इस्लाम मे बिना जाति के आरक्षण कैसे होगा ?
उज्जैन मे मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के सालाना जलसे मे यह मांग की गयी हे की मुसलमानो को भी आरक्षण मिलना चाहिए , परन्तु वे लोग यह भूल गए की इस्लाम मे सभी बंदे "बराबर " हे | जबकि सनातन धर्म मे ही जाति का संगठन हे | भारतीय संविधान भी उनही जातियो को आरक्षण देता हे जिनका पेशा ""सामाजिक - आर्थिक और सैक्षणिक रूप से "" उन्हे समाज मे बराबरी का दर्जा नहीं देता | धर्म ग्रंथो के आधार पर यह साबित हुआ हे की जातियाँ सनातन या हिन्दू धर्म मे मौजूद हे | अब ऐसी स्थिति मे बोर्ड किस आधार पर रिज़र्वेशन लेगा ?
एक बात यह सामने आ रही हे की अगर हिन्दुओ मे पेशा ने जाति को निर्धारित किया हे तब मुसलमानो मे भी यह फार्मूला अमल मे लाया जा सकता हे | पर हिन्दुओ मे पेशा बदल लेने से जाति नहीं बदलती क्योंकि वह "जन्मना ""होती हे | जबकि इस्लाम मे "सुन्नत " के बाद सभी बंदे बराबर होते हे , इसका उधारण नमाज़ अदा करते वक़्त और ""दसतरखन "" के मौके पर होता हे | जबकि सनातन धर्म मे ""रोटी - बेटी " का संबंध पेशे से नहीं जाति से होता हे |
इस से यह जरूर शक होता हे की बोर्ड ने कुछ नेताओ की आवाज पर तो यह मांग नहीं उठाई हे ?
क्योंकि जब रिज़र्वेशन का आधार ही जाति हे और इस्लाम मे जाति का वजूद नहीं हे तब कैसे यह मांग पूरी की जा सकेगी ? अगर कुछ पेशो को आरक्षण की परिधि मे लाया गया तब बाक़ी लोग भी उसी पेशे को अपना लेगे | और भारतवर्ष मे "हर नागरिक को अपना पेशा चुनने की आज़ादी हे | तब इस मसले का हल क्या होगा ? क्या फकत यह कुछ मांगने की ही कवायद भर तो नहीं ?
No comments:
Post a Comment