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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Sep 26, 2016

क्यो नहीं राम और कृष्ण को जल देते है और गंगापुत्र को देते है

क्यो नहीं राम - कृष्ण को जल देते और गंगापुत्र को देते है
पित्ःपक्ष के सोलह दिनो मे सनातन धर्मी अपने पिता - बाबा और परबाबा तथा माता पक्ष के लोगो को जल देते है | परंतु किसी के लिए भी अचरज की बात हो सकती है की किसी भी अवतारी विभूति को यह गौरव नहीं प्राप्त है जो कुरुवंशी शांतनु पुत्र देवव्रत को है |

इस पक्ष के दौरान अपने पूर्वजो की आत्मा की शांति के लिए भोजन और जल देने का वेदिक विधान है | एक प्रकार से यह व्यक्ति को उसके परिवार के इतिहास के बारे मे अवगत करता है -वनही उनके गौरव से अभिभूत होता है | यह भी माना जाता है की ट्राप्त होकर पूर्वज अपनी वंश परंपरा के वाहको को आशीर्वाद देते है |
तर्पण की क्रिया के तीन भाग होते है | देव तर्पण मे 28 देवो को जल दिया जाता है | इसमे अंतिम जलांजलि "”ग्राम के चारो ओर के भूत "”” को भी प्रदान की जाती है | इनमे ब्रमहा _--_विष्णु रुद्र-- समेत -ऋषि - गंधर्व - यक्ष - पिशाच--आदि समेत सरिता -पर्वत सभी को स्मरण करके उन्हे "”ट्रप्त"” करने की प्रार्थना की जाती है |इन्हे अच्छत के साथ जल देते है | ऋषि तर्पण मे दस ऋषियों का आवाहन कर के जल स्वीकार करने की प्रार्थना की जाती है | अचरज की बात है की हम रावण के पिता पुलसत्य का भी आवाहन करते है | इसका अर्थ यह हुआ की मानव और -दानव का अंतर बाद का है
अंत मे दिव्य तर्पण मे हम अपने पिता -बाबा परबाबा और नाना -परनाना आदि समस्त दिवंगत सम्बन्धियो की आत्मा की शांति के लिए उन्हे जल देते है |

ऋषि तर्पण मे यज्ञोपवीत गले मे माला जैसा और दिव्य तर्पण मे उल्टे बांह मे रखा जाता है | 14 यमो को भी जल दिया जाता है | यह अपसव्यहो कर किया जाता है | इसके उपरांत ही शांतनु पुत्र देवव्रत जिनहे विश्व भिस्म पितामह के नाम से जानता है ---उन्हे देवता समान जल देते है | एक प्रश्न उठता है की जिस सभ्यता मे अनेक अवतार हुए – उन्हे इस कर्मकांड मे क्यो स्थान नहीं दिया गया ? और गंगा पुत्र को यह गौरव कैसे मिला की वे जब तक वेदिक संसक्राति रहे तब तक लोग उन्हे स्मरण करे और उन्हे जल प्रदान करे ?
मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार देवव्रत वसु थे जिनहे शाप मिला था -जैसा की गंगा ने शांतनु को छोड़ते हुए कारण बताया था | दूसरे सभी अपने पिता को "”वसु स्वरूप "” मानकर ही जल देते है | तीसरा यह की इच्छा म्रत्यु का वरदान पाकर इस आर्यावर्त मे धर्म की स्थापना का करी किया था | चूंकि वे आजीवन ब्रांहचारी रहे ---इसलिए वंश मे उनकी बेल उनही के साथ समाप्त हो गयी | अब ऐसे महा मानव को हजारो वर्षो तक सभ्यता और धर्म के प्रति पालक के रूप मे स्मरण करना हमारा सौभाग्य है |