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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jul 31, 2014

जब कलेक्टरों के आंकड़ो को सरकार भी नहीं मान सकी !


प्रदेश के ज़िलो से सरकार ने बंधुआ मजदूरो की संख्या और स्थिति के बारे मे रिपोर्ट मांगी थी , क्योंकि
समाचार पत्रो मे लगातार बंधुआ मजदूरो की दयनीय स्थिति पर बड़े -बड़े समाचार लिखे जा रहे थे | इसलिएराजधानी
मे वारिस्ठ अधिकारियों ने वस्तु स्थिति की जानकारी के लिए ज़िलो से रिपोर्ट म्ंगाई थी | परंतु उन्हे तब आश्चर्य
हुआ जब प्रदेश के सभी जिलो के अधिकारियों ने रिपोर्ट भेजी की उनके छेत्र मे ""कोई भी बंधुआ मजदूर नहीं है """|
इस रिपोर्ट से सरकार के अफसरो के होश ही उद गए , क्योंकि दो दिन पूर्व ही मंडला जिले के एक आदिवासी ने
अपने पुत्र को बंधक इसलिए बनाया की उसे भोजन के लिए रुपये की जरूरत थी | यह समाचार राजधानी के एक पत्र
मे छपा था , फिर भी राज्य के 51 ज़िलो से यही रिपोर्ट आई की ""उनके यहा कोई भी बंधुआ मजदूर नहीं है "|

इस रिपोर्ट के बाद राज्य सरकार ने प्रदेश स्तर पर मंत्रालय मे निगरानी समिति गठित की गयी |
गृह सचिव की अध्यक्षता मे यह समिति ने सम्भागीय स्तर पर समितीय गठित की है जो अपने छेत्र मे बंधुआ
मजदूरो के लिए सर्वे करेंगे | यह एक उदाहरण है की हमारी अफसरशाही कैसे और कितनी ""ईमानदारी"""से काम
करती है | इस बारे मे शर्म कीबात यह है की सचिव लीग जिलो के अधिकारियों की लापरवाही से हतप्रभ है |
परंतु अफसरो के """अनलिखे "" नियम के अनुसार सब एक -दूसरे को बचते ही है |

एक ऐसा ही मामला शिक्षा विभाग का है जिसकी रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश की बीस हज़ार छात्राओ
को मार्शल आर्ट मे प्रशिक्षित किया गया है | अब इस आंकड़े को सही माने तो स्कूल मे छेदखानी की घटनाओ
मे लड़कियो को बेइज़्ज़त और शर्मशार नहीं होना पड़ता | बलात्कार का शिकार नहीं बनना पड़ता , तो यह आंकड़े
कितने सच है प्रश्न है ?

भाई साहब नहीं कहिए भाई जान कहे




विदेश मंत्री सुषमा स्वराज्य ने नेपाल मे जा कर कूटनीतिक भाषा मे एक नए शब्द को जन्म दिया
जिसका प्रयोग वाकई तारीफ के काबिल है ---वह है भाई जान | दरअसल उन्होने पड़ोसी देशो को आश्वस्त
करते हुए कहा की वे भारत को अपना बड़ा भाई समझे , अङ्ग्रेज़ी मे दो शब्द है बिग ब्रदर और एल्डर ब्रदर एक का
अर्थ है ""दादा"" और दूसरे से अग्रज का आशय होता है | लखनऊ विश्वविद्यालय मे अध्ययन के दौरान मुझे
इन शब्दो के अर्थ का वास्तविक रूप का भान हुआ | छात्र संघ के चुनाव मे एक उम्मीदवार दे अविनाश दादा
उनके सरनेम के बारे मे मुझे पता नहीं था | उनके वीरुध विज्ञान संकाय के ताङणी जी थे वे पर्वतीय थे | चुनाव
प्रचार के दौरान अविनाश दादा के आतंक के कारण तीन -चार सौ छात्रो का हुजूम चलता था , गगन भेदी नारे
लगते थे "" अविनाश का टेम्पो हाइ है --दादा हमारा भाई है """ उनके प्रतिद्वंदी उम्मीदवार इस प्रचार से थोड़ा
हतप्रभ थे | उस समय टांगड़ी की दो बहने भी विश्वविद्यालय मे ही अध्ययनरत थी ,वे भी अपने भाई का प्रचार कर रही थी
दो -तीन दिन बाद यकायक देखा की की दादा के जुलूस के पिछले हिस्से के दस - बारह च्चाटरों को रोक कर
उन दोनों से सवाल किया की "भैया आपके दादा कान्हा के दादा है , बॉम्बे के या कलकत्ता के ? अब इस सावल से सभी थोड़ा चकराये फिर हिम्मत कर के सवाल किया की आपका क्या मतलब है बॉम्बे और कलकत्ता से ? उन्होने कहा की बॉम्बे मे दादा का
मतलब गुंडे - मावली से होता है और कलकत्ता मे बड़े भाई को इस सम्बोधन से बुलाया जाता है ,अब बताओ ?
अविनाश दादा की गुंडई के डर से ही लड़के उन के साथ थे ,परंतु इस व्याख्या ने उनके दिमाग खोल दिये |
परिणाम स्वरूप जीतने लड़को का जुलूस चलता था उतने भी वोट दादा को नहीं मिले | तब मेरी भी समझ मे आया
की दादा का अर्थ कैसे स्थान परिवर्तन से बदल जाता है |

सुषमा जी ने भी पड़ोसी देशो नेपाल - भूटान आदि को भारत को बड़ा भाई यानि की
कलकत्ता दादा समझने का आग्रह किया है ना की बॉम्बे का दादा | इसीलिए उन्होने नया सम्बोधन दिया भाई जान ,
हालांकि हिन्दी और हिन्दू तथा राष्ट्रवाद की पार्टी से संबंध रखने के कारण इसके लिए लोग उन्हे उर्दूपरस्त या
सर्व धर्म समभाव का हिमायती न समझ लिया जाये , क्योंकि उनकी राजनीतिक प्रष्टभूमि समाजवादी दल की
है स्वयं सेवक संघ की नहीं , इसीलिए वे ज्यादा सहज है अन्योय की तुलना मे



Jul 30, 2014

कैसे हो हरियाली जब जंगल ही खतम किए जाये ?


30 जुलाई को जब वन मंत्री डॉ गौरी शंकर शेजवार मध्य प्रदेश मे एक करोड़ पौधो को लगाने की
की घोसना कर रहे थे , उसी सुबह पूना के आंबेगाओं तहसील के मालिन नामक गाव पहाड़ की मिट्टी खिसक जाने से तबाह
हो चुका था | एक बस ड्राईवर ने ने रोज की तरह जब सड़क और गाव को अपने स्थान से नदारद पाया तब प्रशासन
जानकारी मिली की सारा गाव मय आबादी समेत ""गायब"" हो चुका है | शासन के अनुसार ज्यतिर्लिंग भीमशंकर से दस किलो
मीटर की दूरी पर बसे इस गाव को सहयाद्रि पर्वत श्रंखला की तलहटी मे जुंगल काट कर बसाया गया था | पर्यावरण की विभिसिका
से लापरवाह प्रशासन की गलती का खामियाजा गाव वालों को जान - माल की बरबादी के रूप मे मिला | ऐसे मे वन मंत्री का
यह कहना की चालीस हेक्टर तक की वन भूमि का औद्योगिक उद्देस्य के लिए छूट दी जानी चाहिए , अब उद्योग किसके लिए
और किस कीमत पर सवाल यह उठता है ? वे एक करोड़ पौधे लगाने की बात करते है , जंगल बनाने के लिए पौधो को कितनी
भूमि की जरूरत होगी ,यह भी एक मुद्दा है और ऐसे मे वन छेत्र को कम करना कन्हा तक तर्कसंगत होगा?

उन्होने कहा वन्य जन्तुओ को प्रश्रय दिया जाएगा , कूनों अभयारण्य मे गिर के सिंह लाये
जाएँगे , अब सवाल यह भी उठता है की एक सिंह के लिए कितना वन छेत्र और उसके आहार के लिए कितने पशु उस वन मे
है ? आज जब भोपाल मे केरवा बांध के समीप तेंदुआ और अन्य जंगली जानवर विचरते है तो वनहा की आबादी मे डर तो
व्याप्त होता ही है? एक साल मे केवल दो बाघ ही मध्य प्रदेश के जंगलो मे बढे है | राज्य के एक अन्य अभयारण्य के बाहर
भी हिंसक वन्य जन्तुओ द्वारा आबादी मे घुस कर लोगो के जान और उनके पशुओ पर हमला करने की घटनाए अक्सर सामने
आती है | अब यह केवल इसलिए होता है की आबादी के कारण उनका विचरण कठिन होता जा रहा है ,साथ ही उनके भोजन
के लिए जो जन्तु जरूरी है उनकी संख्या और उपलब्धता कम होती जा रही है , इस कारण वे आस पास की आबादी मे पालतू
जानवरो पर हमला करते है , इस से ग्रामीणों मे भी तो रहता है साथ पशुओ के मारे जाने से उनकी आजीविका भी प्रभावित होती है |

इन हालातो मे वन छेत्र मे व्रद्धि तथा वन्य जन्तुओ की संख्या मे बदोतरी के साथ पर्यावरण की रक्षा करना
एक चुनौती है , ऐसे मे उद्योगो के लिए जंगलो को काटना कितना बुद्धिमानी पूर्णा कार्य होगा यह अपने आप मे एक ज्वलंत
प्रश्न है | समस्या गंभीर है और सरकारी अमले की बेरुखी इसे और खतरनाक बनाएगी ऐसा अनुमान है | अभी तक वन विभाग
यह स्पष्ट नहीं कर सका है की किन किन स्थानो मे कौन कौन से पौधे लगाए जाएंगे ?

ज़िंदगी या कैरियर चुनाव किसका ?आज के युवा की त्रासदी


आज जिधर भी नज़र दौड़ाओ युवको को प्रतियोगिता और -स्टडी फिर प्लेसमेंट की दौड़ मे भागते ही पाएंगे ,
कुछ लड़को से इस बारे मे मैंने बात कर के जानना चाहा की आखिर उनकी ज़िंदगी का मक़सद क्या है ? तो सभी का जवाब था की
अधिक से अधिक पैसा कमाना और उस से क्वालिटी टाइम स्पेंड करना , जब इस स्थिति के बारे मे विस्तार से पूछा तो उनके
जवाब थे --बड़िया फ्लॅट -बड़ी गाड़ी मोटा बैंक बैलेंस | रुपये से मनचाहा खाना खाना और कपड़े खरीदना "" बड़ी -बड़ी
कंपनियो के और नामचीन मोबाइल -टीवी सेट -साउंड सिस्टम आदि | जब मैंने उनसे उनकी दिनचर्या के बारे मे पूछा तो उनका जवाब
था की सुबह सादे नौ बजे ऑफिस पाहुचना वनहा से क्लाईंट के पास या मीटिंग मे जाना | दोपहर के भोजन के बारे मे उनका जवाब था
की सभी लोग कनही जाकर वर्किंग लंच करना , वह भी तीस मिनट से एक घंटे मे | फिर वही भागमभाग , रात आठ या नौ बजे
अपने रूम या फ्लॅट मे पहुँचना खाने के लिए अगर कुछ बना रखा है तो खा लेना और सादे दस बजे तक सो जाना | क्योंकि सुबह
सात बजे ट्रेन या बस पकड़ना होती है | यह दिनचर्या हफ्ते के छह दिन हो ऐसा नहींरविवार को भी कोई न कोई ऑफिस का अधूरा
असाइन्मंट पूरा करने के लिए मोबाइल पर लगे रहना | सिर्फ सोने के वक़्त को छोड़ कर बाकी समय तनाव बना रहना क्योंकि
क्लाईंट या असाइन्मंट का परिणाम क्या होगा असफल रहने पर बॉस को क्या जवाब देना होगा इस की चिंता मे लगे रहना मजबूरी
होती है | इसी तनाव से भरी स्थिति मे फ्लॅट या रूम पर वापसी यात्रा भी होती है , अगर कनही मोटर साइकल या कार से लौट
रहे है तो स्थिति और भी खतरनाक होती है की कनही गाड़ी का एक्सिडेंट न हो जाये | आज के युवा की सफलता की यह एक झांकी
है |


सवाल यह है की इस पूरे दौरान एक बार भी उन्हे अपने माता- पिता या घर की सुध नहीं आती है ,जंहा वे पड़े और बड़े
हुये , जिनहोने अपनी पूंजी लगा कर उन्हे पड़ाया -लिखाया , जो उसकी चिंता करते है | यह उपेक्षा कोई एक दो दिन नहीं होती
हफ़्तों और महीनो चलती है | घर से माता -पिता ही फोन से हाल -चाल पूछते है तो अलसाए भाव मे युवा टरका देते है |
क्योंकि उनकी दिनचर्या मे """माता -पिता और घर """ का कोई महत्व नहीं होता | जबकि उनके वर्तमान को बनाने मे वे
अपना भविस्य भी दाव पर लगा चुके होते है |परंतु परिवार से दूर --दोस्तो और परिचितों से अलग एक माहौल जनहा प्रश्नवाचक निगाहे
और शंका भरा वातावरण हो और महाभारत के अर्जुन की भांति ""उस से उम्मीद की जाती है की वह केवल कंपनी द्वारा दिये गए
लक्ष्य को उसी भांति एकाग्रता से प्राप्त करने का प्रयास """अहर्निश""" करता रहे | एक योगी की भांति आहार -विहार तथा किसी भी
अन्य सांसरिक ""चिंताओ"""को त्याग कर वह कुछ लोगो के एक समूह द्वारा """"लाभ अर्जन"""" के लिए किए जा रहे उद्यम को
ही एकमात्र उद्देस्य बनाए | अब जिन संगठनो के लिए उयकों से इस तन्मयता की उम्मीद की जाती है वे अनेक बार कानूनी एवं
सामाजिक रूप से धोखा और विश्वासघात के आरोपी बनते है | हथकड़ी लगती है अदालत और मीडिया उन्हे खलनायक निरूपित करता
है | अर्थात काम करने वाला युवक दिग्भ्रमित हो जाता है की वह परिवार मे सिखाये और विद्यालयो मे पड़ाए गए जीवन मूल्य को
को उचित माने अथवा """"सफलता """" को जीवन और कार्य का एकमात्र उद्देस्य समझे |


इस माहौल का एक ही आदर्श वाक्य होता है ""जो मैं चाह रहा हूँ वही अंतिम सत्य है ""तथा उसी को प्राप्त
करना ही मोक्ष के समान है | युवक को इस वातावरण मे रहते - रहते एक प्रकार की मानसिकता विकसित होती है जो ""उपलब्धि ""
को येन -केन पाने मे ही सफलता मानती है | वह साध्य को परम धर्म मानने लगती है उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता की
जिस साधन से वह लक्ष्य को प्राप्त करने की चेष्टा कर रहा है वे कानूनी और नैतिक स्टार पर गलत है | अगर उसे इस बात
पर टोका जाता है तब वह उन लोगो को अपना शत्रु और मूर्ख मानकर एक ही शब्द कहता है आप प्रैक्टिकल नहीं है | अब इस शब्द
मे उसकी भर्त्सना निहित है | इस प्रकार वह उन मूल्यो से पूरी तरह दूर हो जाता है जो उसे सिखाये गए थे | पैसे से सब कुछ
खरीदने की मानसिकता उसे अक्सर ""मानव से दानव """ बना देती है | यद्यपि समाज और सरकार मे इस वैल्यू सिस्टम को
उचित मानने वालों की संख्या कम भले ही हो परंतु वे निर्णायक हैसियत मे है | इस माहौल का परिणाम हम देखते है की बड़े -बड़े
नाम जब समाचारो मे सुरखिया बनते है तो किसी भले कार्यो के लिए नहीं वरन एक अभियुक्त और कानून तोड़ने वाले के रूप मे |
तब समाज मे जो लोग धन और सुविधाओ से व्यक्ति की हैसियत और सफलता आँकते है ---वे भी भरमीट हो कर कहते है """अरे
इसको ऐसा तो नहीं सोचा था """"' सत्यम घोटाले के समय स्टॉक एक्स्चेंज और व्यापारिक हलको मे अलावा आम निवेशको के
विश्वास को भी धक्का लगा था | तब शायद स्टॉक मार्केट के बारे मे लिखी या बताई गयी बातों और सूचनाओ पर प्रश्न चिन्ह
लगने की शुरुआत थी | यू तो अनेक कांड हो गए परंतु इस मार्केटिंग युग का चलन का मिजाज नहीं बदला | परिणाम स्वरूप
अक्सर बड़ी - बड़ी कंपनियो मे कार्यरत युवक अनेक घटिया अपराधो मे पकड़े जाते है, अथवा पकड़े जाने की आशंका से आत्महत्या
करते है |

इस प्रकार एक स्वर्णिम अवसर धूल धूसरित होता है | वर्षो की शिक्षा और मेहनत माता-पिता की तपस्या असमय ही
दम तोड़ देती है |जीवन के संध्या काल मे जब ऐसे माता - पिता सहारे की आस मे होते है तब अक्सर उन्हे खुद परिवार का आसरा
और सहारा बनना पड़ता है | सवाल यह है की असमय मे महत्वाकांछा के लिए बलि चद्ते ऐसे जीवन से नाही परिवार अथवा समाज
का भला होता है ना ही देश का | तब सोचने पर कोई मजबूर होता है की क्या आज की भागम भाग उचित है या जीवन मे संतोष
से थोड़े मे अपने परिवार जनो के साथ वक़्त बिताना ज्यादा श्रेयस्कर है ,बजाय इसके की बड़ी गाड़ी मोटा बैंक बैलेंस सजा हुआ फ्लॅट
हो ? सवाल अभी भी अनुतरित है ?परंतु उत्तर खोज्न होगा वरना पीड़ी की पीड़ी इस म्रग मारीचिका के पीछे भागता रहेगा | वह खुद
और समाज तथा देश खोखला होता रहेगा |





Jul 13, 2014

अभिभावकों की आफत --फीस या फिरौती ?


आज कल किसी भी शिक्षा संस्थान मे फीस का बड़ा गड़बड़ झाला है , क्योंकि सरकार द्वारा किसी भी स्तर पर इस बात
का प्रयास नहीं किया गया की कॉलेज या स्कूलो मे अन्य संस्थानो की फ़ीसों मे ""एकरूपता """ला सके | इसीलिए सदको - गलियो
मे खुले तथा कथित नाम के कान्वेंट स्कूलो की फीस भी आसमान छूती है |सिवाय सरकारी प्राइमरी स्कूलो या माधायमिक कालेजो मे
जनहा सरकार का फरमान चलता है , उसके अलावा अन्य सभी प्रकार के संस्थानो मे खासकर अल्प संख्यक समुदाय के शिक्षा संस्थान
तो बिलकुल निरंकुश है वे ड्रेस - दाखिले के नियम , किताब -कॉपी के खरीदने के बारे मे तथा "अनुशासन" के नाम पर जो होता है
उसे ""ज्यो का त्यो"" मानने मे बहुत कठिनाई है |

अभी हाल मे ही एक अखबार ने एक सर्वे किया ""पब्लिक स्कूल और कालेजो
का ,जिसमें दिल्ली- मुंबई - कोलकोतता - बंगलोर -पुणे- नागपूर के साथ ही भोपाल और इंदौर के संस्थानो """"का भी जायजा लिया
गया है | आप को यह जान कर ताजुब्ब होगा की भोपाल मे अगर औसत फीस 56 हज़ार से 76 हज़ार वार्षिक है , तो इंदौर मे यह फीस
45 हज़ार से लेकर 2.5 लाख तक है , जबकि यह फीस मात्र 76 हज़ार और मुंबई मे 43 हज़ार तथा कोलकता मे 44 हज़ार
और पुणे मे 54 हज़ार और नागपूर मे 58 हज़ार है सबसे कम फीस बंगलोरे मे 41 हज़ार है | केवल तमिलनाडु मे पब्लिक स्कूल की फीस
पर सरकार का पूर्णा नियंत्रण है | उपरोक्त फीस मात्र ट्यूसन - विकाश - एडमिसन फी-एवं लंच [अगर दिया गया ] |पहली कक्षा की
इतनी फीस यह तो बता देती है की """"""भारत मे गरीब लोग तो रहते ही नहीं """"""| सवाल है अगर तमिलनाडु सरकार शिक्षा
संस्थानो की फीस को नियंत्रित कर सकती है -----तब देश के अन्य राज्यो की सरकारे क्यो ऐसा कदम नहीं उठा सकती ?
इसका अर्थ यह है की या तो सरकार -- शासन के लोगो की मिली भगत है , या उनके खुद के शिक्षा संस्थान है | महाराष्ट्र और
कर्नाटका मे जीतने शिक्षा संस्थान है वे किसी न किसी पार्टी के मंत्री या सांसद की रियासत है | अब इन लोगो के स्वार्थ के कारण
फीस तो कम नहीं होगी ,जैसे मंहगाई कम नहीं होगी | क्या जनता अपने प्रतिनिधियों से यह पूछेगी की अगर तमिलनाडु मे कान्वेंट
स्कूलो की फीस नियंत्रित की जा सकती है तब मध्य प्रदेश मे क्यो नहीं ?????ज्वलंत प्रश्न ......










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नेता मे आक्रामकता ज़रूरी है क्या ?


अपने शीर्षक को थोड़ा सा उलट देता हूँ की क्या नेता बनने के लिए आक्रामकता ज़रूरी है ?, इस कथन की
की विवेचना करना इसलिए आवश्यक है , क्योंकि यह श्री दिग्विजय सिंह उवाच है , आम आदमी कोई ऐसी टिप्पणी करता तब उसको
गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं होती , पर यह कथन एक ऐसे आदमिके श्री मुख से उद्घाटित हुआ तो , विवेचना का मुस्तहक बन गया|
इसके कई कारण हो सकते है , परंतु मेरी समझ से प्रदेश के दस साल की अवधि तक मुख्य मंत्री रह चुके डिग्गी राजा कोई अंट-शंट
बयान नहीं देते | दूसरा वे काफी निहितार्थ वाली टिप्पणी के लिए भी जाने जाते है | तीसरा यह कथन जिस संदर्भ और व्यक्ति के बारे मे
मे किया गया वह और कोई नहीं वरन काँग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी है ! जिनके संदर्भ मे यह अक्सर कहा जाता है की दिग्विजय सिंह ने
उन्हे प्रजातन्त्र मे दलीय राजनीति के गुर सिखाये है | अब ऐसे मे यह टिप्पणी महत्वपूर्ण बन जाती है | क्योंकि लोकसभा चुनावो मे हुई
पराजय के बाद उनका यह कहना की """""राहुल जी मे शासक बनने की छंटा नहीं है , जिस आक्रामकता की जरूरत होती है उसका अभाव
है , वे तो गलत के वीरुध लड़ाई लड़ना चाहते है """ अब इस का क्या अर्थ लगाया जा सकता है ? इसको सतही तौर पर यह कहा जा रहा
की राहुल जी नेत्रत्व करने की छमता का अभाव है |

अब इसकी विवेचना के लिए काल और परिस्थिति का अनुमान लगाना जरूरी है , क्योंकि
सामान्य दिनो मे यदि यह टिप्पणी की गयी होती इसे एक व्यक्ति के मूल्यांकन के रूप मे लिया जाता , परंतु शिकस्त के बाद ऐसा कहना
काफी लोगो को अटपटा लगा , ना केवल काँग्रेस मे वरन पार्टी के बाहर भी | लगभग इसी समय पार्टी के कद्दावर नेता ए के एंथनी कनहे
की ""पार्टी की धर्म निरपेक्षता की छवि को धक्का लगा है "" उनके बयान का संदर्भ काफी दिनो बाद यह बताया गया की केरल मे ईसाई
समुदाय को ऐसा महसूस हो रहा की सरकार उनके हितो के प्रति चिंतित नहीं है | अब केवल केरल मे ही काँग्रेस मिलीजुली सरकार की एक
घटक है और उसी का प्रतिनिधि मुख्य मंत्री है जो संयोग से ईसाई है |




और अब सुन्नी खलीफा भी !


छठी शताब्दी मे पैगंबर मोहम्मद के देहांत के बाद आबु बकर पहले खलीफा बने जो की इस्लाम के बंदो के धार्मिक और
प्रशासनिक प्रमुख बने | हालांकि पैगंबर ने अली को अपना भाई घोसित किया था | परंतु विरासत के बारे मे उन्होने कोई फैसला नहीं
किया था ,ऐसा कहा जाता है | | अबूबकर के बाद उमर तथा उनके बाद उथमान बने , उथमान की हत्या किए जाने के बाद """उममा""ने
अली का ""चयन""" किया | पहले तीनों खलीफा निर्वाचित नहीं थे | इंका मुख्यलाया मक्का था | 661 मे हसन इब्न अली ने
मुवाइया के हक़ मे खिलाफत की गद्दी छोड़ दी | मुवैया ने मक्का से दूर दमिसक [ वर्तमान ] को अपनी राजधानी बनाया 756 मे उसन
अपने को कोरडोबा का अमीर घोसित किया 929 से इस अधिकार को ले कर संघर्ष हुआ और सबका अलग प्रभाव छेत्र बनते गए | सातवी सदी
से बारहवी सदी तक बगदाद खलीफा का मुख्यलाया बना |लेकिन नवी सदी मे फातमीद साम्राज्य से शीआ आधिपत्य की शुरुआत हुई |
इसमें इस्माइली और जैदी तथा तवेलर कबीले शामिल थे | अल महदी इनका पहला खलीफा बना | खिलाफत की सीट पहले मक्का
फिर कोरडोबा उसके बाद बगदाद फिर कैरो [वर्तमान काहिरा] और आखिर मे ओट्टोमान साम्राज्य मे इस्तांबुल बनी | जंहा 1909 मे तुर्की
की संसद ने खलीफा को मात्र संवैधानिक प्रमुख बनाकर सारे अधिकार संसद को सौप दिये | 3 मार्च 1924 को तुर्की की संसद ने
धर्म -निरपेक्षता को आधार बनाया | लेकिन खलीफा की पदवी बरकरार रखी , आज भी बायज़ेड ओसमान खलीफा कहलाते है वे फ़्रांस की
राजधानी पेरिस मे रहते है , वनही इस्माइली धर्म गुरु आग़ा खान भी रहते है |

लेकिन 21वी सदी मे एक नए खलीफा ने फिर खून - खराबे के साथ आई एस आई एस मातलब
इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक अँड लेवान्त की घोषणा करते हुए 29 जून 2014 को अपने को खलीफा बताते हुए ""सुन्नी"""मुसलमानो से
सहयोग मांगा है | हालांकि अभी तक उन्होने जो नर संहार किया है उसमें सुन्नी भी काफी संख्या मे थे |

विगत अनेक वर्षो से धर्म के नाम पर इस्लाम मे अनेक कट्टर पंथियो ने अनेक सङ्ग्थान खड़े किए है , जिनके माध्यम
से विश्व के अनेक हिस्सो मे आतंक और खून - खराबा किया जा रहा है | अल कायदा उनमे प्रमुख रहा है | बगदादी भी पहले उसी मे
रहा है | आज वह जो कुछ है उसमे कुछ सुन्नी देशो द्वारा की जा रही चोरी छिपे मदद तथा कुछ उग्रवादी तत्वो का हाथ है |