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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 13, 2019


देश के सबसे बड़े धन पति पुत्र की अरबों की शादी में व्यस्त
छोटा भाई दिवालिया होने की कगार पर -अदालत में घूम रहा हैं

जी हाँ यह कहानी हैं अंबानी परिवार की – मुकेश अंबानी अपने पुत्र आकाश के विवाह का प्रथम निमन्त्र्न पत्र 12 फरवरी को मुंबई के सिद्धि विनायक मंदिर में देवता के चरणों में समर्पित कर रहे थे, |उसी समय उनके छोटे भाई अनिल अंबानी एरिक्ससन कंपनी को 550 करोड़ की देनदारी के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पालन करने में विफल रहने पर ---अदालत की अवमानना झेल रहे थे ! विधि का विधान शायद इसी को कहते हैं -एक बाप के दो लड़के किस्मत ज़ुदा ज़ुदा | इन बड़े पैसे वालो में आदमी की हैसियत उसके पैसो से या उसकी राजनीतिक ताकत से नापी जाती है | इसीलिए विगत जून माह में मुकेश अंबानी की पुत्री ईशा का विवाह जब पिरामल परिवार में हुआ ----तब भी अनिल उनकी पत्नी टीना मुनीम और दोनों लड़को का इस इस समारोह में कनही आता पता तक नहीं था | वही आकाश की मंगनी समारोह के भव्य आयोजन --जिसमैं बालीवूड के बड़े सितारो को तो डांस करत्ने के अनेक वीडियो सोश्ल मीडिया में आते |परंतु उनमें परिवार के छोटे भाई का कोई अतापता नहीं था !! उम्मीद की जा रही हैं की अनिल के दोनों लड़के आकाश की बेचलर्स पार्टी -जो 23 --25 फरवरी तक स्विट्ज़रलैंड में होने वाली हैं ,उसमें शामिल नहीं किया जाये | तब 9 मार्च के विवाह के भव्य समारोह का निमंत्रण भी मिला होगा या नहीं --कहा नहीं जा सकता | इन पारिवारिक आयोजनो में घर की सबसे बड़ी महिला धीरु भाई अंबानी की विधवा कोकिला बेन का चुप रहना भी सवालिया निशान लगाता हैं |

ये वही अनिल अंबानी हैं जिनके लिए कहा जाता हैं की सरकार ने राफाईल विमानो की खरीद के लिए – मान्य कारोबारी नियमो को शिथिल कर इनकी कंपनी रिलायंस नेवल को भारत में विमान के कल -पुर्जे बनाने और विमान के हिस्सो को असेंबल करने का ठेका ड्साल्ट अविएशन ने किया था | जिसको लेकर काँग्रेस सहित विपक्ष प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप लगा रहा हैं| | कुछ लोगो का मानना हैः की प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से घनिष्टता के बावजूद मुकेश अंबानी विपक्ष के निशाने से बचना चाहते है | क्योंकि उनकी टेलीकॉम और ऑइल के गोदावरी बेल्ट में तेल निकालने के मामले में मोदी के बाद की सरकार कोई कानूनी कारवाई करना नहीं शुरू कर दें | क्योकि तब उन्हे भी बहुत दिक्कतों का सामना करना पद सकता हैं <जैसे अभी उन्हे छोटे भाई कर रहे हैं |

हालांकि गुजरात के कई हीरा व्यापारी जो मुकेश अंबानी के "”समधी मोहता "”” के पासंग भी नहीं होंगे | परंतु उनमें से अनेकों ने परिवार के मांगलिक अवसरो पर अपने कर्मचारियों को मकान और कार देकर अपनी खुशिया बांटी हैं | परंतु शायद मुकेश अंबानी बॉलीवूड और होलीवूड के सिने जगत के लोगो की भांति "”चमकदार -धमकदार आयोजन से अपनी स्थिति {जिसके बारे में लोगो की धारणा है }को जताना चाहते होंगे | लेकिन यह सब कुछ उन लोगो के लिए -उन लोगो में -उनही लोगो द्वारा किया जाने वाला हँगामा होगा ---जो धन के वैभव के ऐसे प्रदर्शन के आदी हैं | रिलायंस समूह के कर्मचारी तो बस किस्से ही सुनेंगे |आम हिन्दुस्तानी बीते समय के राजे - रजवाड़ो की शादियो के वैभव प्रदर्शन से तुलना करेगा | वह इसी में खुश होकर संतुष्ट हो लेगा | कभी कभी तो उस उस निराकार शक्ति के न्याय पर छोभ भी होता है -----इतनी असमानता पर | वर - वधू के कल्याण की सभी कामना करेंगे यह हमारी आरी वेदिक सभ्यता और संस्कार हैं | परंतु मुकेश अंबानी जरूर अपने अनुज के लिए अमर सिंह नहीं बन रहे हैं |

कम से कम धीरुभाई अंबानी द्वरा स्थापित औद्योगिक साम्राज्य के ‘’’आधा हिस्से ‘’ पर दिवालिया होने की कारवाई जनहा अनिल अंबानी को ज़मीन पर ला देगी , वनही मुकेश को लोग यही एहसास दिलाते रहेंगे की वे एक असफल अनुज के अग्रज हैं | साहू जैन ऊद्द्योग समूह में -तथा बिरला समूह जेके समूह में भी विरासत के विभाजन के बाद --कोई एक ही परिवार के नाम को रोशन कर पाया | बजाज हो गोदरेज हो वनहा भी यही कहानी है |



यूं तो देश के जाने - माने पारंपरिक घराने टाटा -बिरला या मफ़्त्लल -रूईया -जेके ग्रुप आदि जो ब्रिटिश काल से चले आ रहे थे , और जो औद्योगिक एकाधिकार कानून के तहत आते थे ------उनका पराभव बीनस्वी सदी के अंत तक हो चुका था | केवल टाटा समूह ही एक मात्र इसका अपवाद हैं | शायद इसका कारण है की इस ग्रुप की औद्यगिक इकाइयां एक ट्रस्ट द्वरा नियंत्रित होती हैं | हालांकि इस ट्रस्ट में केंद्र सरकार का भी दखल हैं | उनकी ओर से एक व्यक्ति बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर में होता हैं | इस ग्रुप की सांझी विरासत ही इसकी ताकत हैं | इस समूह के मुखिया वैभव प्रदर्शन की बीमारी से बहुत दूर हैं | सादगी भरा जीवन और सहज लाइफ स्टाइल सेठ -सेठीयों -चेटटियारो से अलग करती हैं | राजनीति से भी इस समूह की दूरी स्पष्ट हैं | नवल टाटा द्वरा चुनाव लड़ने के कारण उन्हे समूह की मुखियागिरी से वंचित कर दिया गया | कहते है की इनके यानहा अफसरो को रिश्वत खिलाने की मनाही हैं | अब देश की भ्रष्ट अफसरशाही और राजनीतिक तंत्र में कैसे ज़िंदा हैं ,यह खोज का विषय हो सकता हैं | अनेक ऐसे उद्यमो में ,जनहा शासकीय अनुमति लेना टेड़ी खीर है ,वनहा कैसे काम चलता होगा | टाटा डोकोमो का पराभव इसी तथ्य का उदाहरण हैं | टाटा समूह में वे खुद अरबपति नहीं होते ---भले ही वे अरबों की संपति या उद्योग का नियंत्रण करें | कहते हैं एक बार किसी ने अंबानी के वैभव पूर्ण व्ययहार और टाटा हाउस की सादगी में अंतर का कारण जानना चाहा - क्योंकि टाटा हाउस अंबानी से संपाती और औद्योगिक इकाइयो के मामले में कम नहीं है --- फिर क्यो टाटा के डाइरेक्टर अपनी कार भी खुद ही चलते हैं - निजी समय में | दूसरी ओर मुकेश अंबानी के साथ उनके अधिनास्थों की फौज चलती हैं | वे महंगी से महंगी गाड़ी में चलते हैं ? तब रत्न टाटा ने कहा था की अंबानी व्यापारी है और हम उद्योगपति हैं | कहने का मतलब था की उद्योग की हैसियत उसके उत्पादो से होती हैं | एवं व्यापार में वस्तु का जोरदार प्रचार ही उसे ग्राहको तक पंहुचता है | वस्तु की गुणवतता का इसमें कोई हाथ नहीं होता |