Bhartiyam Logo

All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Nov 20, 2021

 

एक अहिंसक आंदोलन ने एक प्रधान मंत्री को घुटने पर बैठा दिया




साल में सात दिन कम लगे - पर केंदीय सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी को दूसरी बार "अपना" फैसला बदलने पर मजबूर किया ! जिन मोदी जी ने साल भर चले किसान आंदोलन को "परजीवी" और कुछ स्वार्थी और राजनीतिक तथा देशद्रोही ताकतों द्वरा प्रेरित ,संसद में कहा था , उनही ताकतों की मांगो को स्वीकार करने पर मजबूर होना पड़ा ! आखिर क्यू , जवाब हैं जिन दो औद्यगिक घरानो के अंधाधुंद लाभ के लिए मोदी जी ने करोड़ो किसानो के हितो की अनदेखी की थी , वे किसान अब विधान सभा चुनावो में उनकी पार्टी को पराजय दिलाने की शक्ति बन गए थे ! यह फैसला क्र्षी सुधार के नाम पर थैलिशाहो के लिए था | साल भर में किसानो ने पंचायते कर के इसका खुलासा किया तब देश के अनेक प्रांतो में किसान जाग उठा | दिल्ली में किसानो को रोकने के लिए जैसी "कीले गाड़ी गयी काँटेदार लगाए सड़क खोद कर दीवाल खड़ी की " पीने के पानी जिसे दिल्ली की केजरीवाल भेज रही थी उसे रोका गया | इन सब मुसीबतों सहते हुए किसानो ने तीनों मौसम की मार खाते हुए लगभग 700 साथियो की शहादत दी तब उनकी मांग मानी गयी | पर किसान नेता टिकैत ने कहा की हम कहने मात्र से "” अपने घरो को नहीं लौटने वाले , जब तक यह तीनों कानून संसद द्वरा निलंबित या खारिज नहीं किए जाते और फसलों के लिए न्यूनतम मूल्य का कानून नहीं बनता तब तक आंदोलन जारी रहेगा |यानि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का ब्यान उनके लिए कोई अर्थ नहीं रखता हैं | प्रधान मंत्री के कथन को अविसवासनीय मानने का कारण भी हैं | विगत में उन्होने चुनावो में जो जो वादे किए वे जमीन पर कभी नहीं पूरे हुए ,हाँ विज्ञापनो में उनका दावा किया जाता रहा |

2- प्रधान मंत्री की माफी और तपस्या में कमी बनाम 700 किसानो की मौत तथा साल भर तक सड़क पर धरना देते सर्दी -बारिश और गर्मी सहते किसानो का दर्द !

आंदोलन के दौरान किसानो के लंगर और उनके निवास की सुविधाओ को लेकर संघ और बीजेपी के केंद्रीय और राज्यो के मंत्री तथा छुटभैये नेता जिस प्रकार के अपमानित लांछन लगाते थे और उनकी सह्यता के लिए आतंकियो के पैसे के इस्तेमाल का आरोप लगते थे __ क्या आज वे अपना चेहरा दिखयेंगे ? संघ और बीजेपी के लोग सरकार के संरक्षण में जिस प्रकार भीड़ बना कर "सावरकर के समर्थन में और वियक्षी डालो के वीरुध दो घंटे का जुलूस निकलते थे उसे वे जन समर्थन कहते थे "” |

पर उत्तर प्रदेश में हाल में हुई अमित शाह और नरेंद्र मोदी की सभाओ में करोड़ो रुपये खर्च कर बसो से भीड़ जुटाई गयी , उसके मुक़ाबले समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव की रथ यात्रा में उमड़े जन सैलाब ने इनको जमीनी हक़ीक़त बता दी | उदाहा काँग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने महिला श्सक्तिकरण की मुहिम में चालीस फीसदी सीट महिलाओ के ऐलान ने महिलाओ को एक नेत्रत्व दिया | एवं लखीमपुर खीरी कांड में उनकी पहल ने भी किसानो औए जन सामान्य में उनकी पैठ बनाई हैं |

इन विपक्षी नेताओ की सभा और रैलियो में जो जन सैलाब उमड़ा वह स्व स्फूर्त था | बसो लाया गया नहीं ! बस यही एक तथ्य हैं जिसने पार्टी और उसकी सरकार की जनता में गायब होती छवि का मूल्यांकन कर दिया था | जिससे घबराकर पार्टी अध्याकाश जे पी नड़ड़ा और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तथा अमित शाह को बूथ इंचार्जों का जिम्मा दिया हैं ! अब चुनाव में इस क़द के लोग दौरा और सभाए करते हैं | पर ऐसे जिम्मेदार नहीं बनये जाते हैं | बहुत हुआ तो उन्हे चेतत्र विशेस की ज़िम्मेदारी होती हैं |

परंतु जिस प्रकार यह दायित्व दिया गया हैं ,वह बीजेपी नेताओ के भयभीत होने का प्रमाण हैं |

3- विदेशो में मोदी सरकार की बदनामी और किसानो के समर्थन में होते आंदोलन और निकलते जुलूस

साल भर चले इस किसान आंदोलन को न केवल देश में वरन ब्रिटेन -कनाडा - अमेरिका - न्यूजीलैंड - आयर लैंड में निकालने वाली रैलियो से भारत सरकार और गगग्न विहारी प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की छवि पर बदनुमा दाग बन रही थी | मोदी समर्थको द्वरा प्रायोजित लोग भी धीरे धीरे उत्साह खो रहे थे | विदेशो में आपको आंदोलन या जुलूस के उद्देश्यों और कारणो में आस्था होना

जरूरी है | जो मोदी के गुजरती समर्थक ,जो अधिकतर व्यापारी है , उन्हे पैसा लगाकर धूमधाम करना तो आता हैं पर वे किसानी के बारे में कोई जानकारी नहीं होने से विदेसी लोगो को अपने मोदी समर्थन का कारण नहि बता पा रहे थे |

दूसरा विदेशी मीडिया लगातार इस आंदोलन के लगातार चलने और इसमें शामिल लिसानों के रहने - और खाने के बंदोबस्त को लेकर चकित था | सबसे आधी वे लगातार चल रहे आंदोलन में महिलाओ और बच्चो की सहभागिता से भी चकित थे | वे इन सब बातों को लगातार अपनी बुलेटिन और अखबार में स्थान दे रहे थे |

इतना ही नहीं ब्रिटिश हाउस ऑफ कोममन्स हो या कनाडा की संसद अथवा अमेरिकी काँग्रेस में भी किसान आंदोलन की गूंज उठी | वे सर्वाधिक प्रभावइत थे की साल भर चले इस आंदोलन का रूप पूरी तरह अहिंसक रहा | इससे भी प्रधान मंत्री चिंतित थे |

4- मोदी के कुछ परम भक्तो ने प्रधान मंत्री के इस फैसले को लोकतन्त्र की परिपक्वता बताया है ! हमेशा से इन "”परम"” लोगो का काम रहा हैं की "”” पहले ऐसा हुआ था तो अब हुआ तो क्या हुआ "” वे अभी भी इसी बात की रट लगाए हैं की ये कानून जमीन पर आए ही नहीं तब कैसे इनके बारे सही स्थिति पता चल सकती हैं | वैसे इन परम भक्तो यह नहीं मालूम की "”” सात सालो में यह दूसरा अवसर हैं जब मोदी सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ा "” पहला मौका था जब सरकार "”भूमि अधिग्रहण कानून "” के वर्तमान मुआवजा के नियम बदलना चाहता था , क्यूंकी उनके औद्योगिक दोस्तो को किसानो की जमीन का मुआवजा बहुत ज्यादा देना पड़ता था | परंतु इस कानून का विरोध बीजेपी के अंदर ही होने लगा | क्यूंकी सभी के इलाके में किसानो की बहुलता थी \ और इस बदलाव से किसान की रोजी -जमीन भी जाती और उसे ठीक मुआवजा भी नहीं मिलता | परिणाम स्वरोप वे चुनाव में पराजित होते | इसी भय से सरकार ने उसे वापस लिया | इस बार फिर वही स्थिति हैं ----पर एक मजबूत तरीके से | दूसरे उत्तर परदेश में पराजय का मतलब मोदी की गद्दी का खिसकाना |

एक परम भक्त ने किसान आंदोलन की तुलना 2011 के अन्न के आंदोलन से करते हुए "” विश्वास जताया की उस आंदोलन को भी सरकार ने कुचला था \मोदी चाहते तो किसान आन्दोलन को भी कुचल सकते थे | उन्हे अन्ना आंदोलन के कारणो का ज्ञान नहीं हैं | अन्ना हजारे का आंदोलन सरकार में व्याप्त भ्रस्ताचार को मिटाने को लेकर था | और उनकी मांग थी एक ऐसा "””लोकपाल "” होना चाहिए जो सिर्फ जनता के प्रत जवाबदेह हो |पारा उसका चुनाव कैसे हो और उसके अधिकार क्या हो इसको लेकर कोई निश्चित रॉय नहीं थी | अब इस संविधान से इतर मांग को कोई भी सरकार कैसे पूरा कर सकती हैं ? दूसरा उनका आरोप है की इस आंदोलन में सरकार ने रामलीला मैदान में पुलिस एक्शन लेकर बाबा रामदेव को स्त्री के कपड़े पहन कर भागना पड़ा | इसे वे सरकार की हिंसा बताते हैं |

उनका विश्वास है की मोदी जी चाहते तो "”साम - दाम - दंड - भेद से आंदोलन को खतम करा सकते थे ! तब क्या मोदी सरकार ने ऐसा प्रयास किया नहीं ? कितनी ही बार चोरी छुपे लोगो को धन का लालच देकर तोड़ने की कोशिस की | लेकिन जिस व्यक्ति के साथ यह प्रयास किया गया उसने मंच से अपनी बीटी सबको बताई | दंड की कोशिस कई बार हुई ,पर दंड के लिए किसान सामूहिक रूप से तैयार बैठे थे | उनका कहना था की "””या तो कानून वापस होगा या हमारी लाश घर जाएगी " क्यूंकी जमीन के बिना तो किसान वैसे ही मारा हुआ समझो | दूसरा जिन सेना के जवानो के नाम और कुर्बानी पर मोदी जी वोट कबाड्ते थे वे भी किसानो के साथ कंधा से कंधा मिलकर खड़े थे | मोदी जी ने 90% मीडिया को किसान आंदोलन की हक़ीक़त दिखने से ना केवल मना कर दिया था ,वरन उनको बदनाम करने के लिए बीजेपी की आईटी सेल नाते नए बयान अपने नेताओ को सुलभ कराती थी , जिसे " गोदी मीडिया '’’ नमक मिर्च लगा कर दिखाता था | चार - पाँच एकर तो विख्यात हो गए थे "””मोदी के सिपहसालार "” | तो मिश्रा जी को यह गलतफहमी नहीं होनी चाहिए की मोदी सर्वशक्तिमान हैं , वे झुक नहीं सकते | यह तो उनकी बड़ाप्पन हैं की अपनी अधूरी तपस्या की माफी मांग रहे हैं | वैसे उनके यानहा तो माफी मांगने वालो को भी वीर कहते हैं |