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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Mar 11, 2019


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का इरादा
पंचो की रॉय सर माथे पर ---पर नाला वनही से बहेगा !!! मंदिर और सबरीमाला पर

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की प्रतिनिधि सभा द्वारा जिस प्रकार के प्रस्तावो को सर्वसम्मति से { वनहा विमत का स्थान नहीं हैं } पारित किया हैं --- उससे लगता है की आगामी चुनावो में भारतीय जनता पार्टी भले ही मंदिर का मुद्दा न उठा पाये ,क्योंकि चार साल की बहुमत की नरेंद्र मोदी की सरकार होने के बाद भी इस ओर कोई ठोष पहल नहीं होने से उनके अपने समर्थको में भी अशन्तोष हैं | परंतु संघ एक सामाजिक संगठन की आड़ में इस मुद्दे को हवा देता रहेगा | हिन्दू की हठधर्मिता की टेक उनका अंतिम आसरा हैं | भले ही इसके लिए उन्हे सर्वोच्च न्यायालय को भी लांच्छन लगाना पड़े | हालांकि सबरीमाला में रज्स्व्ला महिलाओ के प्रवेश को लेकर सबरीमाला देव स्थानम ने भले ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश को स्वीकार कर लिया हो ,परंतु संघ को यह फैसला"” हिन्दू अस्मिता "” पर सतत प्रहार ही लगता हैं | अभी हाल में केरल के बीजेपी नेता ,जो अरुनञ्चल प्रदेश में राज्यपाल थे उनका चुनाव की इस बेला में इस्तीफा देकर सक्रिय राजनीति में जाने का इरादा यही संकेत देता हैं | की वे वनहा जाकर सबरीमाला मामले पर कट्टर वेदिक धर्मियों को इस मामले पर उकसाये , जिससे की बीजेपी का कोई आधार बन सके | क्योंकि लाखो प्रयासो के बाद { हिंसक } भी संघ वनहा अपनी कोई जगह नहीं बना पाया हैं | जैसा की तमिलनाडू में संघ ने किया वही तरीका वे केरल में भी अपना रहे हैं | दक्षिण के प्रांतो में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को उत्तर भारतीय संगठन मानते है जिसका नेत्रत्व मराठी या यूं कहे चितपवन ब्रांहनों के हाथो में हैं | तमिलनाडू में " एंटी ब्रामहन " की भावना बहुत हैं | द्रविड़ कदगम आंदोलन इसका जनक था | आज वनहा की दोनों सबसे बड़ी पार्टियां इसी विचार धारा से प्रभावित हैं | जय ललिता जिनहे लोग '’’अम्मा "” कहते थे जो जनम से ब्रामहन थी परंतु उनका अंतिम संस्कार वेदिक रीति से ना होकर उन्हे दफनाया गया !!! ऐसे माहौल में संघ विगत तीस वर्षो से वनहा अपनी जड़े जमाने की असफल कोशिस कर रहा हैं | केरल में वाम मोर्चे का उदय 1957 मे हुआ था जब कम्युनिस्ट पार्टी के नंबूदरी पाद मुख्य मंत्री बने | यह भारत में पहली गैर कांग्रेससी सरकार थी |

ग्वालियर में हुई संघ की प्रतिनिधि सभा से जो स्वर निकले हैं – वे मोहन भगवत जी के दिल्ली के विज्ञान भवन में दिये गए "”प्रवचन "” सभी भारतीयो में धर्म या जातिमें समरसता के पूरी तरह से विपरीत हैं ! संघ के पदाधिकारी हसबोले जी ने कहा की सुप्रीम कोर्ट द्वारा मंदिर विवाद का हल पंचाट से निकालने का जो प्रयास किया हैं --वह सराहनीय हैं , परंतु पंचाट का निर्णय मंदिर के पक्ष में होना चाहिए !! अन्यथा हमारा आंदोलन चलता रहेगा !! केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओ के प्रवेश पर पाबंदी को समाप्त किए जाने के सर्वोच्च न्यायालय को भी उन्होने "”हिन्दुओ " की आस्था पर कुठराघात बताया हैं ! आगे यह भी कहा गया हैं की राजनीतिक स्टार पर और न्यायालय द्वरा सतत रूप से हमारी धार्मिक आस्था पर कुठराघात किया जा रहा हैं !
इसके पूर्व प्रतिनिधि सभा ने सर्वसम्मति से यह भी प्रस्ताव पारित किया था की हिन्दू धर्म में आ रही "”कुरीतियो "” और बुराइयों का कारण संयुक्त परिवारो का विखंडन होना हैं | जिसके कारण महिलाओ और लड़कियो में पारंपरिक वेश - भूषा के प्रति दुराव होता जा रहा हैं | यह भी कहा गया की विवाह की पवित्रता समाप्त हो रही हैं | युवको में नशे की आदत और व्याहर में उचङ्ख्र्खलता आती जा रही हैं |

संघ के इन प्रस्तावो से यह साफ हो गया है की विश्व स्तर पर सबसे बड़े सान्स्क्रतिक संगठन का दावा करने वाले और सत्तरूद भारतीय जनता पार्टी की मात् संस्था द्वरा कुछ विगत वर्ष फेलही के विज्ञान भवन में दुनिया के मीडिया के सामने सर संघचालक डॉ मोहन भागवत ने अपने उद्देस्यों को नवीन संदर्भों में स्पष्ट किया था | उन्होने गुरु गोलवलकर द्वरा लिखित किताब "”बन्च् ऑफ थाट "” में विधर्मियों के के लिए उनके विचारो को नकारा था | जिस पर संघ मे दायरे में काफी आ
अशंतोष भी व्यक्त किया गया था | क्योंकि गुरु गोलवलकर के ही प्रयासो से संघ का देश में विस्तार हुआ था | संयुक्त परिवार को बचाने के लिए प्रतिनिधि सभा के के मंसूबे पर याद आता हैं ---भागवत जी का इंदौर में दिया गया विवादास्पद भासण --- जिसमें उन्होने सप्तपदी विवाह को एक पुरुष और एक स्त्री के मध्य "” करार '’बताया था !!! जबकि वेदिक धर्मियों और कैथोलीक ईसाइयो के अलावा अन्य सभी धर्मो में "”विवाह -विच्छेद'’ का प्रावधान है | इसीलिए हमारे यानहा इसे पवित्र बंधन कहा जाता हैं | परंतु "”हिन्दू "” [वेदिक या सनातनी नहीं } समाज के स्वयंभू ठेकेदार बने संघ के प्रमुख की इस बात से लोगो की भावना बहुत आहात हुई थी | अब वही संगठन संयुक्त परिवार की बात कर रहा है | इसलिए ही इनके इरादे पाखंड पूर्ण हैं |

संघ द्वारा पंचाट से मनचाहा फैसला करने का यह दबाव मध्यस्था की सुनवाई के पहले जहर बोने जैसा हैं | यद्यपि सुप्रीम कोर्ट में जिन 21 लोगो की याचिकाए मंदिर मामले में लंबित थी ---उनमें संघ या --बजरंगदाल पार्टी नहीं हैं !! फिर भी मुद्दे में ज़बरदस्ती टांग अड़ाने का प्रयास हैं | जिससे की लोक सभा चुनावो में इसे संघ का मुद्दा बना कर बीजेपी को वोट दिलाने में मदद हो |
भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह की तीन डीनो की प्रतिनिधि सभा में मौजूदगी भी संघ की निरपेक्ष च्छवि को नकारता हैं | जब हसबोले जी से इस बाबत सवाल किया गया -तब उनका जवाब था की वे एक राजनीतिक पार्टी है {{{ जैसे की आप नहीं हैं !} और उन्हे सभी से राजनीतिक समर्थन मांगने का अधिकार हैं | चुनाव में आपकी क्या भूमिका होगी ?इस पर उन्होने कहा की हम मतदाताओ से अधिक से अधिक मतदान करने का आव्हान करेंगे | इस बार युवा मतदाता का रुझान ही फैसला बनेगा | परंतु संघ की कथनी और करनी का अंतर इस प्रतिनिधी सभा की बैठक से एका बार और उजागर हो गया |