क्यो
दीनदयाल रसोई योजना दान दाताओ
के लिए तरस रही है ?
निर्धन
और कमजोर वर्ग के लिए पाँच
रुपये मे भोजन सुलभ कराने की
इस योजना ने एक महीने मे ही
डैम तोड़ना शुरू कर दिया है ?
प्रारम्भ
मे ही यह कल्पना सरकार द्वरा
की गयी थी की हर शहर मे कुछ ऐसे
"”दानवीर
"”
है
जो इस परोपकारी योजना मे धन
अथवा अनाज आदि देकर "”रसोई
की आंच को धीमा नहीं होने देंगे
"””
| परंतु
ऐसा हो नहीं रहा |
इसका
कारण शाद यह है की व्यापारी
वर्ग इस योजना के लिए आगे नहीं
आ रहा है |
उद्योगपतियों
को तो इस योजना का ठीक से पता
भी नहीं मालूम है |
एक
ने बताया की अपने करमचारियों
को सस्ता नाश्ता सुलभ कराणा
ही हमे मुश्किल हो रहा है=हम
सरकार की कन्हा से मदद करे !!
जो
हालत इन रसोई घरो की हो रही
है --वह
गरीब की रसोई की ही भांति है
--मतलब
यह की कभी आता कम तो कभी दाल
और कभी सब्जी गायब है |
कुछ
-कुछ
वैसा ही इन रसोइयो का हो रहा
है |
सरकार
बहुत ज़ोर -
शोर
से अफसरो के कहने पर योजना तो
शुरू कर देती है ,
पर
उसके लिए वित्तीय संसाधन और
किसी को जिम्मेदार बनाने की
पैबदी बंदोबस्त
कर देती है जो जरा सा ज़ोर पड़ा
की फट कर हालत बयान कर देती
है |
इस
योजना के लिए यही दोहा सटीक
बैठेगा की "””दीनदयाल
विरद सम भारी ---हरहु
नाथ मम संकट भारी -------
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