आर्थिक
जगत की वर्ण व्यवस्था मे
ब्रामहण-वैश्य
आदि ,,,,
नोटबंदी
के बाद जिस प्रकार सार्वजनिक
और निजी बैंकों ने नए -
नए
नियम जारी करके ग्राहको को
उनकी हैसियत बता दी है |उसके
बाद वित्तिय जगत मे भी वर्ण
भेद प्रकाश मे आया है |
पहले
बैंक सिर्फ खाता खुलवाने के
लिए लोगो मे अपनी प्रतिस्ठा
और सुगम करी प्रणाली का ज़िक्र
किया करते थे |
अब
वे सिर्फ बड़े -
बड़े
अकाउंट मे ही रूचि लेते है |
मोदी
सरकार ने जन -
धन
खातो को ज़ीरो बेलेन्स पर खुलवाया
था ---आज
उन सभी खाता धारको की स्थिति
समाज के दलितो के समान हो गयी
है |
भाषणो
मे भले ही नेता या मंत्री जनता
के मध्य कुछ भी वादा करे --परंतु
हक़ीक़त मे वे धरातल पर नहीं
आते है |
बैंको
मे करेंट और बचत खाता धारको
के साथ यह भेद किया जाता है |
बैंक
के अनुसार बचत खाता पर ब्याज
दिया जाता है जबकि करेंट
खाताधारको से महसूल लिया जाता
है |
किसी
समय मे नम्बूदरी ब्रांहणो
की भांति "”अपने
चारो ओर घेरे बनाकर बैठते थे|
गैर
ब्रामहन को घेरा पार करने की
परंपरा नहीं थी |
पहले
घेरे को केवल सजातीय ब्रांहण
पार कर सकता था -दूसरे
को परिवार के सदस्य और तीसरे
को मात्र उनकी पत्नी ही जा
सकती थी |
यह
भेद आज खाता धारको के बीच भी
देखा जा सकता है |
आज
साधारण खाता धारक को चेक बूक
नहीं मिलती --है
मगने पर कहा जाता है की 25
हज़ार
से अधिक का बैलेन्स होगा तब
ही चेक बूक मिल पाएगी |
वैसे
वे इन निर्देशों को लिखित मे
नहीं देते है |
अब
जन घन खाते वाले के लिए इतनी
बड़ी धन राशि आज के मंहगाई के
जमाने मे रख पाना अत्यंत कठिन
कार्य है |
न्यूनतम
बैलेंस की बाध्यता भी ऐसी ही
है |
भोपाल
ऐसे शहर मे 3
हज़ार
की राशि सदैव बनाए रखना मुश्किल
ही है |
ऐसे
ग्राहको को ही दलित माना जा
सकता है जो ऐसा ना करने पर
"”अर्थ
दंड के भागी होते है "”
इस
दुनिया के ब्रामहण वे व्यक्ति
और उनकी कंपनीया है जिनहे
बैंक ने सौ करोड़ से अधिक का
"”क़र्ज़ा
" दिया
है |
उनके
लिए आहरण के नियम नहीं है |
क्योंकि
वे बैंको से क़र्ज़ लेकर "”उन्हे
अनुग्रहित "”
कर
रहे है |
देश
के बड़े कॉर्पोरेट संस्थान
जिनपर हजारो करोड़ रुपये के
बकाया है – वे आते है |
उनसे
कोई पूछ ताछ भी नहीं की जाती
है |
उनके
चेक आते ही उसके भुगतान की
व्यसथा की जाती है -भले
ही उनके खाते मे कुछ कमी बेशी
हो |
ऐसा
करने के लिए उन संस्थानो के
दर्जनो प्रकार के बीसियों
खातो से "”रकम
"”
का
एडजस्टमेंट किया जाता है |
वे
ब्रांच से लेकर मुख्यालय तक
मे पूजे जाते है |
इसी
श्रेणी मे ही दिवालिया कंपनी
किंगफ़िशर के मालिक विजय माल्या
है | जो
सात हज़ार करोड़ से ज्यादा रुपए
के क़र्ज़दार है |
जिंका
गोवा स्थित आलीशान ऐशगाह अभी
हाल ही मे सत्तर करोड़ मे नीलम
की गयी है |
दूसरी
श्रेणी मे स्थानीय कंपनी और
व्यवसायिक फ़र्म या संस्थान
आते है जिनहोने कैश क्रडिट
या लेटर ऑफ क्रेडिट खुलवा रखे
है |
उन्हे
भी किसी प्रकार के "”कष्टकारी
"”
निर्देशों
का पालन नहीं करना पड़ता है |
उत्तर
प्रदेश के विधान सभा चुनावो
के दौरान तत्कालीन मुख्य
मंत्री अखिलेश यादव ने नोटबंदी
मे पैसा बदलवाने के बारे मे
पूछे जाने पर कहा था "”अगर
आप का खाता बड़ा है तब बैंक आप
के पास चल कर आएगा |
“” यह
कथन ही साफ कर देता है की साधारण
बचत खाता धारको की स्थिति आज
क्या है |
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