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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Dec 12, 2019


नागरिक संशोधन कानून ?

अमित शाह जी -खंडित जनादेश से – पूर्वोतर के हिन्दू युवको में आक्रोश क्यो !




सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर आसाम में "”नागरिकों "” की पहचान की कवायद के परिणाम में तीन साल और 1600 करोड़ रुपये के खर्चे के बाद भी संघ और बीजेपी की मुसलमान विरोधी कारस्तानी में "”विदेशी नागरिक {यानि की मुसलमान } तो इतने भी नहीं निकले की असम सरकार द्वरा निर्मित छ डिटेन्सन सेंटर अर्थात यातना गृह, जिनकी बंदी छंमता तीस हज़ार उन्हे भी ! भरा जा सके !! परंतु जैसे हर व्यक्ति के दुर्दिन आते हैं --उसी प्रकार आज़ादी के सत्तर साल बाद भारत अर्थात इंडिया के दुर्दिन शुरू हुए --- या यूं कहे की सनिशचर की साढे साती शुरू हो गयी ! संसद में बहुमत देश का जनादेश नहीं --वह सांकेतिक या प्रतिनिधिस्वरूप है , जो सरकार बनाने के लिए हो सकती हैं ,परंतु देश की आवाज नहीं हो सकती ! संसद जब किसी पार्टी के घोषणा पत्र या अपने कुछ "”जुनटा टाइप "”नेताओ की सनक की गुलाम की तरह व्यव्हार करती हैं ----तब वह उस रोमन सीनेट की तरह व्यवहार करती है ---जो जूलियस सीजर की सदन में हत्या करती है ! भारतीय संविधान की "”मूल भावना "” जो सर्वप्रथम लिखी हुई हैं ---जब उसको ही संसदीय प्रक्रिया और बहुमत के आसरे नकार दिया जाए , तब कैसा लोक तंत्र ! नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी को यह नहीं भूलना चाहिए की उनके बहुमत से कनही अधिक राजीव गांधी को भी बहुमत मिला था | परंतु उन्होने दलबदल कानून बनाया था --जिससे की जन प्रतिनिधि मनमानी तरीके से पैसे पर या मंत्री पद के लालच में जिस पार्टी से जनता द्वरा चुने गए उसे छोड़ दे ! परंतु आज की इस युगल जोड़ी ने अपने धनपती मित्रो की मदद से सारे देश के राज्यो में दल बदल को ही अपने अलपमत को सीबीआई और ईडी की सहायता से सरकारे बनाई --- अदालतों को भी प्रभावित किया |तब अगर कनही संसद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके राजनीतिक मुखौटे भारतीय जनता पार्टी को कानुनन प्रतिबंधित कर देती ---तब भी क्या वह जनदेश होता ? या लोकतान्त्रिक होता ?

अमित शाह जी आपकी रणनीति तो उल्टी पड गयी – क्योंकि अपने "”पोषित पूर्वोतर की "” सेवेन सिस्टर्स "” प्लस वन के लोगो की अस्मिता की रक्षा के नाम पर "’अपने घोषणा पत्र के वादे "” की आड़ में मुसलमानो को यातना ग्रहो में रखने का की जो चाल चली थी --वह तो उल्टी पड़गयी ! समस्त पूर्वोतर में आज युवक -युवतियाँ सड़क पर विरोध कर रहे हैं , और आप काश्मीर की भांति वनहा भी सेना को सन्नध कर रहे हैं ! आंदोलनकारियों ने तो वैसे ही असम - त्रिपुरा -अरुनञ्चल - मणिपुर मे बंद का नारा दिया हुआ हैं --तो आप करफ़्यू लगाने की और सेना को अलर्ट करने का नाटक क्यू ! सबसे बड़ी बात यह हैं की इन आंदोलन कारियों में सभी हिन्दू हैं ! मुसलमान नहीं |

जनादेश का सच :- भारत गणराज्य में मौजूदा 28 राज्यो में कुल विधान सभा सीट है 4139 , जिसमे से भारतीय जनता के पास मात्र 1519 हैं , – क्या इन सभी को देश का जनादेश माना जा सकता हैं ? दूसरे लिटमुस टेस्ट में इन 28 राज्यो में में मात्र 6 राज्यो में – गुजरात - कर्नाटक - हिमांचल - उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड और गोवा में ही इनकी शुद्ध रूप से सरकार हैं ! बाकी बिहार - हरियाणा असम - त्रिपुरा - मणिपुर - मेघालय में "” मिलवाटी" सरकार हैं | चार राज्यो में तो इनकी पार्टी ज़ीरो बट्टा स्न्नटा प्रतिनिधित्व हैं ! इस स्थिति में देश का जनादेश कहना कितना सच हैं आप जाने ! वैसे काँग्रेस की भी शुद्ध सरकार मध्य प्रदेश -पंजाब - छतीसगरह -और राजस्थान में भी हैं | महाराष्ट्र और केरल में उनके मोर्चे की सरकार हैं ----तब क्या सिर्फ लोकसभा और राज्य सभा में "” प्रबंध "” के गणित से नागरिकता विधेयक को पारित कराना – क्या नरेंद्र मोदी जी के शब्दो में "” इस बिल को स्वर्ण अक्षरो "” में लिखे जाने की संज्ञा को प्रपट करता हैं ? विचार करने का विषय हैं |

न्यायाधीशो की नजर में :- भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश श्री लोडा ने इस कानून को पूरी तरह असंवैधानिक बताया हैं | लोढाजी को लोग सरकार के प्रति नरम रवैया रखने वाला मानते हैं | ये वही न्यायाधीश हैं जिनहोने बोर्ड ऑफ क्रिकेट कंट्रोल ऑफ इंडिया --में व्ययप्त धांधलियों को चुस्त और -दुरुस्त करने के लिए नियम बनाया था -की दो बार से अधिक अवधि के लिए पड़ पर निर्वाचित लोग आगे के चुनावो के लिए '’अयोग्य हो जाएब्गे " | उनके इस सुधार के कारण ही दासियो वर्षो से धन और राजनीतिक रसूख से पड़ पर बैठे लोगो को क्रिकेट की राजनीति करने से बाहर कर दिया |

नागरिकता विधि और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजेन्शिप :- सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में असम में "”विदेशियों की पहचान "” करने के लिए की गयी इस कवायद में निम्न कामिया हैं :-
1-- असम में रहने वाले हर रहवासी /निवासी को यह साबित करना है की वह भारत का कानूनन नागरिक हैं | साक्ष्य विधि के अनुसार यह दावित्व सरकार है की वह यह सिद्ध करे अमुक विदेशी घुश्पैठिया हैं | हालांकि अमित शाह जी ने लोक सभा में भले "घुसपीठिए शब्द '’का प्रयोग किया हो परंतु राज्य सभा में उन्होने इस शब्द को बादल कर "” विदेशी "” कहा | अब कोई विदेशी है अथवा नहीं यह तो उसके निवास और जनम प्रमाण पत्र से साबित होता हैं | परंतु नहीं सुप्रीम कोर्ट की निगरानी और श्री हजेला के नेत्रत्व में की गयी कारवाई के अनुसार इस देश के पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय फख़रुडीन आली अहमद के परिवार को को --विदेशी नागरिकों की पहचान के लिए बने ट्रीबुनल के सामने सिद्ध करना हगा की वे भारत के नागरिक हैं !!

2:- किसी नागरिक की पहचान उसके जन्म प्रमाण पत्र से होती है | गावों में भी पंचायत रजिस्टर में ग्रामवासियों की जनम और मौत का रेकॉर्ड रहता हैं | कम से कम उन इलाको में जो आजादी से पूर्व ब्रिटिश शासन के सीधे अधीन थे | आज़ादी के बाद होने वाले चुनाव में जो व्यक्ति 21 वर्ष का था उसका नाम वॉटर लिस्ट में होता हैं | राजीव गांधी के काल में यह आयु 18 वर्ष कर दी गयी | स्वर्गीय शेसन ने फोटो युक्त वोटर पहचान पत्र बनने के बाद -स्थिति और स्पश्स्त हो गयी | अब वोटर तो वही हो सकता हैं जो "” भारत का नागरिक होता हैं "” | तब स्वर्गीय अहमद के परिवार के लोग स्व्यमेव इस देश के नागरिक हैं ! परंतु नहीं - वे मुसलमान हैं इसलिए उन्हे अपनी नागरिकता सिद्ध करनी होगी |
इसी तारतम्य में आधार कार्ड भी बना ---वह भी भारत के नागरिकों के लिए ही था -किसी विदेशी नागरिक के लिए नहीं था | यदि किसी के पास आधार कार्ड हैं तब भी वह इस देश का नागरिक हैं |
तीसरा गरीब मजदूरो के लिए , जो की पूर्वोतर में बहुतायत से हैं – उन्हे सरकारी योजनाओ में कार्य करने के एवज़ में "”मनरेगा कार्ड "” बनाए गए हैं वे भी उनही के लिए हैं जो उस इलाके के स्थायी निवासी होते हैं , और वे पंचायत के रजिस्टर में पंजीकरत होते हैं , कम से कम नियम तो यही हैं |
चौथा पहचान पत्र पैन नंबर कार्ड का हैं ---जो नए नियमो के तहत सभी को बनवाना पड़ता हैं -भले ही वह विद्यारथी ही क्यो ना हो | यह आयकर विभाग द्वरा जारी किया जाता हैं |

हर दस वर्ष में देश में जनगणना होती हैं , जो घर - घर जाकर की जाती हैं | इसमे परिवार के सभी सदस्यो का विवरण होता हैं | पिछले बार से दिव्यंग यानि स्पेशल बच्चे अर्थात जिनमें की शारीरिक या मानसिक कमी हो उनका भी ब्योरा रखा जाता हैं | आम तौर पर निवास के लिए जनगणना रेकॉर्ड ही प्रमाण पत्र होता हैं | अगर सरकार या शासन को किसी भी व्यक्ति के मूल निवास का पता करना हो तो ,इस रेकॉर्ड से पता चलता हैं |
अब असम में उत्तर प्रदेश और बिहार से पिछली शताब्दी में काम की तलाश में लाखो लोग वनहा गाये थे | जैसे 19वी सदी में मरीशस - त्र्निदाद आदि देशो में भी पुरवांचल से "” गिरमिटिया "” मजदूर यानि की एग्रीमंट के तहत विदेश भेजे जाने वाले मजदूर ! उसी की तर्ज़ पर असम के चाय बागानो मे अंग्रेज़ यू पी और बिहार से मजदूरो को लेकर आए थे | जो बाद में जमीन साफ कर के खेती करने लगे | असम गण संग्राम परिषद के "”बाहरी लोगो को "” निष्काषित करने के आंदोलन के बाद इनके नाम जन गनना में तो आए परंतु इन्हे "”मतदान का अधिकार नहीं मिला "” | संघ और मोदी -शाह की कोशिस थी की इनमे मुसलमानो को "””बाहरी नागरिक "” या विदेशी नागरिक "” बता कर यातना ग्रहो में रखा जाए ---जिससे की बीजेपी विरोधी वोट सदा के लिय बाहा र हो जाए |
सवाल हैं की क्या देश धरम के आधार पर होने वाले इस एनआरसी की स्वीकार करेगा ? पंजाब और बंगाल के मुख्य मंत्रियो ने तो साफ मना कर दिया हैं |

साक्ष्य अधिनियम --- के अनुसार आपराधिक प्रक्रिया में दोष सिद्ध करने का काम शासन का होता है | परंतु महाराष्ट्र के "” मकोका "” कानून जो की माफिया गिरोह के लोगो के लिए इस्तेमाल किया जाता है ------उसमें यह धारा हैं की आरोपी को सिद्ध करना होता हैं की वह "””निर्दोष "” हैं | कुछ इसी प्रकार का प्रावधान वर्तमान सरकार ने इस नागरिकता कानून में भी किया हैं | अब यह कान्हा तक न्याय हैं की लाखो लोगो को स्वयं सिद्ध करना पड़े की वे भारतीय नागरिक हैं ?