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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Mar 7, 2018


भारतीय जनता पार्टी के समर्थन खाते का -जमा खर्च नफे या नुकसान का ?
त्रिपुरा मे विप्लव की सरकार अभी बनी नहीं और चंद्रा बाबू पाला छोड़ गए

मार्च माह मे ही सरकारी खाते खुला करते है -परंतु इस बार भारतीय जनता पार्टी को मार्च माह मे नुकसान से खाता खोलना पड़ा | त्रिपुरा मे बीजेपी के मनोनीत मुख्य मंत्री विप्लव दास के शपथ लेने से पहले ही आंध्र की तेलगु देशम पार्टी ने नरेंद्र मोदी सरकार से अपने संबंध तोड़ने की घोषणा कर दी | इस घटना क्रम से त्रिपुरा की विजय थोड़ी कसैली हो गयी होगी ! देश मे तीसरा सबसे छोटा प्रदेश त्रिपुरा मे भगवा फहराने का सुख आंध्र की पीताम्बर पताका से बाहर किए जाने के कष्ट को कम नहीं कर पाएगा |
इस को शुभ संकेत कहे या अशुभ यह तो आने वाली घटनाए ही बताएँगी परंतु बीजेपी नेत्रत्व को अब दक्षिण विजय की राह मुश्किल होगी |
दक्षिणावर्त की राह आंध्रा से होती हुई कर्नाटक तथा तमिलनाडू तब केरल आता है | पेरियार की मूर्ति को तोड़ने का प्रतिकार वनहा के ब्रांहणों से लिया जा रहा है | वेलूर मे मूर्ति खंडित करने का खामियाजा ट्रिप्लीकेन मे लिया गया | वनहा 8 ब्रांहणों का यज्ञोपवीत उतरवाया गया कोयंबटोर और उसे काट कर फेंक दिया !! वंही कोयंबटूर के बीजेपी कार्यालय मे बम फेंका गया |
जैसे पद्मावत फिल्म को लेकर चंद सैकड़ा लोगो ने देश मे काफी उत्पात मचा दिया था | चूंकि सत्ता के कतिपय सूत्रो का आशीर्वाद इन लोगो को सुलभ था इसलिए गुजरात चुनाव के बाद जा कर यह रजपूती शान के विरोध का अंत हुआ | कुछ -कुछ ऐसा ही इस बार भी हो रहा है | त्रिपुरा मे भारतीय जनता पार्टी की विधान सभा चुनावो के बाद विजय का उन्माद इस हद तक पहुँच गया था की उनकी सरकार बनने के पहले ही ''तांडव '' शुरू कर दिया !! फलस्वरूप उसकी प्रतिकृया हुई ---जो भी बहुत शोभनीय नहीं काही जा सकती | परंतु करनी सेना के आंदोलन और चुनौतियों तथा अल्टिमेटमों ने देश मे उदरवादियो और कट्टर पंथियो का अलग - अलग कर दिया – जैसे दूध फट कर अलग -अलग हो जाता है | अंततः पद्मावत फिल्म को उन सभी राज्यो मे प्रदर्शित करना पड़ा ---जिनहोने फिल्म को देखे बिना ही उस के “”प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया था | सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार ने भी इन राज्यो की प्र्शसनिक छमता और राजनैतिक नेत्रात्व की सूझ - बूझ पर सवाल खड़े कर दिये थे |

वामपंथ से भारतीय जनता पार्टी तथा उसकी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का विरोध चरम सीमा तक है ,यह सत्या सर्वत्र उजागर है | परंतु यह कब नफरत की हद तक पहुँच गया यह कहना मुश्किल है | क्योंकि केरल और त्रिपुरा और बंगाल मे किसी भी बीजेपी नेता की मूर्ति को खंडित किए जाने या बुलडोजेर द्वारा गिराए जाने की घटना अभी तक सुनाई नहीं पड़ी | हाँ केरल मे वामपंथियो और संघ के स्वयं सेवको {{ भारतीय जनता पार्टी के सदस्यो से नहीं !!}} मे झड़पे होती रही है | एवं एक स्वयंसेवक की आपसी झगड़े मे हुई मौत ने तो केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह आओ ''मजबूर ''कर दिया था की वे राज्यपाल और मुख्य मंत्री से फोन पर बात कर हालचाल ले !!! लेकिन केरल मे वामपंथियो के कार्य कर्ताओ की भी हत्ये हुई है ,जिनमे संघ के कार्यकर्ता शामिल रहे है ऐसा पुलिस के अनुसार कहा गया है | वैसे यह अचरज की बात है की संघ जो खुद को एक “”” सामाजिक संगठन कहता है उसका विरोध आखिर एक राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओ से किन कारणो से ?? क्योंकि भारतीय जनता पार्टी के लोगो से संघर्ष होना तो संभव है | फिर संघ हमेशा सार्वजनिक मंचो से कहता रहा है की उसका बीजेपी से कोई “””सीधा संबंध नहीं है “”” फिर क्यो उसके लोग बीजेपी की राजनीति के एजेंडे पर काम करते है |


ग्वालियर - चंबल छेत्र मे हुई चुनावी झड़पो मे संकरी जीत ने क्या कांग्रेस को निर्वाचन आयोग की निश्पक्षता और ईवीएमपीअट की   सत्यता पर भरोसा दिला दिया है ?

उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव के बाद काँग्रेस समेत समाजवादी पार्टी तथा पंजाब चुनावो के बाद आप पार्टी ने ईवीएम मतगणना मशीनों की सच्चाई पर संदेह जताते हुए – इनको भारतीय जनता पार्टी की मोदी सरकार के इशारे पर गड़बड़ी किए जाने के गंभीर आरोप लगाए थे | मामला इतना बिगड़ा था की चुनाव आयोग को सार्वजनिक रूप से इन मशीनों की खामिया उजागर करने की चुनौती राजनीतिक दलो को देनी पड़ी थी ! परंतु गड़बड़ी को उजागर करने की विधि और तरकीब की प्रक्रिया को लेकर मामला अटक गया | विरोधी दल मशीन को खोल कर डिमांस्ट्रेशान देना चाहते थे ---जबकि निर्वाचन आयोग उनको "” छूने नहीं देने के निर्णय पर अडिग था “”| इस छूआछूत के चलते मामला निर्णायक स्थिति तक नहीं पहुंचा |

उस समय जो राजनैतिक माहौल और "”जनता का संदेह इन चुनावी मशीनों के बारे मे उपजा -उस से लगा की एक बार फिर बैलट पेपर ही मतदाता की पसंद को नियत करेंगे "” परंतु नित-नूतन नए घोटालो और खुलासो की आंच मे इस मुद्दे का "”विसर्जन "” सा हो गया | परंतु चुनावी प्रबंध की निसपक्षता और मशीन की सत्यता पर सीपीएम के सचिव नीलोत्पल द्वारा त्रिपुरा विधान सभा चुनावो मे निर्वाचन आयोग को भेजे गए पत्र मे "” स्थान और समय तथा मतदाताओ से अधिक मत बताने वाली मशीनों का उल्लेख "”” किया गया है | इस से एक बार फिर निर्वाचन आयोग की ''चुस्ती और ईमानदारी पर उंगली उठ गयी है "” |

चुनाव मे अनियमितताओ को लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया और प्रदेश मे काँग्रेस प्रभारी बावरिया ने एक सवाल के उत्तर मे पार्टी का रुख स्पष्ट करते हुए – कहा की कोलारस और मुंगावली मे मतदाता सूची मे फर्जी मतदाताओ की संख्या दसियो हज़ार की थी जिसे पार्टी ने उजागर करके उन नामो को मतदाता सूची से "””कटवाया "” !! ईवीएम मशीनों के बारे मे प्रश्न से कतराते हुए – उन्होने त्रिपुरा मे भारतीय जनता पार्टी द्वरा विगत विधान सभा चुनावो की तुलना मे 2018 मे 24% मतो की व्रद्धि को आश्चर्यजनक बताया !! उन्होने कहा की किसी भी विधान सभा अथवा लोक सभा चुनावो मे किसी भी पार्टी के मतो मे ऐसी अप्रत्याशित बढोतरी का कोई इतिहास नहीं है "”

सवाल फिर भी वनही अटका हुआ है --- क्या चुनावी मशीनों का मुद्दा सिर्फ "” हार - जीत "” से जुड़ा है ?? या निर्वाचन आयोग की निस्पछ्ता भी तभी तक है जब तक "” जीत हमारी है "” ?? लगता है केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग भी इस मामले मे "” तेल देखो -तेल की धार देखो "” का रुख अपनाए हुए है | यंहा यह बताना समीचीन होगा की दुनिया के 120 राष्ट्रो मे इन मशीनों का बहिष्कार कर रखा है !! अमेरिका - रूस और ब्रिटेन तथा जर्मनी फ्रांस ऐसे विकसित राष्ट्रो के अलावा यूरोप और आस्ट्रेलिया मे भी "” मत पत्र "” से ही जनता की पसंद चुनी और गिनी जाती है ' बाल्टिक छेत्र के कुछ देशो मे यह मशीन का इस्तेमाल है ----जंहा की आबादी लाखो से लेकर कुछ करोड़ो मे ही सिमटी है |”” बड़े राष्ट्रो मे इस मशीन का इस्तेमाल बंद किया गया है "” उदाहरण के लिए अमेरिका !!