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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Sep 16, 2017

महाराष्ट्र सरकार की "”बेगारी "”करते प्राथमिक और माध्यमिक शालाओ के शिक्षक !! शिवाजी की मूर्ति के लिए अरबों खर्च पर शिक्षको के वेतन के लिए आवंटन नहीं ??

26 जनवरी 1950 से देश मे संविधान लागू होने के पश्चात बिना "”पारिश्रमिक का भुगतान किए किसी भी स्त्री या पुरुष से काम लेना ''प्रतिबंधित'' हो गया है | बिना पारिश्रमिक के भुगतान के काम लेने की प्रथा आज़ादी के पूर्व राजे - रजवादो मे और जमींदारो या तालुकेदारों के इलाके मे प्रचलित थी ----”””इसे बेगार "” कहा जाता था | अर्थात बिना मूल्य की सेवा ! परंतु क्या सत्तर साल बाद भी कोई व्यक्ति --- संस्था या संगठन किसी से बेगार ले सकता है ?? अधिकतर लोगो का उत्तर होगा नहीं | परंतु महाराष्ट्र सरकार प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयो के हजारो शिक्षको से ''वर्षो से बेगार मे अध्यापन  करा रही है ! “ यश कोई नया फैसला नहीं है | वरन वनहा के शासन की अंधेरगर्दी और राज़ नेताओ की अनदेखी का ही परिणाम है की ----ऐसे हजारो शिक्षक वर्षो से जी हा दासियो साल से शोषण के इस सरकारी तरीके मे पिस्ते चले आ रहे है | आश्चर्य की बात तो यह है की "””जागरूक कहा जाने वाला मीडिया भी इस शोषण की की या तो अनदेखी करता रहा अथवा इन गावों के स्कूल मे अध्यापन करने वाले इन हजारो स्त्री --पुरुषो की व्यथा को आँख मूँद कर देखता रहा !! जन कल्याण की बड़ी - बड़ी योजनाओ की बात करने वाले काँग्रेस – भारतीय जनता पार्टी --शिव सेना और नेश्नल काँग्रेस पार्टी उदासीन बनी रही ??


देश के विकसित राज्यो मे एक ---जिसकी प्रति व्यक्ति आय भी सर्वाधिक है ----परंतु वह अपने शिक्षको को सालो -साल यानहा तक दस साल तक बिना वेतन के काम करने पर मजबूर कर रहा है | कौन बनेगा करोड़पति के टीवी कार्यक्रम मे लातूर से आई शिक्षिका ने अमिताभ बच्चन द्वरा पूछे जाने पर बताया की वह प्रतिदिन 45 किलो मीटर दूर विद्यालय मे पदाने के लिए जाती है | एवं वह यह कारी विगत चार वर्षो से कर रही है | परंतु उसे आजतक उसके अध्यापन करी के लिए कोई भी पारिश्रमिक नहीं मिला !! वेतन भुगतान अधिनियम के अनुसार महाराष्ट्र सरकार विदर्भ छेत्र के ज़िलो मे प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयो मे अध्यापन कर रहे हजारो अध्यापको को बिना वेतन काम करने पर मजबूर होना पद रहा है |

गौर तलब है की वेतन भुगतान अधिनियम के अनुसार "””किसी भी अप्रशिक्षित या अकुशल कामगार का न्यूनतम वेतन 15000/- प्रतिमाह है | परंतु "”अवैतनिक रूप से "” काम करने पर मजबूर करने के लिए क्या श्रम विभाग महाराष्ट्र सरकार के शिक्षा विभाग को नोटिस देगा ?? अथवा इन हजारो "”बेगार "” कर रहे अध्यापको को उनका पारिश्रमिक का भुग तन हो सकेगा ??
लातूर ज़िले के एक तालुका मे अध्यापन कर रही श्रीमति जाधव ने बताया की "””सरकार द्वरा अनुदान मिलने पर भी शिक्षको को प्रथम वर्ष "”वेतन का मात्र 20 प्रतिशत ''ही दिया जाता है | जो अगले चार वर्षो मे क्रमशः शत प्रतिशत भुगतान के लायक होते है !!! उनके कथन के अनुसार स्कूल के दीगर खर्चो के लिए तो अनुदाम मिलता है ------परंतु शिक्षको के वेतन के लिए धन का आवंटन नहीं किया जाता है !! श्रीमति जाधव ने बताया की बिना वेतन के काम करने के लिए भी उन्हे प्रतिदिन 45 किलो मीटर जाने और वापस आने के लिए 140 रुपये ख़रच करने पड़ते है !! एक तो वेतन नहीं दूसरे अपना धन व्यय करके प्रतिदिन "””ड्यूटी "” करो !!

क्या इसी व्यवस्था से महाराष्ट्र सरकार"”” बेटी बचाओ और बेटी पदाओ ''' कार्यक्रम को पूरा करेगी ?? अचरज इस बात का है की छोटी - छोटी बाटो और मसलो पर हाइ कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट मे याचिका दायर करने वाली संस्थाये भी इस "”बेगार ''' की प्रथा पर मौन है सो गयी है ? क्यो ? क्या सरकार इस घोर विसंगति की ओर ध्यान देकर इसमे सुधार करेगी ? दस दस साल गा ? से शिक्षा दे रहे इन अध्यापको के वेतन का भुगतान किया जाए