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Oct 1, 2016

इन्जिनियरिग के बाद मेडिकल कालेजो मे शिक्षा माफिया का अंत प्रदेश सरकार की स्वर्णिम पहल

इन्जिनियरिग के बाद मेडिकल कालेजो मे शिक्षा माफिया का अंत

प्रदेश सरकार की स्वर्णिम पहल



तीस सितंबर 2016 मध्य प्रदेश के लिए विशेस तौर महत्वपूर्ण दिन साबित हुआ जब प्रदेश के निजी और शासकीय मेडिकल कालेजो मे N.E.E.T. की मेरिट लिस्ट के आधार पर छत्रों की काउन्सलिन्ग पूरी हो गयी | इस एक कदम से प्रदेश के हजारो छात्रो को मेडिकल मे प्रवेश के लिए "”नीलामी "” नहीं लगानी पड़ी | उच्च न्यायालया के आदेश के उपरांत अब यह स्पष्ट हो गया है की एक - एक सीट के लिए बीस से तीस लाख रुपये की उगाही ने अनेक "”योग्य "” छात्रों को निराश तो किया ही था अनेकों ने तो आत्म हत्या तक कर ली थी | फलस्वरूप अमेकों घर सूने हो गए थे |
व्यापम के कलंक से प्रदेश सरकार और शासन का दोष इस एक प्रशासनिक सफलता से काफी हद्द तक धूल सा गया है

सिंहस्थ के आयोजन के लिए तमाम महा मंडलेश्वंरोः और मठाधीशों अखाड़ो के महंतो ने मुख्य मंत्री को आयोजन मे उनके लिए और यात्रियो की सुविधा के लिए किए गए प्रबंधों के लिए उन्हे बहुत -बहुत आशीष प्रदान किया ,| लोकभावना के अनुसार इसके लिए मुख्य मंत्री को "”बहुत पुण्य की प्राप्ति "””'होगी | अब पाप और पुण्य का हिसाब तो धरमराज जाने ---परंतु प्रदेश के सारे निजी और और सरकारी मेडिकल कालेजो मे भर्ती के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुझाई गयी अखिल भारतीय एकल प्रतियोगिता {NEET] को ही एकमात्र पथ चुने जाने के लिए लाखो छात्रो और उनके अभिभावकों की आशीष अवश्य मिलेगी | और यह आशीस उनकी राजनीति का फलदायक बनाएगी |

दासियो सालो से जब से इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढाई के लिए निजी छेत्रों को संस्थान खोलने की छूट दी गयी थी | तब यह कल्पना कभी नहीं की गयी थी की इन्हे "””मुनाफे का धंधा "””' बना दिया जाएगा | उम्मीद यह की गयी थी जैसे पराधीन भारत मे बड़े - बड़े धन्ना सेठो ने आम और गरीब हिन्दुस्तानियो के अध्ययन के लिए लगभग हर ज़िलो मे कालेज स्थापित किए | जो आज भी अपने निर्माताओ की दान शीलता के कारण जाने जाते है |
आज के अनेक नेता -मंत्री -अफसर - ऐसे ही संस्थानो से पद कर निकले है | 1977 के उपरांत अनेक प्रदेशों मे राज नेताओ ने चुनाव मे पराजित होने के बाद भी समाज मे अपनी "”उपयोगिता "” बनाए रखने के लिए शिक्षा के छेत्र मे कदम रक्खा | परंतु यह किसी "”सद्कार्य "” का श्री गणेश नहीं था ----वरन यह एक सेवा को व्यापार बनाने का काम था | दक्षिण के अनेक राज्यो मे तो इन पराजित पुरोधाओ ने अकादमिक - और मेडिकल के अलावा नर्सिंग तथा बी एड और अनेक पाठ्यक्रम के लिए संस्थान खोल दिये | मज़े की बात यह है की इन सभी संस्थाओ के मालिक - मुख्तार एक ही परिवार के सदस्य होते है | जो इन संस्थानो को "””अपनी जागीर "”” समझ कर इनका दोहन करना ही अपना परम कर्तव्य समझते है |

विगत चालीस सालो से चल रहे इस "”व्यापार"” का भंडाफोड़ तब हुआ जब चेन्नई के एक निजी मेडिकल कालेज के अधिकारी का आडियो रेकॉर्ड किया गया था जिसमे MBBS मे दाखिले के लिए भाव - ताव कर रहे थे | उसकी जांच मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया से कराई गयी | उस सनस्थान के विरुद्ध कारवाई की मांग जनता और मीडिया द्वारा की गयी थी | परंतु काउंसिल ने मात्र संबन्धित अधिकारी के विरुद्ध ही कारवाई की अनुषंशा की | पुलिस प्रशासन ने भी मामला दर्ज़ कर उसे ठंडे बस्ते मे डाल दिया |

सूचना के अधिकार के आने के बाद जब इन '' निजी कालेजो "””” भर्ती के बारे जब - जब प्रश्न किए गए | तब तब यही उत्तर शासन की ओर से आया की ये निजी संस्थाए है-- अतः ये इस कानून के अधीन नहीं है | बात ठीक थी ,परंतु सभी प्र्देशों मे चिकित्सा शिक्षा विभाग के पास सभी मेडिकल कालेगो की नकेल रहती है , यदि वे ईमानदारी और पारदर्शिता बरतते तब व्यापम ऐसा घोटाला संभव नहीं होता | क्योंकि इन निजी मेडिकल कालेजो के "”कर्ता- धरताओ"”” ने चपरासी से लेकर अफसर तथा मंत्रियो ---विधायक और सांसदो तक को इस '''गंदे खेल '''' मे उलझा दिया | फिर एक बार जब गला तर और ज़ेब भारी हो गयी तब साहस भी दुस्साहस मे बदल गया | फिर तो कहने --सुनने और लिखने का कोई असर नहीं रहा | आंखो का पानी मर गया | बाजरवाद की आँधी मे "””सब कुछ संभव "””” कर दिया गया | बस मोल ठीक होना चाहिए था | इस सबका परिणाम यह हुआ की किसान की ज़मीन बिकने लगी माँ -बहनो के जेवर गिरवी रखे जाने लगे | परंतु शिक्षा को व्यापार बनाने वाले लोगो का संगठन ---एक “”गिरोह””” के रूप मे काम करने लगा | इसी कारण "”सुप्रीम कोर्ट "””ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के लिए लिखा की "”वे अपने दायित्वों के निर्वहन मे बुरी तरह फेल हुए "”””| सच है एमसीआई की जांच "”” सरकारी मेडिकल कालेज की कमिया उजगार करना और निजी मेडिकल कालेजो को ओके करना रह गया | भले ही निजी मेडिकल कालेजो मे "”” मरीज और डाक्टर तक फर्जी रूप से एमसीआई की जांच के समय प्रस्तुत कर दिये जाते है | वनही सरकारी मेडिकल कालेजो मे रोगियो की भरमार और डाक्टरों की आनुपातिक कमी से सुविधाए भी बिखर जाती है | इस प्रकार वास्तविकता और प्रहसन के मंच को एक तराजू से तौल दिया जाता था |

इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है की "”” शिक्षा के छेत्र को व्यापार बनाने नहीं दिया जा सकता | जो बिना --लाभ हानि के इन संस्थाओ को चला सकते है ,, वे ही इस छेत्र मे आए ना की लाभ कमाने के उद्देश्य से "” सर्वोच्च न्यायालय के "”” इस कथन से अदालत की मंशा स्पष्ट हो जाती है

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