Bhartiyam Logo

All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Dec 30, 2016

मोदी -मोदी हर हर मोदी फिर हे मोदी अब हाय मोदी

2014 से शुरू हुआ हर - हर मोदी का नारा 2016 के अंतिम दिनो मे अब हाय मोदी मे बादल गाय | जैसा की राम का नाम लेने के ढंग से अवसर की स्थिति का अंदाज़ हो जाता है | जैसा की महात्मा गांधी के अंतिम शब्द "”हे राम "” नितांत दुख और हत्यारे के लिए भी शायद उनके मन मे छमा का भाव रहा हो |

कुछ वैसा ही ही लोकसभा चुनावो मे विजय के बाद बहुसंख्यक लोगो को 14 लाख रुपये की आस लगी थी | परंतु हीला - हवाला करते करते नए - नए मुद्दे देश के सामने आते गए | जिनहोने चुनाव के सबसे बड़े "”वादे "” को जिसे मतदाता "”दावा" मान बैठा था | यद्यपि इस वादे को पूरा करने की कोई कानूनी व्यसथा नहीं थी | परंतु देश के 90% जनता तो प्रधान मंत्री उम्मीदवार के कथन को राजा का वचन मान बैठी | परंतु जो हो नहीं सकता था --उसे लोग सच मान बैठे |

फिर स्विस बैंक के काले धन के खातो की खोज की प्रक्रिया चली | उसमे भी कुछ सामने नहीं आया | फिर देश मे काले धन की अर्थ व्यवस्था को खतम करने की बात कही गयी | बड़े -बड़े भास्णो की बहरमार हो गयी कभी गाय कभी मुसलमान का भय दिखाया गाय | हालांकि सत्तारूद दल के "”पोषित "” संगठनो द्वारा जगह - जगह गौ मांस और गायों को कतलखाने ले जाने के शक मे अलपसंख्यकों की पिटाई और धुनाई हुई | पर भारतीय जनता पार्टी शासित राज्यो मे कोई पुलीस कारवाई नहीं हुई | उत्तर प्रदेश मे हुई घटनाए इसकी गवाह है | आंदोलन कर के हिन्दू - मुसलमान का खेल खेला गया | जो भी आरोप लगाए गए थे वे सभी जांच मे गलत पाये गए | लेकिन तब तक इन सब मुद्दो पर समय की धूल जाम गयी |

अरहर के दल के आयात और मंहगे दामो पर बिक्री हो या अंबानी - अदानी को बंकों द्वरा 7000 करोड़ से अधिक के क़र्ज़ माफ करना | जब विदर्भ के किसान फसाल के खराब होने पर आतम हत्या कर रहे थे ---क़र्ज़ माफी ने जले पर नमक छिड़कने का काम किया |
फिर आया 8 नाओवेंबर का दिन -जिस दिन ऐसा कुछ घटा जो दुनिया मे कभी नहीं हुआ | नरेंद्र मोदी प्रधान मंत्री ने टेलेविजन पर राष्ट्रीय प्रसारण द्वरा 1000 और 500 के नोट को "”वित्तीय "” लेनदेन के लिए अमान्य कर दिया | लोगो से वादा किया गया की "”ईमानदार लोगो को डरने की ज़रूरत नहीं है "” 50 दिन मे फिर अच्छे दिन आने के वादे को दुहराया गया | नोट बदलने के लिए बंकों के सामने लाइने लगना शुरू हो गयी |कहा गया की 14 लाख करोड़ की करेंसी पाँच सौ और हज़ार के नोटो मे है | इनमे ही काला धन छिपा है | परंतु बड़े व्यापरियो - डाक्टरों -वकीलो आदि को कभी लाइन मे नहीं देखा गया | लगे तो वे लोग थे जो निम्न वेतन भोगी या रोजंदारी काम करने वाले थे | ग्रामीण इलाको मे किसान भी लाइन मे लगे | उन्हे बीज --खाद के लिए पैसे नहीं मिल रहे थे | 50 दिनो मे रिजर्व बैंक और वितता तथा आर्थिक मंत्रालय द्वरा 60 संशोधन आदेश किए गए जो बंकों तक पाहुचने के पहले ही टीवी से ढिदोंरा पीटा जाता था | पहली बार सरकार की किसी योजना मे इतनी बार फेर बादल हुआ होगा ---यह अपने मे प्रशासनिक इतिहास मे एक "”कीर्तिमान"” ही होगा | अब इसे सफलता के लिए किया गया प्रयास कहे अथवा ''सनक'' मे मे किए गए फैसले को सही करने का प्रयास |
विवाह का मौसम होने के कारण लोगो को शादिया रद्द करनी पड़ी | फिर आया 2.50 लाख तक निकालने का आदेश जो की निमंत्रण पत्र दिखने पर मिलना था | फिर सहकारी बंकों को नोट लेने बदलने पर रोक लगा दी गयी | दबाव पड़ने पर सहकारी बैंको को काम काज करने की ईज़ाजत दी | तब तक किसानो की बुवाई का समय निकल चुका था | शादी वालो की दिक़्क़तों पर हँसते हुए पतंजलि के रामदेव का कहना था की बीजेपी मे अधिकतर लोग कुँवारे है इसलिए उन्हे इस बारे मे कुछ नहीं मालूम | पर शादीशुदा प्रधान मंत्री को ना मालूम हो ऐसा तो हो नहीं सकता | अब इसे लापरवाही कहे या नालयकीआप ही समझे ??

अब 2017 कैसा होगा जब की प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी कह चुके है की की वे 31 दिसंबर को राष्ट्र को संभोधित करेंगे | अब यह भी फिर हाय वाला होगा या हे राम वाला यह तो समय बताएगा | ?

Dec 25, 2016

कैशलेस बाज़ार की शुरुआत अभी नहीं है संभव

कैशलेस बाज़ार की शुरुआत अभी नहीं है संभव
देश के रक्षा मंत्री मनोहर परिकर का यह बयान की गोवा मे बाज़ार को कैशलेस नहीं किया जा सकता सरकार और उनकी पार्टी के संगठन के नेताओ के कान खड़े कर देने वाला हो सकता है | परंतु स्थानीय व्यापारियो के दबाव और विधान सभा के आगामी चुनावो को देखते हुए उन्होने यह पैतरा खेला है | गौर तलब है की प्रदेश सरकार द्वारा सभी व्यापारियो को इस योजना के तहत पंजीकरण करने के आदेश के बाद व्यापारी समुदाय उग्र हो गया था | उन्होने रैली निकाल कर सरकार के मुख्यालय पर प्रदर्शन किया था | उन्होने गोवा बंद की धम्की दी थी |

पर्यटन का सीजन होने के कारण विदेशी सैलानियों पर कैशलेस होने के कुप्रभाव को देखते हुए बाज़ार पर विपरीत प्रभाव की आशंका थी | व्यापारियो के लिए डालर और पाउंड कमाने वाले कैसीनो और बड़े होटलो ने सरकार की नीति का विरोध किया |

प्रदेश सरकार ने इस अवसर पर परिकर को गुहार लगाई और उन्होने कहा की गोवा पचास फीसदी से अधिक कैशलेस नहीं हो सकता है और इस से ज्यादा होने की भी कोई ज़रूरत भी नहीं है | अब यश बयान केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के लिए और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के लिए झटका पहुचने वाला हो सकता है | परंतु मनोहर परिकर के लिए अपना होम ग्राउंड बचाना जरूरी है | क्योंकि उन्हे तो गोवा से ही चुन के जाना है | इसलिए उन्होने मोदी की नीति मे संशोधन कर दिया |
ऊंची मूर्तिया देश की गरीबी और दुर्दशा को ढाँक नहीं सकती

विश्व की ऊंची प्रतिमाओ की होड मे सरकार ने पहले गुजरात मे 182 मीटर ऊंची बल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा बनाने का ऐलान किया और अब उस से भी आगे बदकर 192 मीटर ऊंची प्रतिमा मुंबई से सवा मील दूर समुद्र की एक चट्टान पर बनाए जाने की घोसणा की गयी है |इतिफाक से दोनों ही विशाल प्रतिमाओ के निर्माता है पिता -पुत्र राम और अनिल सुतार || |लगता है कोई ''नव राष्ट्रिय स्मारक निर्माण"” परियोजना पर काम हो रहा है | कोई अचरज नहीं होगा अगर जल्दी ही राजस्थान मे महाराणा प्रताप की प्रतिमा की भी घोसणा हो जाये |
आखिर इन स्मारकों का उद्देस्य क्या है ? जानकार सूत्र बताते है की आज़ादी के बाद देश के स्वर्णिम काल और नाको की ''अनदेखी ''की गयी है | इसलिए भविष्य की पीदी को 'हक़ीक़त' बताने का राष्ट्रीय प्रयास है | यानि की स्वतन्त्रता के बाद के सरकारो ने यह नहीं किया और वे इस राष्ट्र अपमान की दोषी है |
इस संदर्भ मे दो सवाल है --- देश की प्राथमिकता क्या होनी चाहिए ? स्थानो के नाम परिवर्तन करना और स्मारक बनवाना ? अथवा भूख - बेरोजगारी और शिक्षा तथा स्वास्थ्य की देखभाल करना | 125 करोड़ की आबादी वाले इस देश मे लगभग 40%लोग गरीबी रेखा के नीचे अभी भी है | यह तथ्य मोदी जी के लिए काँग्रेस शासन का रिपोर्ट कार्ड हो सकता है --परंतु वे दो साल मे मे कितना कर पाये है उनका रिपोर्ट कार्ड सिर्फ " वादे ही वादे भर है | यथार्थ मे नोटबंदी के प्रहार के अलावा जनता जनार्दन को महसूस करने लायक कोई आँय तथ्य नहीं है |
अमेरिका और चीन ने जो प्रतिमाए बनवाई वे उनकी ''उपलब्धि '' का संकेत है | ब्रिटेन से दस्ता मुक्त होने की लड़ाई के जीत के बाद ही स्वतन्त्रता की देवी की प्रतिमा का निर्माण हुआ | सरदार बल्लभ भाई पटेल का योगदान सामूहिक प्रयास मे उनकी भागीदारी था | देशी रियासटो का विलिनीकरण किसी सम्राट या राजा का अश्वमेघ यज्ञ नहीं था जो उनका प्रयास कहा जाये | यह जवाहर लाल नेहरू मंत्रिमंडल का फैसला था जिसमे पटेल गृह मंत्री थे और उन्होने अपना कर्तव्य कुशलता से निभाया |कुछ लोग काश्मीर के विलिनीकरण मे विलंब का दोष नेहरू को देते है | वे भूल जाते है की वह भी मंत्रिमंडल का समूहिक फैसला ही था | किसी का स्वार्थ या महत्वकांछा नहीं थी | जैसा की दुर्भावना पूर्वक किया जा रहा है | अभिलेखागार के दस्तावेजो को गलत बताने की हिमाकत करने वाले -पल -पल मे जी रहे है,, वे ना तो इतिहास को झूठला सकते है और नाही वर्तमान को धुंधला कर सकते है और भविष्य

पटेल और शिवाजी की प्रतिमा पर लगभग एक हज़ार करोड़ रुपये का व्यय अनुमानित है | जानकारो के अनुसार इन प्रयासो से देश का गौरव आने वाली पीड़ी को बताना है | अगर हम अपने इतिहास को देखे तो मिस्र के फैरो ही अपनी मूर्तिया बनवाते थे और उन्हे कब्र के स्थापित करते थे | भारत मे शासको की प्रतिमा लगाने का रिवाज राजपूत काल से प्रारम्भ हुआ | उसके पहले हमारे आरध्यों ---राम और व्कृष्ण की प्रतिमा बनाए जाने का इतिहास नहीं मिलता | भीष्म और और परशुराम की प्रतिमा नहीं है | हा सहस्त्रर्जुन का मंदिर ओंकारेसवार मे है |
इसका कारण वेदिक धर्म मे पुनर्जनम सिधान्त है | जिसके अनुसार शरीर नष्ट होता है आत्मा अज़र - अमर है | इसलिए शरीर को स्थायित्व देने का ख्याल हमारी सभ्यता मे नहीं है | जिनकी मन मे हो वे जाने

Dec 18, 2016

Supreme Court Decisions are Correct or Right?

Supreme Court is the Guardian of the Indian Constitution because it guarantees the Rule Of Law in the country. Fundamental Rights of Citizens are protected by the court against any power that be . Constitution directs government and its allied agencies to ensure Rule of law . Basically people trust the pronouncements of the apex court . But recently some Judgments have caused doubts about correctness of the courts decisions .

Recently Full bench of supreme court headed by Chief Justice Thakur gave verdict that NO HIGH COURT will entertain any writ petition in reference of Demonetization ; Which is against the spirit of our Constitution. To elaborate my point . I will quote Article 32 which clearly empowers the Supreme court to entertain complaints of the citizens and for constitutional remedy it shall issue writ of Habeus corpus – Mandamus – Quo waranto or cercori and prohibition. This means that apex court can issue the order within the framework of these writ jurisdiction ONLY. Where as under article 226 which deals with the powers of High Courts in this reference have greater jurisdiction. Because constitution says “the high court can issue for any other purpose”, Where as Supreme court can only issue these writs in the matter of the rights as given in Part III of constitution.

It should be clearly understood that Supreme court has no power of “Superintendence over High Courts. It issues Directions as appellate authority. Now in this regard we examine the case of Demonetization order, we feel that it is not correct as the apex court order is NON APPELEBLE hence it is Right BUT not CORRECT.

Second decision is also makes one feel that is it all correct, in the matter of an air force personal Maqtoom Hussain who pleaded that growing Beard is his religious faith hence he should be allowed to keep it. In 2001 Maqtoom applied to his commanding officer to get the permisson to this effect. Initially he was allowed, But latter he was ordered to shave the beard. Against this order he went in appeal to Supreme Court. One Significant fact was not mentioned by the apex court that in Air Force Sikh Personals are allowed to keep their beard. Now this amounts to Discrimination on the basis of Religion. Then how come supreme court did not elaborated it self as to WHY a Sikh belief is superior than the belief of a follower of Islam ?


In this reference Allahabad High Court 's verdict on the issue of Triple Talaq should also be highlighted. Here again the matter of faith is in question. Allahabad high court in its judgment has remarked “That Faith can not be above Constitution” but the same court in the matter of Babri mosque demolition case has given the verdict which is totally opposite faith is above the constitution! How one can feel Correct? What is right and what is wrong.
मूर्ति -और मंदिरो के देश मे मूर्ति भंजक का क्षणिक उन्माद

भारत को मंदिरो का देश भी कहा जाता है यंहा अनगिनत देवी -देवताओ के मंदिर है , जिनके करोड़ो भक्त भी है | कुछ मंदिर तो भक्तो और संपदा के लिहाज से दुनिया मे अनोखे माने जाते है | जैसे तिरुपति और पद्मनाभ मंदिर जनहा अरबों रुपये की सम्पदा और करोड़ो भक्त है | इतिहास मे कभी सोमनाथ मंदिर की बी भ्व्यवाता का वर्णन मिलता है | परंतु महमूद गजन्वी द्वरा हमला कर के "”मूर्ति भंजन "” किया गया और सम्पदा लूटी गयी | काशी विश्व नाथ मंदिर भी ऐसे ही हमले का शिकार हुआ --उज्जैन के महाकाल की भी यही कहानी है | कुछ वर्ष पूर्वा अफगानिस्तान के बामीयान छेत्र मे मौजूद विशाल बूढ़ा की मूर्ति को नूकसान पहुंचाया गया |

परंतु आज भी ये मंदिर और उनकी मूर्तिया ही पूजी जाती है | मूर्ति भंजक के क्षणिक उन्माद को संतुष्टि देने वाली घटनाए इतिहास के गर्त मे दब गयी है | वे मूर्तिया आज भी है क्योंकि मूर्तियो को बनाने मे विश्वास और श्रद्धा होती है | उसमे समय मे किए गए परिश्रम की छाप होती है | इसलिए इसी श्रद्धा और विश्वास का कारण है की बद्रीविशाल की खंडित मूर्ति की भी आज हजारो साल बाद पूजा की जाती है |

गजनी और आँय हमलावरो द्वरा मंदिरो और

मूर्तियो को खंडित करने का इतिहास भर है क्योंकि मूर्ति भंजकों का सिर्फ एक दिन होता है उनका कोई भविष्य नहीं होता | इसीलिए अगर किसी राह चलते से भी पूछो तो वह यह नहीं बता सकेगा की महाकाल और विश्व नाथ मंदिर का आक्रांता कौन था??| 

Dec 14, 2016

Government is not the State and to criticize the policy is not an offense, but a constitutional right

Government is not the State and to criticize the policy is not an offense, but a constitutional right

In political science “State” is constituted of Four Elements --- LAND, POPULATION, SYSTEM TO GOVERN AND SOVEREIGNTY. But unfortunately some over zealots are spreading the notion that the Government is the state, Which is totally incorrect. Let us examine these elements land and population are physical and system of governance is the child of the population in a democracy and the sovereignty is totally abstract .

Once again we thrash out the system of governance which is enumerated in our Constitution . Which clearly stipulates three wings house of representative which is called parliament is representational to the masses or population . Though the present day government is the child of Loksabha –but in effect it controls the proceedings of the house. So both are mingled. Under the constitution government speaks for the Country –But in abroad ,not in the homeland .

To understand this I will quote the court proceedings, where in many case Union Of India is made the party and in some others Government of India, now this is the difference which I wanted to put through . In criminal cases the State is the prosecutor , but in civil cases it is replaced by the Government of India .


The third constitutional organ is the judiciary -which is the watch dog of Constitution . To link these three organs we have President Of Republic .who is also indirectly elected . Now comes the Citizen and government relations , under the constitution we have a place for opposition in the house . They are suppose to see through the governance and expose its follies .

Now the question arises when there is provision of dissenting with government policies , then how it become “RASHTRADROH ” as put by the “BHAKTS” . Probably these Bhakts either are ignorant of the constitution and its provisions or they don’t want to adhere to it . To my mind the second part is the truth . If they had such knowledge, then they would be able to understand the difference between the State and the Government .

This is in the reference to the recently issued circular by The Institute Of Chartered Accounts ---that No member shall speak or write criticizing the Demonetization policy . How any organization can violate the constitutional right of a person ? More so C.A. Are the financial professionals who can educate their clients about the effects of this policy .. It seems the Institute has issued this circular under the pressure of the present government .This makes things more worse , because one concludes that there is something very wrong --to which the Mody government wants to hide . 

Dec 13, 2016

विज्ञापनो के सहारे विकास की सुनहरी तस्वीर की पेशकश और अपनी उपज को सड़क पर फेने को मजबूर किसान ??

विज्ञापनो के सहारे विकास की सुनहरी तस्वीर की पेशकश
और अपनी उपज को सड़क पर फेकने  को मजबूर किसान ??

जब देश मे नोट बंदी को लेकर जगह = जगह अशन्तोष भड़क रहा हो ,बैको के सामने लाइने लगी हो --तब यह दिखाना की लोगो की जमा राशि से देश मे बहुत अधिक पूंजी बनेगी | फलस्वरूप देश मे अधिक उद्योग - धंधे लगेंगे | असंख्यों नौकरिया सुलभ होंगी | परंतु करोड़ो रुपये के सरकारी विज्ञापनो मे वर्तमान हालत का ज़िक्र कनही नहीं है ---अर्थात 8 नवंबर से अब तक 90हज़ार से ज्यादा लोग बेकार हो गए है | वह भी बाज़ार मे नकद राशि की गैर मौजूदगी से ??

विज्ञापन से विकास के दावे लोगो के मन मे झुंझलाहट ही भर देती | क्योंकि हक़ीक़त की पथरीली ज़मीन पर विकास की तस्वीर दिखाना घाव पर नमक छिड़कने जैसा है | आज भी देहातो मे किसान को बीज और खाद तथा डीजल के लिए दर - दर भटकना पद रहा है | मंडियो मे किसान अपनी उपज को "”औने--पौने "” दामो मे दलालो के हाथो मे बेचने को मजबूर है | फरुख़ाबाद के आलू बोने वाले किसान हो या मधी प्रदेश के टमाटर उत्पादन करने वाले हो अथवा सिहोर -- रायसेन के शाक भाजी उगाने वाले किसान हो | सबकी मजबूरी है की नकदी के लिए वे खेत की फसल को बेचे ---- फिर चाहे वह किसी भी दाम पर खरीदी जाये |

शर के उपभोक्ताओ को दस और बीस रुपये मे सुलभ हो रहे आलू - टमाटर और हरी मटर किसान को इतना भी पैसा नहीं देती की वह "”उचित "” दाम नहीं मिलने पर अपनी उपज को वापस ले जाये | क्योंकि इतना पैसा भी उनको नहीं मिलता है ! इसलिए किसान अपनी उपज को सड़क पर फेकने को भी मजबूर हो गए है | आखिर ऐसा क्यो की "”अन्नदाता "” इतना बेबस हो गया है ?? 

Dec 11, 2016

नोटबंदी पर मोदी जी की चुनौती -पचास दिन ? फिर .......

नोटबंदी पर मोदी जी की चुनौती -पचास दिन ? फिर .......

विश्व मे इस समय राजनीति को तेज़ रफ्तार से बदलने की अनेक देशो मे कोशिस हुयी – पर उनमे परिणाम आशा के अनुरूप नहीं हुए | नोट बंदी के बारे मे 8 नवंबर को राष्ट्रिय प्रसारण से प्रधान मंत्री ने देश को सकते की स्थिति मे पनहुचा दिया था | इस बारे मे शायद दुनिया मे कोई ऐसा उदाहरण नहीं है जब इन हालातो मे नोट को बेकार करार दे दिया गया हो | युद्ध के बाद के हालत मे मुद्रा को संतुलित करने के लिए होता है | परंतु जिन कारणो को इस फैसले का आधार बताया गया वे विगत तीस दिनो मे पुष्ट नहीं हो पाये है
गोवा मे मोदी जी ने देशवासियों से वादा किया था की अगर पचास दिनो मे कालाधान -रिश्वतख़ोरी -आतंकवाद को कहातम ना कर दे तो आप चौराहे पर खड़ा कर सज़ा दे सकते है | परंतु प्रजातंत्र मे सज़ा स्वयं चुननी होती है जैसा ब्रिटेन और इटली के प्रधान मंत्री ने किया ||
ब्रिटेन के प्रधान मंत्री डेविड कैमरन ने यूरोपियन यूनियन मे देश के बने रहने या बाहर जाने पर देश मे जनमत संग्रह कराया था | उनका अनुमान था की ब्रिटेन के लोग यूरोप संघ मे रहना चाहेंगे | परंतु नाइजल ने देश के लोगो को समझाने की सफल कोशिस की ब्रिटेन का स्वतंत्र अस्तित्व ही आर्थिक रूप से फायदेमंद है | परिणाम यह हुआ की कैमरन को अपनी असफलता की कीमत इस्तीफा देकर चुकाना पड़ा यह था अपनी नीति के असफल होने का मूल्य | दूसरा उदाहरण भी यूरोपियन संघ की सदस्यता से जुड़ा है | इटली के प्रधान मंत्री मैटुये रेन्जी ने यूरोपियन संघ की सदस्यता के लिए देश के संविधान मे संशोधन के लिए देश मे जनमत संग्रह कराया | परिणाम की देश की जनता ने स्थानीय निकायो ने अपनी स्वतन्त्रता को बरकरार रखने के लिए प्रधान मंत्री की कोशिस को नकार दिया | एक दूसरा उदाहरण आस्ट्रिया मे हुए चुनाव से भी मिलता है जनहा नागरिकों ने दक्षिण पंथी उम्मीदवार को नकार कर नोर्बेर्ट होफनर को चुना | क्योंकि वे उद्योग के साथ ही अपनी अस्मिता को बनाए रखना चाहते थे |
परंतु नरेंद्र मोदी जी ने देश को काला धन - भ्रष्टाचार आतनवाद जैसे नारे देकर अपने नोटबंदी के फैसले पर मुहर लगवाना चाहा | और तीस दिन बाद अब वे कैशलेस और प्लास्टिक मनी की बात कर रहे है | मोबाइल से पेटीएम करने की सलाह देश के महानगरो मे भले ही सफल हो परंतु बहुत सी जगह अभी भी ऐसी ही जनहा सिग्नल नहीं मिलता | ऐसे मे यह कहना की नगर और शहर तथा कस्बो मे बिना नकदी के काम हो जैसे की काला धन के निकाल कर मुद्रा चलन मे लाना --परंतु जो अनुमान रिजेर्व बैंक ने कालेधन की राशि के बारे मे की थी ,,वह गलत सिद्ध हो गयी है | 14 हज़ार करोड़ के नोट चलन से बाहरा कर दिये गए ,एवं तीस दिनो मे बारह हज़ार करोड़ से अधिक की मुद्रा देश के बैंको मे जमा हो चुकी है | नकली और आतंकवाद को धन पोषित करने का दावा भी अपुष्ट ही रह गया | काश्मीर मे मारे गए आतंकियो के पास से नए नोटो की बरामदगी ने इस दावे को खारिज कर दिया है |


क्या अब मोदी जी प्रजातन्त्र की रिवायत को देखते हुए शानदार फैसला लेंगे ???
प्रदेश की पुलिस मुख्यमंत्री को सुरक्षा प्रदान नहीं कर पायी ?

कुछ समय पूर्व ही जिस भोपाल पुलिस की बहादुरी की प्रशस्ति सार्वजनिक रूपसे मुख्य मंत्री शिव राज सिंह ने जेल से फरार सिमी के आठ लोगो को गोलियो से भून दिया था | वही पुलिस एक मुख्य मंत्री को सुरक्षा देने मे नाकाम रही | इस घटना ने ना केवल राज्य सरकार और प्रदेश पुलिस के भद्दे रुख को उजागर किया वरन प्रशासनिक शिस्टाचार की भी धजज़िया उड़ा दी |

घटना यू है की राजधानी के मलयाली समाज ने केरल के मुख्य मंत्री पिनराई विजयन को शनिवार को बीएसएसएस कॉलेज मे आयोजित एक समारोह मे आमंत्रित किया था परंतु भारतीय जनता पार्टी के पित्रसंगठन राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ और उनके चुथ्भिए संगठन बजरंग दल तथा विश्व हिन्दू परिषद द्वारा केरल मे स्वयं सेवको की हत्या के कारण केरल की सरकार से रुष्ट है | उन्होने विजयन के आगमन पर उन्हे समारोह मे नहीं पहुचनेदेने की घोसना की थी | मात्र सौ – पचास प्रदर्शन करियों की धम्की से पुलिस ने सुरक्षा की औपचारिकता देने को तो माना परंतु विजयन को कहा की वे समारोह मे अपनी रिस्क पर ही जाये | यानि कुछ भी घटित होने पर जिला और पुलिस प्रशासन जिम्मेदार नहीं होगा !! कहा जाता है की भोपाल महानिरीक्षक योगेश चौधरी ने महानिदेशक ऋषि कुमार शुक्ल ने पुलिस की "”असमर्थता "” की बात स्वयं केरल के मुखी मंत्री से काही थी | जिसके उपरांत समारोह के आयोजक श्री जॉय को विजयन ने फोन पर बताया की भोपाल की पुलिस ने उनसे कहा की वे अपनी रिस्क पर जाये ---जो एक मुख्य मंत्री का अपमान है | अतः मै नहीं आ सकूँगा |

इस प्रकरण से प्रदेश के शिष्टाचार विभाग की पूरी नाकामी उजागर हो गयी | नीली किताब के अनुसार सभी प्रदेश के मुख्य मंत्रियो को एक समान सुरक्षा उपलब्ध कराई जाती है ----अर्थात ज़ेड लेवल की | परंतु इस मामले मे राज्य सरकार द्वरा सर्वोच्च स्तर पर की गयी अनदेखी भविष्य मे समस्या उत्पन्न कर सकती है |

यदि इस घटना के उत्तर मे मध्य प्रदेश का कोई मंत्री या मुख्य मंत्री केरल जाता है --- तब वनह पर अगर यही सुरक्षा और सम्मान मिला तब क्या होगा ? घटना छोटी नहीं है और इसका प्रभाव भी हल्का नहीं होगा |

"”

Dec 8, 2016

काला धन -नकली नोट और आतंकवाद का धन कान्हा है ?

काला धन -नकली नोट और आतंक वाद का धन - कनहा है ?
8 नवंबर को राष्ट्र व्यापी प्रसारण मे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 के नोटो को बेकार कागज का टुकड़ा करार दिया था जिसका उद्देस्य देश मे छुपे कालेधन और नकली करेंसी और आतंकवाद को पोषित करने वाली अर्थ व्यवस्था को समाप्त करना बताया था | एक अनुमान था की 14 लाख करोड़ की करेंसी मे से जो काला धन होगा वह "”प्रचलन"” से बाहर हो जाएगा |साथ ही आतंकवादी हरकतों को मिलने वाला पैसा भी बंद हो जाएगा |

परंतु बीते तीस दिनो की घटनाए इन सभी "”वादो "”” को ''जुमला"”” ही साबित कर रहे है | काश्मीर मे नोटबंदी के सात दिन के भीतर ही मारे गए आतंकवादी के पास 2000 के नए नोट पाये गए --आखिर ये कान्हा से आये ? इसके उपरांत कर्नाटक मे दो इंजीनीयरों के पास से चार करोड़ की नयी करेंसी बरामद हुई | फिर चंडीगढ मे गुडगाव मे कार से भी लाखो रुपये के नए नोट बरामद हुए | जिसको कन्हा से और कैसे प्रापत किया इसका खुलासा नहीं हुआ|

समाचार पत्रो मे छपने वाली खबरों के अनुसार लगभग सप्ताह मे तीन चार घटनाओ मे लाखो रुपये की नयी करेंसी बरामद हो रही है | अभी एक खुलासा हुआ की केन्द्रीय मंत्री अरुण जेटली ने अपने पास रखे 65 लाख रुपये बंकों मे जमा कराया | प्रदेश के एक अफसर ने भी बैंको मे एक करोड़ रुपये जमा कराये | यानहा सवाल इस बात का नहीं है की यह रुपया कन्हा से आया |,,बल्कि इस बात का है की “” जब सारे देश वासियो को घर का बचा धन बैंको मे जमा करने का हुकुम दिया --तब इन विशिष्ट जनो को इतनी धनराशि रखने का अधिकार कैसे ?? क्योकि जेटली जी को इतनी बड़ी नक़द राशि घर मे रखने की ज़रूरत क्या थी ?

फिलहाल बैंको के पास 12 लाख हज़ार करोड़ रुपये पहुँच गए है | अभी 31 दिसम्बर तक का संभावना है की यह राशि 14 लाख करोड़ भी हो सकती है | उस स्थिति मे काला धन – नकली करेंसी – आतंकवादियो का धन का पता कैसे चलेगा ????
मोदी जी करोड़ो के नए नोटो की बरामदगी क्या कह रही है ?

पूर्व बीजेपी मंत्री और खनिज माफिया जनार्दन रेड्डी की लड़की की 500 करोड़ की शादी के लिए 100 करोड़ रुपये के नोट बदलवाए गयेथे – उनके ड्राईवर रमेश का आतमहती के पूर्व लिखा पत्र
महाराष्ट्र के मंत्री की कार से 22 लाख रुपये के नोट बरामद
कर्नाटक के दो इंजीनीयरों के यानहा छापा - चार करोड़ की नयी करेंसी बरामद
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के 8नवम्बर की टीवी और रेडियो पर भ्रस्टाचार मिटाने और काला धन बाहर निकालने की घोसणा को यह खबरे मुंह चिड़ाती है |
वितता मंत्री अरुण जेटली ने भी 65 लाख रुपये जमा कराये प्रदेश के एक बड़े अफसर ने भी एक करोड़ से ज्यादा के नोट बद्लवाये

इन घटनाओ से सरकार के उस दावे की पोल खुल गयी की शादी के लिए सिर्फ 2.50 लाख नकद दिये जाएँगे नयी करेंसी मे | यह सबसे बड़ी राशि थी जो नियमतः किसी को प्रपट हो सकती थी --- परंतु दिल्ली मे अक्षसिस बैंक के दो करमचरियों ने सोने की सिल्ली रिश्वत मे लेकर साथ लाख रुपए बदल कर नयी करेंसी के नोट दे दिये

आखिर घोसणा के तीसवे दिन की माहवारी पर लेखा -जोखा क्या है ?? क्या काला धन बाहर आए अथवा कितने रिश्वत खोर पकड़े गये और उनकी संपाती राजसात हुई ? अथवा प्रदहन मंत्री जी यह भी एक जुमला बन कर रह गया ? अब मोदी जी कह रहे है अपनी भारतीय जनता पार्टी के नेताओ से की नोटबंदी का प्रचार उसी प्रकार होना चाहिए जैसा की चुनाव प्रचार के दौरान वादो का किया जाता है इस से यह तो साफ है की सरकार की साख की रक्षा का भार अब पार्टी के हाथो मे है ---मतलब सरकारी स्तरपर सवाल जवाब से परेशान इस नीति को चुनावी प्रचार का विषय बना दे जिस से की कोई कानूनी ज़िम्मेदारी ही ना रह जाये ------वाह मोदी जी और जेटली जी !!


संयोग से जिन पर साथ साल तक देश को लूटने का आरोप लगा रहे है फिल्मे बन रही है प्रचार और प्रसार हो रहा है --- उस पार्टी का कोई नेता अभी तक गिरफ्त मे नहीं आया ? इसका क्या अर्थ निकाला जाये ? आप ही जवाब दे ??

Dec 7, 2016

जेटली जी खुदरा फजीहत -दीगरा नसीहत 65 लाख क्यो ?

जेटली जी खुदरा फजीहत - दीगरा नसीहत 65 लाख क्यो ?

8 नवम्बर से देश मे शुरू हुई हलचल के बाद आम नागरिक को उम्मीद थी की बड़े - बड़े सफेदपोश लोगो के चेहरे से नकाब उतरेंगे | परंतु ऐसा 26वे दिन भी नहीं हो पाया है | ना तो कोई बड़ा अफसर - डाक्टर -वकील - व्यापारी या उद्योगपति को बैंक की लाइनों मे देखा गया और ना ही उनके ठिकानो पर छापे पड़े और कोई लंबी चौड़ी बरमदगी भी नहीं हुई | जैसा की मोदी जी के बयान से उम्मीद बंधी थी की `काले धन और भ्रस्टाचार पर नकेल कस जाएगी |पर ऐसा कुछ हुआ नहीं |
जेटली जी ने 65 लाख रुपये के 500 और 1000 के नोट जमा कराये -प्रदेश के एक अतिरिक्त मुख्य सचिव है राधे श्याम जुलनीया जिनहोने भी 1 करोड़ से अधिक की राशि बंकों मेड जमा कराई | सवाल यह है की इन मंत्री और अफसर को इतनी बड़ी धन राशि घर पर रखने की ज़रूरत क्या थी | ?? अगर इंका काम कानूनी रूप से चोखा है तब तो दूसरे भी आखिर घर मे नकद रख सकते है की नहीं --अगर नहीं तो कौन सा कानून आड़े आ रहा है ??



1000 और 500 के पुराने नोट बदलने के लिए जिन लोगो ने अपने बैंक खातो मे पैसे जमा कराये उनमे वितता मंत्री अरुण जेटली जी ने 65 लाख जमा कराये | सभी केन्द्रीय मंत्रियो ने पाँच से आठ लाख रुपये जमा परंतु विगत दो साल से उनकी वकालत ठप है क्योंकि वे "” मंत्री "” है और उनका वेतन भी ज्यडा नहीं है | दूसरा इतना "”नक़द "”” घर पर रखने की उन्हे क्या ज़रूरत थी ?क्योंकि उन्होने ही तो आमजन के लिए 2.50 लाख की राशि तो विवाह के लिए नीयत की थी ?