पानी किसी के बाप का नहीं , पर समाज और सरकार का हे
महारास्ट्र और गुजरात मे होली के अवसर पर कथावाचक आषाराम बापू ने अपने "भक्तो" के साथ होली खेलने मे पिचकारी की जगह होज पाइप से रंगो को भीड़ पर डाल कर उन्हे रंगो से सराबोर कर दिया | जबकि महारास्ट्र सरकार ने पानी की राज्य मे कमी को देखते हूए होली पर पानी का प्रयोग न करने की अपील तथा पानी के दुरुपयोग पर प्रतिबन्ध की घोसणा की थी | परन्तु मुंबई मे आशा राम बापू के अनुयाई लोगो ने महानगर निगम काय अधिकारियों से मारपीट की | अब "धर्म गुरु " के खिलाफ कोई कारवाई कैसे होती ? सो सिर्फ घटना समाचार पत्रो और प्रचार माध्यमों तक सिमट गयी |
यही घटना गुजरात मे भी दुहराई गयी , तब जनता मे भले ही रोष व्याप्त हुआ हो , परन्तु आसाराम और उनके भक्तो पर तो समाज और राज्य की समस्या का कोई प्रभाव नहीं पड़ा | हस्बमामूल भक्तो की अपार भीड़ देख कर "बापू " मगन हो गए और सामाजिक और प्रचार माध्यमों मे हो रही आलोचना से बेखबर उन्होने फिर मुंबई का इतिहास दुहराया | जब किसी ने उनसे कहा की उनके होली खेलने के तरीके से और पानी के दुरुपयोग का आरोप लग रहा हे | तब उन्होने निहायत अक्खड़ तरीके से कहा था की ""पानी किसी के बाप का नहीं " | अब यह भाषा किसी ऐसे व्यक्ति तो नहीं हो सकती जो लाखो लोगो का "अगुआ " हो , और जो धरम की सीख देता हो , उसे समाज और लोगो की परवाह ही न हो ? अगर कोई गुरु समाज के प्रति इतना संवेदनहीन हो तब उसके समाज को नेत्रत्व देने की छमता पर संदेह होना ज़रूरी हे | यह कहा जा सकता की उनके तो "लाखो भक्त " फिर क्यो उन्हे "पूजते " हे ? तब ज़रूर लगता हे की हमारे देश मे ""अंध श्रद्धा" ने हमेशा तर्क और वास्तविकता को दबाया हे | अब इसको क्या कहेंगे की उनके भक्त टी वी चैनल पर यह कहते हे की बापू ने पानी बरबादी नहीं की हें , यह तब जब उसी चैनल मे होज पाइप से होली खेलते "बापू " दिखाई पड़ रहे थे | अब इसे बेसरमी कहे या अहंकार ?
महारास्ट्र और गुजरात मे होली के अवसर पर कथावाचक आषाराम बापू ने अपने "भक्तो" के साथ होली खेलने मे पिचकारी की जगह होज पाइप से रंगो को भीड़ पर डाल कर उन्हे रंगो से सराबोर कर दिया | जबकि महारास्ट्र सरकार ने पानी की राज्य मे कमी को देखते हूए होली पर पानी का प्रयोग न करने की अपील तथा पानी के दुरुपयोग पर प्रतिबन्ध की घोसणा की थी | परन्तु मुंबई मे आशा राम बापू के अनुयाई लोगो ने महानगर निगम काय अधिकारियों से मारपीट की | अब "धर्म गुरु " के खिलाफ कोई कारवाई कैसे होती ? सो सिर्फ घटना समाचार पत्रो और प्रचार माध्यमों तक सिमट गयी |
यही घटना गुजरात मे भी दुहराई गयी , तब जनता मे भले ही रोष व्याप्त हुआ हो , परन्तु आसाराम और उनके भक्तो पर तो समाज और राज्य की समस्या का कोई प्रभाव नहीं पड़ा | हस्बमामूल भक्तो की अपार भीड़ देख कर "बापू " मगन हो गए और सामाजिक और प्रचार माध्यमों मे हो रही आलोचना से बेखबर उन्होने फिर मुंबई का इतिहास दुहराया | जब किसी ने उनसे कहा की उनके होली खेलने के तरीके से और पानी के दुरुपयोग का आरोप लग रहा हे | तब उन्होने निहायत अक्खड़ तरीके से कहा था की ""पानी किसी के बाप का नहीं " | अब यह भाषा किसी ऐसे व्यक्ति तो नहीं हो सकती जो लाखो लोगो का "अगुआ " हो , और जो धरम की सीख देता हो , उसे समाज और लोगो की परवाह ही न हो ? अगर कोई गुरु समाज के प्रति इतना संवेदनहीन हो तब उसके समाज को नेत्रत्व देने की छमता पर संदेह होना ज़रूरी हे | यह कहा जा सकता की उनके तो "लाखो भक्त " फिर क्यो उन्हे "पूजते " हे ? तब ज़रूर लगता हे की हमारे देश मे ""अंध श्रद्धा" ने हमेशा तर्क और वास्तविकता को दबाया हे | अब इसको क्या कहेंगे की उनके भक्त टी वी चैनल पर यह कहते हे की बापू ने पानी बरबादी नहीं की हें , यह तब जब उसी चैनल मे होज पाइप से होली खेलते "बापू " दिखाई पड़ रहे थे | अब इसे बेसरमी कहे या अहंकार ?
great! just like u sir
ReplyDeleteregards