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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

May 29, 2017

तीन साल के प्रचार मे देश के प्रथम प्रधान मंत्री की पुण्य तिथि ही भूल गयी सरकार !!

तीन साल के प्रचार मे देश के प्रथम प्रधान मंत्री की पुण्य तिथि ही भूल गयी सरकार !!

15 अगस्त 1947 से पहले जिस छेत्र को ब्रिटिश उपनिवेश का हिस्सा जाना जाता था ,और जिसकी पहचान बर्मा और श्री लंका के साथ होती थी | वायसराय का छेत्राधिकार आज के इन तीनों देशो के ऊपर था | आज़ादी के बाद इंडिया और 26 जनवरी 1950 को इस देश को यूनियन ऑफ इंडिया अथवा इंडिया जो की भारत है की पहचान जिस प्रथम प्रधान मंत्री के नेत्रत्व मे मिली वे थे पंडित जवाहर लाल नेहरू | जिनके जनम दिन को 60 वर्षो तक बाल दिवस के रूप मे याद किया जाता था | एवं उनका अवसान 27 मई 1962 को हुआ | राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि राजघाट मे ही उन्हे शांतिवन बनाकर समाधि दी गयी |
परंतु 55 साल बाद इस वर्ष केंद्र सरकार और मोदी जी का मंत्रिमंडल अपने तीन साल पूरे होने की खुशी मे ''भूल गये ''' की इस देश का 15 साल तक नेत्रत्व करने वाले पहले प्रधान मंत्री की पुण्य तिथि पर दो लाइन का संदेश भी नहीं जारी किया | जो सरकार तीन साल की "”तथाकथित "” उपलब्धि को देश के सामने प्रदर्शित करने के लिए दो अरब रुपये से ज्यादा खर्च किया हो ---उस सरकार का इतिहास बोध इतना कमजोर होगा की वह देश के प्रधान मंत्री की पुण्य तिथि को भी बिसरा देगी !!
वर्तमान राजनीतिक नेत्रत्व इतिहास का बिगुल बजते नहीं थकता है --- अशोक -चाणक्य – प्रताप -और शिवाजी का गुणगान करने के लिए बड़े - बड़े आयोजनो पर करोड़ो रुपया खर्च किया जा रहा है | परंतु देश के संवैधानिक इतिहास और आज़ादी की लड़ाई को बिसरा देने की जानबूझ कर कोशिस है क्या ? अन्यथा अपने राजनीतिक अग्रजो की अनदेखी करने का यह प्रयास निंदनीय ही कहा जा सकता है | अगर ऐसा कुछ नहीं था -----तब सरकार के जिम्मेदारों को स्पष्ट करना होगा की की ऐसी अनदेखी आखिरकार क्यो हुई ?

May 26, 2017

दवे की वसीयत----- भाजपा की भावी पीढी के लिए छोड़ी गयीसत

  दवे की वसीयत----- भाजपा की भावी   पीढी के लिए छोड़ी गयीसत

अनिल माधव दवे , राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ""स्वस्थय "” परम्पराओ मे रचा -बसा व्यक्तित्व जो लोकतन्त्र की संसदीय मर्यादाओ का सम्मान करना जानते थे | उनके द्वारा राजनीतिक प्रतिद्वंदीयों के लिए लिए कभी भी आपतिजनक और अमर्यादित बयान नहीं दिया | इसके लिए उनके राजनीतिक विरोधी भी उनकी तारीफ करते है | स्वच्छ राजनीति के लिए रणनीति बनाने के लिए उनकी योग्यता को प्रदेश के जन "”जावली "” के चुनावी वार रूम को आज भी याद करते है | यह प्रयोग संसदीय चुनाव प्रणाली मे नया था ,जो सफल रहा |

उन्होने राजनीति की आम राह नहीं पकड़ी ---वरन पर्यावरण और जल – स्त्रोतो की रक्षा की मुहिम शुरू की जो ना केवल समाज --देश --वरन मानव सभ्यता की भी जरूरत है | वे राजनीति मे विरोधी को परास्त करने के लिए भले ही निर्मम रहे हो परंतु मर्यादाओ का उल्लंघन नहीं किया\ प्रदेश की राजनीति हो अथवा देश की उन्होने हमेशा "”निर्विवाद "” छवि बनाए रखी | खेमो मे बनती सत्तारूद पार्टी मे भी वे साइडव संघ का ही चेहरा रहे | स्वदेशी आंदोलन ऐसी मुहिम मे वे लगे रहे - शिक्षा भारती के भी कार्य कलापों मे रुचि लेते थे | वे पति की गुटीय राजनीति से दूर केंद्र की रुचि और आदेशो को ही पूरा करने वाले स्वयंसेवक थे | जिनहे संघ ने भारतीय जनता पार्टी मे भेजा था ----की पार्टी मे नारेबाजी और पोस्टर बाजी तथा भाषण और बयानवीरों को कुछ रचनातमक गतिविधियो मे लगाया जा सके | जिस से की शिक्षित युवा समाज के लिए कुछ सार्थक करने का संतोष प्रापत कर सके | परंतु काडर बेस पार्टी जिसे चुनावी राजनीति के लिए भीड़ भरी बनाया गया था ---उसमे चंद लोगो को ही उनकी बात समझ मे आई | उन्होने प्रदेश को जीवन और जलदायिनी नर्मदा को साफ करने और उसे प्रदूषण मुक्त करने के लिए उन्होने अनेक गैर सरकारी संगठनो को बनाने मे मदद की | जिस से की शिक्षित युवाओ को एक रचनातामक कार्य करने का संतोष कर सके | की उन्होने दलगत राजनीति से उठकर देश और समाज को के लिए कुछ ठोश कार्य किया है | इतना ही नहीं उन्होने इस संगठनो को विभिन्न छेत्रों मे मे भी कार्य करने को प्रेरित किया | उनकी इस मुहिम को अब कौन सम्हालेगा यह अभी --अनुतरित ही है |

जीवन की सार्थकता और मौत की निश्चितता का उन्हे अछि त्राह से ज्ञान था | उनकी चार लाइन की वसीयत मे उन्होने जो भाव व्यक्त किए है ---वे उन्हे वेदिक धर्म का सच्चा अनुयाई सिद्ध करते है | जो उन्हे "”हिंदु "” धर्म के उद्घोष से बिलकुल अलग करते है | जीस सादगी से वे जिये लाल बाती और हुटर से उन्हे कभी प्रेम नहीं रहा | वे एक सामान्य यही सादगी व्यक्ति की ही तरह रहे | आम आदमियो की भांति उन्हे काफी हाउस मे परिवार जनो के साथ अक्सर देखा जाता था | चेहरे पर स्मित और तनाव रहित चेहरे पर चिंता और द्व्न्द्य की रेखाए उनके चेहरे पर तब आई जब वे केंद्र मे पर्यावरण मंत्री बने | दिल्ली की राजनीति मे थैली शाहों का दबाव और राजनीतिक फैसलो मे नियमो और जन कल्याण की अनदेखी उन्हे चिंतित करती थी +| कहा जाता है है की जीएम बीज और बी टी कोट्टन बीजो के मामलो मे उनका राजनीतिक मतभेद था | उनके अनुसार भारत वर्ष की क्रशि के लिए ये बीज "”घातक "” है | परंतु बीज लाबी की पहुँच शिखर तक थी | जब उन पर बहुत दबाव पड़ा की इस प्रस्ताव को वे मंजूर करे ,तब उन्हे स्वदेशी विचार मंच मे अपने दिये गए भासनों और वादो की याद आती थी | इसी कश्मकश मे ही उन्हे हर्द्यघात हुआ | और वे इस राजनीति को ही छोड़ गए | परंतु अपने कर्म छेत्र और नर्मदा की गोद मे ही उन्होने चिरनिद्रा का निश्चय जो उन्होने पाँच वर्ष पूर्व लिया था ,उसे अपनी वसीयत के रूप मे छोड़ गए | उन्होने किसी भी प्रकार के स्मारक आदि के लिए निषेध किया था | उनकी इच्छा थी की जो उन्हे चाहते है वे एक पौधा लगा कर उसे व्रक्ष बनाने तक सेवा करे | जिस प्रकार उन्होने नर्मदा संकलप को छोटे से स्तर से एक महान मुहिम मे परिवर्तित किया वह ही उनके जीवन की सफलता है | मुख्य मंत्री शिवराज सिंह की नर्मदा यात्रा उसी का प्रतिफल है | ऐसे सच्चे पर्यावरण के सेवक को श्रंधंजली यही होगी की नदियो और जल श्रोतों को हम पुनः जीवन दान दे |

May 16, 2017

समाज मे असफल--सरकार से अशन्तुष्ट तत्व ही साइबर हमले के सूत्रधार ? अपराधियो की पहचान भी अभी तक नहीं हुई



विकिलिक्स की जानकारियों को पूरी तरह से सबूत या सच तो नहीं माना जा सकता --परंतु उसके अंगुली दिखाने पर हक़ीक़त को जाना जा सकता है | बीबीसी और सीएनएन तथा अल जज़ीरा जैसे टीवी चैनलो से मिली मालूमात से यह तो साफ हो गया है की ट्रम्प प्रशासन की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी के पास यह "”वाइरस था "” | बताया जाता है की पेंटागन ने ही ऐसे घातक हथियार बनवाए थे | जिस से ईरान और सीरिया के तंत्र को बेकार किया जा सके | आज दुनिया के 150 देशो से अधिक इस हमले के शिकार हुए है ,जिनकी सामान्य कारी प्रणाली प्रभावित हुई है | सूत्रो के अनुसार विस्वविद्यालयों और तकनीकी संस्थानो मे स्पर्धा के कारण अश्वेत और गैर श्वेत सफलता से दूर धकेल दिये जाते है | ज्ञान और योग्यता मे बराबरी के बाद जब "”उन्हे लुजर और बेकार कह कर सार्वजनिक प्रताड़ना दी जाती है ----तब सत्ता के प्रति आक्रोश भभक उठता है | चैनलो की चर्चाओ मे इस बात की संभावना व्यक्त की गयी है |

कड़ी प्रतियोगिता के बाद अगर उचित सफलता नहीं मिले -और प्रताड़ना ऊपर से मिले तब युवा मन विद्रोही हो जाता है | जब वह देखता है की बेईमानी अथवा धन या पद के बल पर कम योग्य सम्मान और सफलता पा ले – तब प्रतिहिंसा जाग उठती है -जो सरकार और धन की सत्ता के कंगूरो को येन - केन प्रकारेंण ध्वष्त करने मे जुट जाता है | शायद ऐसा ही कुछ हुआ होगा | जिसने महाबली अमेरिका--रूस और चीन की कम्प्युटर आधारित सेवाओ को ठप कर दि

पेंटागन दुनिया मे भांति - भांति के प्रयोगो के लिए जाना जाता है | वे कीट -पतंगो तथा पशु - पक्षियो और यानहा तक मानवो पर भी प्रयोग किए है --जिनके द्वारा अपने विरोधी या शत्रु को नुकसान पन्हुचाया जा सके | मानव दिमाग को दवाओ और अन्य उपायो से वश मे करने के प्रयोगो की बात विकिलिक्स के अलावा अन्य सूत्रो से भी सार्वजनिक हुई है | अमेरिकी प्रशासन के अलावा वनहा की बहू राष्ट्रीय कार्पोरेशन भी इन कामो मे पेंटागन का हाथ बटाते है | एक तकनीकी एक्सपेर्ट ने यह माना की जिस कंपनी से वाइरस फैलाने के तरक़ीबों पर काम कराया जा रहा था | उसके ही किसी ठेकेदार ने यह तरकीब धन लेकर बेच दिया | अब राष्ट्रीय सुरक्षा जब ठेके पर चलेगी --तब ऐसी समभावनए होगी | लगभग सभी एक्सपेर्ट ने यह साफ कहा है की "”यह आदि है पर अंत नहीं ऐसे हमले आगे भी हो सकते है और फिरौती वसूली जा सकती है |”” यह तो चंबल के डाकुओ द्वरा किए जाने वाले अपहरण और फिरौती की भांति ही है | बस फर्क है तो इतना की दुनिया की कोई भी पुलिस उन लोगो तक पहुँच नहीं पा रही क्योंकि उनकी पहचान भी मालूम नहीं है ??


May 15, 2017

सरकार से समाज सुधार कितना वास्तविक अथवा एक और दावा !!

नर्मदा यात्रा के समापन के अवसर पर एक आलेख ने ध्यान आकर्षित किया ----- जिसमे दावा किया गया था की सरकार और सत्ता समाज सुधार के लिए प्रयासरत है ? इस दावे ने विगत मे हुए समाज सुधारो के इतिहास मे झाकने को मजबूर किया | इस कथन का परीक्षण करने का प्रयास करने का प्रयास इस आलेख के माध्यम से किया है |

समाज सुधार और राष्ट्र को एक साथ जोड़कर अगर देखे तो
हमे देश और सत्ता के दायित्व को भी समझना होगा | लोकतन्त्र मे सत्ता ही राजनीतिक दलो का अभीष्ट होता है | एवं सत्ता और सरकार का दायित्व भी समाज सुधार समाज सुधार नहीं होता वरन शांति और व्यवस्था कायम करना होता है | कानून का राज्य बनाना होता है | सबके लिए शांति स्थापित करना होता है ---क्योंकि ऐसा नहीं होने पर शांति नहीं होती है | विभिन्न देशो मे आंतरिक अशांति का कारण सबके साथ न्याय नहीं होना है | वंही समाज सुधार व्यक्तिगत तौर पर लिया गया एक प्रयास है | भारत मे समाज सुधार निषेध के रूप मे ही किए गए | जब समाज गलतिया कर रहा था या अन्याय कर रहा था तब इन समाज सुधारको ने उन कुरीतियो को खतम करने का प्रयास किया | समाज सुधार बुराइयों को खतम करने और बराबरी का दर्जा हर इंसान को देने का प्रयास हुआ है |

सती प्रथा ऐसी ही एक बुरी परंपरा थी जिसमे स्त्री को /पत्नी को उसकी मर्ज़ी के वीरुध पति की चिता पर उसे जलना होता था | बंगाल मे राजा राम मोहन रॉय ने इस बुराई के खिलाफ ज़ंग शुरू कर दी | उन्होने छेत्र के लोगो को समझाया की यह गलत प्रथा है | इंसान की आज़ादी और महिलाओ के सम्मान के विपरीत है | इसमे सत्ता का कोई योगदान नहीं था | परंतु बंगाल के बुद्धिजीवियों के समाज सुधार के इस आंदोलन का बहुसंख्यक परंपरावादियों ने बहुत विरोध किया | परंतु तत्कालीन गवर्नर जेनरल विलियम बेंटिक ने सती प्रथा को गैर कानूनी घोषित करते हुए इसे अपराध करार दिया | यह सुधार भी व्यक्तिगत था सत्ता का नहीं |

ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने शिक्षा को सभी मनुष्यो का अधिकार बताया और जाति का भेद को अमान्य किया | उनका भी तत्कालीन समय मे विरोध हुआ | उन्होने स्त्री - पुरुष सभी केशिक्षा के अधिकार की शुरुआत की | महाराष्ट्र मे ज्योतिबा फुले ने भी स्त्री शिक्षा और छूआछूत के वीरुध ज़ंग छेड़ी | यह भी निजी तौर का ही प्रयास था |महात्मा गांधी ने भी अछूत आंदोलन शुरू कर दलितो को अपने बराबर बैठाया | बाद मे इन प्रयासो की सारथकता को सरकार // राज्य //देश की सत्ता ने स्वीकार किया | वेदिक धर्म के मानने वालो मे स्त्री की स्थिति गैरबराबरी की थी | विरासत और अधिकारो को लेकर लड़के और लड़की की स्थिति बराबर नहीं थी | पंडित जवाहर लाल नेहरू ने काँग्रेस पार्टी के अनेक सांसदो और नेताओ के विरोध के बावजूद हिन्दू कोड अधिनियम बनवाया | परंतु यह भी निजी प्रयासो पर सत्ता द्वरा लगाई गयी मुहर ही थी | तत्कालीन स्वामी करपात्रि जी ने आईएसडी कानून को धर्म मे राज्य का हस्तछेप बताया था | आठ प्रकार के वेदिक विवाहो को हटा कर विवाह की एक ही परंपरा को कानूनी मान्य किया | इस प्रयास मे नेहरू और तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी मे भी मतभेद था उन्होने बिल को एक बार वापस कर दिया था | बाद मे उन्हे समझबूझा कर राज़ी किया गया |

स्त्री -पुरुष अनुपात मे असंतुलन से उपजी स्थिति के लिए देश मे बेटी बचाओ आंदोलन और लिंग निर्धारण को अपराध घोषित करना भी समाज सुधार माना जाएगा | संविधान मे आरक्षण भी इसी दिशा मे एक कदम है | जिसका विरोध आज भी सवर्णो द्वारा किया जा रहा है |

सरकार के इन सुधारो मे सत्ता की शक्ति है ---जबकि सुधार नितांत स्वतंत्र प्रयास होता है | उसमे जन और धन दोनों स्वेक्षा से आते है |जबकि सरकार धन और सत्ता के बल पर कानून बनाती है | इसलिए सुधार समाज के द्वारा किया गया प्रयास है और सरकार द्वारा किए गए प्रयास सरकारी योजनाओ की भांति '''बोझिल दायित्व होते है '””””

May 14, 2017

कौशांबी और रोहतक मे सामूहिक बलात्कार ने निरभ्या कांड याद दिलाया
कितना अभागा है मई का महिना जिसमे 5 तारीख को उच्चतम न्यायालय ने 2012 मे दिल्ली की सडको पर हुए सामूहिक बलात्कार की दरिंदगी के पांचों अपराधियो की क्रूरता को ध्यान मे रखते हुए चार को फांसी की सज़ा दी थी | पांचवा अभियुक्त नाबालिग होने के कारण बच गया | इस घटना ने ना केवल देश और विदेश मे राष्ट्र की प्रतिस्ठा पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया था |
देश की शांति – व्यवस्था पर बदनुमा दाग बन के रह गए इस मामले ने एक बार फिर याद दिला दी है ----- 11 मई को उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले के थाना सिंघवल के पूरा नामक गाव मे 20 वर्षीय आशा पटेल की उसी के घर मे कुछ दरिंदों ने घुस कर हाथ -पैर बांध कर और मुंह मे कपड़ा ठूंस कर उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया | एवं पहचाने जाने के दर से उन लोगो ने म्राटका की आंखे फोड़ दी और उसको नंगा कर के आग लगा दी | पुलिस के अनुसार आशा की शादी के दस दिन बाद 7 मई को मायके आई थी | वह घर के अंदर सो रही थी और उसकी माता बाहर तथा पिता छेडु पटेल खेत पर सोने चले गए थे | सुबह दरवाजा नहीं खुलने पर वे पीछे से घर मे दाखिल हुए तो उन्होने नंगी आशा की लाश को सुलगते हुए देखा | शायद आदित्यनाथ योगी के मुख्य मंत्री बनने के बाद यह पहला निरभ्या जैसा हादसा हुआ है |

वनही 9 मई को हरियाणा के रोहतक जिले के औद्यगिक छेत्र मे एक कुचली हुई लाश मिली जिसके बदन पर कपड़े नहीं थे | पहली नज़र मे लगता था की आंख फोड़ कर गुप्तांग मे नुकीला औज़ार डाल कर उसे बीभत्स बना दिया गया था | लड़की का नाम उजागर नहीं किया गया है परंतु उसका परिवार सोनीपत मे रहता है | उसके परिवार मे सिर्फ माँ और भाई है -,, उन्होने गुमशुडगी की रिपोर्ट 8 तारीख को लिखाई थी | लड़की रोहतक की एक दावा बनाने वाली कंपनी मे काम करती थी | म्राटका की माँ ने बताया की पिछले एक साल से उनका पड़ोसी लड़की से शादी करने पर ज़ोर दे रहा था | घटना के दो दिन पहले वह अपने पाँच - छह दोस्तो के साथ घर पर आ कर ज़िद्द करने लगा | परंतु लड़की के इंकार करने पर उसने देख लेने की धम्की दी थी | उन्होने हत्या का शक पड़ोसी पर ही लगाया है | उसकी माँ ने कहा की जैसे निरभ्या के हत्यारो को फांसी की सज़ा मिली है वैसे ही उसकी लड़की के हत्यारो को भी मिले |

निरभ्या कांड मे शीला दीक्षित की सरकारको वर्तमान सत्ताधारी पार्टी के नेताओ ने ना केवल इस्तीफा मांगा था वरना सरकार को बरख़ाष्त करने के लिए राष्ट्रपति से मिलने भी गए थे | परंतु आज वही इस्तीफा मागने का जज़बा क्या सातरूद दल मे है ?? संयोग ही है की उत्तर प्रदेश और हरयाणा मे मे भारतीय जनता पार्टी की ही सरकार है | उनके शासन मे निरभाया कांड का दुहराया जाना कितना उचित होगा ??
शासन के दुहरे मान दंड से जनमानस मे वह विश्वास खतम हो जाएगा ----जिसके आधार पर इन दलो को मतदाता ने समर्थन दिया |

May 13, 2017

क्यो दीनदयाल रसोई योजना दान दाताओ के लिए तरस रही है ?

निर्धन और कमजोर वर्ग के लिए पाँच रुपये मे भोजन सुलभ कराने की इस योजना ने एक महीने मे ही डैम तोड़ना शुरू कर दिया है ? प्रारम्भ मे ही यह कल्पना सरकार द्वरा की गयी थी की हर शहर मे कुछ ऐसे "”दानवीर "” है जो इस परोपकारी योजना मे धन अथवा अनाज आदि देकर "”रसोई की आंच को धीमा नहीं होने देंगे "”” | परंतु ऐसा हो नहीं रहा | इसका कारण शाद यह है की व्यापारी वर्ग इस योजना के लिए आगे नहीं आ रहा है | उद्योगपतियों को तो इस योजना का ठीक से पता भी नहीं मालूम है | एक ने बताया की अपने करमचारियों को सस्ता नाश्ता सुलभ कराणा ही हमे मुश्किल हो रहा है=हम सरकार की कन्हा से मदद करे !!

जो हालत इन रसोई घरो की हो रही है --वह गरीब की रसोई की ही भांति है --मतलब यह की कभी आता कम तो कभी दाल और कभी सब्जी गायब है | कुछ -कुछ वैसा ही इन रसोइयो का हो रहा है | सरकार बहुत ज़ोर - शोर से अफसरो के कहने पर योजना तो शुरू कर देती है , पर उसके लिए वित्तीय संसाधन और किसी को जिम्मेदार बनाने की पैबदी बंदोबस्त कर देती है जो जरा सा ज़ोर पड़ा की फट कर हालत बयान कर देती है | इस योजना के लिए यही दोहा सटीक बैठेगा की "””दीनदयाल विरद सम भारी ---हरहु नाथ मम संकट भारी -------
सत्ता के संरक्षण मे शक्ति का अहंकार बनाम जिगित्सा कंपनी

प्रदेश मे स्वास्थ्य की सेवाये सुलभ कराने के लिए मरीजो को तत्काल अस्पताल पहुँचने के लिए जिस कंपनी को सरकार ने ठेका दिया वह श्रम कानूनों को ठेंगा दिखा रही है | जी हाँ जिगित्सा नामक यह कंपनी अपने वहाँ चालको से बारह घंटे की ड्यूटी लेने पर ज़िद्द पकड़ ली है | हालांकि लगभग एक माह से ड्राईवर और ईमरजेंसी मेडिकल टेकनीशियन जो की गिनती मे एक हज़ार से ज्यादा है काम पर नहीं आ रहे है | उप श्रम आयुक्त ने हड़ताली कर्मियों की याचिका पर कंपनी को आदेश दिया है की वह आठ घंटे से अधिक की ड्यूटी नहीं ले सकती | परंतु कंपनी के प्रबंध निदेशक नरेश जैन का कहना है की वे मोटर विहकिल कानून के अनुसार वे बारह घंटे की ही पाली रखेंगे | उन्होने उप श्रम आयुक्त के फैसले को नहीं माना है |

पिंगल अर्थात कविता के व्याकरण मे जिन "””भाव"” की व्याख्या की गयी है =----उनमे एक है "””जुगुप्सा '' जिसका अर्थ है अत्यधिक अप्रिय द्र्श्य ,,कुछ वैसा ही सेवा के नाम पर व्यापार करने वाली कंपनी कर रही है | श्री जैन ने दावाव किया है की उन्होने हाजरों लोगो को अपनी शर्तो पर काम करने के लिए भर्ती कर लिया है | स्वस्थ्य मंत्री रुष्टम सिंह ने भी कंपनी को जल्दी से जल्दी सेवाये चालू करने और हरताली कर्मियों से बात करने के निर्देश दिये है | परंतु कंपनी को उनकी परवाह नहीं है |

आखिर ऐसा क्यो हो रहा है ? जाबा श्रम कानूनों का खुला उल्लंघन हो रहा है तब सरकार क्यो चुप बैठी है ? कहते है की कंपनी गुजरात की है और इसे एक केन्द्रीय मंत्री का वरदान प्रापत है | जो भी हो सरकार की साख इस मामले मे गिरती जा रही है |

May 12, 2017

चुनावी आरोपो की सच्चाई बनाम हिलेरी पर गोपनीय ईमेल का मामला

  1. अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव के दौरान ट्रम्प ने डेमोक्रेट उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन द्वारा बीस हज़ार गोपनीय ईमेल को निजी नेटवर्क पर भेजने का दोषी बताते हुए , निर्वाचित होने पर जेल भेजने की धम्की दी थी | परंतु एफ़बीआई डाइरेक्टर जेम्स कोमी ने प्रैस वार्ता मे खुलाषा किया की सभी मेल मे मात्र ग्यारह ऐसे संदेश थे जिनहे "”गोपनीय "” कहा जा सकता है , परंतु इन संदेश मे भी नियम के अनुसार उनके ऊपर "”गोपनीय "” नहीं लिखा गया था | इस खुलासे से बौखलाए ट्रम्प ने 48 घंटे के बाद झटपट बर्खास्त कर दिया | वह भी जब वे लास एंजेल्स मे दौरा कर रहे थे | तब उन्हे टीवी समाचारो से पता चला की उन्हे निकाल दिया गया है |

प्रैस मे इस निर्णय से काफी हलचल हुई – यह अनुमान लगाया गया की राष्ट्रपति ट्रम्प के चुनाव प्रचार के सदस्यो की रूस से संबंधो की जांच कर रहे कोमी ने कांग्रेस की छानबीन समिति के सामने हलफनामा देकर स्वीकार किया था की एफ़बीआई ट्रम्प के सहयोगीयो के रूस से संबंधो की जांच की जा रही है | उधर राष्ट्रपति ने कोमी को हटाने का कारण उनके द्वारा "” ठीक से काम नहीं किया जाना बताया "” जिसे उनही के पार्टी के सेनेटर् भी मानने को तैयार नहीं है | उन्होने अपनी निर्दोषिता साबित करने के लिए कहा की "”कोमी ने स्वयं डिनर पर उनसे कहा था की उनके वीरुध कोई जांच नहीं चल रही है | एक टीवी इंटरव्यू मे उन्होने स्वीकार किया की उन्होने पूछा था की क्या उनके वीरुध जांच चल रही है "” |

इन सभी खुलासो के बाद सीनेट की इंटेलिजेंस समिति ने कोमी को बुला कर उनका पक्ष सुनने का फैसला लिया | सीनेट के इस फैसले से बौखलाए हुए राष्ट्रपति ने ट्वीट कर के कहा की "”” अगर कोमी के पास उनके साथ हुए वार्तालाप की कोई रिकॉर्डिंग है -तो वह उनके लिए अछ्छा नहीं होगा"” इस बयान को न्याय की राह मे रुकावट के रूप देखा जा रहा है | जब किसी राष्ट्र का मुखिया ही न्याय की राह मे अड़ंगे लगाए तब यह तो निश्चित है की वह "”कुछ छिपाना चाहता है "” | आम अमेरिकी का विश्वास है की ट्रम्प ने रूस से मिल कर हिलेरी क्लिंटन को पराजित करने के लिए षड्यंत्र किया था | सबूत के तौर पर सुरक्षा सलाहकार जनरल माइकल फ्लिन्न को भी अपने रूस के साथ के संबंधो को छुपाने के आरोप मे पद से हटाया गया था |

अब इन सब घटना क्रम का फलित क्या होता है ---वह भविष्य के गर्भ मे है | परंतु कोमी को निकालने के बाद रूस से ट्रम्प के संबंधो को उजागर करने का काम अब सीनेट की समिति करेगी | क्योंकि रिपुब्लिकन सदस्यो को अमेरिकी नागरिकों के सवालो का उत्तर देना भारी पड रहा है |


इस घटना क्रम को किसी भी लोकतान्त्रिक देश के निर्वाचन मे देखा जा सकता है | फ्रांस मे भी राष्ट्रपति के चुनावो के दौरान रूस के हैकरो ने राष्ट्रपति माइक्रोन के वीरुध काफी "”विष वामन "” किया था | परंतु वनहा के मतदाताओ ने अमेरिकी वोटरो से अलग इस प्रायोजित प्रचार को "”नकार दिया "” | अमेरिका मे फ्रांस के राजदूत ने एक न्यूज़ चैनल को दिये गए बयान मे कहा की "”फ्रांस के वॉटर अमेरिकी वोटरो से ज्यादा समझदार साबित हुए है "” उनके कहने का अर्थ था की महिला उम्मीदवार ली पेनसे की रूसी राष्ट्रपति पुतिन से चुनाव के कुछ दिन पूर्व मास्को मे मुलाक़ात को हैकिंग का सूत्र माना जा रहा है |उन्होने यूरोप के राष्ट्रो ब्रिटेन और जर्मनी को रूस की इस हरकत से सतर्क रहने की सलाह दी| क्योंकि ब्रिटेन मे संसदीय चुनाव हो रहे है | और जर्मनी मे अगले साल होने वाले है |


मीडिया के प्रचार और साइबर हैकिंग से चुनावो को किस प्रकार उल्टा जा सकता है और जनता की आवाज को झुठलाया जा सकता है इस सब से यही साबित होता है | भारत मे इस समय ईवीएम मशीनों की विसवासनीयता संदिग्ध हो चुकी है | विरोधी दल बैलट द्वारा चुनाव करने की मांग पर आड़े है |

May 3, 2017

  पार्टी नशा  और परिणाम -साथी की मौत पर हँसती युवा पीड़ी

हाल ही मे दो घटनाओ ने विचलित करने का काम किया है | इसमे एक घटना राष्ट्रीय मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय प्रद्योगिकी संस्थान की है जनहा स्विमिंग पूल के किनारे शराब की पार्टी कर रहे फाइनल इयर के छात्रों मे से एक अभय आनंद की पूल मे डूब जाने से मौत हो गयी | जब पार्टी कर रहे छात्रों को संस्थान की प्राकटोरियल बोर्ड के सामने बुलाया गया --तब उन्हे साथी की मौत पर कोई शोक या अफसोस नहीं था !!उनका बयान था की ऐसी पार्टी तो कैम्पस मे होती रहती है यह कौन से नयी बात है ! यह जवाब आम आदमी को हिला देने के लिए काफी है ! जब पाँच साल तक छात्रावास और कालेज मे दिन - रात रहने वाले ऐसा भी जवाब दे सकते है यह सोच नितांत भोगवादी सभ्यता का ही परिणाम है ! अभय आनंद अपने अध्यापक पिता की एकमात्र संतान थे | जिन 14 छात्रों को चार मार्च को हुई इस दुर्घटना मे लिप्त पाया गया उन पर बोर्ड ने 50,000 रुपए प्रति छात्र जुर्माना किया , तथा उन्हे

छात्रावास से निकाल दिया गया है , जिन छात्रों का कोर्स पूरा नहीं हुआ है उन्हे भी हॉस्टल खाली करने का आदेश दिया गया है | सबसे शरम की बात यह है की इस घटना मे स्टूडेंट काउंसिल के प्रेसिडेंट और सेक्रेटरी भी शामिल थे |

अभय आनंद की मौत को उसके साथियो ने दुर्घटना का रूप देने की कोशिस की ,परंतु उसके पिता ने मोबाइल फोन की फोटो से यह साबित किया की इन 14 छात्रों की हरकत की वजह से उनके लड़के की असामयिक मौत हुई | एक माह तक संस्थान की चली जांच मे जब दोषी छात्रों को उन फोटो को दिखाया गया जिनमे शराब की बोतल लेकर नाच रहे है तब भी काउंसिल के सचिव हंस रहे थे ! उनको तनिक भी पछतावा नहीं था |
इस घटना से संस्थान के अनुशासन की ढिलाइ और वनहा आरएच रहे छात्र और छात्राओ की हालत का पता चलता है | देश के इन श्रेष्ठ संस्थानो मे जनहा भर्ती के लिए दिन - रात एक करना पड़ता है , वनहा कितनी बदइंतजामी और लापरवाही है | लड़को को दंड देने से ही इस घटना की इतिश्री नहीं हो जाती | इस संस्थान के अध्यापक वर्ग को भी ज़िम्मेदारी नियत की जानी चाहिए | क्योंकि अभिभावक अपने पुत्र और पुत्रियों को संस्थान की सुरक्षा और ज़िम्मेदारी पर भेजते है | परंतु यनहा इस तरह का व्यवहार मिलता है | इस से छात्रों की स्वार्थपरता और आत्ममुग्धता तो विचलित कर देने वाली है !
दूसरी घटना इटारसी की है जनहा बारहवि क्लास की छात्रा से बलात्कार करने के बाद पठार से मार कर हत्या करने वाले अभिलाष दूधमल को जब सत्र न्यायाधीश ने मौत होने तक जेल मे रहने की सज़ा सुनाई ,तब अपराधी के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी | उल्टे उसस्ने अपनी माता को आसवासन दिया की छह माह मे बाहर आ जाऊंगा ! कितना बड़ा तमाचा होगा हमारी न्याया व्यवस्था पर ! जिसमे अपराधी ऐसा कह रहा है |
इन दोनों घटनाओ से यह सिद्ध होता है की संवेदनशीलता - या कानून का डर अपराधी और मुंहजोर लोगो के लिए नहीं है | सोचने की बात है की की हम किस समय मे रह रहे है जब भारतीय मूल्यो की धाज़्जीया उद रही है और हम धरम और संसक्राति का नारा लगा रहे है ?

May 2, 2017

फैसले मे नियम देखना होगा या नीयत ??
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्याधिपति भोसले ने लखनऊ के ज़िला जज मिश्रा को इसलिए निलंबित कर दिया क्योंकि उन्होने अखिलेश मंत्रिमंडल के सदस्य गायत्री प्रजापति
को बलात्कार के मामले मे जमानत दी थी | संविधान मे उच्च न्यायालयों को अधीनस्थ अदालतों के कामकाज पर निगरानी का अधिकार दिया है | परंतु अदालती निर्णयो के आधार पर
किसी भी न्यायाधीश को निलंबित करने का अधिकार शायद इस डायरे के तहत नहीं आता है |
क्योंकि निचली अदालतों के फैसलो को "”स्वतः अथवा अपील मे सुनने का अधिकार है ,जिसमे वह अपने समझ से फैसले को बरकरार अथवा उलट सकता है | “” प्रजापति के मामले मे भी उच्च न्यायालय ने ज़िला जज के फैसले को रद्द करते हुए सीबीआई की याचिका पर अपना निर्णय दिया "”
जज मिश्रा का निलंबन उनके अवकाश ग्रहण करने के 24 घंटे पूर्व आया !

इस मामले मे शायद उच्च न्यायालय ने अपनी सीमाओ का और संवैधानिक व्यस्थाओ का ख्याल नहीं रखा | अव्वल तो जमानत और स्थगन के आदेश आम तौर पर एक लाइन के हुआ करते है "” HEARD THE COUNSALS OF BOTH THE SIDE , BAIL GRANTED OR HEARD THE COUNSALS FOUND THAT STAY IS APPROPRIATE ऐसे निर्णयो मे पीठासीन अधिकारी का स्वविवेक ही अंतिम होता है | उच्च न्यायालय अथवा उच्चतम न्यायालय के फैसले भी कई बार सार्वजनिक छेत्र मे विवाद का मुद्दा रहे है | उच्च न्यायालय के अनेक मामलो मे उच्चतम न्यायालय ने उनके फैसले को गलत और विधि सम्मत नहीं मानते हुए निर्णयो को उलट दिया है | परंतु इस कारण संबन्धित न्यायधीश को न तो कोई निलंबन किया गया अथवा ना ही उनकी नीयत पर शंका व्यक्त की गयी |

चलिये एक अनुमान लगते है की जज मिश्रा यदि इस "” प्रशासनिक आदेश को उच्चतम न्यायालय "”मे चुनौती देते है और वनहा जुस्टिस भोसले के आदेश को अवैधानिक करार दिया जाता है तब क्या स्थिति होगी ? क्या उस निर्णय को यह मान लिया जाए की मुख्य न्यायाधीश ने मौजूदा सत्तारूढ दल को संतुष्ट करने के लिए यह कदम लिया है ?? ऐसा कहना वांछित नहीं होगा ,परंतु वर्तमान शाका के माहौल मे आम नागरिक के मन मे कई प्रकार के प्रश्न आएंगे | ऐसा ही तब हुआ था जब उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने तत्कालीन कांग्रेस्स की रावत सरकार को बरख़ाष्त कर राष्ट्रपति शासन लगाया था | तब उच्च न्यायालय ने बहुमत का फैसला विधानसभा मे अदालत के प्रतिनिधि की निगरानी मे कराये जाने का आदेश दिया था | तब केंद्र और बीजेपी के अनेक मंत्रियो और नेताओ ने अदालतों को शासकीय मामलो मे दखलंदाज़ी नहीं करने की सलाह दी थी | यानहा तक दुष्प्रचार किया गया की मुख्य न्यायाधिपति ईसाई है इसलिए वे केन्द्रीय सरकार के वीरुध है | यद्यपि बाद मे उच्चतम न्यायालय ने भी जस्टिस जोसफ की खंड पीठ को वैध और संविधान सम्मत करार दिया था |फलस्वरूप राष्ट्रपति शासन हटा कर विश्वास मत पर मतदान हुआ और रावत सरकार को बहुमत मिला |
इस मामले मे जिस जल्दबाज़ी मे फैसला लिया गया वह कुछ ज्यादा ही तीव्र गति से लिया गया है | इस समय देश मे न्यायपालिका की साख पर प्रश्न चिन्ह लग रहे है सवाल उठाए जा रहे है ,की न्याया सिर्फ शक्तिशाली और धनवानों को ही मिलता है | देश के दो प्रधान न्यायधीश
सार्वजनिक मंचो से ऐसी बाते कह चुके है | अभी तक उच्च और उच्चतम न्यायालय मे नियुक्ति मे सरकार की दखलंदाज़ी को शीर्ष अदालत का कालेजियम इने झटक दिया है | उन्होने केंद्र की इस मांग को नामंज़ूर कर दिया है की नियुक्ति पाने वाले व्यक्तियों की सुरक्षा जांच के उपरांत ही उसे नियुक्त किया जाये | इसका सीधा सा मतलब है की सरकार का विरोध राष्ट्र विरोध है | जिसे प्रधान न्यायाधीशो ने अपमांजंक निरूपित किया है | यह सही भी है जज नियुक्त होने वाले की निसपक्षता अधिक जरूरी है ना की किसी विचारधारा का होने की |
बंगाल उच्च न्यायालय के जज करनन साहब ने वैसे ही सार्वजनिक रूप से जजो की प्रतिष्ठा को विवादित बना दिया है | सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने उनकी मानसिक स्थिति की जांच के आदेश दिये --तो उन्होने सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश समेत सात जजो की मेडिकला जांच कराये जाने का फैसला जारी कर दिया | अब ऐसे परिणाम जो भी हो परंतु साख तो न्यायपालिका
की ही गिरेगी ! अतः ऐसी अप्रिय स्थिति से बचने के लिए सतर्क रहना होगा |