आजकल जनहा भी देखो -या सुनो राष्ट्रवाद की आवाज़ ज़ोर - ज़ोर से सुनाई पड़ती हैं | परंतु ऊंची आवाज़ों मैं राष्ट्रवाद का यह उद्घोष "” अपने गर्भ मैं समुदाय विशेस के लिए नफरत पाले हुए हैं "” ! देश ने या यूं कहे की अविभाजित भारत ने भी राष्ट्रीय आंदोलन देखे हैं ---- महात्मा गांधी ने ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति पाने के लिए राष्ट्रीय आंदोलन का नेत्रत्व किया था | परंतु उनके आंदोलन मैं "” गोरे "” लोगो के लिए नफरत नहीं थी, इसीलिए उनके साथ अनेक "”गोरे "” लोग भी जुड़े | देश मैं बसने वाले सभी समुदायो की इस मुहिम मैं भागीदारी थी | अगर कुछ नाम गिनने ही हों तब खान अब्दुल गफ्फार खान ----मीरा बेन --- सी एफ एंड्रूज़-----एनी बेसेंट और आदि ऐसे अनेक नाम हैं -जिनहोने सत्य और समानता के लिए अपने देश की हुकूमत के खिलाफ ना केवल आवाज़ ही उठाई वरन आज़ादी की लड़ाई मैं भारतीयो {{ काले लोगो }} के साथ कंधे से कंधा मिला कर बरतानिया साम्राज्य की चुले हिला दी |
परंतु आज जिस राष्ट्रवाद की आवाज़ उठाने की कोशिस की जा रही हैं , वह एक कमजोर पड़ोसी देश के"”भय"”को दिखा कर राष्ट्रवाद के नाम पर धर्म विशेस यानि की "” हिन्दू {जो कोई धर्म नहीं हैं } समुदाय को अपने राजनीतिक पाले मैं लाने और असहमत आवाज़ों को दबाने तथा अन्य समुदाय या दूसरे धरम को मानने वालो लोगो को डराने का हथियार हो गया हैं | जिसे '’गौ'’ रक्षा के नाम पर और ध्रमांतरण की आवाज़ पर '’’ भीड़ द्वारा न्याय '’’ किया जा रहा हैं !!! इसकी तुलना जरा चौरी चौरा मैं आज़ादी के जोश मैं काँग्रेस और जनता के कुछ कार्यकर्ताओ नए वनहा के थाने मैं आघ लगा दी , जिसमैं 12 पुलिस कर्मियों की हाँ गयी| महात्मा गांधी ने आंदोलन की शुरुआत मैं ही काँग्रेस के कार्यकर्ताओ की इस गैर वाजिब और आपराधिक क्र्त्य के कारण आंदोलन को ही स्थगित कर दिया !! काँग्रेस के बड़े नेता पटेल -नेहरू मालवीय जी ने आंदोलन को प्रारम्भ करने की सलाह दी | परंतु उस महात्मा ने कहा "”” ना केवल साधी ,वरन साधन की पवित्रता भी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक हैं !
देश की आज़ादी के लिए आंदोलन के दौरान उस महा मानव का यह निश्चय ----और उड़ीसा मैं कुष्ठ रोगियो की सेवा मैं आए मिशनरी दंपति स्टेंप्स को जला देने के आरोपी सांसद [ जिनहे नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल मैं राजी मंत्री बनाया गया हैं }} षडगी, को उड़ीसा का गांधी बताना--------राष्ट्र पिता की गरिमा और चरित्र को गाली देने जैसा हैं | एक ने अपनी पार्टी के लोगो द्वारा आपराधिक क्र्त्य करने देशव्यापी आन्दोलन स्थगित कर दिया ----दूसरी ओर देश मैं कुष्ट रोगियो की सेवा के लिए आए लोगो को जला कर मार देने वाले को देश का शासन चलाने मैं भागीदार बनाना ---कितना उचित हैं ?? महात्मा के आंदोलन मैं गोरे -काले हिन्दू - मुस्लिम-सीख और ईसाई -भारतीय और विदेशी सभी शामिल थे | दूसरी ओर सत्ता दल के 36 आनुषंगिक संगठनो द्वरा जिस राष्ट्रवाद का फतवा दिया जा रहा हैं -उसमैं सिर्फ हिन्दू { वेदिक धरम की सनातन परंपरा } के लोगो को बाकी अन्य सभी समुदायो और धर्मो से श्रेष्ठ साबित करने की कोशीस हैं | यह प्रयास हिटलर के "”शुद्ध आर्य रक्त "” सिद्धांत की भाति हैं | जो अपने साथियो के सिवा शेष को "””निम्नतर "” मानता था | अब एक राष्ट्र मैं गैर बराबरी का यह फैसला कैसे न्यायपूर्ण कहा जा सकता हैं ???
वास्तव मैं "” हम सर्वश्रेष्ठ - हम विश्व गुरु "” का अहंकार ही इस गैर बराबरी का जन्मदाता हैं | गोरे अपने को नीग्रो से श्रेष्ठ माने तब भी यह समस्या हैं | अथवा ईसाई धर्म और इस्लाम यहूदियो के धरम स्थलो पर और उन पर हमला करे तब भी यही गैर बराबरी की भावना "”हिंसक "” बनती हैं | जैसे गौ रक्षको द्वरा मुस्लिमो को मारने और हत्या करने की घटनाए !
महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन को "” हीन बताने और उनके हत्यारे नाथुराम गोडसे का महिमा मंडन करने का संगठित प्रयास करने का चलन 2019 लोकसभा चुनावो के बाद सार्वजनिक रूप से किया हा रहा हैं | इसमै बीजेपी सांसद प्रज्ञा ठाकुर हो अथवा महाराष्ट्र की आईएएस महिला अधिकारी हो सभी बस उस"” कारण को सही {सत्या नहीं } बताने की कोशिस की गयी हैं | जिसका एक ही उद्देश्य हैं की मोहनदास करमचंद गांधी कोई महात्मा या राष्ट्र पिता होने लायक नहीं हैं ! अमित शाह जी के शब्दो मैं कहे तो "” वह एक चतुर बनिया था ! “” अब इस मानसिकता से देश मैं समानता और सौहर्द का वातावरण कैसे बन सकता हैं ?
अगर हम बात करे देश पर जान निछावर करने की तो --आज़ादी के आंदोलन के दौरान लाला लाजपत रॉय -भगत सिंह - बटुकेश्वर दत्त - चंद्र शेखर आज़ाद के नाम हैं | परंतु संसद हाल की दीवार पर सावरकर का चित्र इन महान लोगो के त्याग को निम्न प्रदर्शित करता हैं | सावरकर का योगदान उनकी कालापानी की सज़ा हैं |तब क्या फांसी पर लटकाए गए क्रांतिकारियों के चित्र संसद के गलियारो मैं जगह नहीं पा सकते ? और क्यो नहीं ? सावरकर की अंग्रेज़ सरकार से माफी की दरख़्वाष्ट का स्पष्टीकरण ---- यह दिया जाना की वे जीवित रह कर देश की सेवा करना चाहते थे , कुछ सत्य प्रतीत नहीं होता | क्योंकि महात्मा गांधी की हत्या के आरोपियों मैं गोडसे और आपटे के साथ सावरकर भी आरोपी थे | सबूतो के अभाव मैं उन्हे रिहा कर दिया गया था |
अब जो वर्ग या संगठन अथवा लोग महात्मा की अहिंसा को "” नकारने के साथ उनके योगदान को जन स्म्रती से हटाना चाहते हैं , उनकी मंशा पूरी होने की उम्मीद काफी कम हैं | क्योंकि महात्मा किसी चुनाव के परिणाम से नहीं निकले है -----वे आज़ादी की लड़ाई से तप कर उदित हुए | इसलिए उनके हत्यारे का महिमा मंडन वैसा ही --जैसे श्री कृष्ण को तीर मारने वाले बहेलिये का गुणगान करना | आज गुजरात मैं जो लोग "”अभिवादन स्वरूप जय श्री कृष्ण "” कहते है – वे भी उस बहेलिया का नाम नहीं जानते हैं | परंतु देश के लिए प्राण देने वाले प्रधान मंत्रियो श्रीमति इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी के हत्यारो को भी महिमा मंडित एक वर्ग विशेस ने किया | परंतु विश्व मैं नाम तो सिर्फ इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी का ही जाना जाता हैं |उनके हत्यारे तो सिर्फ इतिहास की किताबों मैं क़ैद होकर रह गए हैं | इस प्रकार महात्मा गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरू - लाल बहादुर शास्त्री - इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी के देश के प्रति योगदान को ---कोशिस के बावजूद भी मिटाया नहीं जा सकता | हाँ आज की युवा पीड़ी जिसे देश की आज़ादी की लड़ाई और देश के पुनर्निर्माण मैं इन लोगो की भूमिका मैं बारे मैं हो सकता हैं -अंजान हो | अथवा इन लोगो के प्रति विकिपीडिया से उत्पन्न "”” जानकारी ही जिन लोगो का "” ज्ञान "” हो , उनसे यह गलती हो सकती हैं | परंतु जिनहोने किताब से जानकारी पायी होगी , उन्हे वास्तविकता पता होगी | हालांकि इतिहास को जब कुछ "””लोगो द्वरा रचित किताबों से देखेंगे , मसलन इतिहासकर ओक की अवधारनाओ को सच मानेंगे , तब वह तथ्य और तर्कहीन होगा |
ज़रूरत हैं देश की आज़ादी की लड़ाई और देश के पुनर्निर्माण मैं इनके योगदान को सार्वजनिक छेत्र मैं मजबूती से रखने की |