अमितशाह
जी जरा विदेश मंत्रालय की
"”चोपड़ी
" पढ
लीजिये -कोसने
के पूर्व !
देश
के गृह मंत्री अमितशाह का
लोक सभा मैं काश्मीर पर बयान
सुन कर लगा की ,
उनके
मंत्रालय ने – उन्हे
सत्य और हक़ीक़त बताने की जगह
ठाकुरसुहाती करते हुई तथ्यो
की ---उस
तरह से परिभाषित किया ---जैसा
इन गुजराती महोदय --का
मानसिक "”स्वाद
"”
हैं
!
अगर
सिलसिलेवार और संदर्भ समेत
तत्कालीन तथ्य – अधिकारी
बताते तब उनका "”साहस
"”
यह
कहने काही नहीं होता की ,
की
एक तिहाई कश्मीर पाकिस्तान
के हाथो इस लिए लगा की देश के
प्रथम प्रधान मंत्री पंडित
जवहरलाल नेहरू ने सीजफायर
कर के युद्ध रोकने की एकतरफा
घोसना की थी !!
देश
की संसद मैं एक मंत्री द्वरा
इतना बड़ा "”असत्य'
देश
के सामने बोलने का "”पुण्य
"”
उन्हे
ज़रूर हैं |
परंतु
अमितशाह को विदेश मंत्रालय
से "तथ्य
"
मांगने
चाहिए !!
क्योंकि
दो राष्ट्रो के मध्य विवाद----
उनके
मंत्रलाया के अधीन नहीं हैं
!
भगवती
माँ का आशीर्वाद है देश को !
अमितशाह
जी जिस समय काश्मीर पर क़बायली
हमला हुआ – उस समय देश मैं
राष्ट्रिय
सरकार थी --जिसमैं
आपके "”संस्थापक
"”
श्यमा
प्रसाद मुकर्जी – आपूर्ति
मंत्री थे !
उस
सरकार का सारा काम "”
गवर्नमेंट
ऑफ इंडिया अक्त 1935
“” के
तहत हो रहा था |
फ़्रीडम
ऑफ इंडिया अक्त 1947
के
तहत ब्रिटिश संसद ने ही भारत
और --पाकिस्तान
दो राष्ट्रो के निर्माण का
फतवा दे दिया था |
जिसको
भारत की अविभाजित भारत की जनता
को मानना मजबूरी थी |
जैसी
मजबूरी अमितशाह की पार्टी
को मुफ़्ती महबूबा के साथ
काश्मीर मैं सरकार बनाने की
थी !!!
पर
ब्रिटिश कानून पर देश "”
उलटबासी
"”
या
गुलाटी नहीं खा सकता था !
जैसा
आपकी {
अध्यक्षता
]}
वाली
पार्टी ने किया !
क्योंकि
जिस स्वतन्त्रता के लिए
महात्मा गांधी और काँग्रेस
पार्टी ने 30
साल
तक जेल काटी और लाठी खाई --या
तो उसे कुछ सालो के लिए और टाल
देते !
तब
देशी रियासते आज़ाद रह जाती
!
जिस
भारत का सपना बापू और पंडित
जी तथा सरदार और मौलाना आज़ाद
ने देखा था -----
वह
छिन्न -भिन्न
हो जाता !
परंतु
अमित शाह जी को यह स्थिति अफसरो
ने नहीं बताई होगी !!
वरना
वे तो '’’’
एक
चतुर गुजराती बनिया '’’
जो
ठहरे !!
उनके
और गैर जानकारो को यह ऐतिहासिक
सत्य मालूम होना चाहिए ,
जिस
समय हमला हुआ उस समय देश के
प्रथम गवर्नर जनरल थे "”
लॉर्ड
माउंट बैटन "”
जो
भारत मैं ब्रिटिश साम्राज्य
के आखिरी वायसरॉय भी थे !!
काश्मीर
मैं क़बायली हमलावरो को जब देश
के "”आखिरी
भारतीय कमांडर -इन
-चीफ
जनरल करिअप्पा के नेत्रत्व
की फौजों ने खदेरना शुरू किया
,
तब
पाकिस्तान के गवर्नर गनरल
जिन्ना ने पाकिस्तान स्थित
ब्रिटिश फौज के अंग्रेज़ कमांडर
-इन
-चीफ
.............,
को
हमले का हुकुम दिया तब उन्होने
'’’कहा
की हम अभी भी ब्रिटिश साम्राज्य
की सेवा मैं हैं |
एवं
अपनी ही सेना के खिलाफ लड़ने
का आदेश – तभी संभव है ,
जब
लार्ड माउंट बैटन मुझे निर्देश
दें !!
अमित
शाह जी जनरल करिअप्पा को भी
माउंटबैटन ने सिर्फ "””कबालियो
को महाराजा हरी सिंह की रियासत
से खदेड़ने का हुकुम दिया था
|
इन
तथ्यो
की तसदीक राष्ट्रिय सरकार
और लार्ड मौंत्बाइटन के बीच
हुए पत्राचार से की जा सकती
हैं |
बरतनिया
की संसद से पारित भारत की आज़ादी
की कानून और भारत सरकार अक्त
1935 के
प्रावधानों को देखने के लिए
दोनों दस्तावेज़ो को देखा जा
सकता हैं |
परंतु
इनको क्र्पा करकर विकिपीडिया
या गूगल मई मत सर्च करे !!!!
{{ कुछ
दस्तावेज़ मेरे पास हैं }}
अब
बात एकतरफा युद्ध विराम की
सच्चाई की ,
1 जनवरी
1949 से
शुरू हुए
हुए
क़बायली हमले {जिनको
पाकिस्तानी रेंजरो }
का
समर्थन प्रपात होने की बात
कही जाती है |
परंतु
पाँच माह की अशांति और युद्ध
के बाद ब्रिटेन और अमेरिका
ने युद्धविराम के प्रस्ताव
द्वारा इस "”
हमले
को --जो
जनहा हैं वनही पर रहेगा "”
के
सिधान्त पर तुरंत दोनों देशो
को अमल करने को कहा |
तब
18 जुलाई
से 27
जुलाई
तक संयुक्त राष्ट्र संघ के
प्रस्ताव के तहत "”करांची
मैं दोनों देशो के सेना के
अधिकारियों की बैठक हुई "””
जिसमै
संयुक्त राष्ट्र के नियुक्त
पर्यवेक्षक उन छेत्रों मैं
तैनात किए गए --जिनहे
दुनिया "”
लाइन
ऑफ कंट्रोल "
के
नाम से जानती हैं |
इसलिए
देश के मौजूदा गृह मंत्री का
यह कहना की युद्ध विराम पर
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने
तत्कालीन गृह मंत्री सरदार
वल्लभ भाई पटेल की रॉय नहीं
मानी ,
तो
इसके लिए उन्हे मंत्रिमंडल
की तत्कालीन बैठक की कारवाई
के उस हिस्से को देश की जनता
के सामने लाना चाहिए "””
जिसमाइन
सरदार ने मंत्रिमंडल मैं
"”असहमति
का नोट लिखा हो !!
“” अब
मोदी सरकार केन्द्रीय चुनाव
आयोग की तरह यह नहीं कहे की
---- की
वह दस्तावेज़ राष्ट्रीय हिट
मैं सार्वजनिक करना देश हित
मैं नहीं होगा !!!
क्योंकि
अमित शाह जी लोकसभा मैं की गयी
बयानबाजी -जुमले
बाज़ी-----
देश
की आज़ादी के संघर्ष मैं दस
साल जेल मैं बिताने वाले और
देश के प्रथम प्रधान मंत्री
नेहरू का अपमान कर रहे हैं |
वह
भी देश के सामने तथ्यो को
तत्कालीन समय की स्थिति के
संदर्भों मैं
व्याख्यायित
नहीं कर के ------
छुद्र
संघ और बीजेपी की राजनीति कर
रहे हैं |
वैसे
भी भले और सभ्य लोग उनही बातो
को सार्वजनिक संदर्भों मैं
कहते हैं -जिनहे
वे घटनाओ और तथ्यो -घटनाओ
से सिद्ध कर सके |
टकसाली
जुमलेबाजी नहीं करते |
अब
दूसरे भारत ---पाक
युद्ध की बात करे जो पाकिस्तान
द्वरा गुजरात के रन ऑफ कच्छ
मैं फौजों के भेजने से शुरू
हुआ |
तत्कालीन
प्रधान मंत्री लाल बहादुर
शास्त्री ने ऑल इंडिया रेडियो
पर घटना की सूचना देश को देते
हुए युद्ध की घोषणा की |
लगभग
पाँच माह तक देश की जनता ने
सीमा पर जाने वाली फौजी ट्रेनों
मैं जवानो की आरती उतारने घरो
से महिलाए निकाल पड़ी !
प्रधानमंत्री
की एक आवाज पर महिलाओ ने अपने
सोने के गहने उतार कर देश के
लिए मदद की |
हमारी
सेनाओ का मनोबल ऊंचा था |
हम
लाहौर के समीप इछोगील नहर तक
सेप्टेम्बर मैं पहुँच गए थे
| तभी
संयुक्त राष्ट्र संघ और अमेरिका
और रूस ने दोनों देशो पर दबाव
बनाकर तुरंत सघर्ष रोकने और
युद्ध
विराम करने को कहा !!
यह
दूसरा युद्ध विराम था भारत
-पाक
के मध्य !!
आगे
की घटनाये मार्मिक हैं -
रूस
के ताजकिस्तान की राजधानी
ताशकंद मैं 10
जनवरी
1965 को
पाकिस्तानी राष्ट्रपति
मोहम्मद आयुब खान और प्रधान
मंत्री लाल बहादुर शास्त्री
ने रूस के राष्ट्रपति ब्रेज़नेव
अमेरिका के राजदूत और ताजकिस्तान
के नेताओ की उपस्थिती मैं
दोनों सेनाओ को अपने -अपने
ठिकाने पर जाने पर संधि हुयी
|
शास्त्री
जी ने बाहरी ह्रदय से इस संधि
पर दस्तखत किए |
एवं
उसी रात दिल का दौरा पड़ने से
देहावसान हो गया |
उनके
देहांत की सूचना भारतीय समय
के अनुसार मध्य रात्रि के बाद
हुई ,
| मुझे
यह घटना इसलिए स्मरण हैं
क्योंकि उस दिन राष्ट्रपति
भवन से प्रधान मंत्री के देहांत
की सूचना उनके मिलिट्री आफिसर
ने दी ----
टाइम्स
ऑफ इंडिया और नव भारत टाइम्स
की छपी कापिया रोक ली गयी,
और
काले बैनर का अखबार निकला |
वैसे
इस मौत पर 53
साल
बाद किसी ने एक जासूसी फिल्म
भी भी बनाई है ,जो
राजनीति प्रेरित हैं |
इस
कड़ी मैं शिमला सम्झौता ---जो
वास्तव मैं शांति सम्झौता
हैं |
1971 मैं
प्रधान मंत्री इन्दिरा गांधी
ने आल इंडिया रेडियो से पाक
हवाई जहाजो द्वरा आगरा के
सैनिक हवाई अड्डे पर बम वर्षा
किए जाने के बाद युद्ध की घोसना
की |
पश्चिमी
सीमाओ पर हमारी सेनाओ ने जनहा
---पंजाब
से गुजरात तक सीमा को अभेद्य
बनाया ,
वनही
पूर्वी पाकिस्तान की मुक्ति
वाहिनी की पाकिस्तान की बलुच
रेजीमेंट और पंजाब रेजीमेंट
के खिलाफ छापा मार युद्ध मैं
भारतीय सेना ने मदद के लिए
अपनी कुमुक भेजी |
महीने
भर चले युद्ध मैं भारत को
झुकाने के लिए अमेरिका ने
अपनी पण्डुब्बिया बंगाल की
खाड़ी के बाहर तैनात कर दी |
परंतु
इन्दिरा जी की मदद तत्कालीन
रूसी राष्ट्रपति लियोनिड
ब्रेज़नेव ने भारत के हमले का
समर्थन करते हुए -,अमरीका
को परिणाम भुगतने के लिए भी
चेतावनी दे दी |
परिणाम
स्वरूप इस एकतरफा युद्ध मैं
93000
सैनिको
और अफसरो के साथ जनरल नियाजी
ने आतंसमर्पण किया |
सैनिक
युद्ध के इतिहास मैं इतने
फौजियो का आतंसमर्पण एक मिसाल
बन गया |
शिमला
मैं राष्ट्रपति ज़ुल्फिकर
अली भुट्टो और इन्दिरा गांधी
ने 1971
के
युद्ध मैं कुछ मुद्दो को सुधारा
| वैसे
मोदी सरकार -
बीजेपी
और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
के भक्तो को इन्दिरा गांधी
की इस सफलता से ज्यादा उनके
आपातकाल की गलती याद आती हैं
| उनही
के कारण दुनिया के नक्शे पर
एक नया देश उभरा बंगला देश |