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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 3, 2013

ANNA KS DUM TODTA IMAANDAR AANDOLAN

अन्ना  का  दम तोड़ता   ईमानदार  आन्दोलन 
                          अन्याय और भ्रस्ताचार के खिलाफ शुरू की गयी  जंग का जिस धूम-धाम से  प्रारंभ  हुआ था  उसने साल भर बाद ही दम तोड़ दिया ।मैंने  अपने ब्लॉग  में लिखा था की अरविन्द केजरीवाल और  किरण बेदी  ही इस मुहीम  की हवा निकालने वाले  साबित होंगे , वही  हुआ भी ।मेरे लिखने का आधार  था की सरकारी नौकरी से रिटायर  हुए लोगो के लिए राजनीती और आन्दोलन भी एक हॉबी ही होते हैं ।जिसमें कोई कठिनाई  सामने आते ही वे समझौते  का रास्ता  निकालने   लगते हैं ।वही  हुआ ,अब भी अन्ना  एक रिटायर और विवादित सेना के अफसर  के चंगुल में हैं । जिन्होने अपनी उम्र को लेकर सरकार  और सेना को अदालत के कठघरे में खड़ा कर दिया था । जिस आदमी ने   एक साल की  सेवा अवधि के लिए सेना और सरकार  के सम्मान का ध्यान नहीं रखा उस से देश की जनता के हितो की देखभाल किये जाने की कल्पना भी कठिन हैं ।

                               फ़िलहाल तो अरविन्द केजरीवाल ने अपनी पार्टी बना ली हैं और उसके लिए वे देश तो देश विदेशो से भी चन्दा  उगाही  कर रहे हैं ।पहले देश में एन जी ओ के नाम पर पैसा लिया फिर आन्दोलन के नाम पर करोडो रुपये  इकठा किय और अब चुनाव लडने के नाम पर विदेशो से उगाही  कर रहे हैं ।उधर किरण बेदी ने मनचाही  प्रसिद्धी  न मिल पाने से निराश  हो कर आन्दोलन से किनारा करने का फैसला कर लिया । इन सब  के बीच सच्चे और ईमानदार  अन्ना  फंस गए थे ।दिल्ली में धरना प्रदर्शन कर के    और उसका  और टीवी कवरेज  करा कर इन लोगो को लगा था की वे देश के  नेता बन गए हैं ।उनके बयानों को टीवी चेनल भी प्रमुखता देते थे , क्योंकि उन्हें लगता था की इस से टी आर पी  बढेगी , इस भ्रम में नगरो के काफी  लोग थे । परन्तु अधिक तर छेत्रों  में तो न तो आन्दोलन न ही इसके नेताओ की जानकारी थी । यह सत्य दिल्ली और बम्बई की जनता को समझ  नहीं आता , क्योंकि उनके अनुसार तो जो वे देख रहे वाही सही हैं  ।
               परिणाम हुआ की आन्दोलन का जोश धीरे -धीरे पिघलने लगा , तब  अन्ना  के सयोगियो को लगा की इस जन समर्थन की पूंजी को किसी प्रकार  अपने पाले में रोक लिया जाए । जब उन्हे लगा की बड़े और स्थापित लोगो की सरे -आम टोपी उछालने से लोगो को मज़ा तो आता हैं पर  वे साथ नहीं जुड़ते ।एन जी ओ  चलते वक़्त एक खास वर्ग के लोगो से ही मिलना  होता हैं , सार्वजनिक राजनीती करने में सभी के भलाई की बात करनी होती हैं  ।पच्छपात  तो डालो में भी होता हैं ,पर वंहा कैनवास काफी बड़ा होता हैं  , इसलिए चल जाता हैं , परन्तु आन्दोलन में पारदर्शिता जरुरी  होती हैं ,जो नहीं थी ।इसलिए दम तोड़ दिया ।पर अन्ना का अपने  सिधान्तो पर  विश्वास ही उनकी पूंजी हैं हमे आशा करनी होगी की उन्हे  सच्चे  साथी उनकी लड़ाई के लिए मिले ।