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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jun 18, 2019


भारत एक संघ गण राज्य है या ब्रिटेन की भांति एकात्मक राष्ट्र ??

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लोकसभा के 2019 का चुनाव सात चरणों मैं कराने का लोक लुभावन काम अस्सी दिनो मैं केंद्रीय चुनाव आयोग के माध्यम से सम्पन्न कराया !! अब एक चुनाव के सौ दिन के अंदर ही उन्होने दूसरा सवाल राष्ट्र के सामने फेंक दिया "”” एक राष्ट्र ---एक साथ चुनाव "”” | हैं ना कितना बड़ा "”विरोधाभास "”! जब बीजेपी को छोडकर सभी राजनीतिक दल लोकसभा चुनाव के सात चरण के टाइम टेबल पर एतराज़ कर रहे थे , और इस पर केंद्रीय चुनाव आयोग से पुनर्विचार की गुहार लगा रहे थे | तब आयोग ने "”” स्वेक्षा "” से अथवा सरकार के दबाव मैं , इतना लंबा चुनाव कार्यक्रम बनाया | इस कार्यक्रम का मुख्य कारण या आरोप भी यही था की -----ऐसा इसलिए किया गया ,क्योंकि नरेंद्र मोदी जी और अमित शाह को देश मैं रैली और सभाए कर सके !!! अब आज वे ही अत्यधिक व्यय के कारण "”एक राष्ट्र -एक चुनाव की बात कर रहे हैं | काश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से अरुणाचल मैं एक साथ चुनाव का वही कारण सामने आएगा जो "””सात चरणों मैं मतदान कराये जाने के पक्ष्श मैं दिया गया था !! यानि मतदान करने और सुरक्शित रूप से कराने के लिए पुलिस का बंदोबस्त !!! एक ही कार्न बता कर "”सात चरणों मैं चुनाव कराये गए --और अब उनही तर्को के आधार पर "एका राष्ट्र एक चुनाव "” ! हैं ना अचरज की बात ! पर मोदी जी है तो संभव हैं !
अब बात करे धन की बरबादी की !! देश को चलाने वाले जनप्रतिनिधियों से बनने वाली सरकार --- जिसकी ज़िम्मेदारी 125 करोड़ लोगो के प्रति हैं , उसके चयन के लिए लाग्ने वाली लागत को '’’’अपव्यवा कहना कितना उचित है ?आप फैसला करे | सरकार का खर्च तो आवश्यक है ------परंतु चुनाव मैं '’’काले धन '’’ का प्रयोग आम आदमी की जानकारी मैं है | परंतु सत्ताधारी पार्टी और काँग्रेस दोनों ही चुनव मैं खर्च किए गए धन का खुलाषा करने से माना कर रहे हैं | पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली का ---शगुफा यानि चुनावी बॉन्ड का भी खुलाषा नहीं हो रहा हैं !! आखिर क्यो

19 जून को अपने मन की बात पर प्रधान मंत्री सर्वदलीय बैठक करेंगे | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के इस आवाहन के समर्थन मैं सरकार और पार्टी के भक्त लामबंद होकर तुरंत इसको "”उचित "” बताने के तथ्यो और तर्को की बाढ़ लगा दी !! राजनीति शासत्र और विश्व के देशो का संविधान का अध्ययन करने वाले लोग इस सुझाव पर "”हतप्रभ "” हैं ! आइये इस दावे को हक़ीक़त की कसौटी पर परखते हैं | समर्थको और सरकार के लोगो ने इस मांग के समर्थन मैं ब्रिटेन -बेल्जियम -स्वीडन जिसे का उदाहरण दिया हैं | ब्रिटेन एकात्मक लोकतन्त्र है {{राजशाही होने के कारण इसे गणराज्य नहीं कहा जा सकता }} , अर्थात वनहा "”प्रांत या प्रदेश "” नहीं हैं ---वरन छेत्र हैं | यूनाइटेड किंगडम या ब्रिटेन ---वास्तव मैं तीन छेत्रों मैं विभाजित हैं | इंग्लैंड - वेल्श और आयरलैंड | आयरलैंड की अपनी संसद हैं , वे एक "”संधि "” के द्वरा यूनाइटेड किंगडम मैं विशेस स्थान रखते हैं | टेरेसा मे की सरकार मैं आयरिश "”छेत्र की राजनीतिक पार्टी शामिल थी | वनहा "”स्थानीय निकाय की छोटी इकाई हैं "” बरो "” जो अपने लिए कानून बनाती हैं | इसके बाद '''काउंटी होती हैं | """मेयर और शेरिफ़ का चुनाव इनहि छेत्रों मैं होता हैं | यह कहना गलत हैं की ब्रिटिश हाउस ऑफ कामन्स की अवधि "” और बरो काउंसिल और काउंटी का जीवन "” समान होता हैं | आयरलैंड और वेल्श मैं भी यही प्रणाली हैं | इसी संदर्भ मैं दो राजशाही लोकतन्त्र "” बेल्जियम और स्वीडन का उदाहरण अखबारो मैं छ्पा हैं | वनहा भी एकात्मक व्यवयसथा हैं ----- संघीय नहीं | संघीय गणतन्त्र का उदाहरण संयुक्त राज्य अमेरिका हैं | जो 50 राज्यो का संघ हैं | राष्ट्रीय झंडे "””स्ट्रिप अँड स्टार "” मैं इन सभी राज्यो को एक तारे के रूप मैं दर्शाया गया हैं | देश के संविधान की पहली ही लाइन मैं लिखा हैं "””भारत अर्थात इंडिया राज्यो का एक संघ हैं "”” दूसरे अनुछेद मैं नए राज्यो को इस संघ मैं संविलयन की प्रक्रिया दी गयी हैं !! ऐसा ही प्रविधान संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान मैं हैं | संघ मैं शामिल होने वाला अंतिम रही "”हवाई द्वीप "” था | भारत मैं सिक्किम आखिरी राज्य हैं जो भारत के संघ मैं शामिल हुआ |
यह तर्क भी समाचार पात्रो और मीडिया मैं आया की यूरोप के अनेक देशो मैं "”सभी चुनाव एक साथ कराये जाते हैं "” , अब यह बहुत बड़ी गलत फहमी ही हैं | अब अगर यूरोप के इन राष्ट्रो का छेत्रफल और जनसंख्या को देखे तब अनेक लगभग 20 - 21 देश भारत के मानचित्र मैं समा जाएँगे !! दूसरा कारण , यह भी हैं प्रदेश मैं राजनीतिक '’’दल - बदल '’’ से बनने और गिरने वाली सरकारो मैं निश्चितता के लिए विधान सभा विघटित होती हैं | अब बहुमत वाली सरकार की खोज के लिए ही चुनाव होते हैं | दरअसल मोदी जी अपने अमेरिकी दोस्त राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की भांति '’’’नियंत्रण रहित रूल करने की तमन्ना हैं | अब दोनों देशो के संविधान पूरी तरह से अलग है | इसलिए संसदीय लोकतन्त्र मैं नियंत्रण संसद का होता हैं ,भले ही वह कहने के लिए ही हो | हक़ीक़त मैं सरकार ही राष्ट्र और उसके उपदानो को राष्ट्रपति के नाम पर चलाती हैं | इसी लिए मंत्रिमंडल और उसकी महत्वपूर्ण समितियों से भी ज्यादा ‘’’ताकतवर अजीत डोवाल - न्रपेन्द्र मिश्रा -और एसके मिश्रा ‘’’ है जिनहे कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्रापत है | आदेशानुसार सभी मंत्रियो को अपनी बात अथवा फाइल भी इसी ‘’’ त्रिमूर्ति ‘’’ के माध्यम से ही आती है अथवा फाइस्लाकुन होकर निपटाई जाती है | मंत्रियो की हैसियत और सम्मान इस ‘’’मूर्ति के आगे नत मस्तक है | | “”

संघातमाक ढांचे को संसदीय खाने मैं नहीं फिट किया जा सकता हैं | अमेरिका के इतिहास मैं अंग्रेज़ो से युद्ध और दासता को लेकर हुए गृह युद्ध ने लोगो की छेत्रीय पहचान को बड़ावा दिया | संघ मैं आज भी "”उत्तर और दक्षिण '’राज्यो की पहचान उनके इतिहास से होती हैं | राजनीतिक रूप से दक्षिण के राज्यो मैं अनुदार वादी कट्टर रिपब्लिकन पार्टी का ज़ोर हैं | जबकि औद्योगिक रूप से समपान उत्तरी राज्यो मैं डेमोक्रेत का ज़ोर हैं | अपनी पहचान "”कनही खो न जाये इसीलिए "”राज्यो का अलग संविधान और झण्डा होता हैं "” | जैसा भारत मैं जम्मू काश्मीर मैं अलग झण्डा और संविधान हैं , और रंजीत सिंह दंड संहिता हैं !!!!

जिस प्रकार नदी के पानी और जंगल को लेकर भारत मैं राज्यो मैं मैं झगड़ा होता हैं , वैसा ही संयुक्त राज्य अमेरिका मैं भी होता हैं | भारत के संविधान निर्माताओ ने ने छेतरीय भिन्नताओ भाषा - खानपान और पहनावा मैं अंतर ने ही संविधान को संघीय डांचा दिया हैं | जबकि देश की विभिन्नताओ के बावजूद एकसूत्र मैं रखने के लिए ब्रिटेन की तर्ज़ पर अखिल भारतीय सेवाओ का गठन किया गया | जिसमैं दक्षिण के युवक या युवती को उत्तर भारत मैं काम करना पड़ता हैं | और अरुनञ्चल के व्यक्ति को मध्य भारत अथवा सुदूर दक्षिण के प्रदेश मैं काम करना होता हैं | ब्रिटेन की तर्ज़ पर "” राजनीतिक सरकराए आती - जाती रहती हैं , पर स्थायी शासन के लिए एक मजबूत सेवा संगठन की ज़रूरत थी | जिसे अंग्रेज़ो ने अपने लाभ के लिए बनाया था | परंतु शासन के लिए इस लौह आवरण का होना ज़रूरी था | अब इस सौ साल पुरानी परिपाटी को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी अपने हुकुम का गुलाम बनाना चाहते हैं | लोक सेवा आयोग तथा कार्मिक मंत्रालय के कायदे -कानून के अनुसार "” एक सिविल सरवेंट "” अपना अभिमत फाइल पर लिख कर अपनी असहमति व्याक्त कर सकता हैं| अब गुजरात मैं अखिल भारतीय सेवाओ के लोगो को नाथने के बाद मोदी जी वही प्रयास केंद्र मैं आज़मा रहे हैं | इसीलिए "लेटरल इंट्री'’ के नाम पर शासकीय सेवाओ से बाहर के -------यानि अंबानी -अदानी के कर्मचारियो को सेंट्रल सेक्रेत्तेरीयत मैं "”””उप सचिव और संयुक्त सचिव "” के रूप मैं नियुक्ति दी जा रही हैं | निश्चित माहवारी वेतन पर ठेके पर रखे गए इन व्यक्तियों को शासन के नियमो का कितना ज्ञान होगा ? अथवा किस आधार पर इनकी वार्षिक चरित्र पंजिका लिखी जाएगी ? क्योंकि जनहा से आए हैं ये लोग ----वनहा ऐसा कोई प्रविधान नहीं होता हैं , मालिक खुश तो पदोन्नति अगर नाराज तो निकाल दिया ! ना कोई मुकदमा -न कोई अपील ना कोई दलील काम आती हैं ----उस स्थान पर !! अब ऐसे वातावरण से आए व्यक्ति को कदम - कदम पर नियमो का हवाला देकर काम करना मुश्किल होगा | लेकिन नहीं भाई मोदी जी हैं तो मुमकिन हैं !! |