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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Mar 23, 2018

क्या संविधान मे रेखांकित शक्तियों के विकेंद्रीकरण का –
विधायिका ---न्यायपालिका और कार्यपालिका द्वरा पालन हो रहा है ?
विगत एक पखवाड़े मे सदन और न्यायालय मे हुई घटनाओ से
तो लगता है की शायद नहीं

लोकसभा मे वित्तीय अधिनियम का ""ध्वनि मत से पारित किया जाना "” जंहा सदन की संप्रभुता का मज़ाक बना है ,वंही सरकार --और विपक्ष के अड़ियल रवैये का उदाहरण है | आश्चर्यजनक यह है की लोकसभा मे "”शोरगुल "” के कारण विरोधी दलो द्वारा लाया जाने वाला सरकार के विरुद्ध "अविश्वास प्रस्ताव "” नहीं लिया जा सका !! परंतु स्पीकर द्वरा दिया गया कारण "” शोर के कारण मै प्रस्ताव के लिए अनिवार्य सांसदो की गिनती नहीं कर सकती थी "””!! नियमो के अनुसार अविश्वास प्रस्ताव को पेश करने के लिए 50 सांसदो का समर्थन ज़रूरी है | सवाल है की क्या लोकसभा मे सांसदो की गिनती सिर्फ हाथ उठा कर ही की जाती है ?? यदि स्पीकर श्रीमति महाजन कहती तो वे लॉबी डिवीजन का आदेश दे सकती थी | जिससे यह साफ हो जाता की इस प्रस्ताव को वांन्छित संख्या का समर्थन है अथवा नहीं ?? परंतु ऐसा नहीं हुआ |
कुछ ऐसा ही मध्यप्रदेश की विधान सभा मे हुआ --- एक मंत्री से जुड़े मामले मे एक महिला द्वरा आतंहत्या किए जाने को लेकर – विरोधी दल "कामरोको प्रस्ताव 'लाकर सदन मे बहस करना चाहते थे | परंतु नियमो का हवाला देकर स्पीकर सीताशरण शर्मा टालते रहे | जबकि संसदीय कार्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा प्रस्ताव का विरोध करते रहे | विपक्ष का आग्रह था का प्रस्ताव को सदन मे पड़ने दिया जाये | तब सरकार जवाब दे की यह प्रस्ताव ''स्वीकार किया जाने योग्य है अथवा नहीं ! परंतु ऐसा हुआ नहीं -लगातार दो दिनो की टकराहट के बाद विधान सभा मे अनुपूरक मांगे भी लोकसभा के समान ही "” ध्वनि मत से पारित की गयी "” !! जब विपछ प्रस्ताव लाने मे असफल रहा तब – अध्यछ के प्रति "”अविश्वास प्रस्ताव "” प्रस्तुत किया | परंतु सत्ता और अध्यछ ने इसके उत्तर मे सदन को पूर्व घोषित कार्यक्रम से सप्ताह पूर्व ही अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया !!

न्यायपालिका मे सरकार का रुख भी कोई शुभ नहीं रहा है , रोहिङ्ग्य शरणार्थियो के मामले मे "” सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को चेताया की वह सरकार को इस मामले मे इन लोगो को स्वास्थ्य और भोजन की सुविधा देने के लिए बाध्य नहीं कर सकता "” ? वह विदेशियों को देश मे आने के लिए सरकार को बाध्य नहीं कर सकता !!!

दूसरा मामला था जिसमे अदालत ने ''कहा था की साफ सूथरी राजनीति के लिए "” दागी अर्थात अपराधी व्यक्तित्व के लोगो को राजनैतिक दलो के अध्यक्ष पद धारण के योग्य नहीं कहा जा सकता "” ---इसके उत्तर मे केंद्र सरकार ने कहा की सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार को निर्वाचन कानून मे संशोधन करने को बाध्य नहीं कर सकता !!! सर्वोच्च न्यायालय विधायिका को निर्देश नहीं दे सकती ! सुप्रीम कोर्ट एक याचिका मे आदेश दे चुकी है की किसी अपराधी या भ्रष्ट को किसी भी दल की अगुवाई करने देना "”लोकतन्त्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है ---क्योंकि ऐसा व्यक्ति उम्मीदवारों के चयन मे प्रभावी होता है "” अब इस मसले पर केंद्र सरकार का यह कहना की चुनाव आयोग के पास ऐसी शक्तिया नहीं है की वह किसी ऐसी पार्टी का रजिस्ट्रेशन खारिज कर दे जिसके अध्यक्ष को भ्रस्ताचर अथवा किसी संगीन अपराध मे सज़ा मिल चुकी हो !!!!


अब केंद्र सरकार का यह रुख संविधान की विकेन्द्रीकरण की भावना का उल्ल्ङ्घन है | अपेक्छा थी की कार्यपालिका के फैसलो और कार्यो की न्यायिक समीछा देश के उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय करेंगे | दोनों ही अदालतों के रिट के अधिकार छेत्र शासकीय कार्यो और फैसलो के बारे मे फैसला करने मे सक्षम है ! इस संवैधानिक स्थिति के बावजूद केंद्र सरकार द्वरा न्यायपालिका को "”” उसकी सीमा बताने का प्रयास कितना संवैधानिक है "” ??

लेकिन एक मुकदमे मे सुप्रीम कोर्ट के माननीय जजो ने कुछ ऐसा किया जो की कान खड़ा करने वाला था | हाल ही मे 19 मार्च को सुप्रीम कोर्ट की खंड पीठ मे जिसके सदस्य न्यायमूर्ति अगरवाल और न्यायमूर्ति अभय मनोहर सप्रे थे , उनके सामने एक मामला था जिसमे प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह और पूर्व मंत्री कैलाश विजयवर्गीय सहित 11 लोगो के विरुद्ध महू के काँग्रेस नेता अंतरसिंह दरबार ने याचिका दायर की थी | मामले की सुनवाई ही दोनों नेताओ को प्रस्तुत होने का आदेश खंड पीठ ने दिया | परंतु 14 मिनट के बाद ही इस आदेश को वापस लिए जाने की घोसणा कोर्ट मास्टर ने की | कारण यह बताया गया ---की जस्टिस सप्रे इस मामले से खुद को "”अलग रखना चाहते है "” !! सुनवाई और निर्णय के बाद "”फैसले को बदलने का यह पहला मामला था जिसमे जज के कारण यह बदलाव हुआ | यद्यपि जस्टिस सप्रे ने कोई कारण नहीं दिया की वे किस वजह से इस सुनवाई से अलग हो रहे है |
गौर तलब है की इस मामले की जल्दी सुनवाई के लिए चार बार "” मेनशन "” अर्थात प्रार्थना की गयी थी | पाँचवी बार मे यह हादसा हुआ | खंडपीठ ने इस मामले को दूसरी बेंच को भेजने का आदेश दिया | ऐसा समझा जाता है की जस्टिस सप्रे का संबंध जबलपुर से है | उन्होने वंही शिक्षा पायी और यही वे पीठ मे शामिल हुए थे | संभवतः उन्होने अपनी छवि के लिए ऐसा किया हो क्योंकि किसी भी प्रकार का फैसला आने के बाद खुसुर - पुसुर हो सकती थी | अब इस मामले से अलग हो जाने से उनकी प्रतिष्ठा को कोई आंच नहीं आएगी | परंतु वे सुनवाई के पूर्व भी अपने को अलग कर सकते थे ? परंतु प्रारम्भिक आदेश देने के उपरांत न्यायमूर्ति सप्रे का अपने को सुनवाई से अलग करना अनेक संदेह पैदा करता है |


इन घटनाओ से संविधान के तीनों अंगो के विकेन्द्रीकरण और "”” संतुलन एवं नियंत्रण "” के सिधान्त को धूल मे मिला दिया है | इन घटनाओ से साफ है की कार्यपालिका अर्थात सरकार विधायिका को तो नियंत्रित करती ही है ----अपने बहुमत के द्वारा | परंतु न्यायपालिका को प्रच्छन्न रूप से नियंत्रित करने के ये कुछ उदाहरण है | अब ऐसे मे लोकतन्त्र को बचाने की ज़िम्मेदारी अंततः जनता पर ही है |

इसी तारतम्य मे मध्यप्रदेश की विधान सभा द्वरा सवाल पुछे जाने के विधायकों के अधिकार को सीमित करने के संशोधन के नितांत आलोकतांत्रिक निर्णय का विरोध "”पत्रिका के प्रधान संपादक श्री गुलाब कोठारी जी ने किया समपादकीय लिख कर और एक मुहिम द्वरा किया जिसके – फलस्वरूप विधान सभा स्पीकर सीता शरण शर्मा को अपना फैसला बदलना पड़ा | श्री कोठारी ने राजस्थान मे वसुंधरा राजे सरकार द्वरा ऐसे ही "” काले कानून लाये जाने की खिलाफत भी मुहिम चला कर की थी | परिणामस्वरूप वसुंधरा सरकार को झुकना पड़ा और उस "”काले कानून को वापस लेना पड़ा !!! वैसा ही उनहोने मध्य प्रदेश मे लोकतन्त्र की हिफाज़त के लिए सफल प्रयास किया | उन्होने जनता से आग्रह किया की अपने अधिकारो की स्वयं रक्षा के लिए तैयार हो | क्योंकि सरकार जब अधिनायकवादी हो जाये और संविधान और कानून -नियमो की अनदेखी करने लगे तब जन मानस ही उसका विरोध कर सकता है |


Mar 11, 2018


क्या त्रिपुरा मे माणिक सरकार की हार ने देश से वामपंथ को समुद्र मे विसर्जित कर दिया? क्या माणिक सरकार की सादगी 25 वर्षो तक एक ढोंग थी

कुछ अति उत्साही लेखको ने त्रिपुरा मे सीपीएम की माणिक सरकार की विधान सभा चुनावो मे बीजेपी गठबंधन से 5000 मतो से पराजय ने देश मे वामपंथ की विचारधारा को ही भारत के लिए गैर ज़रूरी बताया है !! हेरे एक अनुज समान जयराम शुक्ल ने तो विप्लव दास की तारीफ करते हुए उनकी तुलना माणिक सरकार से भी कर डाली , जबकि वे अभी कुछ ही दिन हुए पदासीन हुए है | उनकी सादगी और ईमानदारी अभी परखी जानी है | यह प्रतिकृया काफी जल्दबाज़ी मे की गयी है |
भारतीय जनता पार्टी ने "”एक तथाकथित सामाजिक संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के छदम प्रचार की जमीन पर भारतीय जनता पार्टी गठबंधन की सरकार बनी है "” | इस सत्य को अनदेखा नहीं नहीं करना चाहिए | एक गणित के अनुसार सीपीआई और सीपीएम का अगर गठबंधन होता तो दोनों के मत मिलकर बीजेपी को मिले मतो से 14000 अधिक होते ---तब की कल्पना कीजिये !! इस जमीनी सच्चाई को भूल कर सिर्फ विजय के मद मे ऐसे ''फतवे देना'' उचित नहीं है |

हमारे दूसरे मित्र ने तो माणिक सरकार की जीवन शैली को मुगल बादशाह और्ङ्ग्ज़ेब से तुलना कर डाली !! जो टोपी सीकर और कुरान लिख कर अपना निजी खर्च चलाता था !! उनका आरोप है की औरंगजेब ने "”बेगुनाही की हत्या करवाई | माणिक सरकार लोकतन्त्र मे चुनाव जीत कर पाँच बार सत्तासीन हुए थे | उन्होने बेगुनाहों की हत्या करवाकर जीत हासिल नहीं की थी | जन जातियो और बंगाली समुदाय के बीच संतुलन रख कर उन्होने 25 साल शासन किया | उनके कार्यकाल मे कोई ऐसी हिंसक वारदात नहीं हुई जिसकी स्म्रती देशवासियों को हो | किसी भी राज्य मे अपराध अथवा सामूहिक अपराध का होना वनहा की सरकार के लिए चुनौती तो होता है | परंतु साधारण बीमारी और कैंसर का अंतर अपराधो मे भी होता है | त्रिपुरा मे ऐसा कोई कैंसर नहीं था | हाँ चुनव जीतने के बाद जिस प्रकार लेनिन की मूर्ति ढहायी गयी और जिस प्रकार 15 नगरो मे दूकानों और घरो मे विजय के मद मे उत्तेजित भीड़ ने लूटपाट की और आगजनी की वह "””साधारण अपराध की बीमारी से ज्यादा संक्रामक व्याधि ही है "”” |

जिन लेखको और स्तंभकारों को लगता है की वामपंथ तिरोहित हो गया है उन्हे अखिल भारतीय किसान सभा के बैनर तले नासिक से मुंबई पैदल मार्च कर रहे 30,000 हज़ार किसानो के अनुशासित "”लाँग मार्च "” को देखना और समझना चाहिए | उनका उद्देस्य क़र्ज़ माफी और भूमि से संबन्धित कब्जे और सिंचाई की मांगो पर महाराष्ट्र सरकार का ध्यान खीचना है | वे तप्ति धूप मे पैदल चल रहे है | परंतु ना तो कोई टीवी चैनल अथवा कोई अखबार उनके आंदोलन की खबर को ना तो दिखा रहा और ना ही इस बारे मे लिखा जा रहा है | इतना ही नहीं प्रदेश सरकार की अनदेखी इस बात से साफ है की तीन दिन बीत जाने के बाद भी उनका कोई नुमाइंदा प्रदर्शनकारियो से मिलने नहीं गया है | कहने का तात्पर्य यह है की वामपंथ समुद्र मे नहीं डूबा वह अभी भी अरब सागर के तट पर जाग्रत और क्रियाशील है |

अब पुनः आते है माणिक सरकार की सादगी और निजी तथा आधिकारिक जीवन के बारे मे ----जिसे दरिद्रता का रुदन बताया है |
1- क्या माणिक सरकार की भांति विप्लव दास दो कमरे के घर मे निवास करेंगे ? वैसे विप्लव तो संघ की अविवाहित कार्यकर्ता है उन्हे तो एक कमरा ही पर्याप्त है |
2- क्या वे भी बिना सुरक्षा कर्मियों के ताम-झाम के अगरतला की सडको पर
आम जनता से मिल कर उनकी शिकायतों को सुनेंगे ??

3- माणिक तो निजी जीवन मे साइकल पर चलते थे ---सिर्फ दफ्तर के कारी होने पर ही कार का इस्तेमाल करते थे – क्या विप्लव ऐसा करेंगे ??

4- हाल ही मे उनके इंटरव्यू मे जिस घर मे उन्हे भोजन करते हुए दिखाया गया है ----वह इन सभी संभावनाओ को नकारता है |
अभी बहू के पैर घर मे पड़े है आगे यह देखना होगा की नरेंद्र मोदी जी का यह हीरा सजता है अथवा लोगो के लिए ख़ुदकुशी का औज़ार बंता है ? भविष्य ही बताएगा | परंतु लिखने वालो को इन मुद्दो पर भी विचार करना चाहिए था
आखिर यह वामपंथ पर बीजेपी गठबंधन की संकरी सी जीत ही है ज्यादा कुछ नहीं |



Mar 7, 2018


भारतीय जनता पार्टी के समर्थन खाते का -जमा खर्च नफे या नुकसान का ?
त्रिपुरा मे विप्लव की सरकार अभी बनी नहीं और चंद्रा बाबू पाला छोड़ गए

मार्च माह मे ही सरकारी खाते खुला करते है -परंतु इस बार भारतीय जनता पार्टी को मार्च माह मे नुकसान से खाता खोलना पड़ा | त्रिपुरा मे बीजेपी के मनोनीत मुख्य मंत्री विप्लव दास के शपथ लेने से पहले ही आंध्र की तेलगु देशम पार्टी ने नरेंद्र मोदी सरकार से अपने संबंध तोड़ने की घोषणा कर दी | इस घटना क्रम से त्रिपुरा की विजय थोड़ी कसैली हो गयी होगी ! देश मे तीसरा सबसे छोटा प्रदेश त्रिपुरा मे भगवा फहराने का सुख आंध्र की पीताम्बर पताका से बाहर किए जाने के कष्ट को कम नहीं कर पाएगा |
इस को शुभ संकेत कहे या अशुभ यह तो आने वाली घटनाए ही बताएँगी परंतु बीजेपी नेत्रत्व को अब दक्षिण विजय की राह मुश्किल होगी |
दक्षिणावर्त की राह आंध्रा से होती हुई कर्नाटक तथा तमिलनाडू तब केरल आता है | पेरियार की मूर्ति को तोड़ने का प्रतिकार वनहा के ब्रांहणों से लिया जा रहा है | वेलूर मे मूर्ति खंडित करने का खामियाजा ट्रिप्लीकेन मे लिया गया | वनहा 8 ब्रांहणों का यज्ञोपवीत उतरवाया गया कोयंबटोर और उसे काट कर फेंक दिया !! वंही कोयंबटूर के बीजेपी कार्यालय मे बम फेंका गया |
जैसे पद्मावत फिल्म को लेकर चंद सैकड़ा लोगो ने देश मे काफी उत्पात मचा दिया था | चूंकि सत्ता के कतिपय सूत्रो का आशीर्वाद इन लोगो को सुलभ था इसलिए गुजरात चुनाव के बाद जा कर यह रजपूती शान के विरोध का अंत हुआ | कुछ -कुछ ऐसा ही इस बार भी हो रहा है | त्रिपुरा मे भारतीय जनता पार्टी की विधान सभा चुनावो के बाद विजय का उन्माद इस हद तक पहुँच गया था की उनकी सरकार बनने के पहले ही ''तांडव '' शुरू कर दिया !! फलस्वरूप उसकी प्रतिकृया हुई ---जो भी बहुत शोभनीय नहीं काही जा सकती | परंतु करनी सेना के आंदोलन और चुनौतियों तथा अल्टिमेटमों ने देश मे उदरवादियो और कट्टर पंथियो का अलग - अलग कर दिया – जैसे दूध फट कर अलग -अलग हो जाता है | अंततः पद्मावत फिल्म को उन सभी राज्यो मे प्रदर्शित करना पड़ा ---जिनहोने फिल्म को देखे बिना ही उस के “”प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया था | सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार ने भी इन राज्यो की प्र्शसनिक छमता और राजनैतिक नेत्रात्व की सूझ - बूझ पर सवाल खड़े कर दिये थे |

वामपंथ से भारतीय जनता पार्टी तथा उसकी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का विरोध चरम सीमा तक है ,यह सत्या सर्वत्र उजागर है | परंतु यह कब नफरत की हद तक पहुँच गया यह कहना मुश्किल है | क्योंकि केरल और त्रिपुरा और बंगाल मे किसी भी बीजेपी नेता की मूर्ति को खंडित किए जाने या बुलडोजेर द्वारा गिराए जाने की घटना अभी तक सुनाई नहीं पड़ी | हाँ केरल मे वामपंथियो और संघ के स्वयं सेवको {{ भारतीय जनता पार्टी के सदस्यो से नहीं !!}} मे झड़पे होती रही है | एवं एक स्वयंसेवक की आपसी झगड़े मे हुई मौत ने तो केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह आओ ''मजबूर ''कर दिया था की वे राज्यपाल और मुख्य मंत्री से फोन पर बात कर हालचाल ले !!! लेकिन केरल मे वामपंथियो के कार्य कर्ताओ की भी हत्ये हुई है ,जिनमे संघ के कार्यकर्ता शामिल रहे है ऐसा पुलिस के अनुसार कहा गया है | वैसे यह अचरज की बात है की संघ जो खुद को एक “”” सामाजिक संगठन कहता है उसका विरोध आखिर एक राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओ से किन कारणो से ?? क्योंकि भारतीय जनता पार्टी के लोगो से संघर्ष होना तो संभव है | फिर संघ हमेशा सार्वजनिक मंचो से कहता रहा है की उसका बीजेपी से कोई “””सीधा संबंध नहीं है “”” फिर क्यो उसके लोग बीजेपी की राजनीति के एजेंडे पर काम करते है |


ग्वालियर - चंबल छेत्र मे हुई चुनावी झड़पो मे संकरी जीत ने क्या कांग्रेस को निर्वाचन आयोग की निश्पक्षता और ईवीएमपीअट की   सत्यता पर भरोसा दिला दिया है ?

उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव के बाद काँग्रेस समेत समाजवादी पार्टी तथा पंजाब चुनावो के बाद आप पार्टी ने ईवीएम मतगणना मशीनों की सच्चाई पर संदेह जताते हुए – इनको भारतीय जनता पार्टी की मोदी सरकार के इशारे पर गड़बड़ी किए जाने के गंभीर आरोप लगाए थे | मामला इतना बिगड़ा था की चुनाव आयोग को सार्वजनिक रूप से इन मशीनों की खामिया उजागर करने की चुनौती राजनीतिक दलो को देनी पड़ी थी ! परंतु गड़बड़ी को उजागर करने की विधि और तरकीब की प्रक्रिया को लेकर मामला अटक गया | विरोधी दल मशीन को खोल कर डिमांस्ट्रेशान देना चाहते थे ---जबकि निर्वाचन आयोग उनको "” छूने नहीं देने के निर्णय पर अडिग था “”| इस छूआछूत के चलते मामला निर्णायक स्थिति तक नहीं पहुंचा |

उस समय जो राजनैतिक माहौल और "”जनता का संदेह इन चुनावी मशीनों के बारे मे उपजा -उस से लगा की एक बार फिर बैलट पेपर ही मतदाता की पसंद को नियत करेंगे "” परंतु नित-नूतन नए घोटालो और खुलासो की आंच मे इस मुद्दे का "”विसर्जन "” सा हो गया | परंतु चुनावी प्रबंध की निसपक्षता और मशीन की सत्यता पर सीपीएम के सचिव नीलोत्पल द्वारा त्रिपुरा विधान सभा चुनावो मे निर्वाचन आयोग को भेजे गए पत्र मे "” स्थान और समय तथा मतदाताओ से अधिक मत बताने वाली मशीनों का उल्लेख "”” किया गया है | इस से एक बार फिर निर्वाचन आयोग की ''चुस्ती और ईमानदारी पर उंगली उठ गयी है "” |

चुनाव मे अनियमितताओ को लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया और प्रदेश मे काँग्रेस प्रभारी बावरिया ने एक सवाल के उत्तर मे पार्टी का रुख स्पष्ट करते हुए – कहा की कोलारस और मुंगावली मे मतदाता सूची मे फर्जी मतदाताओ की संख्या दसियो हज़ार की थी जिसे पार्टी ने उजागर करके उन नामो को मतदाता सूची से "””कटवाया "” !! ईवीएम मशीनों के बारे मे प्रश्न से कतराते हुए – उन्होने त्रिपुरा मे भारतीय जनता पार्टी द्वरा विगत विधान सभा चुनावो की तुलना मे 2018 मे 24% मतो की व्रद्धि को आश्चर्यजनक बताया !! उन्होने कहा की किसी भी विधान सभा अथवा लोक सभा चुनावो मे किसी भी पार्टी के मतो मे ऐसी अप्रत्याशित बढोतरी का कोई इतिहास नहीं है "”

सवाल फिर भी वनही अटका हुआ है --- क्या चुनावी मशीनों का मुद्दा सिर्फ "” हार - जीत "” से जुड़ा है ?? या निर्वाचन आयोग की निस्पछ्ता भी तभी तक है जब तक "” जीत हमारी है "” ?? लगता है केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग भी इस मामले मे "” तेल देखो -तेल की धार देखो "” का रुख अपनाए हुए है | यंहा यह बताना समीचीन होगा की दुनिया के 120 राष्ट्रो मे इन मशीनों का बहिष्कार कर रखा है !! अमेरिका - रूस और ब्रिटेन तथा जर्मनी फ्रांस ऐसे विकसित राष्ट्रो के अलावा यूरोप और आस्ट्रेलिया मे भी "” मत पत्र "” से ही जनता की पसंद चुनी और गिनी जाती है ' बाल्टिक छेत्र के कुछ देशो मे यह मशीन का इस्तेमाल है ----जंहा की आबादी लाखो से लेकर कुछ करोड़ो मे ही सिमटी है |”” बड़े राष्ट्रो मे इस मशीन का इस्तेमाल बंद किया गया है "” उदाहरण के लिए अमेरिका !!