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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Oct 28, 2023

 

ना काम उम्मीदों का दंगल !

हम चुने जन प्रतिनिधि –लेकिन तुम उम्मीदवार कैसे चुनो !

 

        मध्य प्रदेश में  2023 के विधान सभा चुनावो में पार्टी के टिकट यानि की उम्मीदवारी  का “बी” फार्म  पाने के लिए जैसा घमासान  मचा है , वैसा विगत  चालीस सालो मे नहीं देखा गया | यह बात मई खुद के अनुभव से कह रहा हूँ |  सवाल उठता है की ऐसा क्यू ?  कांग्रेस्स और बीजेपी  दोनों ही पार्टियां  इस में फांसी हुई है ,  इन पार्टी के “”बड़े  नेताओ को भरोसा है की  नाम वापसी तक सब –ठीक कर लेंगे !  लेकिन जिले स्टार के जिन नेताओ को  जनता में अपनी जमीन  की पकड़  का भरोसा है , वे तो नामांकन भी दाखिल कर आए है | इसी उम्मीद में की  पार्टी का चुनाव चिन्ह  पर वे ही चुनाव लड़ेंगे | और अगर ऐसा नहीं हुआ तब वे आज़ाद उम्मीदवार  बन कर मैदान में अपनी किस्मत आज़माएँगे |

       अब नाम वापसी के पूर्व  तक तो पिक्चर साफ होती नजर नहीं आती | फिर भी दोनों पार्टी  दिन –रात मशक्कत कर रही है इस बगावत को काबू पाने के लिए |  इन दोनों पार्टियो को खतरा यह भी है की  , इस राज्य में जनहा सदैव से दो ही पार्टी चुनाव के खेल की खिलाड़ी रही है , उनका खेल बिगड़ने के लिए राजी के बाहर के दल भी मैदान में आ गए है | मसलन  केजरीवाल की आप ,  मायावती की बसपा  और अखिलेश की समाजवादी पार्टी  और अब नीतिस कुमार की जदयु  भी बगावती लोगो को टिकट  दे कर उन्हे  राजनीति में औरस संतान का ओहदा दे रही है | अब यह बात अलग है की जनता उनके इस हैसियत को कितना  मानती है , यह तो उनको मिले  समर्थन से पता चलेगा | वैसे इन लोगो की जमात  से कांग्रेस्स और बीजेपी द्नो ही दलो  को खतरा अपने “”वोट “ कटने का है | मतलब  लबो तक प्याला आने के पहले उसके छ्लक जाने का है |  1977 से हरियाणा में भजन लाल द्वरा जिस आया राम –गया राम की परंपरा की शुरुआत हुई थी , वह अब खूब फल – फूल रही है |  अनेकों टिकतारथी  , जिनकी जन्म कुंडली  बताती है की वे एक से अधिक बार  अपनी राजनीतिक “”निष्ठा”” बदल चुके है | इनमे काँग्रेस और बीजेपी दोनों के ही लोग है |  मजे की बात है की आप और समाजवादी तथा  बसपा ने जिन लोगो को अपने उम्मीदवार होने का ऐलान किया है --- उनमे से कितने लोगो पार्टी “”बी” फोरम देकर नवाजेगी  , यह भी अनिश्चित है | क्यूंकी इन टिकट अभिलाषियों को जिस “धन “ की मदद की आशा है वह कितने हद्द तक पूरी होगी ,यह कहना मुश्किल है |  बसपा के लिए तो यह आरोप भी लग चुका है की वनहा उम्मीदवारी खरीदी जाती है ! अब कितना सच या गलत है यह बहस् का मुद्दा  है , जो यानहा  पर नहीं है | रही बात इन पार्टियो के  जन समर्थन की यानि की इलाके में इनके कितने “वोट “ है  वह तो बहुत ही अनिश्चित है | मसलन  केजरीवाल की आप पार्टी को राजनीतिक रूप से एक ही  स्थान मिला हुआ है –वह है सिंगरौली के मेयर पद का | परंतु  उनके पंजाब के मुख्य मंत्री   चंबल इलाके में प्रचार भी कर आए है | बात इतनी सी है की इस इलाके में विभाजन के बाद  काफी लोग पाकिस्तान के पंजाब से यानहा आकार बसे है |  उनमे से एक नाम सुनहरे अक्षरो में लिखे जाने योग्य है  आज़ाद हिन्द फौज के कर्नल ढिल्लन का , उन्होने यही आकार किसानी शुरू की थी |  उनका फार्म आज भी ग्वालियर के पास है | इस इलाके में  इनकी बसाहट तो है , पर ये सिख कितना  पंजाब के मुख्य मंत्री भगवंत सिंह मान  की अपील का मान रखेंगे  यह अनिश्चित है |  रही बात समाजवादी और जदयु पार्टियो की  तो उनका बेसिक आधार तो पिछड़ी जातियो के वोट माने जाते है | परंतु क्या वे उम्मीदवार की जाति को देख कर वोट नहीं देंगी ! क्यूंकी ग्रामीण इलाके में  जातियो की पंचायत का प्रभाव तो है |  क्यूंकी इन दलो की राजनीतिक विचारधारा  तो उनके चुनाव घोसना पत्र तक ही सीमित होते है | बाकी सब जाति पर ही निर्भर करता है |

                 इन फुटकर राजनीतिक दलो का की एक निर्णायक  भूमिका  से दोनों ही यानि की कॉंग्रेस  और बीजेपी  आशंकित रहते है , वह है इनकी वोट काटने की छमता !  क्यूंकी विगत चुनावो मे देखा गया है की जिन सीटो पर हार – जीत का अंतर कुछ हजार का रहा है वनहा  इनको मिले वोट ही निर्णायक बने है विजयी उम्मीदवार के लिए | यह  खतरा काँग्रेस को ज्यादा हुआ है  , बीजेपी को इस  बात से कम ही नुकसान हुआ है | क्यूंकी कमोबेश  उनका वोट बैंक भी जातियो पर  निर्भर है , परंतु उसके साथ ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ  के समर्थन से उनकी नैया  पार हो जाती है | परंतु इस बार  संघ के कुछ पुराने स्वयं सेवको ने अपनी मातर् संगठन  के वीरुध मोर्चा खोल कर  चकित कर दिया है | ऐसा मालवा छेत्र में हुआ है | परंतु  ऐसा भीकहा जा रहा है की यह भी एक सुनियोजित  रणनीति के तहत किया जा रहा है | मोदी के नौ साल के कार्यकाल मे  अनेकों बार संघ के लोगो को  सत्ता धारी  दल के कुछ फैसलो  से गहरा अशन्तोष हुआ है | यह  जमीनी स्तर तक महसूस किया गया है | अपने इस समर्थन वोट को  दूसरे दलो की झोली में जाने से बचाने  के लिए  अपनी दूसरी झोली  में गिरने का प्रयास है | इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता , क्यूंकी संघ व्यक्ति  से निजी स्तर पर जुड़ा होता हो | दल बदल कर सरकार बनाने की मोदी –शाह  की कोशिसों को काफी समर्थक  नाराज़ है | उनकी नजरों में जिस प्रकार  व्यापारियो  पर छापे  मारे जा रहे वह भी उनकी नाराजगी का एक कारण है |  वे हिन्दू राष्ट्र के समर्थक है , परंतु मणिपुर  क घटनाओ  से उनमे बेचैनी है | क्यूंकी उत्तर – पूर्व में  व्यापारियो का वर्ग आखिर है तो  ऊँह का समर्थक | परंतु  स्थानीय आक्रोश का शिकार नहीं होना चाहते है | परंतु मोदी जी नीति जमीन पर हिन्दुओ और खासकर  व्यापारियो  और उनके प्रतिस्थानों  पर हमले  उन्हे  असुरक्षा  ही दे रहे है |

               खबर लिखे जाने तक  काँग्रेस  और इंडिया गठबंधन के आप –समाजवादी  और जदयु से “” अण्डरस्टैंडिंग “”  होने की खबर आई है | जिसके परिणाम स्वरूप  ज्यादा  खतरनाक उम्मीदवारों की जगह  कुछ कमजोर उत्साही लोगो को उम्मीदवार  बनाया गाय है | वनही मोदी सरकार के संकट मोचक  गृह मंत्री अमित शाह  भी राज्य में बीजेपी  की गंभीर हालत को देखते हुए  अशन्तुष्ट  नेताओ से मुलाक़ात कर  उनको आशवश्न दे कर संतुष्ट  कर रहे है | उनकी समझाइश  का असर भी हो रहा है |  अब चुनावी तस्वीर  नाम वापसी  के बाद ही साफ होगी | तब तक इंतज़ार रहेगा |

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       सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी  का   राम मंदिर का मोह और पाकिस्तान तथा मुस्लिम विरोध  उनके चुनावी राग का संपुट  समान है | मोदी राग में  काँग्रेस और पाकिस्तान तथा मुस्लिम एक ही सुर में लगते है |  वनही राम मंदिर उनका लंबा आलाप सरीखा है | जो गाहे – बगाहे  पंचम सुर में गूँजता है |  अब चूंकि अयोध्या में  राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की तिथि की घोषणा  हो चुकी है – जो गणतन्त्र  दिवस  से पूर्व की है |  इसलिए  बीजेपी  इस मुद्दे को  एक बार फिर भुनाने  की कोशिस  कर रही है | इस नुस्खे  की आजमाइश इतनी बार हो चुकी है , की अब इसके  लाभ की गुंजाइश  कम है | परंतु  फिर भी बीजेपी के लिए  लोगो को   धरम के नाम पर जोड़ने की कोशिस  तो है ही |  इसीलिए बीजेपी चुनाव आचार संहिता लाग्ने के बाद भी  इस उदघाटन  के पोस्टर जगह – जगह लगा रही है | वनही  बीजेपी उनके विरोध को राम का विरोध बता रही है |  गनीमत है की काशी की ज्ञानवापी मस्जिद को प्राचीन शिव मंदिर  और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि  मे बनी मस्जिदों का मसला नहीं प्रचारित कर रही है | क्यूंकी काशी वाले मसले को हाइ कोर्ट  के मुख्य न्यायधीश  ने  पूरी सुनवाई को ही रोक दिया है | क्यूंकी जिन जज साहेबन ने इस मामले की सुनवाई की थी  उनको  यह मामला  कोर्ट के रजिस्ट्रार  की लिस्ट से आवंटित ही नहीं हुआ था | अब यह तो गजब ही है की जज साहब  इस बेसिक  बात की जांच किए बिना ही मुकदमा सुनने बैठ गए |  दूसरी ओर मथुरा के मामले को भी आगे किसी भी कारवाई से सुप्रीम कोर्ट ने रोक दिया है | इस लिए बीजेपी डरती है की अदालत की रोक के बाद  अगर प्रचार हुआ तो मामला अदालत के पास पनहुक जाएगा | और पार्टी का अनुभव  इस मामले मे  अच्छा नहीं रहा है |

            रही बात आढ्य में राम मंदिर की तो  उसको लेकर तो अमित शाह  जी ने  तीन दिवाली मनाने का सुझाव दिया है | 1- कार्तिक मास की दीपावली  2—प्रदेश में  बीजेपी की [ शिवराज की नहीं ]  सरकार के गठन के समय और 3--- अयोध्या मे राम मंदिर में मूर्ति स्थापना के दिन |  अब इन्हे कौन समझाये की दशहरा  -दीपावली  तिथि पर मनाए जाते है |  लंका विजय  पर दशहरा  और अयोध्या आगमन पर दीपावली होती है | सरकारो के बनने और बिगड़ने पर नहीं बनती है | यह कोई निजी समारोह नहीं है की  घर पर दिये जला लिए और बिजली के बलब  लगा लिए | उनको  मालूम होना चाहिए की जन विश्वास है की   पर्व की प्रतिस्था  तिथि से है , नाकी बीजेपी की जय – पराजय से | दीपावली तो एक ही होगी योगी जी चाहे  तो अयोध्या में सरकारो खर्चे  से  दिये जलवा सकते है ----पर वह दीपावली तो नहीं होगी |

 

Oct 27, 2023

 

 मंदिर  का परिचय  उसके देवता से या की उसे बनवाने वाले से

                   प्रधान  मंत्री नरेंद्र मोदी ने चित्रकूट में मफ़तलाल के मंदिर में हुए समारोह में भाग लिया , उनकी कुछ घंटो की यात्रा का खर्च  सिर्फ 90 से 97 लाख का खर्च ज़िला प्रशासन को आया है !  वैसे अयोध्या के राम मंदिर  का  निर्माण संभव हुआ सुप्रीम कोर्ट के फैसले से , पर निर्माण का खर्च  भारत सरकार  दे रही है | पर निर्माण कार्य में विश्व हिन्दू परिषद का ही बोलबाला है ! वैसे इसकी स दारत  एक आईएएस अफसर नृपेन्द्र मिश्रा कर रहे है , जिनहे अपनी सेवा मे लाने के लिए मोदी जी ने  नियुक्ति के नियमो को ही बदल डाला था !!  तो यह है अयोध्या में मंदिर के निर्माण की तथा –कथा !

    देश के प्रमुख तीर्थ स्थानो में  औदोगिक घराने बिरला समूह  के राधा कृष्ण  के मंदिर है – परंतु इन मंदिरो को उनके देवता के नाम से नहीं वरन  निर्माण करता के नाम से ही जाना जाता है | कानपुर में  भी ऐसा ही एक मंदिर है जो अभी भी  बन ही रहा है – उसका भी परिचय  उद्योग समूह  जेके के नाम से जाना जाता है ! राधा कृष्ण ही इस मंदिर के मुख्य देवता है ! देश के मशहूर  मंदिर तिरुपति   में देवता बालाजी है परंतु कहलाते वे भी है तिरुपति के बाला जी !  हालांकि अब तो तिरुपति मंदिर प्रबंध स्थानम  ने देश के दस से अधिक स्थानो पर  बालाजी के मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण कार्य कर लिया है , और इन सभी स्थानो को तिरुपति के बालाजी के ही नाम से जाना जाता है |  इस मंदिर की श्रंखला  की ही भाति  अहमदाबाद के प्रसिद्ध  स्वामी नारायण  मंदिर  की भी शाखाये  बी देस – विदेश तक में है | अभी अमेरिका  में बहुता भव्य  मंदिरा का समारोह पूर्वक उदघाटन हुआ है , कहते है इसके निर्माण में  करोड़ो रुपये नहीं वरन डालर  खर्च हुए है | इनके मंदिरो की विशेस्ता यह है की इनके मुख्य देवता इस पंथ के प्रवर्तक  है | बताते है की इनके प्रवर्तक  उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के एक स्थान छपिया  से घनश्याम पांडे  लगभग सौ वर्ष पूर्व गुजरात चले गए थे | एवं वनहा उन्होने अपने “” पंथ” की स्थापना की | जिसे आज स्वामी नारायण के नाम से जाना जाता है | इनकी भी गुजरात में अनेक शाखाये है , जिनके प्रबंध में अहमदाबाद मुख्यालय का नियंत्रण रहता है | हाल ही में सूरत में इनके मंदिर के पुजारी को  एक अपराध के सिलसिले में बंदी बनाया  गया था | जिसे बाद में अहमदाबाद  मुख्यालय एनआर निकाल दिया था | वैसे दुबई में भी इनके मंदिर को वनहा के शासन से भूमि प्रदान की थी, जिस पर भव्य  मंदिर का निर्माण हुआ है | जिसे हिन्दू मंदिर के रूप मे  जाना जाता है | वैसे इनके मंदिरो में  देवताओ की भी मूर्तिया होती है , जिनको श्रद्धालु  पुजा – अर्चना करते है |

        अपने देवताओ के नाम से जिन मंदिरो को जाना जाता है , उनमे अधिकान्स्तः  दक्षिण में है | जनहा  भक्तो के अनुसार गैर सनातनी लोगो का बाहुल्य है | जिसको लेकर  द्रविड़ मुनेत्र कडगम के नेता बहुत आलोचक रहते है | उनके अपने कारण है , वे सनातन धर्म में ब्रांहनों के वर्चसव  और परिणामस्वरूप पिछड़े और दलित वर्ग के साथ हुए भेदभाव और अन्यायपूर्ण  बर्ताव को लेकर आज भी अशन्तुष्ट है |  परंतु आंध्र में मीनाक्षी मंदिर को उसकी देवी के नाम से जाना जाता है | चिदम्बरम  जिले में अनेक मंदिर है जो अपने देवता के नाम से ही जाने जाते है , ना की अपने निर्माणकर्ता के नाम से  |  इसी प्रकार  देश के सबसे धनी  मंदिर  पदनाभ स्वामी मंदिर  का नाम लिया जा सकता है , त्रिवेन्द्रम स्थित इस मंदिर का निर्माण   वनहा के राजाओ द्वरा  सदियो पहले कराया गया था | जिसमे  अकूत धन और सोना और जवाहरात  है | इसके तहखाने में एक द्वार ऐसा है जिसको किसी छ्भि द नहीं खोला जा सकता | वरन  केवल किस मंत्र के उच्चारन  से ही खुल सकता है ---परंतु उस मंत्र की जानकारी मंत्री के अरचको और पुजारियो को नहीं है | सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इस मंदिर  का अधिकार पुनः त्रिव्ङ्कुर  के राजघराने  को दे दिया है | पहले अन्य बड़े मंदिरो की ही भांति  इस का प्रशासन राज्य सरकार के  पास था |  कहते है इस मंदिर में इतनी संपाती है की देश के रिजर्व बैंक के पास भी उतना सोना नहीं होगा | अब आप अंदाज़ लगा सकते है की धरम मे कितना दम है | इसीलिए हिन्दू –हिन्दू किया जा रहा है और मंदिर मंदिर  किया जा रहा है | पर क्या इससे देश की असिक्षा  और गरीबी को मिटाने मे कोई मदद  मिल सकती है ? शायद नहीं , क्यूंकी  मूर्ति और मंदिर के प्रति यह श्रद्धा  प्रातः कालीन  दर्शन  के समय के  बाद तो आम आदम रोजी –रोटी और कपड़ा तथा मकान  के सवालो  से जूझने मे लग जाता है |

       

               

 

Oct 20, 2023

 

 

 

बिग फाइव को हैसियत  बताते छोटे –छोटे लोग !

क्या अमेरिका वियतनाम और अफगानिस्तान  के बाद  गाज़ा में भी साख  खोयेगा ?

 

     यूक्रेन में रूस  और अफगानिस्तान में अमेरिका  ली ताक़त  को दुनिया  देख ही चुकी है !  अब इज़राइल  के जरिये  फिर अमेरिका  की साख  एक बार दांव  पर लगी है |  रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण के समय  दंभ पूर्वक कहा था की यह कुछ ही दिनो की बात है , जब  यूक्रेन पर हमारी सेनाए  काबिज होंगी |  पर आज साल भर होने को आया  हालत क्यू की त्यु है | अफगानिस्तान को  भी  “” सभ्य “ बनाने चले  अमेरिका को जिस हड़बड़ी  में  मुल्क को छोडना पड़ा वह दुनिया के सामने है | हवाई जहाज और अनेक फौजी सामान  छोड़ कर  सैनिको को लेकर  उड़ गए थे |

           मिश्र और सीरिया  के संयुक्त आक्रमण  को पराजित करने वाले  इज़राइल पर जिस औचक रूप से हमास ऐसे  संगठन ने  राकेटो और मिसाइल से हमला किया वह  उनकी खुफिया  तंत्र और सैन्य  ताकत को “ हेच “ तो बताता ही है |  अब इज़राइल  के साथ बाइडेन  और ब्रिटिश प्रधानमंत्री सुनक  के सहयोग  का मतलब सिर्फ गाजा के फिलिस्तीनी शरणार्थियो  को मदद पाहुचने भर की हैं | इज़राइल  को अगर  अमेरिका और ब्रिटेन तथा  फ्रांस का समर्थन प्राप्त  है तो रूस और चीन  इज़राइल को  युद्ध बंद करने की सलाह दे रहे है | संयुक्त राष्ट्र संघ की गाजा को राहत सामग्री भेजे जाने की अपील बेअसर हो रही है | मिश्र की सीमा पर कई दिनो से राहत सामग्री { भोजन – मेडिकल समान और पानी }  ले कर खड़े बीसियों ट्रक  इज़राइल की ज़िद्द के आगे बेकार है | सुरक्षा परिषद  में  बंद कमरे में  अमेरिका ने रूस के युद्ध विराम के प्रस्ताव  को  वीटो कर दिया , जिस प्रकार रूस ने यूक्रेन में युद्ध विराम के अमेरिका के प्रस्ताव को वीटो किया था !

 

       यानि कुल हालात  इस बात को रेंखांकित करते है की जिस प्रकार हिटलर की ज़िद्द और अहंकार ने “” लीग ऑफ नेशन “ को   रद्द कर दिया था , और अंतराष्ट्रीय  स्टार पर शांति और व्यवस्था  बनाने का प्रथम प्रयास  असफल हुआ था | आज यूक्रेन और गाज़ा के  मसले पर संयुक्त राष्ट्र संघ जिस बेबसी का शिकार है ----वह उसके अस्तित्व  को ही चुनौती दे रहा है |  आज यूरोपियन राष्ट्रो और अमेरिका तथा चीन समेत रूस को इस हालत के बारे में सोचना होगा , वरना जैसा की लिखा जा रहा है की “” बिना नख “” का राष्ट्रो का  हैड मास्टर है यूएनओ !

              हमास को आतंकवादी कहे या राश्त्र्वादी संगठन  यह भी एक बहस  चल पड़ी है | बरतनिया हुकूमत के अंतर्गत  दूसरे विश्व युद्ध के पहल  जीतने भी उनके उपनिवेश थे  उनमे आज़ादी के लिए हुए संघर्षों  में अधिकतर हिंसक ही थे | दक्षिण अफ्रीका जो आज चार विभजित राष्ट्रो  मे है | उसमे जनरल स्मट्स  की सरकार के वीरुध  अफ्रीकन  नौजवानो के संगठन ने “” माउ  माउ “ आंदोलन चलाया था | जिसमे नेल्सन मंडेला  भी थे और जोमो केन्याटा  भी थे |  इन्डोनेशिया  मे डच आधिपत्य के वीरुध सुकर्णो ने हथियारबंद संघराश  किया था |  भारत में महात्मा गांधी के नेत्रत्व मे विश्व में पहली बार  अहिंसक  आंदोलन के जरिये अपनी आज़ादी की लड़ाई  लड़ी और स्वतन्त्रता  हासिल की | परंतु इस संघर्ष में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिन्द सेना की  लड़ाई का एक स्वर्णिम पन्ना भी है | बाम्बे में नौसेना  द्वरा  विद्रोह का बिगुल  और चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह बटुक दत्त की  शहादत  भी इसी संघराश का ही एक हिस्सा थे | परंतु  कमोबेश  आज़ादी का आंदोलन अहिंसक ही था , जिसने ब्रिटिश  शासन को भारत छोडने को मजबूर किया | परंतु  यह कहना ही होगा की ब्रिटिश  शासन में   जलियाँवाला बाग ऐसे कुछ अतिरेक घटनाओ के अलावा   उन्होने विधि का शासन  बनाए रखा | शोसन किसानो का  कारीगरों का हुआ , ब्रिटिश साम्राज्यवाद को मजबूत करने के लिए , मरीशस  और गयाना  को “” भेजे गए गिरमिटिया “” हिंदुस्तानी   भी उनके लालच के शिकार हुए |  अब इस परिप्रेक्ष्य में अपनी जमीन  और आबादी के लिए  लड़ाई लड़ रहे फिलिस्तीनीयों को आप क्या कहेंगे , यह आप पर निर्भर करता है !!!

1----     इज़राइल का अमानवीय चेहरा :-   शायद ही किसी ने ऐसा कहा होगा जैसा की इज़राइल के सेना के अधिकारी और प्रधान मंत्री नेत्न्यहु  कह रहे है की --- हम हमास  को नेस्तनाबूद कर देंगे !  जबकि  हिटलर ने भी यहूदी  नस्ल को नेसनाबूद करने की बात नहीं काही थी | अनेक यहूदी  वैज्ञानिक और धनिक लोग उसके साथ थे | यह सही है की उसने  प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी की पराजय के लिए यहूदी  लोगो को जिम्मेदार मानता  था |  उसके अनुसार  सेना को आपूर्तिमे  रद्दी सामान दे कर उन्होने जर्मनी की विजय छिन ली थी | एक ऐसा कारण था जो  काल्पनिक ही कहा जाएगा | क्यूंकी  सेना की आपूर्ति कुछ लोगो ने ही की होगी  समस्त यहूदी नस्ल तो नहीं  किया होगा | 

  शायद उसी तर्ज़ पर इज़राइल भी हमास के कांड के लिए समस्त फिलिस्तीनीयों  को जिम्मेदार  समझ कर उनसे बदला निकाल रहा हो |  अस्पताल पर राकेट से हमले की ज़िम्मेदारी भी अब वह कह रहा है की हमास के सहयोगी संगठन ने की है !!  परंतु समस्त अरब लीग  के सदस्य राष्ट्र  इस हमले के लिए इज़राइल को ही जिम्मेदार मानते है |

2—--- क्या अरब राष्ट्रो की नाराजगी को अमेरिका सहन करेगा ??

     जिस प्रकार  मिश्र और जॉर्डन ने  अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन  से मिलने से इंकार कर दिया और सऊदी शहजादे  ने अमेरिकी  विदेश मंत्री को कई घंटे  इंतज़ार कराया , उससे अमेरिका की “ साख”” तो मिट्टी मे मिल गयी है | जिससे मिलने के लिए  अनेक  राष्ट्रो के नेता  महीनो इंतज़ार करते है , उस राष्ट्रपति से मुलाक़ात से इंकार  और उसके विदेश मंत्री को मिलने के लिए ,साधारण आदमी की तरह इंतज़ार कराना  एक प्रकार से  “” नाराजगी “” का सख्त इज़हार ही है | इतेफाक से सऊदी  आमेरकी हथियारो का सबसे बड़ा खरीददार भी है |  जॉर्डन हमेशा से अमेरिका और यूरोपियन  राष्ट्रो का चहेता  रहा है | उसे अमेरिका सैन्य सामाग्री के अलावा  अन्य प्रकार की भी मदद देता है  | उसके बाद  ऐसी कूटनीतिक  नाराजगी   पहले नहीं देखि गयी है |  इससे से लगता है की फिलिस्तीनी  लोगो को  कुछ न्याया  मिलने की संभावना है भले ही दूर हो |