देश
के सबसे बड़े धन पति पुत्र की
अरबों की शादी में व्यस्त
छोटा
भाई दिवालिया होने की कगार
पर -अदालत
में घूम रहा हैं
जी
हाँ यह कहानी हैं अंबानी परिवार
की – मुकेश अंबानी अपने पुत्र
आकाश के विवाह का प्रथम निमन्त्र्न
पत्र 12
फरवरी
को मुंबई के सिद्धि विनायक
मंदिर में देवता के चरणों में
समर्पित कर रहे थे,
|उसी
समय उनके छोटे भाई अनिल अंबानी
एरिक्ससन कंपनी को 550
करोड़
की देनदारी के सुप्रीम कोर्ट
के आदेश को पालन करने में विफल
रहने पर ---अदालत
की अवमानना झेल रहे थे !
विधि
का विधान शायद इसी को कहते
हैं -एक
बाप के दो लड़के किस्मत ज़ुदा
ज़ुदा |
इन
बड़े पैसे वालो में आदमी की
हैसियत उसके पैसो से या उसकी
राजनीतिक ताकत से नापी जाती
है |
इसीलिए
विगत जून माह में मुकेश अंबानी
की पुत्री ईशा का विवाह जब
पिरामल परिवार में हुआ ----तब
भी अनिल उनकी पत्नी टीना मुनीम
और दोनों लड़को का इस इस समारोह
में कनही आता पता तक नहीं था
|
वही
आकाश की मंगनी समारोह के भव्य
आयोजन --जिसमैं
बालीवूड के बड़े सितारो को तो
डांस करत्ने के अनेक वीडियो
सोश्ल मीडिया में आते |परंतु
उनमें परिवार के छोटे भाई का
कोई अतापता नहीं था !!
उम्मीद
की जा रही हैं की अनिल के दोनों
लड़के आकाश की बेचलर्स पार्टी
-जो
23
--25 फरवरी
तक स्विट्ज़रलैंड में होने
वाली हैं ,उसमें
शामिल नहीं किया जाये |
तब
9
मार्च
के विवाह के भव्य समारोह का
निमंत्रण भी मिला होगा या नहीं
--कहा
नहीं जा सकता |
इन
पारिवारिक आयोजनो में घर की
सबसे बड़ी महिला धीरु भाई अंबानी
की विधवा कोकिला बेन का चुप
रहना भी सवालिया निशान लगाता
हैं |
ये
वही अनिल अंबानी हैं जिनके
लिए कहा जाता हैं की सरकार ने
राफाईल विमानो की खरीद के लिए
– मान्य कारोबारी नियमो को
शिथिल कर इनकी कंपनी रिलायंस
नेवल को भारत में विमान के कल
-पुर्जे
बनाने और विमान के हिस्सो को
असेंबल करने का ठेका ड्साल्ट
अविएशन ने किया था |
जिसको
लेकर काँग्रेस सहित विपक्ष
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी
पर आरोप लगा रहा हैं|
| कुछ
लोगो का मानना हैः की प्रधान
मंत्री नरेंद्र मोदी से घनिष्टता
के बावजूद मुकेश अंबानी विपक्ष
के निशाने से बचना चाहते है
|
क्योंकि
उनकी टेलीकॉम और ऑइल के गोदावरी
बेल्ट में तेल निकालने के
मामले में मोदी के बाद की सरकार
कोई कानूनी कारवाई करना नहीं
शुरू कर दें |
क्योकि
तब उन्हे भी बहुत दिक्कतों
का सामना करना पद सकता हैं
<जैसे
अभी उन्हे छोटे भाई कर रहे हैं
|
हालांकि
गुजरात के कई हीरा व्यापारी
जो मुकेश अंबानी के "”समधी
मोहता "””
के
पासंग भी नहीं होंगे |
परंतु
उनमें से अनेकों ने परिवार
के मांगलिक अवसरो पर अपने
कर्मचारियों को मकान और कार
देकर अपनी खुशिया बांटी हैं
| परंतु
शायद मुकेश अंबानी बॉलीवूड
और होलीवूड के सिने जगत के
लोगो की भांति "”चमकदार
-धमकदार
आयोजन से अपनी स्थिति {जिसके
बारे में लोगो की धारणा है }को
जताना चाहते होंगे |
लेकिन
यह सब कुछ उन लोगो के लिए -उन
लोगो में -उनही
लोगो द्वारा किया जाने वाला
हँगामा होगा ---जो
धन के वैभव के ऐसे प्रदर्शन
के आदी हैं |
रिलायंस
समूह के कर्मचारी तो बस किस्से
ही सुनेंगे |आम
हिन्दुस्तानी बीते समय के
राजे -
रजवाड़ो
की शादियो के वैभव प्रदर्शन
से तुलना करेगा |
वह
इसी में खुश होकर संतुष्ट हो
लेगा |
कभी
कभी तो उस उस निराकार शक्ति
के न्याय पर छोभ भी होता है
-----इतनी
असमानता पर |
वर
- वधू
के कल्याण की सभी कामना करेंगे
यह हमारी आरी वेदिक सभ्यता
और संस्कार हैं |
परंतु
मुकेश अंबानी जरूर अपने अनुज
के लिए अमर सिंह नहीं बन रहे
हैं |
कम
से कम धीरुभाई अंबानी द्वरा
स्थापित औद्योगिक साम्राज्य
के ‘’’आधा हिस्से ‘’ पर दिवालिया
होने की कारवाई जनहा अनिल
अंबानी को ज़मीन पर ला देगी ,
वनही
मुकेश को लोग यही एहसास दिलाते
रहेंगे की वे एक असफल अनुज के
अग्रज हैं |
साहू
जैन ऊद्द्योग समूह में -तथा
बिरला समूह जेके समूह में भी
विरासत के विभाजन के बाद --कोई
एक ही परिवार के नाम को रोशन
कर पाया |
बजाज
हो गोदरेज हो वनहा भी यही कहानी
है |
यूं
तो देश के जाने -
माने
पारंपरिक घराने टाटा -बिरला
या मफ़्त्लल -रूईया
-जेके
ग्रुप आदि जो ब्रिटिश काल से
चले आ रहे थे ,
और
जो औद्योगिक एकाधिकार कानून
के तहत आते थे ------उनका
पराभव बीनस्वी सदी के अंत तक
हो चुका था |
केवल
टाटा समूह ही एक मात्र इसका
अपवाद हैं |
शायद
इसका कारण है की इस ग्रुप की
औद्यगिक इकाइयां एक ट्रस्ट
द्वरा नियंत्रित होती हैं |
हालांकि
इस ट्रस्ट में केंद्र सरकार
का भी दखल हैं |
उनकी
ओर से एक व्यक्ति बोर्ड ऑफ
डाइरेक्टर में होता हैं |
इस
ग्रुप की सांझी विरासत ही
इसकी ताकत हैं |
इस
समूह के मुखिया वैभव प्रदर्शन
की बीमारी से बहुत दूर हैं |
सादगी
भरा जीवन और सहज लाइफ स्टाइल
सेठ -सेठीयों
-चेटटियारो
से अलग करती हैं |
राजनीति
से भी इस समूह की दूरी स्पष्ट
हैं |
नवल
टाटा द्वरा चुनाव लड़ने के कारण
उन्हे समूह की मुखियागिरी
से वंचित कर दिया गया |
कहते
है की इनके यानहा अफसरो को
रिश्वत खिलाने की मनाही हैं
| अब
देश की भ्रष्ट अफसरशाही और
राजनीतिक तंत्र में कैसे
ज़िंदा हैं ,यह
खोज का विषय हो सकता हैं |
अनेक
ऐसे उद्यमो में ,जनहा
शासकीय अनुमति लेना टेड़ी खीर
है ,वनहा
कैसे काम चलता होगा |
टाटा
डोकोमो का पराभव इसी तथ्य का
उदाहरण हैं |
टाटा
समूह में वे खुद अरबपति नहीं
होते ---भले
ही वे अरबों की संपति या उद्योग
का नियंत्रण करें |
कहते
हैं एक बार किसी ने अंबानी के
वैभव पूर्ण व्ययहार और टाटा
हाउस की सादगी में अंतर का
कारण जानना चाहा -
क्योंकि
टाटा हाउस अंबानी से संपाती
और औद्योगिक इकाइयो के मामले
में कम नहीं है ---
फिर
क्यो टाटा के डाइरेक्टर अपनी
कार भी खुद ही चलते हैं -
निजी
समय में |
दूसरी
ओर मुकेश अंबानी के साथ उनके
अधिनास्थों की फौज चलती हैं
| वे
महंगी से महंगी गाड़ी में चलते
हैं ?
तब
रत्न टाटा ने कहा था की अंबानी
व्यापारी है और हम उद्योगपति
हैं |
कहने
का मतलब था की उद्योग की हैसियत
उसके उत्पादो से होती हैं |
एवं
व्यापार में वस्तु का जोरदार
प्रचार ही उसे ग्राहको तक
पंहुचता है |
वस्तु
की गुणवतता का इसमें कोई हाथ
नहीं होता |