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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jul 14, 2021

 

आबादी अब समस्या हो गयी, मोदी जी समाधान -शक्ति नहीं

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी अमेरिका के मेडिसन स्क्वायर में या भारत में औद्योगिक संगठन को संभोधित करते हुए देश की आबादी को सदैव समाधान और शक्ति ही निरूपित किया | परंतु अब शायद उनको अपना रुख बदलने पर आरएसएस और योगी आदित्यनाथ ने मजबूर कर दिया ! मोदी जी के लिए यह ,बंगाल के चुनाव में पराजय के उपरांत , जिस प्रकार उत्तर प्रदेश में उनकी नेत्रत्व परिवर्तन की मुहिम "”असफल " हुई उसी श्रंखला में यह तीसरी पराजय हैं !

भागवत उवाच :- कुछ समय पूर्व संघ सरसंचालक मोहन भागवत जी ने कट्टर वादी हिन्दुओ की मुसलमानो को देश से बाहर करने की धुन की भर्त्सना की थी ,उससे लगा था की वे समाज में सभी धर्मो और जातियो के बीच "””समरसता "” के समर्थक हैं | परंतु आबादी नियंत्रण के योगी आदित्यनाथ की मुहिम ---- कानून द्वरा आबादी पर नियंत्रण के प्रयास का समर्थन , चित्रकूट में संघ की बैठक में जिस प्रकार किया हैं | वह प्रधान मंत्री मोदी के विचारो को रद्द करती हैं ! उन्होने इतना ही नहीं दिल्ली हाइ कोर्ट के उस फैसले का समर्थन किया -जिसमें देश में समान नागरिक संहिता लागू करने का सुझाव दिया गया था | पर सभी भारतीयो का डीएनए एक कहने वाले डॉ भागवत जी यह भूल गए की भारत ऐसे विशाल देश में भिन्न -भिन्न आस्थाओ और धर्मो और जातियो के लोगो में अनेक प्रकार की विभिन्न परंपराए हैं | जिनको वे लोग सदियो से अमल कर रहे थे | जिनको कानून द्वारा बंद नहीं कराया जा सकता | कानून द्वरा आबादी नियंत्रण के प्रयास को बिहार के मुख्य मंत्री नितीश कुमार ने सार्वजनिक रूप से विरोध किया हैं | आशा हैं देश के राज्यो में अनेक प्रदेशों में गैर भाजपाई सरकारो के मुख्य मंत्री भी केंद्र और बीजेपी की इस पहल का विरोध करे | दो बच्चो से अधिक के परिवार को सरकारी सुविधाओ से वंचित करना उन संतानों को "” अकारण दंड "” देना होगा जो अपने जनम के लिए स्वयं जिम्मेदार नहीं हैं | “” चीन में ऐसा प्रयोग बीस साल पहले किया गया था , जिसका दुष्परिणाम अब आए हैं | फलस्वरूप चीन के वर्तमान कम्युनिस्ट शासन को इस कानून को खतम करना पड़ा ! क्या हम दूसरे की गलती से सबक नहीं ले सकते !

2;- समान नागरिक संहिता कितनी संभव है ? कामन सिविल कोड को भारत ऐसे देश में लागू करना असंभव नहीं तो अशांति और आशंतोष का कारण तो बनेगा | भारतवर्ष में वेदिक धरम में करमकांडो के लिए दो विधिया है जिनका पालन चारो वर्णो के लोग करते आ रहे हैं | सर्व प्रथम हमे यह जानना जरूरी हैं की , चार वर्ण की व्यव्स्था विंध्या पर्वत अथवा नर्मदा नदी के उत्तर में ही पायी जाती हैं | अर्थात ब्रामहन - छत्रिय-- वैश्य और शूद्र | सैकड़ो वर्षो में व्यवसाय के फलस्वरूप एक वर्ग और बना - पिछड़ा वर्ग | जिसकी आबादी देश में लगभग एक चौथाई या 25% है | इनका ज़िक्र हमारे धार्मिक साहित्य में उपलब्ध नहीं हैं { कम से कम मई ऐसा पाता हूँ } जाट - गुज्जर आदि | मुगलो और अंग्रेज़ शासन काल में पेशे और पद के दायित्व के कारण भी कई जातियो का उद्भव हो गया |जैसे कुलकर्णी और पटेल | मूलतः ये लगान वसूली के पद थे ,जो बाद में वंशानुगत हो गए फिर वे सरनेम या कुलनाम हो गया | समान नागरिक संहिता का आधार यदि चार वर्ण की वेदिक व्यवस्था के अनुसार होगा ,अर्थात उत्तर भारत में प्रचलित "””मिताछरा "” विधि में प्रत्येक वर्ण के यज्ञोपवीत से लेकर अंतिम संस्कार के नियम बताए गए हैं | वेदीक धरम में जन्म से लेकर सोलह संस्कारो का वर्णन हैं | परंतु वह उल्लखित चार वर्णो के बारे में हैं |

जैसे सनातन धर्म के मानने वाले की अंतिम क्रिया दाह संस्कार हैं , परंतु विंध्या के नीचे ब्रांहण भी जमीन में समाधि दिये जाने की परंपरा हैं | उदाहरन के रूप में तामिलनाडु की मुख्यमंत्री रही जय ललिता जी | वे कर्नाटक के ब्रांहण परिवार में जन्मी थी | कर्नाटक में अनेक संप्रदाय के सनातन धरम के लोगो को समाधि देने की परंपरा हैं | कट्टर वादी हिन्दू इस प्रथा को "”दफन "” करना बताते हुए म्र्तक की धार्मिक पहचान पर ही प्रश्न उठा सकते हैं |

दाह संस्कार करने वाले को आम तौर पर म्र्तक का "”वारिस "” स्वीकार करने की परंपरा हैं | परंतु निसंतान लोगो को "”पन्च अग्नि "” अर्थात पाँच लोगो द्वरा मुखाग्नि देना | अब उसका वारिस कौन होगा ? ऐसे अनेक सवाल हैं जो समान नागरिक संहिता लागू करने में आएंगे , न्यायालयों को अध्ययन कर के निर्णय देना होगा , यह कोई मशीनी प्रक्रिया नहीं हैं ,जो कुछ नियमो में बांध दी जाये | यह मानव समाज के एक तबके द्वरा सदियो से उनके "”कुल"” में मान्य परिपाटी का सवाल है | न्यायशास्त्र में कहा गया हैं की यदि कोई परंपरा या पर्पटी --कानून बनने से पूर्व की हैं तब उसे ही कानून की मानिता मिलेगी ,शर्त यह हैं की वह समाज और राज्य के लिए हानिकारक ना हो |