सत्ता के
जनविरोधी फैसलो के प्रतिरोध
का प्रतीक -शाहीन
बाग़
ख़लक़
खुदा का -मुल्क
आईन का हुकूमत अवाम की -पर
चलेगी मेरी मर्ज़ी !!!
लोकसभा
में जिस प्रकार ग्रहमंत्री
अमित शाह ने दिल्ली में 23
से
27
फरवरी
तक हुए दंगो {
सांप्रदायिक
}
में
50
से
अधिक भारतीय
लोगो
के मारे जाने और सैकड़ो के घायल
होने तथा करोड़ो रुपए की संपाति
की हानि के घटना को पूर्व
नियोजित
बताया !
उससे
देश की जनता भले ही रद्द करे
पर संसद की कारवाई में उन्होने
मोदी सरकार को जल्लाद की भूमिका
के आरोप से बचा लिया !
उन्होने
मरने वालो और घायलों को "धरम"
की
पहचान के बजाय देश की पहचान
यानि भारतीय कहा !
जो
संघ प्रवर्तित राजनीतिक पार्टी
में संशोधन का प्रतीक हैं |
आखिरकार
सुप्रीम कोर्ट की जुस्टिस
यू सी ललित की खंड पीठ ने साफ
तौर पर उत्तर प्रदेश की सरकार
को लखनऊ में नागरिकता संशोधन
विरोध में आंदोलन करने वाले
आरोपियों के चित्र को पोस्टर
के रूप में महानगर के चौराहो
पर लगाए गए बैनरो को कानून
के विपरीत बताते हुए ,
इस
मसले को प्रधान न्यायाधीश
से बड़ी बेंच द्वरा सुने जाने
का आग्रह किया हैं !
गौर
तलब हैं की इलाहाबाद उच्च
न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश
की खंड पीठ ने लखनऊ में लगे
पोस्टरो को 16
मार्च
तक हटाने का आदेश दिया था |
अब
नवीन परिस्थिति में उत्तर
परदेश सरकार हाइ कोर्ट के आदेश
को तब तक ---नहीं
पालन करेगी ,जब
तक की सुप्रीम कोर्ट की पूर्ण
पीठ {
तीन
जजो वाली }
कोई
अंतिम फैसला नहीं दे देती |
विवाद
सिर्फ इतना सा था की क्या पुलिस
को या प्रशासन को यह अधिकार
प्राप्त हैं की वह किसी भी
आरोपी को अपराधियो के समान
इशठरी मुजरिम बन सकती हैं ?
उच्च
न्यायालय में अडवोकेट जनरल
इल्लाहबाद में ऐसे किसी
कानूनी प्रावधान को हवाला
नहीं दे सके -----जिसमें
प्रशासन को किसी को भी इश्तिहारी
द्वरा उसके वीरुध दर्ज़ आरोपो
की नुमाइश करे !
क्योंकि
विधि शस्त्र और भारत के संविधान
के अनुसार जब तक किसी भी व्यक्ति
के खिलाफ "”
आरोप
सीध नहीं हो जाता --तब
तक वह अपराधी नहीं कहा जा सकता
|
परंतु
लगता हैं की अब यह मामला अदालत
और सरकार के बीच रस्साकसी का
मसला बन गया हैं |
एक
आम नागरिक की भांति मैं भी यह
समझता हूँ की "””यदि
किसी ने कोई कानून तोड़ा हैं
--तो
उसे 24
घंटे
के अंदर अदालत के सामने प्रस्तुत
करना होता हैं |
फिर
उस पर लगाए आरोपो की पुष्टि
के लिए सबूत दिये जाते हैं |
इस
मामले में अगर
सिर्फ पुलिस की रिपोर्ट को
ही अंतिम सबूत मान लिया गया
---तब
देश के हर नागरिक के मूल अधिकार
संकट में पद जाएँगे ?
सुप्रीम
कोर्ट ने काश्मीर का मसला 5
जज़ो
से बड़ी बेंच द्वरा सुनवाई किए
जाने की अर्ज़ी को खारिज कर
दिया था |
और
कहा था की वही पाँच जज सुनवाई
करेंगे !!
फिर
इस ज़रा से मामले में ---जिसमें
प्रशासन को किसी नागरिक को
बदनाम करने का कोई कानूनी आधार
नहीं हैं ,
उसमें
सुप्रीम कोर्ट की खंड पीठ
फैसला ना ले पाये --कुछ
अजीब लगता हैं |
चलिये
योगी आदित्यनाथ के अहम को भले
ही इससे तुष्टि हो जाये -पर
संविधान की घोर अवहेलना होगी
|
उधर
नफरत फैलाने वाले भाषणो पर
कारवाई की सुनवाई फिर दिल्ली
हाइ कोर्ट के मुख्या न्यायाधीश
ने आगे बड़ा दी |
जबकि
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले
में जल्दी सुनवाई करने का
निर्देश दिया था |
लगता
हैं आदेश और निर्देश पाहुचने
में कुछ देर लग रही हैं |
परंतु
उत्तर प्रदेश में कानून हो
या ना हो --पर
मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ
जी की मर्ज़ी ही चलेगी,
भले
उसके लिए कानून हो या नहीं ,
जो
लखनऊ में नागरिकता विरोध में
आंदोलन करने वालो को सरे आम
आरोपी से अपराधी बनाने का
फैसला !
मामला
नागरिकता संशोधन कानून के
विरोध में लखनऊ के घंटाघर में
शाहीन बाग की तर्ज़ पर हुए धरणे
और प्रदर्शन में भाग लेने वाले
बा इज्ज़त शहरियों पर पुलिस
द्वरा सरकारी संपाति की तोडफोड
का आरोप लगते हुए 150
से
अधिक लोगो के फोटो नाम -पते
सहित नगर के चौराहो पर बड़े
-बड़े
बैनर की तर्ज़ पर लगाए गए |
कानून
के अनुसार केवल कानून के भगोड़े
या अदालत द्वरा घोषित अपराधी
की फोटो ही अदालत की आज्ञा
से लगाई या प्रकाशित किए जा
सकते हैं |परंतु
गोरख नाथ मठ के महंत तो अपने
खिलाफ उठने वाली हर आवाज को
कुचलना चाहते है ,
फिर
कोई कानून हो या नहीं !
सदको
पर लगाए गए बैनरो के द्वरा ---
जिसमें
हर खास ओ आम को इतिला दी गयी
की ये वो लोग हैं,
जिनहोने
सरकार की 85
लाख
से ज्यादा मालियत की संपाति
का नुकसान किया हैं !
शाहीन
बाग़ की तर्ज़ पर किए गए इस आंदोलन
की पहली शहीद फरीदा खातून रही
--50
वर्षीय
यह महिला बारिश में भीग जाने
से ठंड की वजह से अल्लाह को
प्यारी हो गयी !
उनका
कोई भी ज़िक्र ज़िला और पुलिस
की कारवाई में नहीं हैं !!!
लखनऊ
के ज़िला प्रशासन और पुलिस
आयुक्त की इस कारवाई का इलाहाबाद
उच्च न्ययालय ने के मुख्य
न्ययाधीश की कांड पीठ ने स्वतः
ज्ञान से इस मामले को रविवार
8
मार्च
को सुनवाई की |
खबर
मिलते ही मुख्य अधिवक्ता
राघवेंद्र सिंह और अतिरिक्त
अधिवक्ता त्रिपाठी तथा चार
अन्य शासकीय वकीलो ने ---इस
मामले की सुनवाई पर आपति की
|
जब
मुख्या न्यायधीश ने एडवोकेट
जनरल से कानून
का वह प्रविधान दिखने को कहा
-जिसके
तहत प्रशासन ने लोगो के फोटो
नाम पते सहित शहर में लगवाए
हैं ?
तब
राघवेंद्र सिंह अँड कंपनी
निरुतर हो गयी !
अदालत
ने 16
मार्च
तक सभी होर्डिंग हटाने के बाद
रिपोर्ट देने को कहा |
परंतु
योगी जी की मेरी मर्ज़ी को तो
अदालत के फैसले से धक्का लगा
|
राघवेंद्र
सिंह ने तो मुख्य न्यायधीश
से यानहा तक कह दिया की ---
यह
मामला लखनऊ का हैं ,जिसे
इल्हाबड़ मे नहीं सुना जा सकता
!
तब
मुख्य न्यायाधीश ने उन्हे
बताया की वे पूरे प्रदेश के
मुख्य न्यायाधीश हैं ,
सिर्फ
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के
नहीं !!
परंतु
भगवा धारी मुख्य मंत्री योगी
जी को इस फैसले से ठेस पहुंची
,
फलस्वरूप
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट
में न्यायधीश यू सी ललित की
खंड पीठ ने सुनवाई की |
इसी
तारतमय में बात कर्नाटक के
बीदर जिले के ज़िला न्यायले
का फैसला |
वनहा
के शाहीन प्राथमिक और उच्च
विद्यालया में बालको ने
नागरिकता संशोधन कानून के
विरोध में एक नाटक का मंचन
किया था |
पुलिस
ने नाटक करने वालो के साथ
विद्यलय के प्रबन्धक अब्दुल
कादिर को राजद्रोह ए आरोप में
बंदी
बना लिया |
ज़िला
न्यायधीश मङ्गोली प्रेमवती
ने कहा की पुलिस की पेश सबूतो
से राजद्रोह का मुकदमा नहीं
बनता !
और
उन्होने कादिर को जमानत दे
दी !!!