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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Nov 23, 2021

 

कानूनों के वापस का बयान - संसद से निरस्त होने तक भरोसा नहीं

साल भर चले अहिंसक किसान आंदोलन को मोर्चा तब तक नहीं स्वीकार करेगा ,जब तक उन्हे संसद द्वरा निरस्त नहीं किया जाता | एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य 32 फसलों का कानून के रूप में नहीं बनता ! इस दौरान मेघालय के राज्यपाल सतपाल मलिक का कथन स्थिति को स्पष्ट कर देता हैं , की सिख और जाट जल्दी नहीं भूलते | वे अकेले पदासीन नेता हैं जिंका बीजेपी से कोई संबंध नहीं हैं | फिर भी मोदी जी उनके कटु वचनो से नाराज़ हो कर इस्तीफा नहीं लेते ? वे दो - तीन महीनो से सरकार को सलाह दे रहे थे की किसान आंदोलन पर बल प्रयोग करना "”अत्यंत घातक होगा और निराश हो कर वे वापस नहीं जाएंगे अतः उन्हे संतुष्ट कर के ही वापस करना होगा ! “” जिस प्रकार राज्यपाल के पद पर होते हुए मलिक सरकार विरोधी और किसान समर्थक बयान दे रहे हैं ----- वह शंका व्यक्त करता हैं ,की मोदी जी नरम हो गए हैं | वरना पहले एक राज्यपाल को जो संघ के ही थे उन्हे पद की मर्यादा के वीरुध बयान देने पर पद छोडना पड़ा था | उन्होने भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की बात काही थी |

सतपाल मलिक ने इन्दिरा गांधी के बारे में कहा की उन्होने अकाल तख़त पर फौजी कारवाई की थी ,तब उन्हे अरुण नेहरू ने बताया था की इन्दिरा जी को एहसासा था की सिख उनकी हत्या कर देंगे | जो फलित हुआ | इसलिए अगर मोदी जी कुछ वैसा ही करेंगे तो परिणाम भयंकर हो सकता हैं | उनकी बात में दम है क्यूंकी दिल्ली के द्वार पर साल भर के धरने के दौरान बल प्रयोग नहीं किया | इसलिए यह कहना की मोदी जी ने उदारता वश कोई बल प्रयोग नहीं किया ,कहना सही और उचित नहीं होगा | अहिंसक आंदोलन पर बल प्रयोग छुब्ध लोगो को हिंसा करने पर प्रेरित कर सकता था | मोदी भक्तो का यह कहना की सरकार साम -दाम - दंड और भेद से आंदोलन को असफल कर सकती हैं , सही नहीं हैं | मोदी सरकार ने आंदोलन में फूट डालने की समय - समय पर कोशिस की ,जिसका एक उदाहरण लालकिले की घटना हैं | जिसे आन्दोलंकारियों की कारस्तानी बताया गया था |


कहावत है की जाट मरा जब जानिए जब तेरही हो जाये , उसी तर्ज़ पर जाट जब तक यह नहीं निश्चित कर लेता है की काले कानून वापस निरस्त नहीं हो जाते उसे प्रधान मंत्री का बयान "””जुमला "” भर लगता हैं ||भले ही मोदी भक्त और गोदी मीडिया इसे मास्टर स्ट्रोक बताए की मोदी जी ने विपक्ष से चुनावी मुद्दा चीन लिया हैं | परंतु सिख और जाटो के नेत्रत्व में किसानो की इस लड़ाई ने सरकार को हिला दिया हैं | वास्तव में लखीमपुर खीरी की घटना ने योगी सरकार और मोदी जी की बैक फूट पर खड़ा कर दिया हैं |

कंगना राणावत और सुधीर चौधरी तथा अंजना ओम कश्यप जैसे प्रस्तोता इस आंदोलन को विदेशी साजिश बताते हैं | उनके अनुसार जब क्रशि के तीनों कानुन अदालत द्वरा स्थगित किए गए हैं तब उनके प्रभाव का आंकलन कैसे किया गया ? उनके अनुसार कानूनों की वापसी के बाद न्यूनतम मूल्य का कानून तथा उसके बाद नागरिकता कानून को भी वापस लेने की मांग उठेगी | बीजेपी नेता अभी भी सार्वजनिक बयानो में कह रहे हैं की "””कानुन का क्या दुबारा फिर ले आएंगे चुनावो के बाद " “ राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्रा ने भी कहा हैं की बाद मे { चुनाव के बाद } फिर कानून को लाया जा सकता हैं | इन बयानो के चलते किसान नेता टिकैत ने लखनऊ की पंचायत में कहा की "””अब लगता हैं की मोदी जी का बयान , कोई प्लॉट हैं | बिना वार्ता के जिस प्रकार एक तरफा बयान आया हैं , वह या तो बीजेपी की चुनावो में पराजय के डर से आया हैं | इसलिए वे इस बयान से अपनी संभावित हार से बचना चाहते हैं |

लखीमपुर खीरी कांड में जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार और उसकी पुलिस के प्रति शंका व्यक्त की है और सीबीआई को जांच देने से इंकार किया , उससे भी जन मानस में पुलिस के खूंखार और एक तरफा जांच की ही पुष्टि होती हैं | कानपुर के व्यापारी की गोरखपुर में जिस प्रकार पुलिस ने हत्या की हैं , उस मुकदमें को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में सुने जाने का आदेश दिया हैं | खीरी कांड की जांच पहले ही हाइ कोर्ट के अवकाश प्रापत जज द्वरा जांच करने के निर्देश दिये हैं | यह जज हरियाणा के हैं |

अदालत के फैसलो को बीजेपी और उनकी सरकारे राजनीति प्रेरित नहीं कह सकती हैं | जब जनता के मन में सरकार की ईमानदारी और निसपक्षता पर विश्वास नहीं हो तब सरकारे भी "”हिलने लगती हैं "” | मीडिया में मोदी भक्तो द्वरा काले कानूनों को वापस लिए जाने के प्रधान मंत्री के बयान को "””उनकी सदाशयता और उदारता बताए जाने को "”” आम आदमी विश्वास नहीं करता | जिस प्रकार बंगाल चुनावो के पहले पेट्रोल डीजल के दाम बदने से रुक गए थे , उसी प्रकार उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले इस बयान को भी भरोसे लायक नहीं मान रहे हैं |

जनता का कहना हैं की पहले मोदी सरकार कहती थी की पेत्र्ल और डीजल के दाम घटाना उसके अधिकार में नहीं हैं | फिर हिमाचल और उप चुनावो में मिली पराजय के बाद एक दम से सरकार द्वरा उनको कम करना सरकार के पाखंड को उजागर करता हैं |

दरअसल इस बार हालत के लिए पुरानी सरकारो पर दोष नहीं लगा सकते ,क्यूंकी घटनाए मोदी जी के समय में हुई हैं | वैसे मोदी द्वरा कानूनों को वापस लेने से उनके कट्टर भक्तो में बड़ी हताशा हैं | उनके मन की मूरत में तो नरेंद्र मओडी "”सर्वशक्तिमान " के रूप में बिराजते हैं , फिर वे कुछ देश द्रोहीयों के सामने आतम समर्पण कैसे कर सकते हैं | अनेक भगवा धारी स्त्री - पुरुषो ने तो इस बयान पर बड़ी व्यथा व्यक्त की हैं |