दारुल अमन भारतवर्ष मे "हिजाब क्यो नहीं और नकाब ही क्यो"
इस्लाम की पवित्र किताब कुरान और दीगर हदिसो मे भी महिलाओ के लिए यह ताकीद की गयी हे की वे "हिजाब" बरते | अब 71 इस्लामिक मुल्को मे भी इस को दो तरह से अपनाया गया हे | जॉर्डन , फिलिस्तीन , सऊदी अरब के कुछ थोड़े से हिस्सो मे बद्दू और अनेक मुल्को मे परंपरा से चले आ रहे हिजाब को अपनाया हे | जिसमे महिला अपने "कान और गले को कपड़े या दुपट्टा टाइप से बांध के रखती हे | बाक़ी एशिया के मुल्को मे भारत पाकिस्तान , मलेसिया आदि मे "नकाब " का रिवाज हे , जिसमे महिला की सिर्फ आंखे ही दिखती हे बाक़ी चेहरा छुपा रहता हे |
सवाल हे की जब आज की दुनिया मे मर्द और औरत बराबरी की ज़िंदगी जी रहे हे , तब बुर्के मे महिला के होने का कोई अर्थ नहीं समझ आता हे ? हाँ यदि परंपरा का निर्वहन ही उद्देस्य हो तो बात दूसरी हे | जोधपुर मे मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की महिला शाखा का "महिला सशस्क्तिकरण " के मुद्दे पर हुए अधिवेसन मे भी महिलाओ का नकाब पहनना कुछ अटपटा लगा था | वैसे इस देश मे किसी को कोई भी ड्रेस पहनने की आज़ादी हे , इसलिए कोई ऐतराज भी नहीं कर सकता | पर एक बात जो थोड़ी सी खटक रही की यदि ""दीनी" तौर पर एक बेहतर विकल्प हो तो उसे अपनाने मे अड़चन क्यो हे ?
वैसे अगर हिंदुस्तान के "उलेमा और मौलवी " इस बात पर गौर करे तो शायद मुस्लिम महिलाओ को एटीएम मे जाने मे कोई दिक़्क़त नहीं होगी | दूसरी ओर स्कूटर और कार चलाने की आज़ादी भारतवर्ष मे हे पर जब ट्रेफिक पुलिस लाइसेन्स देखती हे तब वह तसदीक़ नहीं कर पाती हे की ड्राईवर वही हे जो लाइसेन्स मे दिखाया गया | ट्राफिक नियमो के उल्लंघन करने पर भी दिक़्क़त होती हे , पर आज अगर ऐतराज नहीं किया ज़ रहा हे तो यह नहीं मान लेना चाहिए की जो हो रहा वह सही हे |
इस्लाम की पवित्र किताब कुरान और दीगर हदिसो मे भी महिलाओ के लिए यह ताकीद की गयी हे की वे "हिजाब" बरते | अब 71 इस्लामिक मुल्को मे भी इस को दो तरह से अपनाया गया हे | जॉर्डन , फिलिस्तीन , सऊदी अरब के कुछ थोड़े से हिस्सो मे बद्दू और अनेक मुल्को मे परंपरा से चले आ रहे हिजाब को अपनाया हे | जिसमे महिला अपने "कान और गले को कपड़े या दुपट्टा टाइप से बांध के रखती हे | बाक़ी एशिया के मुल्को मे भारत पाकिस्तान , मलेसिया आदि मे "नकाब " का रिवाज हे , जिसमे महिला की सिर्फ आंखे ही दिखती हे बाक़ी चेहरा छुपा रहता हे |
सवाल हे की जब आज की दुनिया मे मर्द और औरत बराबरी की ज़िंदगी जी रहे हे , तब बुर्के मे महिला के होने का कोई अर्थ नहीं समझ आता हे ? हाँ यदि परंपरा का निर्वहन ही उद्देस्य हो तो बात दूसरी हे | जोधपुर मे मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की महिला शाखा का "महिला सशस्क्तिकरण " के मुद्दे पर हुए अधिवेसन मे भी महिलाओ का नकाब पहनना कुछ अटपटा लगा था | वैसे इस देश मे किसी को कोई भी ड्रेस पहनने की आज़ादी हे , इसलिए कोई ऐतराज भी नहीं कर सकता | पर एक बात जो थोड़ी सी खटक रही की यदि ""दीनी" तौर पर एक बेहतर विकल्प हो तो उसे अपनाने मे अड़चन क्यो हे ?
वैसे अगर हिंदुस्तान के "उलेमा और मौलवी " इस बात पर गौर करे तो शायद मुस्लिम महिलाओ को एटीएम मे जाने मे कोई दिक़्क़त नहीं होगी | दूसरी ओर स्कूटर और कार चलाने की आज़ादी भारतवर्ष मे हे पर जब ट्रेफिक पुलिस लाइसेन्स देखती हे तब वह तसदीक़ नहीं कर पाती हे की ड्राईवर वही हे जो लाइसेन्स मे दिखाया गया | ट्राफिक नियमो के उल्लंघन करने पर भी दिक़्क़त होती हे , पर आज अगर ऐतराज नहीं किया ज़ रहा हे तो यह नहीं मान लेना चाहिए की जो हो रहा वह सही हे |
No comments:
Post a Comment