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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Mar 29, 2013

इस्लाम मे बिना जाति के आरक्षण कैसे होगा ?

इस्लाम मे बिना जाति के  आरक्षण कैसे होगा ? 
                                                                  उज्जैन मे मुस्लिम पर्सनल  ला बोर्ड के  सालाना जलसे मे यह मांग की गयी हे की मुसलमानो को भी आरक्षण मिलना चाहिए , परन्तु वे लोग  यह भूल गए की इस्लाम मे सभी बंदे "बराबर " हे | जबकि सनातन धर्म मे ही जाति का संगठन हे | भारतीय संविधान भी उनही जातियो को आरक्षण देता हे जिनका पेशा ""सामाजिक - आर्थिक और  सैक्षणिक रूप से "" उन्हे समाज मे बराबरी का दर्जा नहीं देता | धर्म  ग्रंथो के  आधार पर यह साबित हुआ हे की जातियाँ  सनातन या हिन्दू धर्म मे मौजूद हे | अब ऐसी स्थिति मे बोर्ड किस आधार पर रिज़र्वेशन  लेगा ? 
                                                एक बात यह सामने आ रही हे की अगर हिन्दुओ मे पेशा  ने जाति को निर्धारित किया हे तब मुसलमानो मे भी यह फार्मूला  अमल मे लाया जा सकता हे | पर हिन्दुओ मे  पेशा  बदल लेने  से जाति नहीं बदलती क्योंकि वह "जन्मना ""होती हे | जबकि  इस्लाम मे  "सुन्नत " के  बाद सभी बंदे  बराबर होते हे , इसका उधारण नमाज़ अदा करते वक़्त  और ""दसतरखन "" के  मौके पर होता हे | जबकि  सनातन धर्म मे  ""रोटी - बेटी " का संबंध पेशे से नहीं जाति से  होता हे | 
                                                                       इस से यह जरूर शक होता हे की बोर्ड ने कुछ  नेताओ की आवाज पर तो यह मांग नहीं उठाई हे ? 
क्योंकि   जब रिज़र्वेशन का आधार ही जाति हे और इस्लाम मे जाति का वजूद नहीं हे तब कैसे यह मांग पूरी की जा सकेगी ? अगर कुछ पेशो  को आरक्षण की परिधि मे लाया गया तब  बाक़ी लोग भी उसी पेशे को अपना लेगे | और भारतवर्ष  मे "हर नागरिक को अपना पेशा चुनने की आज़ादी हे | तब इस मसले का हल क्या होगा ? क्या फकत  यह कुछ मांगने की ही कवायद भर तो नहीं ? 

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