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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Apr 26, 2017

शराब से ज्यादा जहरीली है दहेज तलाक नहीं

अभी हाल मे एक धार्मिक प्रवचन के दौरान एक लड़की ने खड़े हो कर कथावाचक से रोते हुए प्रार्थना की "”आप जनहा कनही भी प्रवचन करो आधे घंटे दहेज प्रथा की बुराई के बारे मे ज़रूर बोले | उसने कहा की शराब हर गाह्रो मे समस्या नहीं है परंतु दहेज हमारे समाज के सभी घरो मे समस्या है | “”

उस युवती की व्यथा बिलकुल सही है | लोक सभा मे दिये गए उत्तर के अनुसार विगत तीन वर्षो मे 24.771 लड़कियो की मौत हुई है | उम्मीद यही है की ग्रामीण छेत्रों की बहुत सी घटनाए पुलिस मे दर्ज़ नहीं "”हो पाती "” कारण बहुत है |

आजकल तीन तलाक का मामला काफी सुर्ख़ियो मे है | अंदाज़ यही है की मुस्लिम महिलाओ के साथ यह क्रूर मज़ाक है , वास्तव मे ऐसा है भी | इस प्रथा को बंद करना=- चाहिए | परंतु चूंकि इस्लाम मे यह प्रथा धर्म से जुड़ी है अतः इसको लेकर मुस्लिम समुदाय मे और "”नव सुधार वादियो "” मे वाद - विवाद है | सत्ता पक्ष से जुड़े नेता और प्रवक्ता इसे कानून बना कर समाप्त करने की आवाज बहुत जोर से प्रचार और प्रसार माध्यमों से बुलंद कर रहे है | अच्छी बात है | परंतु सही उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए उस समाज को विसवास मे लेना होगा जिस से की वे भी इसका समर्थन करे ---आखिर यह सुधार किया तो उनही के वर्ग की महिलाओ की भलाई के लिया ही जा रहा है |

इसी संदर्भ मे शराब बंदी भी आती है , जिसके कारण बहुत से घर -परिवार बर्बाद होते है | प्रदेश सरकार इस ओर भी उपाय कर रही है | नर्मदा की पवित्रता के लिए नदी के दोनों किनारे से 500 मीटर तक शराब की दूकान के खोले जाने पर प्रतिबंध लगा दिया है | भूतपूर्व प्रधान मंत्री मोरार जी देसाई पूरी तौर से महात्मा गांधी के अनुयाई थे | वे शराबबंदी के कातर समर्थक थे | उनका ही निर्णय था की गुजरात मे आज "”पूर्ण शराब बंदी है "” | परंतु पवित्र उद्देस्य को समाज द्वारा स्वीकरत कराना कठिन होता है | वही समस्या आज भी है |

शराब से बरबादी और मौते होती है ---परंतु उनका आंकड़ा दहेज के कारण होने वाली मौतों से कनही कम है | इसी प्रकार तलाक के कारण परिवार टूटते जरूर है परंतु बात ख़ुदकुशी तक नहीं पाहुचती है | परिवार के लोग परित्यक्ता को सहारा दे देते है या फिर कोई भला मानुष | इस प्रकार तुलना करे तो पाएंगे की तलाक के नाम पर मच रहा हल्ला ज़रूरत से ज्यादा ही है | जबकि दहेज से मरने वालो की संख्या कनही ज्यादा है | उस पर बयानवीरों को ज्यादा ध्यान देना चाहिए \ पहले अपना घर शुद्ध और साफ कर ले फिर पड़ोसी का भी घर शुद्ध कर लेना |

Apr 22, 2017

स्वछता अभियान-- जल की उपलब्धता -- और दीपाली का पत्र


प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के स्वछ्ता अभियान मे दो छह वस्तुए अनिवार्य है --- झाड़ू और पानी | झाड़ू तो देश के कोने - कोने मे सुलभ हो जाएगी परंतु पानी मुश्किल से मिलेगा | जिस समय उन्होने दिल्ली और काशी की सदको को साफ किया था ---उस समय शौच के लिए ग्रामीण छेत्रों मे पानी की किल्लत की कल्पना षड नहीं की गयी होगी | वरना आज भी देश के अनेक स्थानो मे "”पीने की पानी के लिए महिलाए तीन से पाँच मील पैदल चलना पड़ता है | “” राजस्थान मे ऊंट गाड़ियो मे पानी का परिवहन देखा जा सकता है | इस साल की गर्मी भी 50 के पारे के आस -पास घूम रही है | शहरो मे लोग पीने से ज्यादा कूलर मे डाले जाने वाले पानी की चिंता मे पड़े है |
परंतु भारत की कुल आबादी 125 करोड़ मे से कितने को साफ और निरोगी पानी मिलता है ?? आप जान और सुन कर हैरान रह जाएंगे की यह समस्या सिर्फ गाव तक ही नहीं सीमित है | महाराष्ट्र मे लातूर उत्तर प्रदेश मे बांदा और मध्य प्रदेश मे झाबुआ और सागर मे रेल से पीने का पानी सुलभ कराया गया था | इन नगरो के अलावा मई से जून तक और कुछ जघो पर तो भारी बारिश होने तक पानी की "””राश्निंग ''' होती है |

अब इन हालातो मे जब की केंद्र द्वारा राज्य सरकारको 55 लीटर पानी प्रति व्यक्ति र्सुलाभ कराने का लछ्य दिया गया है -----परंतु अभी तक प्रदेश सिर्फ 27हज़ार 273 बसाहटों मे ही इसे पूरा कर पाया है | वैसे मई और जून के माह मे इस लछ्य को भी पूरा कर पाना संभव नहीं होगा |
राज्य की 22 हज़ार 309 बसाहटों मे आज भी पानी का संकट है , और कोढ मे खाज की स्थिति तो यह है की केंद्र सरकार ने 55 लीटर प्रति व्यक्ति के लक्ष्य को बदा कर 77 लीटर कर दिया है |

इस स्थिति का विद्रूप पहलू यह है की जनहा 55 लीटर नहीं मील पा रहा हो वनहा 77 लीटर का ;लछ्य देना कितना "””न्यायपूर्ण और संगत है "” ??उस पर दिल्ली की नौकरशाही का तुर्रा यह की केंद्र ने नल - जल योजना जिसके अंतर्गत हैंड पम्प लगते है उसकी सहता आधी कर दी है |

अब इन परिस्थितियो मे हम देपाली रस्तोगी के लेख को समझने की कोशिस करे तो ज्यादा उचित होगा | अर्थात पीने के पानी के अभाव के दौर मे धोने और --बहाने के लिए जल कान्हा से लाये ?? परंतु बल्लभ भवन ले कुछ नौकरशाह नियम और कायदे की दुहाई देकर अपनी सर्वोच्च्ता सीध करना चाहते है |

अब जन प्रतिनिधि जनता के प्रति संवेदन शील और उत्तर दायी होता है ----परंतु नियम कायदे बनाने वाले और उनको परिभासित करने वाले नौकरशाह के लिए तो मुख्य मंत्री ही सब कुछ है ,,जिसको वे भरमाते रहते है | बस यानही लोकतन्त्र ---भ्रष्ट तंत्र मे परिवर्तित हो जाता है | दीपाली रस्तोगी ने जमीनी हक़ीक़त को उजागर करने की ईमानदार कोशिस की | जो की अखिल भारतीय सेवाओ के अफसरो का उद्देस्य नहीं होता | वे तो बस "”” हुकुमते -- वक़्त "” के पाएदार होते है | फिर वह आम जनता के लिए फायदे मंद हो या नहीं |

Apr 19, 2017

खिलाड़ी के खेलने पर आजीवन प्रतिबंध--- पर एम पी और एम एल ए पर सिर्फ 6 साल चुनाव लड़ने की बंदिश ??

एक मामले मे सुप्रीम कोर्ट मे केंद्र सरकार की ओर से कहा गया है की भ्रष्ट और आपराधिक व्यक्तियों के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध नहीं लगाया जाये | इतना ही नहीं यह भी कहा गया की जन प्रतिनिधियो के लिए न्यूनतम शैक्षणिक यौग्यता की अनिवार्यता निर्धारित नहीं की जाये |इसके विपरीत बोर्ड ऑफ क्रिकेट कंट्रोल ऑफ इंडिया ने केरल के खिलाड़ी श्रीसंत पर गैर कानूनी आचरण यानि "”फिक्सिंग '' के आरोप के आधार पर उनकी अपील को खारिज करते हुए उन पर आजीवन खेलने पर प्रतिबंध का फैसला किया | क्या यह विसंगति नहीं है की एक राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी की एक गलती उसे खेलने से ही बाधित कर दे ? जबकि अदालत से वह उस आरोप मे बरी हो चुका हो ? वनही अदालत से सजायाफ्ता व्यक्ति लाखो मतदाताओ का प्रतिनिधि बन जाये ??
पहली नजर मे लगेगा की ऐसे तर्क और जवाब क्या नरेंद्र मोदी की सरकार की ओर से अदालत मे दिये जा सकते है ? विश्वास नहीं होगा --परंतु यह विचित्र भले ही हो पर -सत्य है ! जिस देश मे पाँच हज़ार रुपया प्रति माह की तंनख़्वाह चपरासी को मिलती हो ,और उसके लिए भी बारहवी क्लास पास होना और सदचरित्र का प्रमाणपत्र अनिवार्य हो वनहा एक हज़ार और दो हज़ार रुपया प्रतिदिन का भत्ता लेने वाले जन प्रतिनिधियों को इन शर्तो से छूट मिले भला क्यो ?|
सरकार की इस मजबूरी का एक ही कारण संभव है --की चरित्रवान और शिक्षित लोगो का राजनीतिक दलो मे नितांत अभाव हो ? जब बाहुबली और आपराधिक मामलो के - आरोपी और कम पड़े लिखे लोग विधायी सदन मे जाएँगे -तब वे केवल और केवल हाथ ही उठाने लायक होंगे --चाहे पक्ष की ओर से या विपक्ष की ओर से ! है न अद्भुत सत्य ? मजे की बात है की इस मांग का समर्थन सभी राजनीतिक दल करेंगे | चाहे वे एक दूसरे को सार्वजनिक रूप से कितनी ही लानत - मलानत करे परंतु लाभ के अवसरो पर सब एक हो जाते है जैसे वेतन और भत्ते के निर्धारण की बात हो अथवा चरित्र और शिक्षा की अनिवार्यता की बात हो | तब उन्हे शुचिता और न्याय की बात नहीं सूझती है | देश मे भूख -अशिक्षा - पेयजल ऐसी समस्याओ पर दोनों ही पक्ष एक -दूसरे की छीछालेदार भले करे , परंतु कोई ठोस हल निकालने की कोशिस नहीं होती है |
सिर्फ "” मुझ से अच्छा कौन है "” की आतम मुग्धता से ग्रसित देश के राजनीतिक दल अपने -अपने वोट बैंक को सम्हालने के लिए जनता के हितो की कुर्बानी देते है | परंतु कोई भी दल नौकरशाही या अफसरशाही के तंत्र से नहीं बच पाता है | चुनाव के दौरान सफलता का श्रेय और असफलता का दोष पार्टिया एक -दूसरे पर लगाती है | परंतु कोई भी इस ओर प्रयास नहीं करता की जिस तंत्र के कारण जन कल्याण की योजनाए धरातल पर असफल हो रही--- वह सिर्फ "”बाबूतन्त्र "” के भ्रष्टाचार के कारण लोगो तक नहीं पहुँच पाता | उसका समाधान खोजा जाये | इस भ्रष्ट तंत्र से निरीह किसान और और गरीब जनता को कैसे बचाया जाये | सोवियत यूनियन -जिसकी स्थापना मजदूर हितो को लेकर जन सघर्ष किया गया ---उस ऐतिहासिक जन क्रांति को 70 {सत्तर } साल मे नौकरशाही ने ध्वष्त कर दिया |
ऐसे मे अशिक्षित और आपराधिक प्रष्ठ भूमि के जन प्रतिनिधि क्या जन कल्याण कारी कार्य कर सकेंगे ?? ऐसे मे केंद्र सरकार की ओर से महान्यायवादी रोहतगी द्वरा दी गयी यह दलील कितनी सही है --इसका मूल्यांकन करना और --होना जरूरी है |
बलबीर पुंज जी अयोध्या मंदिर और गौवध पर मैकाले और मार्क्ष्स समर्थक ही नहीं अरुणाचल -मेघालय - नागालैंड मणिपुर और त्रिपुरा के निवासी भी असहमत

भारतीय जनता पार्टी के नेता और पूर्व पत्रकार बलबीर पुंज जी ने एक आलेख मे आरोप लगाया की अयोध्या मंदिर के निर्माण मे अंग्रेज़ो की शिक्षा प्रणाली से निकले लोग ही इसका विरोध कर रहे है | वैसे उनके कथन से तो सर्वोच्च न्यायालय भी आ गया है ,,क्योंकि उसने भी बाबरी मस्जिद विध्वंश के षड्यंत्र के लिए आडवाणी - उमा भारती जयभान सिंह पवैया समेत दर्जन भर नेताओ पर मुकदमा चलाये जाने का आदेश दिया है | मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह ने अदालत के आदेश पर प्रतिकृया व्यक्त की है की "” कोई माई का लाल भी आरोप साबित नहीं कर सकता "” अब यह बयान तो यही संदेह उत्पन्न करता है की उत्तर प्रदेश सरकार ही इस मुकदमे को जीतने का प्रयास नहीं करेगी | वरना इतने विश्वास से कोई अभियुक्त कैसे गर्जना कर सकता है |

रही बात गौवध पर सारे देश मे प्रतिबंध की राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ के सर संघचालक डॉ मोहन भागवत के कथन की -उसमे अनेक कानूनी अडचने है | मोर राष्ट्रीय पक्षी है और सिंह राष्ट्रीय पशु है इन दोनों को मारने पर सज़ा का प्रावधान है | परंतु केरल और तमिलनाडू तथा पूर्वोतर के पांचों राज्यो मे गाय का मांस वनहा के लोगो के खाद्य पदार्थ है | अब इतनी बड़ी आबाड़ी को उत्तर भारत के आस्था और विश्वास के तले जबरन तो नहीं लाया जा सकता | संविधान की राज्य सूची मे खान -पान का विषय है | पूर्वोतर के राज्यो मे उत्तर भारत के विपरीत मात् सत्तात्मकपरिवार है अर्थात वनहा घर का मुखिया महिला होती है और , उत्तराधिकार भी उसी के अनुरूप होता है |
भारतवर्ष मे सभी राज्यो मे अपनी संसक्राति और भाषा तथा रिवाज है | जो दूसरों को असहज लगेंगे | तमिल परंपरा मे मामा -भांजी का विवाह उत्तम माना जाता है | उत्तर भारत मे यह निषिद्ध श्रेणी मे आता है --अर्थात इस विवाह को गैर कानूनी माना जाएगा | केरल के मलयाली समज के नायर समुदाय मे "”पाणिग्रहण "” नहीं होता वनहा "”संबंधम "” होता है | अब यह हिन्दु कोड के अनुरूप नहीं है | तो क्या हम उत्तर भारत की परंपरा और सोच को उन पर थोप सकते है ?? मेरा मानना है बिलकुल नहीं |

पुंज साहब जिस गुलामी मानसिकता की बात करते है ---उसे आजादी की लड़ाई के दौरान देश ने देखा है --जब संघ ने महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन का विरोध किया था | संघ समर्थित एक भी नेता उस लड़ाई मे नहीं था | सावरकर का नाम लिया जाता है --परंतु अभिलेखगर के सबूतो के अनुसार उन्होने अंग्रेज़ो से रिहाई के लिए माफी मांगी थी |

आज शगूफे के तौर पर इन मुद्दो को पुराने बस्तो से निकाल कर लाया जा रहा है --क्योंकि आज की नयी पीड़ी को भारत की विविधता और विभिन्नताओ की जानकारी नहीं है | उन्हे तो वही सत्य लगता है जो शासन के कंगूरे पर चाड कर बोला जा रहा हो | परंतु वह सत्य नहीं है तथ्य नहीं है |

Apr 18, 2017

भावनाओ से राजनीति तो की जा सकती है -पर प्रशासन नहीं वह तो कायदे - कानून से ही चलेगा वरना सब बिखर जाएगा

विदेशी न्यूज़ चैनलो पर कश्मीरी युवक को सेना की जीप से बांध कर ले जाने और , गिरफ्तार लड़को से पाकिस्तान को गाली देने के लिए कहते तथा - एक लड़के को सड़क पर गिरा कर तीन फौजी जवान "”सनटी '' या छड़ी से मारना फिर गिरफ्तार किए हुए कश्मीरियों को डंडे से मारना और ठेलने के द्राशया ऐसे लगे -जैसे यह भारत वर्ष की वह गौरवशाली फौज नहीं है – जिसने 70हज़ार पाकिस्तानियों की फौज को आत्म समर्पण करने के लिए मजबूर किया | फिर उन्हे कानूनन क़ैद मे रखा और संधि होने पर रिहा किया |
जिस सेना का ऐसा इतिहास रहा हो वह आज एक भ्रष्ट पुलिस वाले की तरह व्यवहार करेगा --देख कर विश्वास नहीं होता | या तो इन लोगो को अपनी विरासत का ज्ञान नहीं अथवा ये भी "” उप्द्र्वियों से उनही की भांति लड़ रहे है "”” भूल गए की उपद्रवी को राज्य का संरक्षण नहीं प्रापत है -----जो फौजियो को है |
भारत के संविधान मे सेना हो या नागरिक

इंडियन पेनल कोड और क्रिमिनल प्रोसीजर कोड मे भी
शारीरिक दंड या सज़ा देने का अधिकार तो अदालत तक को नहीं है फिर इन वर्दी धारियो ने ऐसा क्यू किया ?

इसी मध्य केंद्र सरकार का बयान आ गया की वह सेना और केन्द्रीय पुलिस बलो के कारवाई का समर्थन करती है ?

उधर श्रीनगर मे जम्मू -काश्मीर पुलिस ने सुरक्षा बलो के विरुद्ध गैर कानूनी रूप से बंधक बनाने और प्रताड़ित करने का आरोप लगाया है

इधर खबर आ रही है की केंद्र ने काश्मीर से 30 हज़ार सुरक्षा बलो को वापस बुलाने का विचार कर रही है |

इस मध्य दो दिन से श्रीनगर मे प्रशासन ठप है – इंटर नेट और मोबाइल सेवाए बंद है ?

इन हालातो मे भारत माता की जय बोल कर स्थिति को सामनी नहीं किया जा सकता | आन्दोलंकारियों को सम्झना होगा की उन्हे भारतीय कानून और संविधान के तहत ही रहना है ----परंतु हमे भी यह समझना होगा की वही कानून और संविधान हमारे ऊपर भी लागू है ! केंद्र के निर्णय से एक अजीब स्थिति निर्मित होती दिखाई पढ रही है ---
1- क्या पुलिस कारवाई यानि लिखी हुई प्राथमिकी को रद्द करने के लिए क्या अदालत मे दरख़ावस्त देगे ?
2- क्या सरकार पुलिस बलो की इस कारवाई का समर्थन कर के इंडो तिब्बतन बार्डर पुलिस के दस जवान और जम्मू -कश्मीर पुलिस के दो जवान तथा राज्य सरकार के एक दर्जन कर्मचारी तथा एक बस चालक इस घटना मे शामिल थे | अब इनके वीरुध अगर अनुशासन हीनता की कारवाई नहीं हुई तो दूसरों के लिए यह घटना उदाहरण बन सकती है \

3-- पूलबामा और श्रीनगर मे छात्र और छात्राओ पर पठार बाज़ी का आरोप सेना के बल लगते रहे है ,,परंतु नागरिकों और छात्र तथा छात्राओ के घायल होने की खबरे तो आती है पर जवानो के घायल होने की नहीं |


इन सवालो की अनदेखी नहीं की जा सकती , शेष देश मे कश्मीर को लेकर जो भावना है उस से नागरिक शासन नहीं प्रभावित नहीं होना चाहिए | पत्थर के बदले मे जो कारवाई हुई उसे कानूनन सही नहीं साबित किया जा सकता है |

Apr 12, 2017

एनडीए तो आगामी लोकसभा के लिए तैयार -पर यूपीए
की एकता का क्या होगा ?

नेशनल डेमोक्रेटिक एलायन्स ने तो बैठक कर के आगामी लोकसभा 2019 के चुनाव के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेत्रत्व को मंजूर किया है | परंतु यूपीए की एकता अभी दूर -दूर तक नहीं दिखाई पड़ती है | नितीश कुमार ने एक बयान मे काँग्रेस से आग्रह किया है की वह गैर भाजपा डालो को लेकर एक मोर्चा बनाने की कवायद शुरू करे | परंतु काँग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वरा इस ओर अभी तक कोई पहल नहीं की गयी है | परंतु काँग्रेस पार्टी अपने संगठन को लेकर ही व्यस्त है | गोवा मे और मणिपुर मे भाजपा से अधिक सीट पाने के बावजूद भी सरकार नहीं बना पाना काँग्रेस के सिपहसालारो की असफलता का "”कीर्तिमान "” ही तो है |
इसके अलावा पार्टी मे अभी तक यही ऊहापोह बना हुआ है की दल की कमान अभी भी सोनिया गांधी के हाथो मे रहे अथवा राहुल गांधी को सौप डी जाये | कुछ "”:बड़े "” नेता जनहा राहुल गांधी को कमान देने की वकालत करते हुए सार्वजनिक बयान देते है --वनही राज्यो के छत्रप सोनिया गांधी के नेत्रत्व मे ही 2019 का चुनाव लड़ने के लिए लाबिंग कर रहे है | अभी हाल ही मे सोनिया गांधी ने सांसदो को रात्रि भोज के लिए आमंत्रित किया था -की आगामी रणनीति बनाई जा सके | परंतु विभिन्न दलो के सांसदो ने इस प्रयास को गंभीरता से नहीं लिया |
वनही बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी के विपक्षी एकता प्रयासो मे वाम दलो का ठंडा रुख भी समस्या बन रहा है | जिसका कारण उनका यह सोच है की ममता आगे चल कर बंगाल मे वाम दलो को खतम करने के लिए भाजपा से हाथ मिला सकती है | उनको नोटबंदी का ममता द्वरा विरोध और केंद्र द्वारा बंगाल और सीमांत राज्यो के मार्ग पर सेना की नियुक्ति भी उनके संदेह को समाप्त नहीं कर पाये है | इन गुथियों के मध्य गैर भाजपा दलो की एकता जल्दी सुलझती नहीं नज़र आती |

अब सवाल यह है की क्या मौजूदा केन्द्रीय सरकार के विरोध मे कोई मोर्चा बन सकता है ? इस प्रश्न का उत्तर यही हो सकता है की जिस प्रकार उत्तर प्रदेश मे समाजवादी और बहुजन पार्टी के साथ काँग्रेस का सफाया हुआ है , उसके चलते इन पार्टियो को अपनी राष्ट्रीय पहचान बचाने के लिए एक साझा मोर्चा जरूरी है | अन्यथा वे एक - एक कर के राजनीतिक भूमिका खो देंगे |
अब अमेरिका ने वेलफेयर राज्य के सिधान्त को फेयरवेल कह दिया है --ट्रम्प का नया आदेश

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक आदेश जारी करके देश मे महिलाओ के काम करने के स्थान पर "”सुरक्षा "” प्रदान करने की कंपनी की ज़िम्मेदारी को खतम कर दिया है | इस आदेश का परिणाम यह होगा की अगर किसी कामकाजी महिला कर्मी का शोषण चाहे शारीरिक अथवा आर्थिक रूप से होगा तब वह किसी कोई सुरक्षा की मांग नहीं कर सकती | इतना ही नहीं उसे कितने वेतन पर रखा गया है अथवा कितने घंटे उसे काम करना है या की उसने सप्ताह मे कितने घंटे काम किया है ,, इसके लिए उसे कोई "”कागज नहीं दिया जाएगा "” |

उनके पूर्ववर्ती राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक कानून द्वारा संस्थानो के प्रबन्धको की ज़िम्मेदारी तय की थी की महिला कर्मी काम करने के स्थान पर "”स्वस्थ वातवर्ण "” मे काम कर सके ई ,उसके लिए वे जवाबदेह होंगे | ट्रम्प के इस नए आदेश से अमरीका के कूल कामगारों का एक तिहाई भाग प्रभावित होगा | यह अचरज की बात है की जिस शिकागो नगर से दुनिया मे कामगारों के काम के घंटे नियत किए गए हो --वनही आज एक आदेश भी जारी किया गया है --जिस से महिला कर्मी पूरी तरह से अपने नियोक्ता की "”बंधुआ मजदूर बन जाएगी "” | जो ना तो यह मांग कर सकेगी की वह सप्ताह मे 40 घंटे से ज़्यादा अथवा 8 घंटे पाँच दिन मे | अब दो दिन का साप्ताहिक अवकाश भी सवेतन नहीं मिलेगा | बच्चो वाली माताये अब काम करने के स्थान पर "” पालन्घर '' की सुविधाए भी नहीं मांग सकेंगी | सार्वजनिक सुविधाए देने के लिए भी मालिक बाढी नहीं होगा | प्रसव पूर्व अवकाश तो अब कल्पना ही हो जाएगा | क्योंकि उस अवधि मे मालिक को दो गुना वित्तीय भर पड़ता है | एक तो उसे संभावित माता को वेतन देना पड़ता था , और उस महिला कर्मी के स्थान पर वैकल्पिक व्यसथा करनी पड़ती थी | वेतन और भत्ते का लिखित प्रमाण भी अब मालिक से नहीं लिया जा सकेगा | वह यदि चाहे तो दे सकेगा अन्यथा उसे "”बाध्य नहीं किया जा सकेगा "” इस आदेश से संस्थानो के मालिको को वित्तीय और अन्य रूप से बहुत लाभ होने के अलावा अब वे निरंकुश हो जाएंगे और महिला कर्मी को कोई कानूनी कवच भी नहीं रहेगा | एक प्रकार से दुनीय के दूसरे बड़े लोकतन्त्र मे महिला कामगारों की इज्ज़त और स्वास्थ्य को तिलांजलि दे दी गयी है | अब श्रमिक यूनियन इस आदेश पर क्या प्रतिक्रिया करती है --वह देखने वाला होगा | |
आर्थिक जगत की वर्ण व्यवस्था मे ब्रामहण-वैश्य आदि ,,,,

नोटबंदी के बाद जिस प्रकार सार्वजनिक और निजी बैंकों ने नए - नए नियम जारी करके ग्राहको को उनकी हैसियत बता दी है |उसके बाद वित्तिय जगत मे भी वर्ण भेद प्रकाश मे आया है | पहले बैंक सिर्फ खाता खुलवाने के लिए लोगो मे अपनी प्रतिस्ठा और सुगम करी प्रणाली का ज़िक्र किया करते थे | अब वे सिर्फ बड़े - बड़े अकाउंट मे ही रूचि लेते है | मोदी सरकार ने जन - धन खातो को ज़ीरो बेलेन्स पर खुलवाया था ---आज उन सभी खाता धारको की स्थिति समाज के दलितो के समान हो गयी है | भाषणो मे भले ही नेता या मंत्री जनता के मध्य कुछ भी वादा करे --परंतु हक़ीक़त मे वे धरातल पर नहीं आते है |
बैंको मे करेंट और बचत खाता धारको के साथ यह भेद किया जाता है | बैंक के अनुसार बचत खाता पर ब्याज दिया जाता है जबकि करेंट खाताधारको से महसूल लिया जाता है |

किसी समय मे नम्बूदरी ब्रांहणो की भांति "”अपने चारो ओर घेरे बनाकर बैठते थे| गैर ब्रामहन को घेरा पार करने की परंपरा नहीं थी | पहले घेरे को केवल सजातीय ब्रांहण पार कर सकता था -दूसरे को परिवार के सदस्य और तीसरे को मात्र उनकी पत्नी ही जा सकती थी | यह भेद आज खाता धारको के बीच भी देखा जा सकता है |

आज साधारण खाता धारक को चेक बूक नहीं मिलती --है मगने पर कहा जाता है की 25 हज़ार से अधिक का बैलेन्स होगा तब ही चेक बूक मिल पाएगी | वैसे वे इन निर्देशों को लिखित मे नहीं देते है | अब जन घन खाते वाले के लिए इतनी बड़ी धन राशि आज के मंहगाई के जमाने मे रख पाना अत्यंत कठिन कार्य है |

न्यूनतम बैलेंस की बाध्यता भी ऐसी ही है | भोपाल ऐसे शहर मे 3 हज़ार की राशि सदैव बनाए रखना मुश्किल ही है | ऐसे ग्राहको को ही दलित माना जा सकता है जो ऐसा ना करने पर "”अर्थ दंड के भागी होते है "”

इस दुनिया के ब्रामहण वे व्यक्ति और उनकी कंपनीया है जिनहे बैंक ने सौ करोड़ से अधिक का "”क़र्ज़ा " दिया है | उनके लिए आहरण के नियम नहीं है | क्योंकि वे बैंको से क़र्ज़ लेकर "”उन्हे अनुग्रहित "” कर रहे है | देश के बड़े कॉर्पोरेट संस्थान जिनपर हजारो करोड़ रुपये के बकाया है – वे आते है | उनसे कोई पूछ ताछ भी नहीं की जाती है | उनके चेक आते ही उसके भुगतान की व्यसथा की जाती है -भले ही उनके खाते मे कुछ कमी बेशी हो | ऐसा करने के लिए उन संस्थानो के दर्जनो प्रकार के बीसियों खातो से "”रकम "” का एडजस्टमेंट किया जाता है | वे ब्रांच से लेकर मुख्यालय तक मे पूजे जाते है | इसी श्रेणी मे ही दिवालिया कंपनी किंगफ़िशर के मालिक विजय माल्या है | जो सात हज़ार करोड़ से ज्यादा रुपए के क़र्ज़दार है | जिंका गोवा स्थित आलीशान ऐशगाह अभी हाल ही मे सत्तर करोड़ मे नीलम की गयी है |

दूसरी श्रेणी मे स्थानीय कंपनी और व्यवसायिक फ़र्म या संस्थान आते है जिनहोने कैश क्रडिट या लेटर ऑफ क्रेडिट खुलवा रखे है | उन्हे भी किसी प्रकार के "”कष्टकारी "” निर्देशों का पालन नहीं करना पड़ता है | उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनावो के दौरान तत्कालीन मुख्य मंत्री अखिलेश यादव ने नोटबंदी मे पैसा बदलवाने के बारे मे पूछे जाने पर कहा था "”अगर आप का खाता बड़ा है तब बैंक आप के पास चल कर आएगा | “” यह कथन ही साफ कर देता है की साधारण बचत खाता धारको की स्थिति आज क्या है |

Apr 6, 2017

गरम गोश्त के व्यापारियो की दहशत और कानून के रखवालों की चुप्पी---- एंटी रोमियों स्क्वाड बनाम छेड़छाड़ व अपहरण

आदित्यनाथ योगी के उत्तर प्रदेश का मुख्य मंत्री पद सम्हालने के बाद दो कार्यक्रम ज़ोर शोर से शुरू किए गए --इनमे एक था एंटी रोमियो स्क्वाड और गैर कानूनी बूचड़खानो की बंदी | उसके बाद मध्यप्रदेश के कोनो से भी ऐसी कारवाई की मांग शिवराज सरकार से की जाने लगी | छात्राओ से राह चलते छेड़छाड़ और हमले की वारदाते भी सुर्ख़ियो मे आने लगी |
प्रदेश पुलिस के रेकॉर्ड के अनुसार राज्य मे प्रत्येक दिन 36 महिलाओ से छेड़छाड़ होती है ,इसमे मारपीट और जबरन प्यार का इजहार से लेकर घायल भी कर दिया जाता है | इतना ही नहीं हर 90 मिनट मे एक महिला का अपहरण किया जाता है | यह आंकड़ा ही प्रदेश मे चल रहे जिस्म के बाज़ार की कहानी कह देता है | इस धंधे मे पुलिस और प्रशासन की "”शह "”” के बिना कुछ भी संभव नहीं है |
लेकिन नगरो और शहरो मे छात्राओ से छेड़छाड़ के मामलो से ज्यादा गंभीर लड़कियो को बेचने के मामले सामने आए | इतना ही नहीं भोपाल मे ही एक पुलिस कर्मी के पुत्र को अपहरण किए जाने की हिम्मत गरम गोष्त के इन सौदागरो ने अंजाम दिया | मामला चूंकि पुलिस वाले का था इसलिए राजधानी के अफसरो ने नाकाबंदी कर के 14 लोगो को गिरफ्तार किया जिसमे दो महिलाए भी थी | अखबारो ने इन्हे मानव तस्कर की पहचान दी --जबकि तस्करी बेजान वस्तुओ जैसे सोना चाँदी आदि की होती है | ज़िंदा लोगो को खरीदने -बेचने वाले तो गरम गोष्त के सौदागर ही हुए |ये लोग नागपूर के ''गंगा - जमुना '''इलाके से भागी हुई युवती को "” वापस "” ले जाने के लिए आए थे | इस अंतर राज्यीय गिरोह मे राजस्थान -उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के गुर्गे थे | जिंका काम गाव की भोली भली लड़कियो को काम दिलाने का झांसा देकर घरो से उठा ले जा कर "”बुर्दा फ़रोशों ''''को वेश्या व्यापार के लिए लाखो रुपये बेच देते थे | गिरफ्तार किए जाने पर इन लोगो ने ग्वालियर और धौलपुर तथा नागपूर के पुलिस थानो को '''माहवारी रकम ''' देने का खुलाषा किया |

एक और मामले मे पुलिस की कारवाई "”मंथर गति "” की हो गयी , क्योंकि इसमे मामला अरेरा कालोनी के एक बंगले मे चल रहे हाइ प्रोफ़ाइल "”चकला घर "” पर छापे का था | जिसमे एक छात्रा को जबर्दस्ती बंद कर शरीर व्यापार करने की कोशिस की जा रही थी | उसमे "”दलाल"” लड़की परवीन तथा सना और मकान मालिक लड़के आशुतोष के साथ कुछ गिरफ्तारिया हुई | जिस छात्रा ने पुलिस को फोन कर के बुलाया था - उसको पुलिस की मौजूदगी सना नामक महिला दलाल ने धम्की दे की उसके भाई पर क़तल के तीन मामले चल रहे है अब चौथा मामला तेरा होगा - पुलिस मौन रही ? पुलिस की कर्तव्य परायणता देखिये की - दो दिनो मे शिकायत कर्ता के धारा 164 के बयान अदालत मे कलमबंद नहीं करा सकी !! और लड़की डर के मारे भिंड वापस अपने परिवारजनो के पास चली गयी | पुलिस बताती रही की लड़की मोबाइल नहीं उठा रही ,इसलिए उसे अदालत नहीं ले जा सके -इसे कहते है की कौन ना मर जाए पुलिस के इस भोलेपन पर !!

राजधानी मे संगठित अपराध -जिसे माफिया या चीन मे ट्रायड जापान मे निंजा गिरोह कहते उसकी मौजूदगी हाल मे हुई | इन गिरोहो की खास पहचान होती है एक खास प्रकार का गुदना जो सदस्यो के शरीर पर होता है वही उनकी पहचान होता है की वे किस गैग के मेम्बर है | कुछ ऐसे गुदने उन दो लोगो की लाशों पर भी थे जिनकी दिन दहाड़े गोली मार कर हत्या कर दी गयी | पुलिस को ताबड़ तोड़ | कारवाई का हुकुम मिला --क्योंकि मामला एक मंत्री के समर्थको की ह्त्या का था | हत्या की वजह भी मंत्री की "”सरपरस्ती "” का था | वजह "”इलाके से वसूली "”” की थी |
सरकारी मुलाज़मीनों द्वरा तो गैरकानूनी वसूली की सचित्र कहानी दैनिक पत्रिका ने दो दिनो तक पहले पन्ने पर छापी ---परंतु किसी भी आला अफसर या मंत्री की कान पर ज़ू तक नहीं रेंगी |

जनहा हर घंटे मे एक महिला खरीदी - बेची जा रही हो वनहा स्त्री की अस्मिता की बात ही बेमानी है | और रोमियो स्क्वाड़ तो बिलकुल ही नाकाफी है |