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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 27, 2015

jजनसंख्या के आंकड़े और पटेल समुदाय का आरक्षण दो या इसे भी खतम करो की मांग -डरावनी

जनसंख्या—धर्म-- जाति  और आरक्षण  एक  यक्ष प्रश्न

       अहमदाबाद  मे हार्दिक पटेल  का  आरक्षण की मांग की रैली  के एक दिन पूर्व  ही धर्म आधारित  जनसंख्या के आंकड़ो का प्रकाशित होना  ,,, क्या सयोग है अथवा  बिहार  चुनाव  की संध्या पर जाति के वोट बैंक  पर  धर्म के आधार पर बाटने की कोशिस ? कहना कठिन है |
लेकिन इतना तो स्पष्ट  है की दोनों ही घटनाओ के  राजनीति मे दूरगामी परिणाम होंगे |मेरे अनुमान से  एक तथ्य साफ है की – सनातन धर्मियों और इस्लाम  के मानने वालों की आबादी बदने की रफ्तार  मे कमी आई है |यह इस बात का सूचक है की  दोनों ही धर्मो के लोगो को को एका बात समझ मे आ रही है की ‘’बच्चे ऊपर वाले की देन नहीं है “”” और योग्य संतान का संरक्षक होना बेहतर है –ना की ज्यादा संतानों के माता-पिता होना |  इस से यह अफवाह भी व्यर्थ सिद्ध होती है की 2020 तक मुसलमान हिन्दुओ के बराबर हो जाएंगे | उस स्थिति के लिए  मुसलमानो को “””पाँच गुना “” आबादी बढाना   होगा | जो की संभव नहीं है | इसलिए  दोनों धर्मो के कट्टर पंथियो द्वारा  "'अधिक से अधिक संतान पैदा करने की सलाह और हिदायत '' प्रचार पाने का जरिया भर ही है | ना तो यह धार्मिक है और ना ही गरीबी दूर करने का जरिया है | बीस - तीस वर्षो पूर्व साधन हीन परिवारों मे ज्यादा  बच्चो के समर्थन मे कहा जाता था की ""बड़ा होकर यह भी परिवार की कमाई मे  बढोतरी करेगा """ कम से कम अब इन वर्गो मे भी शिक्षा के प्रति जागरूकता देखि गयी है | गलियो मे मांटेसरी और पब्लिक स्कूलों का बोर्ड लगाए  - कच्चे  -पक्के साधन हीन विद्यालयो मे  छोटे -छोटे लड़के और लड़कियो को ड्रेस मे पड़ते देखा जा सकता है | यह सती है की इन स्कूलो  मे एक या दो ही अध्यापक होते है ,, और पढ़ाई  भी स्तरहीन  होती है |परंतु अक्षर ज्ञान और गिनती तो सीख ही जाते है | यद्यपि इन तथाकथित  विद्यालयो की फीस भी सरकारी स्कूलो से अधिक यानि की सौ रुपये से अधिक होती है |बच्चो को लाने और भेजने के लिए भी घर का कोई सदस्य लगा रहता है |
                               एक ओर यह जागरूकता है तो दूसरी ओर जाति और धर्म के नाम पर इन लोगो को मंदिर के पुजारी और भगवा धारी बाबा तथा मस्जिदों के मुल्ला - मौलवी बरगलाते रहते है | जिसके कारण धर्म की ''आवाज़ "" पर  बुद्धि मात खा जाती है | अब इन जनसख्या के आंकड़ो का छानबीन करे तो  पाएंगे की  हिन्दू और मुस्लिम का अनुपात 5:1  का है |  किसी धर्म की आबादी मे कितनी संख्या है यह महत्वपूर्ण नहीं है वर्ण उसका राष्ट्र की प्रगति मे योगदान कितना है यह ज्यादा जरूरी है | अब जैन समुदाय का वेदिक धर्म वालो से अनुपात बहुत विषम है – एक  जैन व्यक्ति के   मुक़ाबले 214  हिन्दू बैठते है | परंतु अनुभव से हम सभी जानते है की  इस सौदे की संपन्नता  और भागीदारी कनही अधिक है | पारसियों का उद्योग और व्यापार मे योगदान तो जग ज़हीर है और आबादी कुछ हज़ार ही है !

            इसलिए इन आकड़ों के धर्म और जातीय संख्या  का असर किसी योजना अथवा कार्यक्रम के लिए नहीं वरन किसी आँय उद्देस्य से है | बिहार के चुनाव मे धर्म और जातियो  का ''अहम भूमिका है '''' वे अलग -अलग दलो के वोट बैंक है , यह सर्व विदित है | अब इसी समीकरण को बनाने और बिगड़ने का खेल इन आंकड़ो से खेला जाएगा |  परंतु अहमदाबाद मे 22 वर्षीय हार्दिक पटेल की अगुवाई मे अनेक लाख लोगो की यह मांग की  हमको भी ""आरक्षण""" दो अन्यथा  इसे कहातम करो | यह आंदोलन सिर्फ आरक्षण की मांग का होता तो गुजरो  के राजस्थान और हरियाणा के जातो की भांति होता -परंतु यह मांग करना की आरक्षण समाप्त करो '''गंभीर मुद्दा ""' है | यह सही है की शुरुआत मे यह संवैधानिक सुविधा बीस वर्षो के लिए थी | जिसे सदैव आगे बड़ाया जाता रहा ,और किसी भी राजनीतिक दल मे यह साहस नहीं रहा की वह इस का विरोध करे | क्या पटेलों के इस आंदोलन का मक़सद  आदिवासी और दलितो  को मिलने वाले आरक्षण को समाप्त करना है ? अगर ऐसा हुआ तो  यह नरेंद्र मोदी का तुरुप का पत्ता होगा | जिस प्रकार से बीजेपी और प्रधान  मंत्री इस समस्या के प्रति आतुरता के स्थान पर 'ठंडे से ' बैठे वह शंकित करने वाला है | आगे  देखिये क्या होता है ......