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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jan 29, 2023

 

सरकार के वादे और -अदालत के हुकुम के बाद भी ,क्या नफरत का माहौल  थम रहा है ?

 

                    सुप्रीम कोर्ट की खंड पीठ के जुस्टिस जोसेफ और उनके साथी के  साफ निर्देशों के बाद – की पुलिस को  नफरत फैलाने  वाले भाषण  का “संज्ञान “ खुद लेना चाहिए और कारवाई करनी चाहिए , के बाद भी    देश में  धरम और -जातीय उन्माद  को फैलाने वाले  भाषण  और नारे माहौल में गूंज रहे हैं | आज भी हरिद्वार की संसद में हिन्दुओ से हथियार उठा कर विधर्मियों का नाश करने  वाले लोगो के को हिरासत में लेकर अदालत में पेश नहीं किया | उत्तरा खंड  की सरकार बस  अदालत को आश्वशन देती रही हैं |  इस मामले में एक व्यक्ति को बंदी बने गया जिसने इस्लाम धरम त्याग कर हिन्दू धरम  अपनाया था | धरम परिवर्तन पर हल्ला मचने वाले  खुद के कर्मो को नहीं देखते हैं | लोकसभा चुनावो की  तारीख के निकट आने की ध्वनि  जगह – जगह  कथाओ और धार्मिक  प्रवचनों  में ,जिस प्रकार के उत्तेजक और भड़काऊ  भाषण  और  घोषनाए की जा रही हैं , वे हमारे प्रजातांत्रिक  ढांचे के लिए  खतरे की घंटी हैं !

                              इन कथाओ और प्रवचनों में  बस एक बात  पर ज़ोर हैं की  राम और कृष्ण की धरती में  किसी अन्य धरम  के अनुयायियों  को दोयम  दर्जा  ही लेना होगा |  जय जय श्री राम  के नारे  धरम से ज्यादा  भीड़  की दूषित मानसिकता को ही प्रदर्शित कर रहे हैं |  क्यूंकी  सिखो का

“”जो बोले सो निहाल -सत श्री अकाल “ केवल  गुरुद्वारो  में या संगत में ही गूँजते हैं | पर उनके  नारे किसी को  निशाने पर नहीं रखते | अथवा जैन मंदिरो में  “जय जिनेन्द्र” पूरी तरह से धरम भीरु भक्तो की वाणी ही होती है | परंतु  आटो में लाउड स्पीकर  लगा कर  घूम घूम कर जय जय श्री राम का नारा  तो धरम का जय घोष से ज्यादा  आतंकित करने वाला लगता हैं |  जिन लोगो को मस्जिद की अज़ान  से  आपति हैं – वे खुद जब  जय जय श्री राम  का नारा लगते है , तब वे अपनी आपति के आधार कारण को खो देते हैं |

       तथाकथित हिन्दू धरम की संसद  के प्रयाग में होने वाली बैठक के पूर्व  -लीव इन रिलेशनशिप , गे मैरिज  पर तुरंत अदालती फैसलो पर रोक लगाने की मांग की गयी थी | परंतु  वह टांय टांय फिस्स हो गयी |  बीजेपी  के एक केंद्रीय मंत्री जो बिहार से संबंध रखते हैं -उन्होने तो एक सार्वजनिक बयान में  सेम सेक्स मैरिज  पर टिप्पणी करते हुए कहा की सुप्रीम कोर्ट  के दो या तीन जज ऐसे मामलो पर फैसला नहीं देसकते हैं , क्यूंकी यह हमारी  आस्थाओ के विपरीत हैं !  जबकि ऐसे विवाह को सुप्रीम कोर्ट  ने “” नाजायज “” नहीं माना हैं |  वनही बीजेपी के सांसद सुशील मोदी ने  अदालतों में  गरमियो और सरदियों के अवकाश को प्रतिबंधित किये जाने की मांग की |  उनसे एक सवाल हैं की  संसद के   500 से अधिक सदस्य  साल में मात्र  40 से -50 दिन ही काम करते हैं ----परंतु  वे वेतन और भत्ता  तो 12 माह का लेते हैं ! जो खुद अपना काम ठीक से नहीं कर पाते  ---उन्हे दूसरे निकाय को उपदेश देने का क्या अधिकार है ?

                                             राज्य  सरकारो  द्वरा आजकल अपने नागरिकों  को  धार्मिक यात्रा  कराना  लगता हैं प्रथम दायित्व हो गया हैं | मध्य प्रदेश सरकार हो या दिल्ली की केजरीवाल की सरकार हो  सभी  सरकार के पैसे से “”पुण्य”” कमाने  में लग गए हैं !  ऐसे ही माहौल में  सत्तारूद दल  ने उत्तर भारत  में लोकसभा चुनावो की घंटी  बजने के कारण  आजकल  एक नए “” बाबा  का अवतार हुआ हैं --- बागेश्वर महराज़  ! इनहोने नागपूर में अपने प्रवचन  में घोषणा की थी की वे  भक्तो के मन की बात बता सकते हैं , इतना ही नहीं उनकी समस्याओ  का भी समाधान वे बजरंगबली  की कृपा से  हल कर सकते हैं |  भारत ऐसे देश में जनहा लोग चमत्कार को नमसकर करते हैं , वागेश्वर  जी  के प्रवचनों को काहीनलों और गोदी मीडिया के प्रचार के कारण  खूब भीड़  हुई | परंतु  महाराष्ट्र  की अंधश्रद्धा निर्मूलन संस्था ने बागेस्वर जी पर  अंधश्रद्धा  फैलाने का आरोप लगाया और पुलिस में रिपोर्ट भी लिखाई | जिसके बाद बागेश्वर जी रातो रात उसी तरह निकले जैसा कभी  दिल्ली के रामलीला मैदान से भगवधारी व्यापारी रामदेव  भागे थे !  परंतु इस कांड के बाद सत्तरूद संगठन  के समर्थको ने  बाबा को चमत्कारिक  सिद्ध करने के लिए  गोलबंदी की और सोशल मीडिया पर व्हात्सप्प  पर प्रचार शुरू हो गया | परंतु  उनके  चमत्कार की पोल राजस्थान की एक लड़की सुहानी शाह  ने चैनल पर आ कर  दिखाया की वह भी किसी के मन की बात बता सकति है | उसने इस  काम को  ईश्वरीय चमत्कार  नहीं  वरन एक टेक्निक साबित किया | फिर बदरिका आश्रम के शंकारचार्या अविमुक्तनन्द  जी ने कहा की बागेश्वर जी अपने चमत्कार से जोशिमठ के मंदिर के आसपास की दरारे भर दे –तो वे उनका फूलमालाओ से स्वागत करेंगे |  उधर बागेश्वर जी के समर्थन में उनके गुरु  रामभद्रचर्या  जी आ गाये  ,  दिव्यङ्ग स्वामी ने दावा किया की उनका शिष्य  गलत हो ही नहीं सकता , उसके चमत्कारो की शक्ति हैं | 

                                        समाज में अवैज्ञानिक  माहौल  फैला कर धरम भीरु  हिन्दू लोगो को  भयभीत कर समर्थन प्रपात करना ही

Jan 20, 2023

 

कालेजियम की पारदर्शिता 

 सरकार की खुफिया रिपोर्ट का खुलासा  कर दिया सुप्रीम कोर्ट ने !

 

                          विधि मंत्री  किरण ऋजुजु  के प्रधान न्यायाधीश  चंद्रचूड़ को संबोधित  पत्र में  भावी जजो के चाल – चलन  के बारे में  देश की खुफिया एजेंसियो  रॉ  और आई बी  द्वरा जो रिपोर्ट  सिर्फ प्रधान न्यायाधीश  के निजी जानकारी  के लिए   मोदी सरकार द्वरा भेजी  गयी थी ---- सुप्रीम कोर्ट कालेजियम  ने उसे सार्वजनिक करने का साहस पूर्ण फैसला लेकर  देश के सामने  यह  अवसर  दिया है की  प्रबुध लोग और देश के नागरिक विचार करे  की क्या  सरकार की मंशा  केवल ऐसे लोगो को  हाइ कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में  नियुक्त करने की हैं , जो उनकी  बताई  लाइन पर चले !  

                               कालेजियम ने दिल्ली के वकील सौरभ  किरपाल को दिल्ली हाइ कोर्ट का जज नियुक्त करने सिफ़ारिश दुबारा करते हुए उनके नाम को  नियुक्ति देने का आग्रह किया हैं |दूसरे एडवोकेट  सोंशेखर  सुदेरसेन   को मुंबई हाइ कोर्ट  में और  गोधरा अग्निकांड की जांच के लिए तत्कालीन रेलवे मंत्री लालू प्रसाद यादव द्वरा नियुक्त  जांच आयोग के अध्यछ  बैनरजी के पुत्र अमितेश बैनर्जी  को कलकत्ता  हाइ कोर्ट का  जज नियुक्त किए जाने के लिए नाम को दुबारा भेजा हैं |  कालेजियम ने कुल 20 लोगो के नाम  इलाहाबाद , मद्रास और कर्नाटका  हाइ कोर्ट के जज के लिए भेजे हैं | इनमें 17  एडवोकेट है और 3 न्यायिक सेवा के सदस्य हैं |  अब देखना होगा की इस बार मोदी सरकार  अपने राजनीतिक तरकश से कौन सा तीर निकलती हैं |  वैसे  सरकार की खुफिया रिपोर्ट में  दो व्हाट्स अप्प   रिपोर्ट की टिप्पणियॉ का हवाला देकर   मद्रास हाइ कोर्ट के  के लिए नामित जज जॉन साथयेन  को हाइ कोर्ट के न्यायधीश पद के लिए अयोग्य माना था | क्यूंकी एक में  में उन्होने  कुईंट नामक पत्रिका में आए आलेख को  साझा किया था , जिसमें प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के लिए आलोचनात्मक  टिप्पणिया की गयी थी !  एक दूसरे संदेश में उन्होने अनीता नमक लड़की द्वरा नीट की प्रतियोगिता में सफल नहीं हो पाने के कारण आतंहत्या  की घटना पर  उन्होने इसे राजनीतिक  धोखा कहते हुए  “भारत तुम  शरम करो “” लिखा था | आई बी की इस रिपोर्ट को  खारिज करते हुए  कालेजियम ने कहा की हमारी रॉय में वे एक योगी प्रत्याशी है “ |

                        सौरभ किरपाल के मामले में कालेजियम  ने कहा की  उनके साथी स्वीट्जर लैंड  के हैं इससे यह नहीं कहा जा सकता की विदेशी हमसफर होने से वे “”देशहीत  के वीरुध हो सकतेय हैं | कालेजियम का मत था की देश के अनेक उच्च पदो पर बैठे लोगो  के हमसफर विदेशी नागरिक  रहे हैं , इसलिए

आईबी की यह आशंका निर्मूल हैं | जनहा तक उनकी निजी ज़िंदगी की सेक्स लाइफ का सवाल हैं तो इस मामले में विधि मंत्रालय की आपति  निरर्थक हैं |  सुप्रीम कोर्ट द्वरा नवतेज  जौहर मम्म्ले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ साफ कहा की  यौन  संबंधो का चुनाव व्यक्ति  की अपनी प्रतिस्ठा और सम्मान का विषय हैं |  एवं प्रत्येक भारतीय नागरिक को  इसका चुनाव करने का अधिकार हैं | गौर तलब है की दिल्ली हाइ कोर्ट कालेजियम ने  13 अक्तूबर 2017 को   किरपाल का नाम  सुप्रीम कोर्ट कालेजियम को भेजा था | चार बार किरपाल के नाम पर  विधि विभाग ने  किरपाल के विदेशी साथी पर आपति लगते हुए नाम को वापस भेज दिया |  2021 में चीफ़ जौस्टिस रमन्ना  यू यू ललित और खनविलकर के कालेजियम ने भी नाम भेजा  परंतु सरकार ने पुनः लौटा दिया |  

                                     सौरभ किरपाल  को  पाँच  साल  तक नहीं मंजूरी दी विधि विभाग ने और अमितेश बैनरजी के पिता  यू सी बैनजी जो सुप्रैम कोर्ट के जज थे उन्होने   अति विवादित गोधरा कांड की जांच की थी | जिसमे  उन्होने कुछ टिप्पणिया  तत्कालीन सरकार के वीरुध की थी |  कलकत्ता हाइ कोर्ट के दूसरे एडवोकेट साकया सेन के नाम को भी  विधि मंत्रालय ने आपति के साथ वापस भेज दिया |  विधि मंत्रालय को को कड़े शब्दो में कालेजियम ने कहा “”” विधि मंत्रालय के लिए यह ठीक नहीं हैं की वह बार बार भेजे गाये नामो को वापस कर दे  , जिनहे कालेजियम ने सोच – विचार करने के बाद   अग्रसारित किया हैं “”

 

 किरण ऋजुजु का  नया राजनीतिक दांव – मुख्यमंत्रियों  द्वरा  भेजे गए नामो से  सुप्रीम कोर्ट कालेजियम  जजो की नियुक्ति करे !

                            ऋजुजु द्वरा   कालेजियम को नीचा  दिखाने के लिए   जजो की  राष्ट्र भक्ति और उनके चाल चलन में नैतिकता  तथा पारदर्शिता   को लेकर किए गये  एतराज़ को रॉ और आई बी  की रिपोर्ट  से पुख्ता करने की कोशिस को जब सुप्रीम  कोर्ट कालेजियम ने  ना मंजूर  कर दिया , तब उन्होने अब एक नयी चाल खेली हैं |  उन्होने प्रधान न्यायाधीश को लिखे एक पत्र में कहा हैं की , प्रदेश के मुख्य मंत्री द्वरा  भेजे गए नामो से  कालेजियम जजो की नियुक्ति का चयन करे ! 

 1_---इस सुझाव का अर्थ यह हैं की राजनीतिक  लोगो को  हाइ कोर्ट में बैठा दिया जाये , जिससे की वे  अपनी विचारधारा और दल के हितो की न्यायिक रूप से रक्षा करे और मदद  करे !   सवाल यह हैं की ऐसे लोगो की नियत क्या निसपक्ष होगी ? जो किसी दल और नेता विशेस के पिछलग्गू है |  क्यूंकी  विधान सभाए हो अथवा लोकसभा या राज्य सभा  सभी में ऐसे बहुत से सदस्य है –जिनके वीरुध  आपराधिक मामले चल रहे हैं | ना केवल वे पुलिस  द्वरा  थानो में दर्ज़ हैं वरन  अदालतों से भी उन पर निर्णय हो चुके हैं | बहुत से मामलो  मे माननीय सदस्य लोगो के वीरुध सजाये भी सुनाई गयी है ----हाँ  एक परंतुक है यानहा की इन लोगो की सज़ा  6 साल से कम हैं | दूसरा हमारा कानून और विधान कहता हैं की  जब तक इन लोगो को अंतिम अदालत  से  फैसला नहीं हो जाता तब तक ये निरपराध माने जाएंगे ! 

2- देश के  अनेक राज्यो में विधायकों और सांसदो के वीरुध   , मुकदमें  एक विशेस अदालत में चलते हैं | जो  राज्य की राजधानी में बैठती हैं | ईस अदालत में  केवल विधायकों और सांसदो के ही मुकदमे  सुने जाते है | इसलिए यानहा ऐसे मुकदमो की संख्या बहुत कम होती हैं |  अक्सर यह संख्या सैकड़े  से भी कम होती हैं | परंतु  ऐसा देखा गया है की  सत्तारूद दल के सदस्यो  के मामले  अभियोजन द्वरा  लंबे खिंन्चे  जाते हैं | अब यह कैसे होता हैं  , यह अदालतों के जानकार भली प्रकार जानते हैं |

         बॉक्स

                                  उच्च न्यायालय और उच्चतम  न्यायालय  के भावी न्यायाधीशो  के चयन में    देश की सरकार एक ऐसी एजेंसी  का इस्तेमाल करती है  , जिसका  छेत्र  देश के बाहर खुफिया  जानकारी एकत्र करने का हैं | जी हाँ  रॉ अर्थात रिसर्च अँड अनलसिस विंग  का निर्माण  श्रीमति गांधी के समय हुआ

था , जब कुछ बड़े राष्ट्रो  की “”कोप “ द्रष्टि भारत पर थी |  इसके प्रथम निदेशक  काव थे | उन्होने इस शाखा के कार्य छेत्र  और शक्तियों के लिए  एक “चार्टर “” तैयार किया था | वे रॉ में आने से पूर्व  आई बी  में सेवाए दे चुके थे |   एक प्रकार से  इस विंग का गठन  अमेरिकी खुफिया  एजेंसी   सेंट्रल इंटेलिजेन्स  एजेंसी की तर्ज़ पर किया जाना था | परंतु   शायद मोदी सरकार के निजाम में  सब कुछ  सरकार में बैठे दो तीन आदमियो और चार पाँच अफसरो की मर्जी से होता हैं |  विधि मंत्रालय द्व्ररा   कालेजियम  को हाइ कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट  मे नामित किए जाने वाले  जजो की  चाल चलन और चरित्र  की जांच  का काम भी  रॉ से करवाया गया | है ना  अचरज की बात  आखिर  मोदी जी का राज हैं , जो न हो वह भी ...........

 

Jan 17, 2023

 

|सुप्रीम  कोर्ट कालेजियम में पारदर्शिता

 तुम सिफ़ारिश करो –हम नामंज़ूर करेंगे  और  वजह भी  सिर्फ प्रधान न्यायाधीश को  !

             

                       मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट और हाइ कोर्ट के जजो की नियुक्ति की प्रक्रिया में  शामिल होना चाहती  है , परंतु उसकी नियत  ना तो ईमानदार हैं और ना ही पारदर्शी  ,जैसा की वह आरोप लगा रही हैं !  इसके उलट  केंद्र मोदी सरकार  खुद ही पारदर्शी  कदम नहीं सुझा रही हैं |  प्रधान न्यायधीश  चंद्रचूड़  को संबोधित पत्र में  विधि मंत्री किरण ऋजुजु ने   लिखा हैं की  कालेजियम द्वरा अनुमोदित नामो की जांच  सरकार करेगी { जैसा की अभी भी करती है } | एवं  सुझाए गये नाम पर सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा  के लिए खतरे  के आधार पर  उस नाम को नामंज़ूर किया जाएगा !  एवं  कारण के दस्तावेज़  सिर्फ प्रधान न्यायाधीश  को ही दिखाये जाएँगे , एवं वे ऐसे  कारण और सबूतो  को अपने सहयोगी जजो को ना तो बताएँगे  और ना ही साझा करेंगे !

 

           तो यह है  मोदी सरकार की कालेजियम से   पारदर्शिता  का दावा :-  जब  प्रधान न्यायधीश  कालेजियम के चार सहयोगी जजो  को  “ प्रस्तावित नाम को  सरकार द्वरा नामंज़ूर किए जाने का कारण  ना बता सके तब  उनके सहयोगी  जज  कैसे अपने वारिस्ठ सहयोगी के निर्णय को उचित मान पाएंगे !

 

                     तो यह हैं केंद्र सरकार की मानसिकता ----की हम तय करेंगे की  राष्ट्रभक्त  या देशभक्त  कौन है ? हाई कोर्ट मे जज की नियुक्ति और सुप्रीम कोर्ट में  प्रोन्नति  के जिन भी सज्जन को प्रस्तावित  किया जाता है ---उनकी  देश भक्ति  या राष्ट्र भक्ति  पर सवाल उठाना  राजनीतिक “जुन्टा” के जैसा ही काम हो सकता है | जैसा की पड़ोसी देश में वनहा की चुनी राष्ट्रपति के समान पद पर चुनी गयी नेता  आंग  सांग सु ची  को देसद्रोही  आरोपित किया गया हैं |  यह  आरोप नरेंद्र मोदी जी के कार्यकाल के प्रथम वर्षो में  बहुत चला  , जब  राजनीतिक विरोधियो  को अथवा सत्ताधारी दल से असहमति रखने वाले  विचारको – समाजसेवकों और  पत्रकारो ,लेखको  पर यह लेबल  लगा कर उनके खिलाफ दुसप्रचार  और परेशान किया जाता रहा हैं | परंतु गुजरते समय के साथ   सत्ता के विरोधियो और सरकार से असहमति रखने वालो ने भी  इन कारवाइयों का जवाब  देना सीख लिया | यही कारण है की  सत्तारूद दल हिमांचल  और  दिल्ली नगर निगम म  सत्ता  खो बैठा |

                                          अब सुझाए नामो को देश के लिए खतरा  बताने के पीछे  कारण हैं की सरकार इन नामो  के कानून के ज्ञान और  न्याया  करने की  छंमता को जाचने की  योग्यता सरकार के ढांचे में नहीं हैं | यनहा तक की  सरकार में अटार्नी  जनरल  और सॉलिसीटर  जनरल  आदि की नियुक्तीय भी – उन सज्जनों की सत्ता के शीर्ष  पर बैठे लोगो के आधार  पर होती हैं | ना की किसी  अनुभव  और देश भक्ति पर !  क्यूंकी  सरकार को अपने किए गए  नियुक्तीया  तो “”राष्ट्रभक्त “” की ही होंगी , क्यूंकी उस पर सत्ता की मुहर जो लगी हैं !  जबकि  हाइ कोर्ट में नियुक्ति  दो तरह से होती हैं ---- पहला राज्य की न्यायिक  सेवाओ के सेवारत   जजो  और दूसरा  बार काउंसिल  के सदस्यो के अनुभव  और उनकी  योग्यता  पर नामित किए गए नामो से चयनित किया जाता हैं |  दशको  तक सार्वजनिक जीवन  में रहे ऐसे लोग  “”राष्ट्र की सुरक्षा के लिए कैसे खतरा हो सकते है “” |

             हाँ सरकार की नजरों में  भीमा कोरेगाव  के  आरोपी  इसलिए  “”राष्ट्र की सुरक्षा  के लिए खतरा  बन गए ---क्यूंकी वे आदिवासियो को  उनके अधिकारो  के बारे में बताते हैं | एक महिला सुधा जी सामाजिक कार्यकर्ता हैं | झारखंड के एक 90 वर्षीय पादरी को भी  राष्ट्र के लिए खतरा बता कर  जेल में दाल रखा हैं | उनका कसुर बस इतना हैं की वे  राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और बीजेपी  की भाषा  और नारो का विरोध करते हैं |  आज चार साल हो जाने के बाद भी  इन लोगो के वीरुध अदालत में  मुकदमा शुरू नहीं हुआ हैं , जो सरकार की “”पारदर्शिता “” का बुरा उदाहरण हैं |  बाम्बे  विस्फोट के एक आरोपी को 13 साल से जेल में बंद है , उसका भी मुकदमा शुरू नहीं हुआ , एवं उस्म्ने जेल में रहकर  कानून की पढ़ाई  पूरी कर ली ,और बॉम्बे हाइ कोर्ट ने उसे बार काउंसिल की सदस्यता  के लिए अनुमोदित कर दिया हैं |  यह सब  सरकार द्वरा  जांच पूरी करके  अदालत  में मुकदमा  नहीं शुरु करना  कितनी पारदर्शिता है |

 

   पारदर्शिता  की कसौटी :- ऋजुजु द्वारा  यह कहना की सरकार की राष्ट्र की सुरक्षा  के कारण  सिर्फ प्रधान न्यायधीश ही देख सकते है | अब आइये समझते हैं की यह रिपोर्ट किस प्रक्रिया से बनाई जाती हैं | राज्य अथवा केंद्र की  इंटेलिजेन्स  इकाइया  संदेहास्पद  जानो की फाइल  बनती हैं | यह काम इंस्पेक्टर  लेवल के अधिकारी द्वरा की जाती हैं | कोई पुख्ता  कारण सामने आने पर  एसपी स्टार के अफसर इस रिपोर्ट को बनाते हैं | तब यह रिपोर्ट  आई बी  के निदेशक के स्टार पर जाती हैं | अब छानबिन  दो आधारो पर की जाती है , एजेंसी  और सरकार द्वरा  दिये गए नामो  हाल -हवाल   दर्ज़ किया जाता हैं |  फिर यही रिपोर्ट केंद्रीय गृह मन्त्र्लया  या गृह मंत्री  को दी जाती हैं |

                                

                                        जो रिपोर्ट  एक पुलिस इंस्पेक्टर या पुलिस अधीक्षक  के स्तर के अफसर द्वारा बनाई गयी है ----उसको सुप्रीम कोर्ट के कालेजियम  के सदस्य  को क्यू नहीं बताया जा सकता ? इतना ही नहीं  प्रधान न्यायधीश  द्वरा रिपोर्ट  की सच्चाई को परखने के लिए  भी अवसर नहीं दिया हैं | आखिर  केंद्र हो या राज्य सरकारे  किसी भी विवाद  के लिए न्यायिक जांच क्यू करती हैं ?  यह सवाल  महत्वपूर्ण हैं |

 

बॉक्स

                          क्या पारदर्शिता  और मर्यादा  केवल  सुप्रीम और हाइ कोर्ट के लिए है ? क्या सरकार को पारदर्शिता और मर्यादा  का पालन नहीं करना चाहिए ? दरअसल  सरकार पारदर्शिता  से बचना चाहती है | हाल ही में जोशिमठ में हुए भू स्खलन  पर आईएसआरओ ने एक सैटेलाइट फोटो  सार्वजनिक  रूप से साझा की थी , जिसमे 12 दिन में 5 सेंटीमीटर  भूमि के धसकने की पुष्टि की थी | जिससे उत्तराखंड की सरकार  के झूठे वादे  की पोल खुल गयी थी | दूसरे ही दिन  केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय  ने  आईएसआरओ  को ताकीद  कर दी की वे कोई भी सूचना  सार्वजनिक  मत करे , और नाही मीडिया से बात करे ! यह है मोदी सरकार की पारदर्शिता की देश के लोगो से ही हक़ीक़त छुपाना !

 

                      दूसरा पारदर्शिता हीनता  का उदाहरण है  केंद्र सरकार द्वरा  सुप्रीम कोर्ट को   यह नहीं बताना की देश के बंकों का कितना धन किस क़र्ज़दार  पर कितना हैं , एवं उसने कितना  क़र्ज़ चुकाया और कब – कब ! आज तक  केंद्र सरकार  यह आंकड़े   सुप्रीम कोर्ट को गोपनियता  की शर्त पर एक लिफाफे  में देती हैं | बैंको  का क़र्ज़ के बारे में साधारण  नियम हैं की वह  उन कर्ज़ दारो की सूची सार्वजनिक रूप से अखबारो में   छपवाता है विज्ञापन के रूप में | आम किसान  और छोटे छोटे कामगार लघु उद्योगपति  के नाम  अखबारो में रोज छपते हैं | फिर अदानी के क़र्ज़ और अंबानी {दोनों भइयो} के  क्यू नहीं राष्ट्र को बताए जाते | क्या यह सरकार की मर्यादा और पारदर्शिता पर सवालहै क्या