प्रदेश से राष्ट्रीय छितिज़ पर पहुंचे शिवराज
तीसरी बार विधान सभा चुनावो के लिए कमर कस रहे शिवराज सिंह चौहान को आज भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व में जगह मिलने का मौका मिला हैं । मोदी को जिस प्रकार देश के भावी प्रधान मंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया गया था , उस से लगता था की ''वे '' पार्टी की एकमात्र पसंद हैं । परन्तु हाल में हुई राजनीतिक घटनाओ ने शिवराज को उनके मुकाबले खड़ा कर दिया हैं । यद्यपि अभी वे पार्टी के उस खेमे के साथ खड़े दीखते हैं जिसे ""नेतृत्व "" ने अनदेखा कर दिया हैं । परन्तु इस परिवर्तन ने एक बात स्पष्ट कर दिया हैं की आगामी विधान सभा चुनावो में ""उनकी "" पसंद ही चलेगी । क्योंकि अब जिन लोगो को "दिल्ली से मुख्यमंत्री " के खिलाफ मदद की उम्मीद थी अब वे भी खुले रूप में तो इस मुहीम में साथ नहीं दे सकेंगे । क्योंकि दलीय राजनीती में शीर्ष नेतृत्व सदैव एक ''संतुलन'' बना कर चलता हैं । जिसके अभाव में पार्टी का अस्तित्व खतरे में पड सकता हैं ।
आज भा ज पा इसी दो राहे पर खड़ी दिखायी पड़ रही हैं । मोदी और संघ परिवार ने पार्टी के अन्दर एक स्पष्ट लाइन खींच दी हैं । इसी का परिणाम दिखाई देगा ,जब राष्ट्रीय कार्यकारिणी का गठन होगा । क्योंकि आडवानी -सुषमा का खेमा स्पष्ट रूप से शिवराज सिंह की पीठ पर हाथ रखे दिखाई पड़ेगा । हाँ संघ का भय दिखा कर जो लोग "दबाव" बनाना चाहते हैं , शायद उनके लिए कुछ निराशा ही हाथ लगे । वैसे संघ की पसंद और वर्त्तमान नेतृत्व से भी शिव राज सिंह ने किनारा नहीं किया हैं । अगर आडवानी शहडोल में अटल ज्योति का उद्घाटन करते हैं तो , सुषमा स्वराज विदिशा में सरकार को मज़बूत करने के लिए कार्यक्रम करती हैं .। मुरली मनोहर जोशी निमाड़ में और राजनाथ सिंह भी आदिवासी छेत्र में कार्य क्रम करते हैं ।
अगर हम इस समय हो रही गतिविधियों पर नज़र डाले , तो पाएंगे की पार्टी में एक लाइन खिची हुई हैं , जो मोदी को आगे कर के संघ की पक़ड को मज़बूत करना छाहती हैं । वन्ही दूसरी और आडवानी जी सुषमा स्वराज ऐसे लोग हैं जो राजनातिक व्यव्हार को संघ के नितांत गैर राजनैतिक एजेंडे की बलि नहीं बन ने देना चाहते हैं ।
मोदी का नया नारा ''सेकुलरिज्म '' के पहले राष्ट्र भी संघ की विचार धारा का ही प्रतीक हैं । वह भी मजबूरी का , एक और इस से जंहा गैर भा ज पा दलों की विचार धारा को नकारना हैं ,वंही लोकसभा चुनावो में एन डी ऐ गठबंधन के अन्य दलों में अपने ''आदमी '' की स्वीकार्यता बनाना भी हैं । क्योंकि ज़मीनी हकीक़त यही हैं की पार्टी को वांछित बहुमत का आधा हिस्सा ही मिल सकता हैं । क्योंकि लगभग २ ५ २ लोकसभा की ऐसी सीटें हैं जंहा पिछले हुए सभी चुनावो में कभी भी पार्टी को सफलता नहीं मिली हैं । ऐसे में शेष छेत्रो में शत प्रतिशत सफलता की आशा करना ''मृग मरीचिका ''ही होगी । परन्तु संघ इस यथार्थ को स्वीकार नहीं करना चाहता । परंपरागत नेतृत्व जंहा यथार्थ को आगे रख कर बढना चाहता हें , वंही संघ को संगठन का भरोसा हैं ।
फिलहाल इस कश्मक़श के माहौल में शिवराज सिंह का नाम दिल्ली के रास्ते गुजने लगा हैं , कुछ तो लोग उन्हें प्रधान मंत्री पद के लिए समझौता उम्मीदवार के रूप में देखने लगे हैं । सत्य तो आने वाला समय ही बता सकेगा ।
तीसरी बार विधान सभा चुनावो के लिए कमर कस रहे शिवराज सिंह चौहान को आज भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व में जगह मिलने का मौका मिला हैं । मोदी को जिस प्रकार देश के भावी प्रधान मंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया गया था , उस से लगता था की ''वे '' पार्टी की एकमात्र पसंद हैं । परन्तु हाल में हुई राजनीतिक घटनाओ ने शिवराज को उनके मुकाबले खड़ा कर दिया हैं । यद्यपि अभी वे पार्टी के उस खेमे के साथ खड़े दीखते हैं जिसे ""नेतृत्व "" ने अनदेखा कर दिया हैं । परन्तु इस परिवर्तन ने एक बात स्पष्ट कर दिया हैं की आगामी विधान सभा चुनावो में ""उनकी "" पसंद ही चलेगी । क्योंकि अब जिन लोगो को "दिल्ली से मुख्यमंत्री " के खिलाफ मदद की उम्मीद थी अब वे भी खुले रूप में तो इस मुहीम में साथ नहीं दे सकेंगे । क्योंकि दलीय राजनीती में शीर्ष नेतृत्व सदैव एक ''संतुलन'' बना कर चलता हैं । जिसके अभाव में पार्टी का अस्तित्व खतरे में पड सकता हैं ।
आज भा ज पा इसी दो राहे पर खड़ी दिखायी पड़ रही हैं । मोदी और संघ परिवार ने पार्टी के अन्दर एक स्पष्ट लाइन खींच दी हैं । इसी का परिणाम दिखाई देगा ,जब राष्ट्रीय कार्यकारिणी का गठन होगा । क्योंकि आडवानी -सुषमा का खेमा स्पष्ट रूप से शिवराज सिंह की पीठ पर हाथ रखे दिखाई पड़ेगा । हाँ संघ का भय दिखा कर जो लोग "दबाव" बनाना चाहते हैं , शायद उनके लिए कुछ निराशा ही हाथ लगे । वैसे संघ की पसंद और वर्त्तमान नेतृत्व से भी शिव राज सिंह ने किनारा नहीं किया हैं । अगर आडवानी शहडोल में अटल ज्योति का उद्घाटन करते हैं तो , सुषमा स्वराज विदिशा में सरकार को मज़बूत करने के लिए कार्यक्रम करती हैं .। मुरली मनोहर जोशी निमाड़ में और राजनाथ सिंह भी आदिवासी छेत्र में कार्य क्रम करते हैं ।
अगर हम इस समय हो रही गतिविधियों पर नज़र डाले , तो पाएंगे की पार्टी में एक लाइन खिची हुई हैं , जो मोदी को आगे कर के संघ की पक़ड को मज़बूत करना छाहती हैं । वन्ही दूसरी और आडवानी जी सुषमा स्वराज ऐसे लोग हैं जो राजनातिक व्यव्हार को संघ के नितांत गैर राजनैतिक एजेंडे की बलि नहीं बन ने देना चाहते हैं ।
मोदी का नया नारा ''सेकुलरिज्म '' के पहले राष्ट्र भी संघ की विचार धारा का ही प्रतीक हैं । वह भी मजबूरी का , एक और इस से जंहा गैर भा ज पा दलों की विचार धारा को नकारना हैं ,वंही लोकसभा चुनावो में एन डी ऐ गठबंधन के अन्य दलों में अपने ''आदमी '' की स्वीकार्यता बनाना भी हैं । क्योंकि ज़मीनी हकीक़त यही हैं की पार्टी को वांछित बहुमत का आधा हिस्सा ही मिल सकता हैं । क्योंकि लगभग २ ५ २ लोकसभा की ऐसी सीटें हैं जंहा पिछले हुए सभी चुनावो में कभी भी पार्टी को सफलता नहीं मिली हैं । ऐसे में शेष छेत्रो में शत प्रतिशत सफलता की आशा करना ''मृग मरीचिका ''ही होगी । परन्तु संघ इस यथार्थ को स्वीकार नहीं करना चाहता । परंपरागत नेतृत्व जंहा यथार्थ को आगे रख कर बढना चाहता हें , वंही संघ को संगठन का भरोसा हैं ।
फिलहाल इस कश्मक़श के माहौल में शिवराज सिंह का नाम दिल्ली के रास्ते गुजने लगा हैं , कुछ तो लोग उन्हें प्रधान मंत्री पद के लिए समझौता उम्मीदवार के रूप में देखने लगे हैं । सत्य तो आने वाला समय ही बता सकेगा ।