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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Mar 29, 2013

पानी किसी के बाप का नहीं , पर समाज और सरकार का हे

 पानी किसी के बाप का नहीं , पर समाज और सरकार का हे 
                                                                                 महारास्ट्र और गुजरात मे होली के  अवसर पर  कथावाचक  आषाराम बापू ने  अपने  "भक्तो" के साथ होली खेलने मे पिचकारी की जगह होज पाइप से रंगो को भीड़ पर  डाल कर उन्हे रंगो से सराबोर कर दिया  | जबकि  महारास्ट्र  सरकार ने पानी की राज्य मे कमी को देखते  हूए होली पर पानी का प्रयोग न करने की अपील  तथा पानी के दुरुपयोग पर  प्रतिबन्ध की  घोसणा की थी | परन्तु मुंबई मे आशा राम बापू के  अनुयाई  लोगो ने महानगर निगम  काय अधिकारियों से मारपीट की | अब "धर्म  गुरु " के खिलाफ कोई  कारवाई कैसे होती ? सो  सिर्फ  घटना समाचार  पत्रो  और प्रचार माध्यमों  तक सिमट गयी | 
                            यही घटना  गुजरात मे भी दुहराई  गयी , तब जनता मे भले ही रोष व्याप्त हुआ हो , परन्तु  आसाराम  और उनके भक्तो पर तो समाज और राज्य की समस्या का  कोई प्रभाव नहीं पड़ा | हस्बमामूल भक्तो की  अपार  भीड़  देख कर "बापू " मगन हो गए और सामाजिक और प्रचार माध्यमों मे  हो रही आलोचना से बेखबर  उन्होने फिर मुंबई का इतिहास दुहराया | जब किसी ने उनसे कहा की उनके होली खेलने के तरीके से और पानी के दुरुपयोग का  आरोप लग रहा हे | तब उन्होने निहायत अक्खड़ तरीके  से कहा था की ""पानी किसी के बाप का नहीं " | अब यह भाषा किसी ऐसे व्यक्ति तो नहीं हो सकती जो लाखो लोगो का "अगुआ " हो , और जो धरम  की सीख देता हो , उसे समाज और लोगो  की परवाह ही न हो ? अगर  कोई गुरु समाज के प्रति इतना संवेदनहीन हो तब उसके समाज को नेत्रत्व देने की  छमता पर संदेह होना ज़रूरी हे |  यह कहा जा सकता की उनके तो "लाखो भक्त " फिर क्यो उन्हे "पूजते " हे ? तब ज़रूर लगता हे की हमारे देश मे ""अंध श्रद्धा" ने हमेशा तर्क  और वास्तविकता को दबाया हे | अब इसको क्या कहेंगे की उनके भक्त टी वी   चैनल  पर यह कहते हे की बापू ने पानी बरबादी  नहीं की हें , यह तब जब उसी चैनल मे होज पाइप से  होली खेलते "बापू "  दिखाई पड़ रहे थे | अब इसे बेसरमी कहे या अहंकार ? 

दारुल अमन भारतवर्ष मे "हिजाब क्यो नहीं और नकाब ही क्यो"

 दारुल  अमन भारतवर्ष मे "हिजाब क्यो नहीं और नकाब ही क्यो" 
                                                                                      इस्लाम की पवित्र किताब कुरान और दीगर हदिसो मे भी महिलाओ  के  लिए यह ताकीद की गयी हे की वे "हिजाब" बरते | अब 71 इस्लामिक मुल्को मे भी इस को दो तरह से अपनाया गया हे | जॉर्डन , फिलिस्तीन , सऊदी अरब के  कुछ थोड़े से  हिस्सो मे बद्दू और अनेक मुल्को मे परंपरा से चले आ रहे हिजाब को अपनाया हे | जिसमे महिला अपने "कान  और गले को कपड़े या दुपट्टा टाइप से  बांध के रखती हे |  बाक़ी एशिया के मुल्को मे भारत पाकिस्तान , मलेसिया आदि मे "नकाब " का रिवाज हे , जिसमे महिला की सिर्फ आंखे ही दिखती हे बाक़ी चेहरा छुपा रहता हे | 
                                                                     सवाल  हे की जब आज की दुनिया मे मर्द और औरत बराबरी की ज़िंदगी जी रहे हे , तब बुर्के  मे महिला के होने का कोई  अर्थ नहीं समझ  आता हे ? हाँ  यदि परंपरा का निर्वहन ही उद्देस्य हो तो बात दूसरी हे | जोधपुर मे मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की महिला शाखा  का "महिला  सशस्क्तिकरण " के मुद्दे  पर हुए अधिवेसन मे  भी महिलाओ का नकाब पहनना कुछ अटपटा लगा था | वैसे इस देश मे किसी को कोई भी ड्रेस  पहनने की आज़ादी हे , इसलिए कोई ऐतराज भी नहीं कर सकता | पर एक बात जो थोड़ी सी खटक रही की यदि  ""दीनी" तौर पर एक बेहतर विकल्प हो तो उसे  अपनाने मे  अड़चन क्यो हे ? 
                                                 वैसे अगर हिंदुस्तान के "उलेमा और मौलवी " इस बात पर गौर करे तो शायद मुस्लिम महिलाओ को एटीएम  मे जाने मे कोई दिक़्क़त नहीं होगी | दूसरी ओर स्कूटर और कार चलाने  की आज़ादी भारतवर्ष मे हे पर जब ट्रेफिक  पुलिस  लाइसेन्स  देखती हे तब वह  तसदीक़ नहीं कर पाती हे की ड्राईवर वही हे जो लाइसेन्स  मे दिखाया गया | ट्राफिक  नियमो के उल्लंघन करने पर भी दिक़्क़त होती हे , पर आज अगर ऐतराज नहीं किया ज़ रहा हे तो यह नहीं मान लेना चाहिए की जो हो रहा वह सही हे | 

इस्लाम मे बिना जाति के आरक्षण कैसे होगा ?

इस्लाम मे बिना जाति के  आरक्षण कैसे होगा ? 
                                                                  उज्जैन मे मुस्लिम पर्सनल  ला बोर्ड के  सालाना जलसे मे यह मांग की गयी हे की मुसलमानो को भी आरक्षण मिलना चाहिए , परन्तु वे लोग  यह भूल गए की इस्लाम मे सभी बंदे "बराबर " हे | जबकि सनातन धर्म मे ही जाति का संगठन हे | भारतीय संविधान भी उनही जातियो को आरक्षण देता हे जिनका पेशा ""सामाजिक - आर्थिक और  सैक्षणिक रूप से "" उन्हे समाज मे बराबरी का दर्जा नहीं देता | धर्म  ग्रंथो के  आधार पर यह साबित हुआ हे की जातियाँ  सनातन या हिन्दू धर्म मे मौजूद हे | अब ऐसी स्थिति मे बोर्ड किस आधार पर रिज़र्वेशन  लेगा ? 
                                                एक बात यह सामने आ रही हे की अगर हिन्दुओ मे पेशा  ने जाति को निर्धारित किया हे तब मुसलमानो मे भी यह फार्मूला  अमल मे लाया जा सकता हे | पर हिन्दुओ मे  पेशा  बदल लेने  से जाति नहीं बदलती क्योंकि वह "जन्मना ""होती हे | जबकि  इस्लाम मे  "सुन्नत " के  बाद सभी बंदे  बराबर होते हे , इसका उधारण नमाज़ अदा करते वक़्त  और ""दसतरखन "" के  मौके पर होता हे | जबकि  सनातन धर्म मे  ""रोटी - बेटी " का संबंध पेशे से नहीं जाति से  होता हे | 
                                                                       इस से यह जरूर शक होता हे की बोर्ड ने कुछ  नेताओ की आवाज पर तो यह मांग नहीं उठाई हे ? 
क्योंकि   जब रिज़र्वेशन का आधार ही जाति हे और इस्लाम मे जाति का वजूद नहीं हे तब कैसे यह मांग पूरी की जा सकेगी ? अगर कुछ पेशो  को आरक्षण की परिधि मे लाया गया तब  बाक़ी लोग भी उसी पेशे को अपना लेगे | और भारतवर्ष  मे "हर नागरिक को अपना पेशा चुनने की आज़ादी हे | तब इस मसले का हल क्या होगा ? क्या फकत  यह कुछ मांगने की ही कवायद भर तो नहीं ? 

कारगिल और जनरल मुशर्रफ - घुसपैठ या युद्ध , तब और अब

 कारगिल  और  जनरल मुशर्रफ - घुसपैठ  या युद्ध , तब और अब  
                                                              जनरल मुशर्रफ आज दावा कर रहे हे की उन्हे गर्व हे की पाकिस्तानी सेना ने  यह अभियान सफलता पूर्वक सम्पन्न किया | जनरल के रूप मे और राष्ट्रपति के ओहदे  पर रहते हुए जिस बात को उन्होने हमेशा "गलत और झूठ " करार  दिया , उस हक़ीक़त को आज वे खुद सही बता रहे हे | पाकिस्तान नेशनल एसम्ब्ली के चुनाव की पूर्व , यह प्रचार उन्हे एक फायर ब्रांड नेता की छवि दिलाने मे कामयाब होगा शायद यही सोच कर जनरल नाय "कल के कलंक को  आज उपलब्धि "काय रूप मे पेश कर रहे हे | 
                                                    अन्तराष्ट्रिय मंचो पर और टी वी पर वे हमेशा इस मुद्दे से बचते रहे हे , परन्तु पाकिस्तान पहुँचते ही उन्होने ये दावा करना शुरू कर दिया | जो हक़ीक़त एक प्रशासक के रूप  मे नामंज़ूर थी , उसे आज वे गले मे लटकाए फिर रहे हे | बस इस उम्मीद मे की पाकिस्तान की जनता उन्हे बेनज़ीर भुट्टो के हत्यारे के रूप के  बजाय  भारत के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले एक सिपाही की हैसियत से  जाने | अब यह नारा कितना कारगर साबित  होगा यह देखने वाली बात होगी ? अगर तो पाकिस्तान की जनता  वाकई  दहशतगर्दो  की हरकतों  से  परेशान हे , तब तो जनरल को मुंह की खानी  पड़ेगी | अगर आज भी पाकिस्तान के लोग हिंदुस्तान से नफरत की खुराक  पर ज़िंदा हे ,तब बात दूसरी हे | फिलहाल तो जनरल  पर सिंध हाई कोर्ट के  बाहर  जूता फेंका गया हे , जो आम आदमी के  मिजाज की बानगी हे , अब देखना  हे की ऊंट किस करवट बैठता हे ?