में यह आयु 18 वर्ष कर दी गयी | स्वर्गीय शेसन ने फोटो युक्त वोटर पहचान पत्र बनने के बाद -स्थिति और स्पश्स्त हो गयी | अब वोटर तो वही हो सकता हैं जो "” भारत का नागरिक होता हैं "” | तब स्वर्गीय अहमद के परिवार के लोग स्व्यमेव इस देश के नागरिक हैं ! परंतु नहीं - वे मुसलमान हैं इसलिए उन्हे अपनी नागरिकता सिद्ध करनी होगी |
इसी तारतम्य में आधार कार्ड भी बना ---वह भी भारत के नागरिकों के लिए ही था -किसी विदेशी नागरिक के लिए नहीं था | यदि किसी के पास आधार कार्ड हैं तब भी वह इस देश का नागरिक हैं |
तीसरा गरीब मजदूरो के लिए , जो की पूर्वोतर में बहुतायत से हैं – उन्हे सरकारी योजनाओ में कार्य करने के एवज़ में "”मनरेगा कार्ड "” बनाए गए हैं वे भी उनही के लिए हैं जो उस इलाके के स्थायी निवासी होते हैं , और वे पंचायत के रजिस्टर में पंजीकरत होते हैं , कम से कम नियम तो यही हैं |
चौथा पहचान पत्र पैन नंबर कार्ड का हैं ---जो नए नियमो के तहत सभी को बनवाना पड़ता हैं -भले ही वह विद्यारथी ही क्यो ना हो | यह आयकर विभाग द्वरा जारी किया जाता हैं |

हर दस वर्ष में देश में जनगणना होती हैं , जो घर - घर जाकर की जाती हैं | इसमे परिवार के सभी सदस्यो का विवरण होता हैं | पिछले बार से दिव्यंग यानि स्पेशल बच्चे अर्थात जिनमें की शारीरिक या मानसिक कमी हो उनका भी ब्योरा रखा जाता हैं | आम तौर पर निवास के लिए जनगणना रेकॉर्ड ही प्रमाण पत्र होता हैं | अगर सरकार या शासन को किसी भी व्यक्ति के मूल निवास का पता करना हो तो ,इस रेकॉर्ड से पता चलता हैं |
अब असम में उत्तर प्रदेश और बिहार से पिछली शताब्दी में काम की तलाश में लाखो लोग वनहा गाये थे | जैसे 19वी सदी में मरीशस - त्र्निदाद आदि देशो में भी पुरवांचल से "” गिरमिटिया "” मजदूर यानि की एग्रीमंट के तहत विदेश भेजे जाने वाले मजदूर ! उसी की तर्ज़ पर असम के चाय बागानो मे अंग्रेज़ यू पी और बिहार से मजदूरो को लेकर आए थे | जो बाद में जमीन साफ कर के खेती करने लगे | असम गण संग्राम परिषद के "”बाहरी लोगो को "” निष्काषित करने के आंदोलन के बाद इनके नाम जन गनना में तो आए परंतु इन्हे "”मतदान का अधिकार नहीं मिला "” | संघ और मोदी -शाह की कोशिस थी की इनमे मुसलमानो को "””बाहरी नागरिक "” या विदेशी नागरिक "” बता कर यातना ग्रहो में रखा जाए ---जिससे की बीजेपी विरोधी वोट सदा के लिय बाहा र हो जाए |
सवाल हैं की क्या देश धरम के आधार पर होने वाले इस एनआरसी की स्वीकार करेगा ? पंजाब और बंगाल के मुख्य मंत्रियो ने तो साफ मना कर दिया हैं |

साक्ष्य अधिनियम --- के अनुसार आपराधिक प्रक्रिया में दोष सिद्ध करने का काम शासन का होता है | परंतु महाराष्ट्र के "” मकोका "” कानून जो की माफिया गिरोह के लोगो के लिए इस्तेमाल किया जाता है ------उसमें यह धारा हैं की आरोपी को सिद्ध करना होता हैं की वह "””निर्दोष "” हैं | कुछ इसी प्रकार का प्रावधान वर्तमान सरकार ने इस नागरिकता कानून में भी किया हैं | अब यह कान्हा तक न्याय हैं की लाखो लोगो को स्वयं सिद्ध करना पड़े की वे भारतीय नागरिक हैं ?