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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 28, 2020


दिल्ली में पिछले तीन माह से हो रही सरकारी हिंसा --और अदालत का रुख ?


क्यूँ न्यायालय हिंसा की घटनाओ को रोकने में दखल देने से कतराते हैं !!


दिल्ली न्यायालय की खंड पीठ के न्यायमूर्ति मुरलीधर द्वरा भारतीय जनता पार्टी के नेताओ के नफरत भरे भाषणो के लिए पुलिस में प्राथमिकी लिखाने के आदेश को-- जिस प्रकार मुख्य न्यायाधीश पटेल और हरीशंकर ने अप्रैल तक विचार करने के लिए टाला -वह साफ तौर पर सरकार की मददा करने वाला ही हैं ! इस फैसले ने सर्वोच्च न्यायालय के उन दिनो की याद दिला दी जब पूर्व प्रधान न्यायाधीश मिश्रा द्वरा सरकार के वीरुध सभी जन याचिकाओ और बड़े -बड़े उदयगपतियों के विभिन्न मामलो को अपने सामने ही सूचीबद्ध करने का आदेश दिया था ! उसी घटना के बाद ही चार जजो ने एक प्रकार से सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक कामकाज में पारदर्शिता के अभाव होने की हक़ीक़त सार्वजनिक हुई थी ! चाहे जवाहर लाल विश्व विद्यालय में बाहरी लोगो द्वरा घुस कर छात्रों और शिक्षको को मार - पिटाई का मामला हो -अथवा जामिया विश्व विद्यालय में बिना इजाजत पुलिस द्वरा घुस कर लोगो को मार पीट कर घायल करने का मामला हो | इन सभी मामलो में दिल्ली पुलिस{ जिसकी रहनुमाई केंद्र के गृह मंत्री अमित शाह करते हैं }} की ओर से पैरवी करने आए सालिसीटर जनरल ने याचिका या मामले की सुनवाई करने का माहौल नहीं होने और संवेदनशील होने की गुहार लगाई हैं और अदालत ने हर बार उन्हे तारीख पर तारीख देकर मुद्दे को मिट्टी में मिलने का काम किया हैं ! याचिका कर्ताओ को न्याय नहीं मिला ----हाथ पैर तुड़वाए आँख भी फुडवाये बस दर दर इलाज के लिए भटकते रहे ! इन छात्रों का कसूर भी नहीं बताया ,जैसे दो साल हो गए जे एन यू के पूर्व अध्यक्ष कनहिया की भी तीस हजारी अदालत में पेश किए जाने के समय सत्ता परस्त वकीलो ने अच्छी धुनाई की थी ---पुलिस भी नहीं बचा पायी ! लेकिन इस देशद्रोही पर आज तक चार्ज शीट भी नहीं दाखिल हुई ! इसी अदालत के परिसर में वकीलो ने पुलिस वालो की अच्छी धुनाई की एक महिला पुलिस उपायुक्त के साथ छेदखानी और वर्दी तक फाड़ दी ----पर उस मामले में उच्च न्यायालय ने तुरंत सज्ञान लेकर पुलिस को निर्देश दिया की किसी भी वकील के वीरुध कोई रिपोर्ट नहीं दर्ज़ की जाये !!! पुलिस अदालत के सामने आरोप पत्र पेश करे तब सुनवाई होगी !!! आज तक किसी वकील के वीरुध की आरोप पत्र दाखिल नहीं किया गया नब्बे दिन की मियाद भी खतम हो गयी !
एक अखबार में छपी खबर के अनुसार विदेश में एक प्रसिद्ध गिटार वादक ने भारत के नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ गाया था सब याद रखा जाएगा , तुम अदालतों में बैठ कर चुट्कुले लिखो ----हम सडको -दीवारों पर इंसाफ लिखेंगे ,!! यह एक व्यंग्य हैं हमारी न्याय व्यवस्थ्था पर |
भूतपूर्व राधन न्यायाधीश मिश्रा फिर न्यायाधीश गोगोई का समय सुप्रीम कोर्ट की प्रतिस्ठा पर बहुत "”भारी पड़ा हैं "”” | अनेकों मामलो में जो विधि सम्मत और उचित लगता था ----- वैसा नहीं हुआ | मुद्दो को निपटाने की जगह कई बार --मध्यस्था जैसे फैसले किए गए ---- जिसमे "”” ना तुम हारे ---और ना हम जीते "”” जैसा हुआ ! वो कहते हैं की विन विन सिचुएशन वही ! अब अदालत में याचिकाऔंसिल ने करता फैसला करवाने आता हैं , सम्झौता करने नहीं |
जब जब जज लोया या सोहरबुड्डीन हत्या कांड का मामला पेश करने की कोशिस की गयी तब तब अदालत की डांट पड़ी | शायद इसके मूल में वह रुख हैं , जिसके अनुसार न्यायपालिका और सरकार के मधुर रिश्ते होने चाहिए , शायद यही वजह रही होगी एक आयोजन में जस्टिस मिश्रा ने प्रधान मंत्री की तारीफ करते हुए उन्हे देश का अप्रतिम नेता बताया !! जिस पर बाद में बार काउंसिल ने भी नाराजगी जताते हुए कहा की न्यायाधीश को "””निरपेक्ष "” होना चाहिए ! पर ऐसा हैं नहीं ! सुप्रीम कोर्ट सिर्फ जनहित के मामलो में नागरिकों के संवैधानिक अधिकारो के मुक़ाबले सरकार की परेशानी और प्रतिस्ठा को बचाने में दिखाई पड़ा !! विधि शास्त्र के सिधान्त के अनुसार नागरिक को न्याय देने के लिए अदालतों को थोड़ा आगे आना भी चाहिए | अभी मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने जबलपुर में नगर निगम और सरकार की लापरवाही पर आने वाली याचिकाओ के लिए उनस्थानों का दौरा किया और खुद हक़ीक़त से रूबरू हुए | हाँ अधिकारियों की कागजी कारवाई की पोल खुल गयी |
हमारी न्याय व्यवस्था में अपराधी को सुधारने का संकल्प लिया गया हैं | उसके दमन का नहीं | वैसे भारतीय जेलो में पुलिस ज्यादा दमन और शोषण आम बात हो गयी हैं – रिश्वत का बोलबाला क़ैदी से मिलने से लेकर जो शुरू होता हैं वह उसको खाने की वस्तु देने तक जारी रहता हैं | बिहार में बालिका संरक्षण गृह में दर्जनो लड़कियो द्वरा प्रबन्धको के सालो तक अत्याचार सहने के लिए ---हालांकि मुखी करता धर्ता को सज़ा हो गयी | परंतु कानुनन ज़िला न्यायाधीश से यह आपेक्षा थी की वे माह में एक बार इन संरक्षण ग्रहो का मुआइना करेंगे | पर ऐसा हो न सका और अनेक लड़कियो ने अपनी जान दे दी |

दिल्ली में जो अशांति और आग जानी हुई और 40 जाने गयी सैकड़ो घायल हुए , उसका मूल आखिर क्या था ? क्या यह धरम के आधार पर दो समुदायो के मध्य नफरत फैलाने का परिणाम नहीं था ??? चुनाव के समय से ही इस नफरत की आँधी को चुनाव आयोग और पुलिस {{जिससे उम्मीद ही नहीं करनी थी }} ने अगर उस समय भड़काऊ भासनों पर कानूनी कारवाई कर दी होती तो शायद दिल वालो की दिल्ली जलने और लौटने से बच जाती --आखिर जब नादिर शाह ने दिल्ली में हमला कर तांडव मचाया होगा – उस को अगर किलोमीटर में माने तो मौजूदा मंज़र दस पाँच सेंती मीटर तो होगा ही !!! सोचो हम उस बरबादी का लाइट अँड साउंड शो के गवाह बने हैं !!
आखिर में एक शायर की चंद लाइने :-
लगा कर आग शहर को ,
बादशाह ने ये कहा , उठा हैं --आज इस दिल में
तमाशे का शौक बहुत ,
झुका के सर अपना -सभी शाह परस्त बोल उठे ,
हुज़ूर का शौक सलामत रहे – शहर हैं और बहुत भी

Feb 27, 2020


जे एनयू और जामिया की खीज शाहीन बाग के धरने और चुनाव में हार का परिणाम हैं दंगे !!
जब - जब पुलिस से ईमानदार कारवाई की उम्मीद थी-हाथ बंधे लगते थे !!

ईमानदारी से देखे तो दिल्ली में हिंसा की आग का मूल वनहा के विधान सभा चुनावो से जुड़ा हैं | भारतीय जनता पार्टी ने केजरीवाल की आप पार्टी को पराजित करने में जैसी तैयारी से उतरी थी --उससे लगता था की जैसे यह एक तरफा लड़ाई हैं | प्रधान मंत्री मोदी की सभाए गृह मंत्री की दर्जनो सभाए और इलकाओ में घर घर जाना और पर्चे बांटना | फिर चुनाव का संचालन केंद्रीय मंत्री जावडेकर के हाथो , एक दर्जन केंद्रीय मंत्री और तीन मुख्या मंत्री और 200 बीजेपी संसद भरी भरकम लाव लश्कर से लगे हुए थे |दूसरी ओर केजरीवाल के काम बिजली - पानी - स्कूल और मोहल्ला क्लीनिक से दिल्ली के लोग --जिनमे बीजेपी के सदस्य भी शामिल थे उन्होने भारी बहुमत से विजय श्री दिलाई ! बीजेपी पिछली बार की ही भांति अपनी सदस्य संख्या "”इकाई "” से आगे नहीं बड़ा पायी , हालांकि तीन से सात सदस्य जरूर हुए |
लेकिन देश पर राज करने वाले लौह हाथो को यह पराजय इस बार नासूर बन गयी | पिछली बार तक यह दिल में लगी "”फांस "” भर थी | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्न्द ट्रम्प की यात्रा को "”ऐसा आयोजन बनना चाहा था जिसमें आगरिकता कानून का शाहीन बाग का धरना और देश व्यापी विरोध दाब जाये ! परंतु ऐसा हो ना सका | अब देशभक्त लोग कहते हैं की दिल्ली में जो कुछ हुआ वह "”देश के गद्दारो "” की चाल थी ! केंद्रीय वित्त मंत्री अनुराग ठाकुर ने तो चुनावी सभा में खुले आम इसके नारे लगवाए थे | बीजेपी संसद परवेश वर्मा ने तो कहा था की शाहीन बाग अगर जीत गया तो हिन्दुओ की बहू - बेटियाँ सुरक्शित नहीं रह पाएगी -उनसे बलात्कार होगा ! लेकिन इतने उकसावे के बाद भी हिन्दू और मुस्लिम वोटो का विभाजन नहीं हो सका , और आप पार्टी जोरदार बहुमत से सरकार बनाई !!
पहले छात्रो -युवको को देशभक्त बनाने के लिए शिक्षा संस्थानो को निशाना बनाया --- जनहा पुलिस की अभी रक्षा में विद्यार्थी परिषद और युवा मोर्चे के सदस्य अपने विरोधियो को मार पीट कर सीधा कर रहे थे ----तब पुलिस कारवाई करने का नाटक करने की खाना पूरी कर रही थी ! उसी समय देश के लोगो को समझ में आने लगा था की पुलिस अपराधियो के वीरुध नहीं वरन सत्ता के विरोधियो को अपराधी मान रही हैं |
साल की शुरुआत से देश की राजधानी में कानून का जिस प्रकार मखौल बनने लगा था ---और पुलिस के हाथ कनही बंधे से लगते थे तो कनही तो आपराधिक हरकत को देख कर भी अनदेखा कर रहे थे | इससे लाग्ने लगा था की ---कमान बल के हाथ में भी नहीं हैं | जमीन की हालात --- जुनून और ज़िद्द पर क़ुर्बान कर दी गयी | मंत्रालय और मुख्यालय से "चुपचाप ' जो हो रहा हैं उसको देखने और हाकिमों को इत्तिला करने भर की इजाजत थी ! ऐसे हालत क्यो बने ? जिस दिल्ली पुलिस की कमान 1984 के दंगो में स्व्स्फ़ुरित दंगो को भी नियंत्रित करने की थी --वही संगठन ऊपर वालो की सनक और ज़िद्द का शिकार हो गया !! आखिर क्या बात थी की वकीलो द्वरा पुलिस की अधिकारियों की { एक महिला पुलिस उपायुक्त } सरे आम बेइज्जती किए जाने पर ---- उनके परिवारजनों द्वरा प्रदर्शन किया जाना ही , संकेत देता हैं की --- उनको कानून नहीं शक्ल देख कर और हुकुम के अनुसार कारवाई करनी हैं ! कानून के अनुसार नहीं !नौकरशाहो के बीच एक वाकई बहुत प्रचलित हैं, जो कानून और कारवाई का आधार बनता हैं "” यू शो मे फेस ई विल शो यू ला "” मतलब शक्ल देख कर कानून या न्याय करना ! वही दिल्ली में जे एन यू और जामिया तथा गार्गी कालेज में हुआ !! जे एन यू के हमलावर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता 70 दिन बाद भी पुलिस की पकड़ से दूर हैं ! जामिया के मामले में पुलिस प्रवक्ता का झूठ वीडियो से पकड़ा गया ---की पुस्तकालय में बैठे छात्रों पर लाठी बरसाई ! दर्जनो लड़के बुरी तरह ज़ख्मी हुए - अनेकों परीक्षा भी नहीं दे सके ! गार्गी कालेज में लड़कियो के समारोह में जिस प्रकार दर्जन भर लड़को ने वनहा शराब पी सिगरेट पी और लड़कियो को बुरी तरह छेड़ा – उनका भी पता नहीं | कोई पहचान नहीं है |


अदालत में दिल्ली पुलिस और सरकारी वकील की दलील !!!
जिस प्रकार दिल्ली के उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति मुरलीधर ने द् देश के सलिसीटर जनरल तुषार मेहता को बीजेपी के विधान सभा में चुनावो में पराजित ऊमीद्वार कपिल मिश्रा द्वरा दिल्ली के पुलिस उपायुक्त की मौज्द्गि में कह रह रहे थे की "” ट्रम्प के दौरे तक हम चुप हैं -पर उसके बाद हम आपकी भी नहीं सुनेंगे !! का वीडियो दिखायाईखिलाफ पुलिस में प्राथमिकी डीओ दिखाया , और कहा की दिल्ली के पुलिस आयुक्त को अदालत की नाराजगी बता दे और इन चरो के उसके बाद न्ययमूर्ति मुरलीधर ने उन्हे अनुराग ठाकुर --परवेश वर्मा और अभय वर्मा के भी नफरत फैलाने वाले भसनों का विडियो दिखाया और कहा की आप दिल्ली के पुलिस आयुक्त को अदालत की नाराजगी जाता दे और इन चरो लोगो के वीरुध प्राथमिकी दर्ज कराये !!! ऐसा कडा रुख देख कर भी मेहता का यह कहना की अदालत पुलिस पर कोई टिप्पणी नहीं करे क्योंकि उससे पुलिस का मनोबल गिरता हैं ! उनका यह कहना अजीब लगता हैं ,क्योंकि लगता हैं की वे देश के वकील नहीं वरन दिल्ली पुलिस के पैरोकार हैं , जो सच देखना या जानना ही नहीं चाहता | उन्होने कहा पुलिस काएक आदमी मारा गया हैं एक अफसर के सर में चोट लगी हैं , वे ड्यूटि कर रहे थे कोई पिकनिक नहीं कर रहे थे ! उन्होने यह भी कहा की पुलिस पर तेज़ाब भी फेंका गया ! अभी तक जो 28 लोगो की मौत हुई हैं वह गोली और चाकू तथा लोहे की राड मार् कर की गयी हैं | तेज़ाब से किसी के घायल होने की भी कोई खबर नहीं हैं ! अब यह घटना कान्हा से मेहता जी को पता चली ??
सर्वोच्च न्यायालय में भी न्यायमूर्ति जोसेफ और सप्रू की खंड पीठ के सामने जब शाहीन बाघ मामले की सुनवाई के लिए तुषार मेहता पहुंचे तब भी उन्होने अदालत से पुलिस के वीरुध टिप्पणी नहीं करने की प्रार्थना की | परंतु जस्टिस जोसेफ ने कहा की "”लगता हैं की पुलिस ने अपनी ड्यूटि नहीं निभाई , उन्हे किसी से आदेश की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए थी | मौके पर प्रोफ़्फ़ेसनाल तरीके से कारवाई करनी कहहिए | ब्रिटेन और अमेरिका में पुलिस कैसे कारवाई करती हैं , उनसे सीखना चाहिए | | आखिर शाहीन बाग में धरणे पर बैठी महिलाओ से बात करने कोई भी क्यो नहीं गया ? जब दिल्ली जल गयी तब सुरक्षा सलहकर अजित डोवाल लाव लश्कर के साथ गली -गली घूमे | उससे लोगो में कुछ विसवास तो जमा | पर यही काम दिल्ली के पोलिस आयुक्त भी और उनके मातहत भी तो कर सकते थे , फिर क्यू नहीं किया ?? क्या ऊपर से आदेश थे जब हम कहे तभी तुम हिलोगे ?
सिर्फ उत्तर पूर्वी दिल्ली में क्यू आग लगी ?
कहते हैं की उत्तर -पूर्वी दिल्ली से ही भारतीय जनता पार्टी के छ विधायक चुने गए हैं | दिल्ली विधान सभा में कूल सात बीजेपी विध्यकों में से एल छोड़ कर बाक़ी सब इसी इलाके से चुने गए हैं | यह इतिफाक भी हो सकता हैं और सुनियोजित भी -----जब तक सारे सबूत ना मिल जाए तब तक यह "” संयोग कहा जाये या प्रयोग "” | लक्ष्मी नगर के विधायक अभया वर्मा को नफरत भरे भासन के लिए अदालत ने इंगित भी किया हैं | दूसरे हैं विश्वास नगर विधान सभा से ओ पी शर्मा गांधी नगर से ए के वाजपायी | जितेंद्र महाजन रोहतास नगर से विधायक हैं | मोहन सिंह विष्ट करावल नगर से तथा अजय माहवार घोद्दा से बीजेपी विधायक हैं | जाफराबाद जनहा करफू लगा हुआ हैं वह भी इसी इलाके में हैं |
अब देखना हैं की केंद्र और केजरीवाल सरकार इस जाली और उजड़ी दिल्ली को कैसे शांत कर --- जलायी गयी दूकानों और मकानो के प्रभावित लोगो को कैसे पुनर्वसन करते हैं | अथवा कश्मीरी पंडितो की भांति इन्हे भी इनके हाल पर छोडकर सिर्फ आश्वशन की घुट्टी पिलाई जाती रहेगी |






Feb 23, 2020


नागरिकता - धर्म और मोदी सरकार पर विश्व की नज़र !

डेढ दिन का ट्रम्प का दौरा मोदी सरकार के हिन्दुत्व के एजेंडे पर चोट या सुलह ?


अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की 24 फरवरी के मध्यानह से 25 फरवरी की मध्य रात्रि के दौरे को ---ना तो पारंपरिक रूप या कूटनीतिक मर्यादा के अनुरूप राष्ट्राध्यक्ष का सरकारी दौरा कहा जा सकता है ना ही इसे उनकी निजी यात्रा काही जा सकती हैं ! अहमदाबाद में उन्की अगवानी सिर्फ प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे , क्योंकि किसी भी मुख्य मंत्री को ट्रम्प के नजदीक जाने का "””मौका "” आधिकारिक रूप से नहीं दिया गया हैं !! फिल वक़्त तक भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने राष्ट्रीय अतिथि के लिए "”किसी भी मिनिस्टर इन वेटिंग "” तथा अम्रीका की प्रथम लेडी के लिए भी यह प्रोटोकाल नहीं निभाया गया हैं ! मेलानिया ट्रम्प दिल्ली सरकार के स्कूल मे एक घंटे छात्र -छात्राओ के साथ गुजारेगी पर उनका स्वागत शायद वनहा के प्रिंसिपल ही करेंगे !!! क्योंकि भारत सरकार की सूचना के अनुसार -गुजरात - उत्तर प्रदेश और दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्रियों को दूर रहने की ही अलिखित सलाह हैं !! आखिर ऐसा क्यो आज़ाद भारत के इतिहास में शायद यह पहली बार हो रहा हैं !
शायद इसका कारण प्रधान मंत्री का फोटो में "”एकल "” प्रभाव की ज़िद ही है |कैमरे के प्रति अति संवेदन शील मोदी जी को अनेकों बार डेकाह गया है की वे जनहा तक हो सकता हैं --फोटो साझा नहीं करते | सारा श्रेय स्वयं ही चाहते हैं | खैर ट्रम्प उनके बेहतर मित्र हैं ---ऐसा ट्रम्प और नरेंद्र मोदी दोनों ही ही दावा करते है | इसलिए जो भी बदोबस्त हुआ /हो रहा हैं सहमति से हुआ हो होगा |
परंतु मुलाक़ात में जिन विषयो पर चर्चा का संकेत व्हाइट हाउस के सूत्रो से मिलता हैं , वे निश्चित ही मोदी जी के लिए "”तकलिफ़देह होंगे " ! छपी हुई खबरों के अनुसार नागरिकत संशोधन कानून के वीरुध देखि के शाहीन बाग में चल रहे महिलाओ के धरणे को सुप्रीम कोर्ट से नियुक्त दो वार्ताकारों ने ने शिवरात्रि के दिन कुछ घंटो के लिए धरना स्थल की बगल की सड़क से ट्रैफिक की आवाजही की इजाजज्त पुलिस ने दी | वार्ताकारों ने भी पुलिस से इस बारे में पूच्छा की सड़क को किसने कहने पर खोल गया फिर बंद क्यो किया गया ? इस घटना से वनहा बैठे प्रदर्शनकारियो में --- दो राय हो गयी | एका वर्ग का कहना था की सुरक्षा की गारंटी यदि सुप्रीम कोर्ट खोले ज्णे दिलवा दे ते उन्हे सड़क के खोले जाने पर एतराज़ नहीं हैं | वनही दूसरे ज्यादा उग्र गुट ने कहा की सुरक्षा के वादे के बाद अगर कोई वारदात प्रदर्शन करियों के साथ हो -----तो बीट पुलिस सिपाही से लेकर कमिश्नर को निलंबित किया जाये ! अब ऐसी गारंटी तो श्रीमति इन्दिरा गांधी या राजीव गांधी को भी नहीं थी ! इस मांग का कारण का आधार भी ही --जिस प्रकार प्रदर्शनकारियो पर गोली चलये जाने दो वारदात हुई उनसे पुलिस की :::निष्ठा और तत्परता पर तो बहुत बड़ा स्वलया निशान लग गया हैं | शायद यही कारण हो सकता हैं की कोई महिला प्रदर्शनकारियो का मनोबल तोड़ने ले लिए हिंसक वारदात अंजाम दे !अब वार्ताकारों की पाँच बार बैठक प्रदर्शनकारियो के साथ हो चुकी हैं | यह बहुत साफ हैं की अगर ई लोगो ने सुप्रीम कोर्ट की बात नहीं मानी तब ---इन्हे दिल्ली पोलिस की कारवाई का सामना करना पड़ेगा ----जैसा जे एन यू और जामिया में हुआ हैं |

शाहीन बाग आंदोलन का देश और विदेश में प्रभाव :- शाहीन बाग आंदोलन भले ही विकराल नागरिकता कानून के विरोध में शुरू हुआ हो की उनकी संतानों को भांति - भांति के दस्तावेज़ो को प्रस्तुत करने में कितनी कठिनाइया आसाम मे मुसलमानो को हुई --उससे ज्यादा वनहा के भ भोजपुरी भाषी मजदूरो को भी उठाना पड़ा हैं | इसलिए सरकार द्वरा बनये गए ट्राइबुनल द्वरा जिन 14 लाख लोगो को विदेशी घोषित कर दिया गया ---उनमे 9 लाख हिन्दू और 5 लाख मुसलमान हैं !!! राष्ट्रीय रजिस्टर ऑफ सिटीज़न्स जो की सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बना था ------विदेशियों को पाहचानने के लिए – उसने मनमाने ढंग से यू पी और बिहार तथा उड़ीसा के मजदूरो को भी डिटेनशान कैंप पनहुंचा दिया |||||| इस परियोजना के समन्वयक प्रतीक हजेला को जिस हड़बड़ी में सरकार ने हटाया ---- और उनके वीरुध 22 पुलिस में प्राथमिकी लिखाई वह कनही ना काही कुछ तो इंगित करती हैं की --------राजनीतिक हरकत को प्रशासनिक जामा पहनाने में "”””नाकामयाबी "”” ही उनके मध्य प्रदेश में तबादले का कारण तो नहीं ????
लेकिन नागरिकता कानून के विरोध में अभी तक सिर्फ काँग्रेस शासित राज्यो की विधान सभाओ ने ही केंद्र के अधिनियम के वीरुध प्रस्ताव पारित कर राष्ट्रपति को भेज दिया हैं | परंतु गैर कोङ्ग्रेस्सी दलो ने लोक सभा मोदी सरकार के बिल को पास करने में शिव सेना --- अन्न डीएमके ,उत्तर पूर्व के छ राज्यो के छूट पूट दलो ने भी समर्थन दिया | इनमें अधिक्न्स्तः '’’’इनर लाइन '’’’के प्रविधान से सुरक्शित हैं --क्योंकि इन इलाको में कोई गैर आदिवासी न तो बस सकता है और ना ही व्यापार कर सकता है |
इन संदर्भों में अगर हम नागरिकता संशोधन विधि के विरोध को देखे तो वह सरकार और संसद का फैसला भले ही हो परंतु देश की जनता का फैसला तो नहीं हैं हैं | आखिर भारतीय जनता पार्टी का एनडीए को कूल मतदाताओ का 38 प्रतिशत ही समर्थन दिया था , लोक सभा चुनाव के समय !! उसे अगर बाद में हुए विधान सभा के चुनावो में मोदी सरकार के विरोधियो को मिले मतो से तुलना करेंगे तब -----हम समझ सकते हैं की मोदी का नेशनल डेमोक्रेटिक अल्लाएन्स का राष्ट्र के बहुमत का दावा कितना तथ्य हीन हैं !!!!
फिर संशोधन के बीजेपी समर्थको का बार -बार कहना की संसद से पारित कानून को कैसे मानने स मना कर सकते हैं !! कितना बेमानी लगता हैं ! आज के पूर्व केंद्र सरकार की किसी विधि के विरोध में राज्यो ने एक स्वर में अपनी विधान सभाओ से इस प्रस्ताव को नकार दिया हों !! मुझे तो नहीं स्मरण नहीं आता किनही सुधि जन को मालूम हो तो जरूर बताए !
राज्यो के पुनर्गठन को लेकर आमरण अनशन हुए हैं ------- आंध्र के लिए प्रकाशम और पंजाब के लिए फेरुमान के जवान का अंत हुआ ----तब इन राज्यो का गठन हुआ | शायद सरकारे स्वभाव से ही बहरी होती हैं ---चाहे वे काँग्रेस की हो अथवा बीजेपी की ! इसलिए यह कहना की संसद से पारित कानून को जनता के अथवा कुच्छ लोगो के दबाव में कैसे वापस लिया जा सकता हैं , कहना बेमानी हैं | क्योंकि जब न्यायिक समीक्षा में किसी विधि को सुप्रीम कोर्ट "”’असंवैधानिक "” बता देती हैं तब सरकारे अदालत के कहे अनुसार चलती हैं |

ट्रम्प मौजूदा सवालो के लिए-मोदी के संकट है या समाधान !
फिलहाल तो जो समाचार पात्रो और विदेशी चैनलो में लिखा और दिखाया जा रहा हैं – वह मोदी जी के लिए सहायता तो नहीं हो सकती , क्योंकि ट्रम्प साहेब भारत अपनी "”राजनीति "” करने आ रहे हैं | नवंबर में अमेरिका में चुनाव हैं ----और मोदी की तरह डोनाल्ड भी दुबारा चुनाव जितना चाहते हैं | परंतु भारत में तो "”15 लाखा "” का जुमला हो अथवा अच्छे दिन का वादा हो चल जाता हैं | परंतु अम्रीका में लोग चुनावी वादो को याद रखते हैं -----और हिसाब मांगते हैं | टाउन हाल की बैठको में सत्तारूद दल के सांसदो को जवाब देना पड़ता हैं | वनहा राष्ट्रपति को भी रोज - रोज पत्रकारो के सवाल जवाब देने पड़ते हैं \ यभा की तरह नहीं मोदी जी ने कब प्रैस कोन्फ्रेंस की थी किसी को याद नहीं --- ऐसा ही वे गुजरात के मुखय मंत्री रहते हुए भी करते थे ! जिस प्रकार देश में बेरोजगारी और बीजेपी सरकारो द्वरा नागरिक अधिकारो का उल्ल्ङ्घन है वैसा वनहा संभव नहीं | न्यायपालिका जिंदा हैं ---ट्रम्प के अनेक दोस्त जेल भेजे जा चुके हैं , सिर्फ असत्य बोलने पर ! यानहा तो बनरस में निर्माणाधीन पल गिरता हैं ----तब पुलिस को यह नहीं मालूम कहलता की ठेकेदार कौन हैं ?? ऐसा वनहा नहीं चल सकता |
अमेरिका में आप राष्ट्रपति के दोस्त होने के बावजूद सज़ा से नहीं बच सकते --और नाही देश के कानून से भाग सकते हैं ---जैसे माल्या और नीरव मोदी तथा अनय धन पति देश के बैंको का पैसा लूट कर विदेश जा बैठे हैं | और उनको वापस लाने की "”””ईमानदार सरकारी कोशिस भी नहीं हो रही हैं "” |
अब अगर प्रवासी अमेरिकन भारतीयो को प्रभावित करने के लिए शाहीन बाग --या नागरिकता संशोधन कानून { जिसको लेकर वनहा लाखो भारतीय परेशान हैं वे ग्रीन कार्ड नहीं पा सक रहे हैं }}} जैसे मामलो पर बात हुई तो नरेंद्र मोदी जी --- देश की जनता की तरह ट्रम्प को बहला नहीं सकेंगे | मजबूरी में ट्रम्प जिस प्रकार की भी व्यापारिक संधि चाहेंगे नरेंद्र मोदी जी को मंजूर करने होगी | इस प्रकार ट्रामप समस्या का समाधान नहीं मोदी के लिए संकट ही बन जाएंगे -----भगवती करे ऐसा ना हो यही प्रार्थना हैं |





















नागरिकता - धर्म और मोदी सरकार पर विश्व की नज़र !

डेढ दिन का ट्रम्प का दौरा मोदी सरकार के हिन्दुत्व के एजेंडे पर चोट या सुलह ?


अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की 24 फरवरी के मध्यानह से 25 फरवरी की मध्य रात्रि के दौरे को ---ना तो पारंपरिक रूप या कूटनीतिक मर्यादा के अनुरूप राष्ट्राध्यक्ष का सरकारी दौरा कहा जा सकता है ना ही इसे उनकी निजी यात्रा काही जा सकती हैं ! अहमदाबाद में उन्की अगवानी सिर्फ प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे , क्योंकि किसी भी मुख्य मंत्री को ट्रम्प के नजदीक जाने का "””मौका "” आधिकारिक रूप से नहीं दिया गया हैं !! फिल वक़्त तक भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने राष्ट्रीय अतिथि के लिए "”किसी भी मिनिस्टर इन वेटिंग "” तथा अम्रीका की प्रथम लेडी के लिए भी यह प्रोटोकाल नहीं निभाया गया हैं ! मेलानिया ट्रम्प दिल्ली सरकार के स्कूल मे एक घंटे छात्र -छात्राओ के साथ गुजारेगी पर उनका स्वागत शायद वनहा के प्रिंसिपल ही करेंगे !!! क्योंकि भारत सरकार की सूचना के अनुसार -गुजरात - उत्तर प्रदेश और दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्रियों को दूर रहने की ही अलिखित सलाह हैं !! आखिर ऐसा क्यो आज़ाद भारत के इतिहास में शायद यह पहली बार हो रहा हैं !
शायद इसका कारण प्रधान मंत्री का फोटो में "”एकल "” प्रभाव की ज़िद ही है |कैमरे के प्रति अति संवेदन शील मोदी जी को अनेकों बार डेकाह गया है की वे जनहा तक हो सकता हैं --फोटो साझा नहीं करते | सारा श्रेय स्वयं ही चाहते हैं | खैर ट्रम्प उनके बेहतर मित्र हैं ---ऐसा ट्रम्प और नरेंद्र मोदी दोनों ही ही दावा करते है | इसलिए जो भी बदोबस्त हुआ /हो रहा हैं सहमति से हुआ हो होगा |
परंतु मुलाक़ात में जिन विषयो पर चर्चा का संकेत व्हाइट हाउस के सूत्रो से मिलता हैं , वे निश्चित ही मोदी जी के लिए "”तकलिफ़देह होंगे " ! छपी हुई खबरों के अनुसार नागरिकत संशोधन कानून के वीरुध देखि के शाहीन बाग में चल रहे महिलाओ के धरणे को सुप्रीम कोर्ट से नियुक्त दो वार्ताकारों ने ने शिवरात्रि के दिन कुछ घंटो के लिए धरना स्थल की बगल की सड़क से ट्रैफिक की आवाजही की इजाजज्त पुलिस ने दी | वार्ताकारों ने भी पुलिस से इस बारे में पूच्छा की सड़क को किसने कहने पर खोल गया फिर बंद क्यो किया गया ? इस घटना से वनहा बैठे प्रदर्शनकारियो में --- दो राय हो गयी | एका वर्ग का कहना था की सुरक्षा की गारंटी यदि सुप्रीम कोर्ट खोले ज्णे दिलवा दे ते उन्हे सड़क के खोले जाने पर एतराज़ नहीं हैं | वनही दूसरे ज्यादा उग्र गुट ने कहा की सुरक्षा के वादे के बाद अगर कोई वारदात प्रदर्शन करियों के साथ हो -----तो बीट पुलिस सिपाही से लेकर कमिश्नर को निलंबित किया जाये ! अब ऐसी गारंटी तो श्रीमति इन्दिरा गांधी या राजीव गांधी को भी नहीं थी ! इस मांग का कारण का आधार भी ही --जिस प्रकार प्रदर्शनकारियो पर गोली चलये जाने दो वारदात हुई उनसे पुलिस की :::निष्ठा और तत्परता पर तो बहुत बड़ा स्वलया निशान लग गया हैं | शायद यही कारण हो सकता हैं की कोई महिला प्रदर्शनकारियो का मनोबल तोड़ने ले लिए हिंसक वारदात अंजाम दे !अब वार्ताकारों की पाँच बार बैठक प्रदर्शनकारियो के साथ हो चुकी हैं | यह बहुत साफ हैं की अगर ई लोगो ने सुप्रीम कोर्ट की बात नहीं मानी तब ---इन्हे दिल्ली पोलिस की कारवाई का सामना करना पड़ेगा ----जैसा जे एन यू और जामिया में हुआ हैं |

शाहीन बाग आंदोलन का देश और विदेश में प्रभाव :- शाहीन बाग आंदोलन भले ही विकराल नागरिकता कानून के विरोध में शुरू हुआ हो की उनकी संतानों को भांति - भांति के दस्तावेज़ो को प्रस्तुत करने में कितनी कठिनाइया आसाम मे मुसलमानो को हुई --उससे ज्यादा वनहा के भ भोजपुरी भाषी मजदूरो को भी उठाना पड़ा हैं | इसलिए सरकार द्वरा बनये गए ट्राइबुनल द्वरा जिन 14 लाख लोगो को विदेशी घोषित कर दिया गया ---उनमे 9 लाख हिन्दू और 5 लाख मुसलमान हैं !!! राष्ट्रीय रजिस्टर ऑफ सिटीज़न्स जो की सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बना था ------विदेशियों को पाहचानने के लिए – उसने मनमाने ढंग से यू पी और बिहार तथा उड़ीसा के मजदूरो को भी डिटेनशान कैंप पनहुंचा दिया |||||| इस परियोजना के समन्वयक प्रतीक हजेला को जिस हड़बड़ी में सरकार ने हटाया ---- और उनके वीरुध 22 पुलिस में प्राथमिकी लिखाई वह कनही ना काही कुछ तो इंगित करती हैं की --------राजनीतिक हरकत को प्रशासनिक जामा पहनाने में "”””नाकामयाबी "”” ही उनके मध्य प्रदेश में तबादले का कारण तो नहीं ????
लेकिन नागरिकता कानून के विरोध में अभी तक सिर्फ काँग्रेस शासित राज्यो की विधान सभाओ ने ही केंद्र के अधिनियम के वीरुध प्रस्ताव पारित कर राष्ट्रपति को भेज दिया हैं | परंतु गैर कोङ्ग्रेस्सी दलो ने लोक सभा मोदी सरकार के बिल को पास करने में शिव सेना --- अन्न डीएमके ,उत्तर पूर्व के छ राज्यो के छूट पूट दलो ने भी समर्थन दिया | इनमें अधिक्न्स्तः '’’’इनर लाइन '’’’के प्रविधान से सुरक्शित हैं --क्योंकि इन इलाको में कोई गैर आदिवासी न तो बस सकता है और ना ही व्यापार कर सकता है |
इन संदर्भों में अगर हम नागरिकता संशोधन विधि के विरोध को देखे तो वह सरकार और संसद का फैसला भले ही हो परंतु देश की जनता का फैसला तो नहीं हैं हैं | आखिर भारतीय जनता पार्टी का एनडीए को कूल मतदाताओ का 38 प्रतिशत ही समर्थन दिया था , लोक सभा चुनाव के समय !! उसे अगर बाद में हुए विधान सभा के चुनावो में मोदी सरकार के विरोधियो को मिले मतो से तुलना करेंगे तब -----हम समझ सकते हैं की मोदी का नेशनल डेमोक्रेटिक अल्लाएन्स का राष्ट्र के बहुमत का दावा कितना तथ्य हीन हैं !!!!
फिर संशोधन के बीजेपी समर्थको का बार -बार कहना की संसद से पारित कानून को कैसे मानने स मना कर सकते हैं !! कितना बेमानी लगता हैं ! आज के पूर्व केंद्र सरकार की किसी विधि के विरोध में राज्यो ने एक स्वर में अपनी विधान सभाओ से इस प्रस्ताव को नकार दिया हों !! मुझे तो नहीं स्मरण नहीं आता किनही सुधि जन को मालूम हो तो जरूर बताए !
राज्यो के पुनर्गठन को लेकर आमरण अनशन हुए हैं ------- आंध्र के लिए प्रकाशम और पंजाब के लिए फेरुमान के जवान का अंत हुआ ----तब इन राज्यो का गठन हुआ | शायद सरकारे स्वभाव से ही बहरी होती हैं ---चाहे वे काँग्रेस की हो अथवा बीजेपी की ! इसलिए यह कहना की संसद से पारित कानून को जनता के अथवा कुच्छ लोगो के दबाव में कैसे वापस लिया जा सकता हैं , कहना बेमानी हैं | क्योंकि जब न्यायिक समीक्षा में किसी विधि को सुप्रीम कोर्ट "”’असंवैधानिक "” बता देती हैं तब सरकारे अदालत के कहे अनुसार चलती हैं |

ट्रम्प मौजूदा सवालो के लिए-मोदी के संकट है या समाधान !
फिलहाल तो जो समाचार पात्रो और विदेशी चैनलो में लिखा और दिखाया जा रहा हैं – वह मोदी जी के लिए सहायता तो नहीं हो सकती , क्योंकि ट्रम्प साहेब भारत अपनी "”राजनीति "” करने आ रहे हैं | नवंबर में अमेरिका में चुनाव हैं ----और मोदी की तरह डोनाल्ड भी दुबारा चुनाव जितना चाहते हैं | परंतु भारत में तो "”15 लाखा "” का जुमला हो अथवा अच्छे दिन का वादा हो चल जाता हैं | परंतु अम्रीका में लोग चुनावी वादो को याद रखते हैं -----और हिसाब मांगते हैं | टाउन हाल की बैठको में सत्तारूद दल के सांसदो को जवाब देना पड़ता हैं | वनहा राष्ट्रपति को भी रोज - रोज पत्रकारो के सवाल जवाब देने पड़ते हैं \ यभा की तरह नहीं मोदी जी ने कब प्रैस कोन्फ्रेंस की थी किसी को याद नहीं --- ऐसा ही वे गुजरात के मुखय मंत्री रहते हुए भी करते थे ! जिस प्रकार देश में बेरोजगारी और बीजेपी सरकारो द्वरा नागरिक अधिकारो का उल्ल्ङ्घन है वैसा वनहा संभव नहीं | न्यायपालिका जिंदा हैं ---ट्रम्प के अनेक दोस्त जेल भेजे जा चुके हैं , सिर्फ असत्य बोलने पर ! यानहा तो बनरस में निर्माणाधीन पल गिरता हैं ----तब पुलिस को यह नहीं मालूम कहलता की ठेकेदार कौन हैं ?? ऐसा वनहा नहीं चल सकता |
अमेरिका में आप राष्ट्रपति के दोस्त होने के बावजूद सज़ा से नहीं बच सकते --और नाही देश के कानून से भाग सकते हैं ---जैसे माल्या और नीरव मोदी तथा अनय धन पति देश के बैंको का पैसा लूट कर विदेश जा बैठे हैं | और उनको वापस लाने की "”””ईमानदार सरकारी कोशिस भी नहीं हो रही हैं "” |
अब अगर प्रवासी अमेरिकन भारतीयो को प्रभावित करने के लिए शाहीन बाग --या नागरिकता संशोधन कानून { जिसको लेकर वनहा लाखो भारतीय परेशान हैं वे ग्रीन कार्ड नहीं पा सक रहे हैं }}} जैसे मामलो पर बात हुई तो नरेंद्र मोदी जी --- देश की जनता की तरह ट्रम्प को बहला नहीं सकेंगे | मजबूरी में ट्रम्प जिस प्रकार की भी व्यापारिक संधि चाहेंगे नरेंद्र मोदी जी को मंजूर करने होगी | इस प्रकार ट्रामप समस्या का समाधान नहीं मोदी के लिए संकट ही बन जाएंगे -----भगवती करे ऐसा ना हो यही प्रार्थना हैं |