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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 25, 2013

राजनैतिक झगडे में धार्मिक असलहे का इस्तेमाल

राजनैतिक झगडे में धार्मिक असलहे का इस्तेमाल 

   अयोध्या  में  ८४ कोशी परिक्रमा को ले कर विश्व  हिन्दू परिषद् और  उत्तर प्रदेश की समाजवादी  सरकार के बीच चल; रही रस्सकाशी  का परिणाम वैसा ही हुआ जैसा की अप्पेक्षित था । उन्होंने  मुट्ठी  भर लोगो और थोड़े से भगवाधारी   साधुओ के साथ सरयू नदी से जल लेकर ""सांकेतिक"" यात्रा की शुरुआत की और तोगड़िया समेत दो -तीन सौ लोग गिरफ्तार हो गए ।  इस प्रकार दोनों ही पक्षों की ""जिद्द"" पूरी हो गयी । एक कहानी हैं की मारवाड़ के एक राजा ने बूंदी  का किला  फतह करने के बाद ही पानी पिने की क़सम खायी थी । परन्तु यह काम आसन क्या बहुत ही कठिन था । अब दरबारियों ने रजा के प्राण बचाने के लिए उनसे अपनी प्रतिज्ञा छोड़ने का आग्रह किया , परन्तु राजा  तो फिर राजा  थे ,अड़े रहे , आखिर राजपूती शान जो ठहरी । आखिरकार मंत्री ने एक """विक़ल्प """ सुझाया , जिस से  प्रतिज्ञा भी पूरी हो जाए और प्राण भी सुरक्षित रहे । 

                        वह उपाय था की मिटटी का एक किला जो बूंदी के किले की  प्रतिकृति था । उसे फ़तेह कर के राजा  जल ग्रहण कर सकते थे । ऐसा ही किया गया । परन्तु बूंदी के कुछ हाडा राजपूत जो राजा  की सेना में थे  , उन्हें यह मात्रभूमि का अपमान लगा । एवं वे इस """सांकेतिक "" युद्ध में भी झूठे किले की रक्षा करते हुए मारे गए ।  सवाल यह उठता हैं की क्या इस पूजा को को संकेत माना जाए  ? तब यह भी मंज़ूर करना होगा की कुछ लोग  तो इसमें भी मारे जायेंगे । तब इस संकेत का दोषी औं ? राजनीती अथवा धर्म ? अब यह तो अपने - अपने विस्वास की बात हैं की कौन किस तरफ हैं । परन्तु जो भी हुआ अच्छा नहीं हुआ , हालाँकि यह साफ़ हो गया की  धर्म  का उन्माद बिना राजसत्ता की हामी के नहीं भड़कता हैं ।