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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 21, 2019


अहिंसक आंदोलन की परीछा


हांगकांग और जम्मू -काश्मीर मैं क्या राज्य की शक्ति से शांति बहाली होगी ?


चीन ऐसी साम्यवादी { गैर लोकतान्त्रिक } व्यवस्था द्वरा , ब्रिटिश उपनिवेश हांग्कांग को हस्तगत करते समय वादा किया था की स्थानीय निवासियों को शासन मैं भागीदारी और स्वयातता मिलेगी | जैसा की ब्रिटिश उपनिवेश मैं था | परंतु "”एक राष्ट्र -दो हुकूमत "” के ज़ीन पियाओ पिंग के नारे को आजीवन राष्ट्रपति जी शीन पिंग ने डब्बे मैं बंद कर दिया | सबसे पहले उन्होने कमुनिस्ट शासको की भांति "आजीवन पद पर बने रहने पर – संसद से मुहर लगवाई | फिर हांगकांग को फिर ताइवान पर कब्जा जमाने की कोशिसे जारी कर दी !
इसकी तुलना मैं अगर हम गौर करे की आज़ादी के बाद बने प्रांतो का जब पुनर्गठन हुआ तब हिमाचल - बाद मैं गोवा और केंद्र शासित प्रदेश हुआ करते थे | बाद मैं स्थानीय निवासियों की आकांछाओ की पूर्ति के हेतु इन्हे पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया | दिल्ली - और पांडचेरी को परिषद के स्थान पर विधान सभा प्रदान की गयी | सिर्फ अंडमान मैं आज भी काउंसिल हैं --जो नामांकित सदस्यो बनती हैं | और वह उप राज्यपाल को सलाह देती हैं | प्रतिनिधि निर्वाचित नहीं होते हैं | परंतु देश की अकखंडता के लिए राज्यो का पुनर्गठन भाषाई आधार पर हुआ | परंतु वर्तमान सरकार द्वरा अखंडता के नाम पर "”विभाजन किया गया "”” | लद्दाख को भी वैसा ही दर्जा मिला हैं जैसा की अंडमान -निकोबार को हैं | हांगकांग मैं भी काउंसिल हैं ---जिसके मुखिया को कम्युनिस्ट चीन मनोनीत करता हैं | यद्यपि परिषद मैं जनता के प्रतिनिधि भी होते हैं -परंतु कुछ सदस्य चीन की केंद्रीय सरकार द्वरा मनोनीत भी होते हैं | प्रशासन मैं काउंसिल की अध्यछ ही सर्वे - सर्वा होती हैं | बहुमत का सवाल नहीं होता | चीन सरकार ने हानकांग के आशंतुष्ट नेताओ के प्र्त्यर्पण के लिए एक कानून लाना चाहा था | जिसे कालोनी के निवासियों ने प्रताड़ना का हथियार बताया | और इस कानून के वीरुध दो माह से अहिंसक आंदोलन चल रहा हैं | हालांकि काउंसिल के चेयर परसन ने कहा की इस कानून को अभी लागू नहीं किया जाएगा | परंतु आंदोलनकारी इस कानून को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं |

विगत दो माह से 65 लाख की आबादी के इस द्वीप पर वनहा पर काम से लौटने वाले लोग तथा छात्र और व्यापारी वर्ग उनआंदोलनकारी
15 लाख लोगो का भाग है जो रोज चीन की हांकांग मैं दखलंदाज़ी का "””अहिंसक विरोध कर रहे हैं | इस शांतिपूर्ण आंदोलन को दबाने के लिए अभी स्थानीय पुलिस ही काम पर लगे हैं | जिस को आन्दोलंकारियों को तितर बितर करने के लिए वाटर कैनन --आँसू गॅस और बैटन का ही प्रयोग किया जा रहा हैं | जैसा की ब्रिटिश पुलिस ने स्थानीय लोगो को ट्रेनिंग दी थी | परंतु स्थानीय जनो के अहिंसक विराध प्रदर्शन ने चीन ऐसी शक्ति को भी विचलित कर दिया हैं | विगत शनिवार को हांगकांग की सीमा से लगती चीन की तरफ सैकड़ो टैंको और आर्मर्ड कारो का जमावड़ा देखा गया , जिसे विदेशी खबरिया चैनलो ने दिखाया |
विरोध का कारण है की हाङ्कांग मैं हुए किसी अपराध के लिए आरोपी को कम्युनिस्ट चीन मै प्र्त्यर्पण किया जा सकेगा | अब द्वीप के निवासियों को पीपुलस रिपब्लिक चीन की न्याय व्यवस्था की मनमानी और सज़ा मैं क्रूरता , जग ज़ाहिर हैं | जबकि हांगकांग मैं अदालते कानून और सबूत के आधार पर न्याया करती हैं | जैसा की ब्रिटिश व्यवस्था मैं था |
इस परिप्रेक्ष्य मैं अगर हम जम्मू और कश्मीर मैं भारत सरकार के निर्णय को देखे तो पाएंगे की लोकतान्त्रिक सरकार द्वरा कुछ - कुछ वैसा ही किया गया हैं ----जो चीन हंकांग मैं करना चाहता हैं | चीन द्वरा द्वीप पर चल रहे आंदोलन को कुचलने के लिए सेना को भेजने की जो तैयारी कर रहा हैं , उसका विरोध ब्रिटेन -कनाडा - फ्रांस और अम्रीका के ट्रम्प ने किया हैं | एक सार्वजनिक बयान मैं उन्होने चीन को बरजा हैं की वह तियानमन ईसक्वायर की घटना को दुहराने की हिमाकत नहीं करे | गौर तलब हैं की आज़ादी के अहिंसक आंदोलन कर रहे छात्रों को सेना ने गोली चला कर सामूहिक हत्या कर दी थी | अंतराष्ट्रीय दबाव के बावजूद भी चीन ने इसे अपना घरेलू मसला बताया था | पर इस बार वह वह शायद ऐसा न कर सके | इसका कारण हैं ----- की दस लाख से ज्यदा युवा और छात्र इस मैं शामिल हैं |
जम्मू -काश्मीर की हालत पर गौर करे ,तो प्रशासन ने शुरू मैं कह था की कनही भी करफू नहीं लगाया गया हैं , परंतु चैनलो पर दिखे फुटेज साफ बता रहे थे की कंटीली तारो की बाधा और सन्नटा भरी सदको पर फौजी बुटो के साथ राइफल लिए जवान गश्त करते हुए ही दिखाई पद रहे थे | धारा 144 मैं प्रतिबंध पाँच लोगो से ज्यदा एकत्र होने तथा हथियार लेकर चलने पर पाबंदी होती हैं | 144 के अंतर्गत किसी प्रकार के पास की जरूरत तब होती है जब की कोई रात मैं आवाजही करे | यहाँ दिन मैं ही सभी घरो मैं बंद है , तब किसे अधिकारियों ने पास दिये ??? सुरक्षा सलहकर अजित डोवाल द्वरा कुछ { दर्जन भर } स्थानीय लोगो से बात कर के 40 लाख घाटी वासियो का मिजाज जान लिया , यह तो वैसा ही हुआ जैसे की कहा जाता हैं "””” वह आया और उसने देखा – तथा सब पर विजय प्रापत कर ली "”” |
जब विदेशी चैनलो ने घाटी के आशंतुष्ट लोगो के हुजूम द्वारा नारे बाजी करने और पुलिस के सामने  डटे रहने की फोटो दिखाई , तब प्रशासन को अपनी "”साख "” बचाने के लिए मंजूर करना पड़ा की कई स्थानो पर विरोध प्रदर्शन हुए !!!

उम्मीद करे अगर काश्मीर के जवान -छात्र और कामगार सदको पर केंद्र के फैसले पर एक होकर मार्च करे तब क्या होगा ??? अमेरिका मैं भी गोरे और कालो के भेद के विरोध मैं मार्टिन लूथर किंग ने भी वाशिंगटन मैं 28 अगस्त 1963 को मार्च किया था | जिसके बाद फेडरल कोर्ट ने रंगभेद के राज्यो के कानून को निरस्त करते हुए , भेदभाव करने को अपराध घोसीत किया था | उन्होने भी कोई हिंसक लड़ाई नहीं लड़ी थी | फिर भी उनका नाम महात्मा गांधी के अहिंशा के औज़ार से सरकार को झुका दिया था |तब भी दुनिया के अनेक देशो ने अमेरिका के दक्षिण के राज्यो की रंगभेद के लिए की भर्त्स्ना की थी | अब देखना हैं की चीन एक राष्ट्र दो व्यवस्था के सिधान्त को कितनी ईमानदारी से पालन करता हैं ? अथवा तियानमेंन चौराहे की तरह आन्दोलंकारियों को फौजी बूटो और टैंक से दबाया जाता हैं |