क्यो
नहीं राम -
कृष्ण
को जल देते और गंगापुत्र को
देते है
पित्ःपक्ष
के सोलह दिनो मे सनातन धर्मी
अपने पिता -
बाबा
और परबाबा तथा माता पक्ष के
लोगो को जल देते है |
परंतु
किसी के लिए भी अचरज की बात हो
सकती है की किसी भी अवतारी
विभूति को यह गौरव नहीं प्राप्त
है जो कुरुवंशी शांतनु पुत्र
देवव्रत को है |
इस
पक्ष के दौरान अपने पूर्वजो
की आत्मा की शांति के लिए भोजन
और जल देने का वेदिक विधान है
| एक
प्रकार से यह व्यक्ति को उसके
परिवार के इतिहास के बारे मे
अवगत करता है -वनही
उनके गौरव से अभिभूत होता है
| यह
भी माना जाता है की ट्राप्त
होकर पूर्वज अपनी वंश परंपरा
के वाहको को आशीर्वाद देते
है |
तर्पण
की क्रिया के तीन भाग होते है
| देव
तर्पण मे 28
देवो
को जल दिया जाता है |
इसमे
अंतिम जलांजलि "”ग्राम
के चारो ओर के भूत "””
को
भी प्रदान की जाती है |
इनमे
ब्रमहा _--_विष्णु
रुद्र-- समेत
-ऋषि
- गंधर्व
- यक्ष
- पिशाच--आदि
समेत सरिता -पर्वत
सभी को स्मरण करके उन्हे
"”ट्रप्त"”
करने
की प्रार्थना की जाती है |इन्हे
अच्छत के साथ जल देते है |
ऋषि
तर्पण मे दस ऋषियों का आवाहन
कर के जल स्वीकार करने की
प्रार्थना की जाती है |
अचरज
की बात है की हम रावण के पिता
पुलसत्य का भी आवाहन करते है
| इसका
अर्थ यह हुआ की मानव और -दानव
का अंतर बाद का है
अंत
मे दिव्य तर्पण मे हम अपने
पिता -बाबा
परबाबा और नाना -परनाना
आदि समस्त दिवंगत सम्बन्धियो
की आत्मा की शांति के लिए उन्हे
जल देते है |
ऋषि
तर्पण मे यज्ञोपवीत गले मे
माला जैसा और दिव्य तर्पण मे
उल्टे बांह मे रखा जाता है |
14 यमो
को भी जल दिया जाता है |
यह
अपसव्यहो कर किया जाता है |
इसके
उपरांत ही शांतनु पुत्र देवव्रत
जिनहे विश्व भिस्म पितामह
के नाम से जानता है ---उन्हे
देवता समान जल देते है |
एक
प्रश्न उठता है की जिस सभ्यता
मे अनेक अवतार हुए – उन्हे इस
कर्मकांड मे क्यो स्थान नहीं
दिया गया ? और
गंगा पुत्र को यह गौरव कैसे
मिला की वे जब तक वेदिक संसक्राति
रहे तब तक लोग उन्हे स्मरण करे
और उन्हे जल प्रदान करे ?
मेरे
अल्प ज्ञान के अनुसार देवव्रत
वसु थे जिनहे शाप मिला था
-जैसा
की गंगा ने शांतनु को छोड़ते
हुए कारण बताया था |
दूसरे
सभी अपने पिता को "”वसु
स्वरूप "”
मानकर
ही जल देते है |
तीसरा
यह की इच्छा म्रत्यु का वरदान
पाकर इस आर्यावर्त मे धर्म
की स्थापना का करी किया था |
चूंकि
वे आजीवन ब्रांहचारी रहे
---इसलिए
वंश मे उनकी बेल उनही के साथ
समाप्त हो गयी |
अब
ऐसे महा मानव को हजारो वर्षो
तक सभ्यता और धर्म के प्रति
पालक के रूप मे स्मरण करना
हमारा सौभाग्य है |
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