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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Sep 11, 2018


अंतराष्ट्रीय धर्म संसद के 125 वर्ष बाद शिकागो मे सम्पन्न विश्व हिन्दू सम्मेलन मे सरसंघचालक मोहन भागवत के उद्गार स्वामी विवेकानंद के उद्बोधन के उद्देश्यों से काफी भटके हुए लगते है|| स्वामी जी ने जिस नगर से दुनिया को सह अस्तित्व – सर्वधरमसमभाव और अहिंसा की बात बताई थी ---उसी स्थान से _------ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने दुनिया के दो अरब सनतान धर्मी स्त्री - पुरुषो को "”” कमजोर "” होने की घोषणा की !!! एवं कड़े लड्डू वितरित करके की यह उम्मीद भी जताई की "”” हिन्दु को कडा बनना है !!! अब सनातनी हजारो वर्षो से जैसे थे --वैसा समाज का स्वरूप संघ को नहीं मंजूर है ?? तो क्या ईसाई और इस्लाम के धरम युद्ध के लिए सन्नध होना है ?? क्या हिन्दुत्व की सेना बनानी है ??? यह सेना लड़ेगी किनसे ? ईसाई और इस्लाम से --अथवा सनातन धरम के उन लोगो को चुन - चुन कर खतम करेगी --- जैसा जर्मनी मे हिटलर ने "”” आर्य रक्त शुद्धता "” के सिधान्त का विरोध करने वाले हजारो लोगो श्रम शिविरो मे बंद कर दिया था ?? औद्युओगिक सभ्यता मे आज समाज "”व्यक्ति परक "” हो गया है अब उसे सदियो पूर्व के परिवार की इकाई के रूप मे नहीं देखा जा सकता |

हंसी तब लगती है जब भारतीय गणतन्त्र के उप राष्ट्रपति वेंकीया नायडू ने सम्मेलन मे भाषण दिया की समस्त विश्व भारत की ओर समस्याओ के लिए '’’’निहार रहा है "”” !!! अमेरिका ऐसे देश मे नायडू का यह कथन हास्यास्पद लगता है की "” जब सभी देश की विकास की गति धीमी पद गयी तब हमारी गति सबसे तेज है !!! शिकागो के समचरपत्रों के कोने मे उप राष्ट्रपति का भासन छपा !!! उन्हे पद के अनुसार प्रोटोकाल भी नहीं मिला --क्योंकि वे अमेरिकी सरकार के लिए "”बिन बुलाये मेहमान थे "” संघ का भारत के विश्व गुरु होने का दंभ भी आज की दुनिया मे नीरा छ्लवा है ---जैसे की अच्छे दिन का वादा !!

11 सितंबर 1893 को सर्व धर्म संसद मे स्वामी विवेकानंद ने हिन्दू धर्म की विशेषता बताते हुए कहा था की धार्मिक एकता किसी भी मत को मिटा कर या दबा कर नहीं हो सकती है ! उन्होने गीता का उदाहरण देते हुए कहा था की "””” विभिन्न रास्तो से होकर आने वाले सभी मनुष्य अंत मे मुझ तक ही पहुचते है "” ! उन्होने वेदिक धरम की समावेशी प्र्क्रती का उदाहरण देते हुए ---विभिन्न धर्मो को भारत मे समाहित किए जाने का वर्णन किया | उन्होने कहा जब यहूदियो के मंदिर को रोमन साम्राज्य द्वरा ध्वसत कर दिया गया तब वे भारत के उत्तरी भाग मे आकर बसे | इसी प्रकार जब पारसी धर्म के लोगो का उत्पीड़न ईरान मे आक्रांताओ द्वरा किया जाने लगा ----तब भारत ने उन्हे अपनाया ! हमने विभिन्न आस्थाओ और विश्वासों वाले मतो के साथ "”” सह अस्तित्व "” के साथ सदियो से रहते आए है | उन्होने कहा था की वेदिक संसक्राति मे विभिन्नताओ को साथ लेकर चलने की छमता है | इसी लिए भारत मे विभिन्न धरम और सन्स्क्रातियों का वास है |

ईसा से पूर्व इस देश मे वेदिक धर्म के साथ बौद्ध और जैन धर्म का उदय हो चुका था , वेदिक धर्म और इन दोनों धर्म के विचारो मे "” थोड़ा अंतर था ---परंतु फिर भी यानहा के अधिकान्श राजाओ ने सभी धर्मो को अपने - अपने अनुसार पालन करने की अनुमति दे रखी थी | अपवाद स्वरूप कुछ स्थानो पर ऐसा संभव नहीं था | लगभग नौ सौ साल तक इन तीनों का अस्तित्व बन रहा | परंतु समय बीतने के साथ सनातन परंपरा अनेक स्थानो पर अपने विचारो और उद्देश्यों से विचलित हो चुकी थी | ऐसे समय मे जब वेदिक धरम धीरे -धीरे कमजोर होता जा रह था -----तब ऐसे समय मे सुदूर दक्षिण मे त्रिवांकुर-कोचीन राज्य मे आचारी शंकर का जनम हुआ | जिनहे दुनिया आदिगुरु शंकरचार्य के नाम से जानती है | उन्होने केरल से काश्मीर तक और तक्षशिला से कामरूप तक की "”यात्रा की | जिनहे उनके शिस्यों द्वरा दिग्विजय यात्रा का नाम दिया गया | उन्होने हजारो छोटे -बड़े राज्यो मे विभाजित भारतवर्ष को सान्स्क्रतिक और धार्मिक रूप से एक सूत्र मे बांधने के लिए "”चारो दिशाओ मे चार मठ स्थापित किए | जो हजारो साल बाद भी आज वेदिक धरम की सनातन परंपरा को जीवंत बनाए हुए है |

इसके विपरीत राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुखिया ने "” हिन्दू धर्म "” को बिखरा हुआ और कमजोर बताया !! धरम संसद के 125 साल बाद उसी स्थान से कहा की "””हिन्दू पुनरुथान आज की आवश्यकता है ! “” वैसे उन्होने अपने उद्बोधन मे कनही भी यह नहीं बताया की किन स्थानो पर हिन्दू कमजोर हो रहा है ?? संघ अपने हिन्दुत्व के नारे को एक हुंकार मे बदलने का प्रयास कर रहा है ----क्योंकि उसके अनुसार जब तक सभी सनातन धर्म के लोग "”संघ '’ मे शामिल नहीं होते तब तक वे बिखरे हुए है ??? आज भारत मे विभिन्न मतो के वेदिक धर्म के मानने वाले लोग अस्सी प्रतिशत है ,, शेस बीस प्रतिशत मे इस्लाम और ईसाई या सिख धर्म के मानने वाले लोग है | तब क्या भागवत जी यह चाहते है की – इन अलपसंख्यकों को "” मिटा दिया जाए अथवा दबा दिया जाये "”? उनकी विचारधाराओ के लोग बार - बार मुगलो के आक्रमण और हिन्दुओ के धरम परिवर्तन की गुहार लगाते है | ऐसी घटनाए इतिहास मे हुई है --जैसे सोमनाथ मंदिर का ध्वंश !! परंतु मोहम्मद गोरी द्वारा इब्रहीम लोदी को पानीपत मे पराजित करने के बाद 1857 तक दिल्ली मे मुगलो का राज रहा | परंतु हिन्दू फिर भी बहुसंख्यक बने रहे !! कुछ मंदिर भी टूटे -परंतु मुगल शासको ने अनेक मंदिरो को ज़मीन और दान भी दिये | दोनों ही प्रकार की घटनाए इतिहास के पन्नो मे दर्ज़ है | महराणा प्रताप और अकबर मे एक को नायक और दूसरे को खलनायक बनाने की संघ की सोच यह भूल जाती है की प्रताप का सेनापति मुसलमान और अकबर का सेनापति हिन्दू राजा थे ! शिवाजी की सेना मे भी मुसलमान और उनकी नौसेना मे गुजरात के नीग्रो भी थे !

उन्होने यह भी कहा की जब परिवार टूटते है तो संसक्राति बिखरती है – अब भागवत जी को समझना होगा की खेती पर आधारित अर्थ व्यवस्था मे भी आजकल संयुक्त परिवार टूट रहे है | आज बैलो से खेती नहीं होती --मशीनी खेती मे कम लोगो से बड़े छेत्रफल को जोता -बोया जा सकता है | नगरो मे शिक्षा प्राप्त करने के बाद लड़के और लडकीया अब नौकरी की ओर भागते है | ना तो उन्हे परिवार के व्यवसाय की चिंता है और नाही अपनी परंपरा की | सहशिक्षा ने नारी को पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलने का हौसला प्रदान किया है | यह 21 वी सदी है संघ क्या समय की प्रगति की सुई को वापस 19वी सदी मे ले जाने की कोशिस कर रहा है ? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की "”” हिन्दू '’’ अथवा हिन्दुत्व ' की परिभाषा अभी भी साफ नहीं है | कभी उनका बयान आता है की भरत्वर्ष मे रहने वाला प्रत्येक नागरिक हिन्दू है ? इसका अर्थ मुसलमान और ईसाई या सिख सभी इसी श्रेणी मे आते है ?? तब संघ मे कोई मुसलमान या ईसाई क्यो नहीं है ?

इतना ही नहीं कर्नाटक --तमिलनाडू मे कई संप्रदाय ऐसे है जो है तो सनातनी पर उनके कर्मकांड वेदिक धर्म से थोड़ा अलग है ! परंपरा अनुसार सनातन धर्म मे शव का दाह संस्कार किया जाता है | परंतु तमिलनाडू की मुख्य मंत्री जयललिता जो जन्म से ब्रामहन थी परंतु उन्होने :::द्रवीण मुनेत्र कडगम की सदस्यता ली थी | कडगम के स्थापना करने वाले रामस्वामी नायकर वेदिक धरम के विरोध मे 1930 से मुहिम चला रहे थे | इस संस्था को जो बाद मे राजनैतिक दल मे बादल गयी – उसके मानने वाले इस्लाम या ईसाई धरम की भांति ज़मीन मे दफनाये जाते है | वैसे अधिकतर कडगम कार्यकर्ता हिन्दू मंदिरो का बहिसकार और उनके संस्कारो को भी नहीं मानते | वे मुंडन - उपनयन आदि भी नहीं सनातनी परंपरा से नहीं करते है | इसके बावजूद जयललिता मंदिर भी जाती थी -वनहा चढावा भी देती थी | परंतु अंत मे उन्हे भी दफनाया ही गया ! इसी प्रकार प्रखर पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या भी गोवा स्थित "”सनातन नमक संस्था से जुड़े लोगो पर गौरी तथा चार अन्य लोगो की हत्या का आरोप लगा है | गौरी को भी जब दफनाया गया तब संघ के कुछ '’’अति उत्साही लालों ने '’ उसे ईसाई होने का प्रचार सोशल मीडिया पर किया | अब देश के व्भिन्न भागो मे आस्था और विश्वास की विभिन्नता को वेदिक धर्म अभी भी समेटे हुए है | वह कनही से भी "””मुलायम '’ नहीं है और उसे "”कठोर '’ होने की भी आवश्यकता नहीं है | क्योंकि इसी कट्टरता के कारण देश के विभिन्न भागो मे "”भीड़ '’ अपने हिसाब से गाय की रक्षा करते हुए लोगो को पीट कर हत्या कर रहे है | अगर यह हिन्दुत्व है जिसकी बात डॉ मोहन भागवत जी कर रहे है तो ---इस देश मे अभी भी आदिगुरु की समवेशी द्रष्टि अधिसंख्य रूप मे विद्यमान है | हमे संघ का कठोर लड्डू नहीं बनना है ----जिसमे किसी के लिए भी नफरत हो | भागवत जी आपको आपका हिन्दुत्व मुबारक ,, जय श्री राम की उद्घोसणा अब कनही अशांति नहीं फैलाये | इस आशा के साथ की भारत की समष्टि बनी रहे !!!