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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 27, 2023

 

जब जांच ही सज़ा बन जाये –तब अदालतो   का फर्ज़ क्या हो

 

  यह सवाल मोदी सरकार के निज़ाम  में काफी महत्वपूर्ण  है , क्यूंकी  “” जांच के नाम “” पर  सभी केन्द्रीय  जांच एजेनसिया  गैर बीजेपी दलो के नेताओ की जांच के नाम पर  उन्हे हिरासत में लेकर “” अपराधियो “” का लेवल चिपकाने का काम करती हैं | हालांकि  सरकार के आलोचको  को भले ही जेल में दाल दिया हो ----परंतु उनके  खिलाफ , कानूनी की दस्तावेजी , कारवाई  में जांच एजेन्सिया  अदालत में सिर्फ –और समय मांगती नजर आती हैं |   जितनी जल्दबाज़ी  ये एजेंसिया  गिरफ्तारी  करने में करती हैं , वह रफ्तार  अदालत में जैसे ठिठक जाती हैं | आखिर  सर्वोच्च न्यायालय  कब इन जांच एजेंसियो  से यह सवाल करेगी की --- आप जिन आरोपो में नागरिकों को हिरासत में ले रहे हैं ---- उन आरोपो के सबूत क्या हैं ?  क्या गिरफ्तारी के लिए वाजिब आधार हैं ?

       बात करे काँग्रेस के राष्ट्रिय अधिवेशन  के पूर्व छतीसगड के रायपुर में  काँग्रेस के 20 पदाधिकारियों को ईडी की कारवाई में हिरासत में लिया | अब दिल्ली के उप मुख्य मंत्री मनीष सिसौडिया  की सीबीआई द्वरा गिरफ्तारी  और  रौज एवेन्यू  की अदालत ने पाँच दिन की रिमांड सीबीआई को दे दी | क्या ज़िला अदालत –का फर्ज़ बस इतना ही है की वह  जांच एजेंसी की मांग पर बिना दिमाग लगाए  उस पर “”मंजूरी “” देना ही हैं | गौर तलब है की अलीगड  के एक मामले में गोरखपुर के मुस्लिम डाक्टर  को इस बिना पर पुलिस ने गिरफ्तार किया था –की जिलाधिकारी ने विश्वविद्यालय  में उनके भासन  को “” वैमनस्य फैलाने वाला और देश द्रोह  वाला  बताया था | जिसे उच्च न्यायलय  ने तीखी टिप्पणी की थी की डाक्टर के भासण में कौन सा अंश कारवाई का आधार था ! बाद में  जिलाधिकारी  ने इस टिप्पणी के बारे में  प्रैस के सवालो से भागते रहे |

                 पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री चिदम्बरम की गिरफ्तारी के बाद  भी वह मामला  अभी भी अदालत में घिसट रहा हैं | पूना  के सनसनीखेज  मामले जिसमे 6 ऐसे व्यक्तियों  को अभियुक्त बनाया गया – जिनहोने केवल लेखन और समाज सुधार कार्य ही कर रहे थे |  उसमे एक आरोपी फादर स्टेंस जो की 80 वर्ष  से अधिक आयु के थे , जिनहे मेडिकल सुविधा तक नहीं मुहैया कराई | फलस्वरूप  उनकी मौत हो गयी | फर्जी मामलो में लोगो की गिरफ्तारी  , और बाद में उनके  बेगुनाह सिद्ध होने पर जांच अधिकारियों  पर कोई कारवाई ना तो अदालत द्वरा की जाती हैं ना ही  सरकार द्वरा | ऐसे में मंत्री और दारोगा  मनमानी करते रहते है |

  सुप्रीम कोर्ट  ने अपने फैसलो में बार – बार कहा है की जमानत आरोपी का अधिकार हैं ---जिसे निचली  अदालतों द्वरा  स्वीकार किया जाना चाहिय |  दिल्ली के अतिरिक्त ज़िला न्यायाधीश  जे एन यू और जामिया मिलिया  के मामलो में दिल्ली पुलिस ने जिन मुस्लिम युवको को आरोपी बना या था  -- उनके खिलाफ साल भर बाद  भी कोई सबूत नहीं पेश कर पायी । तब जज साहेब ने बहत तीखी टिप्पणी की थी | पर जांच करने वालो पर कोई असर नहीं -----क्यूंकी  सरकार उनका संरक्षण कर रही थी | हक़ीक़त तो यह है की दिल्ली की आप सरकार के वित्त मंत्री सत्येंद्र जैन सात माह से जेल में हैं , पर जितनी जल्दी सीबीआई ने उन्हे बंदी बनाने में दिखाई थी ---- वह अदालत में अभी तक कोई सबूत पेश नहीं कर पाये |

हाकीकत  यह है की  मोदी सरकार के इशारे पर अपने राजनीतिक विरोधियो पर जीतने भी  मामले  जांच एजेंसियो ने दर्ज़ किए – चाहे वह दिल्ली के दंगो का मामला  हो अथवा न्यूज़ लांड्री के संपादक के ट्व्वीट का हो अथवा मलयाली पत्रकार का हो जिनहोने मुरादाबाद  में दलित लड़की से हुए बलात्कार के बाड हत्या फिर सवर्ण ठाकुरो के दबाव  में  रात के अंधेरे में पुलिस के पहरे में उसका दाह संस्कार  का मामला उठाया था | गौर तलब हैं योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री  जन्म से ठाकुर हैं | यह समीकरण सहज ही सारी बाटो का उत्तर  दे देता हैं !

वक़्त आ गया हैं की सुप्रीम कोर्ट   जांच की कारवाई को सज़ा बनने से रोके :-  पुलिस हो या सी आई डी हो इंकम टैक्स हो या फिर ईडी हो या सीबीआई  अथवा एन आई ए ---ये सभी एजेंसिया  भारी भरकम  अफसरो और कारकुनो  तथा अनेक अधिकारो और साजो सामन से लैस  होती हैं | जिसके मुक़ाबले एक नागरिक  “”बस बेचारा “” ही होता हैं |  उसके बाद भी बिना सबूत के गिरफ्तारी  और फिर जमानत का विरोध  --- की आरोपी मामले के गवाहो को डरायेगा | संविधान में मिली आज़ादी को महीनो तक दस बाइ दस की कोठरी  में “”निरपराध “” क़ैद रखना  एक सज़ा ही तो हैं | क्या जिस एजेंसी ने गिरफ्तारी की है –उसको  इसबात  की सज़ा नहीं मिलनी चाहिए  की सने “”बिना पुख्ता सबूतो के आरोपी को किस आधार पर गिरफ्तार किया ?

आखिर ब्रिटिश हुकूमत और तानाशाही  निज़ाम में ही नागरिकों को उनके अधिकारो से वंचित किया जाता रहा हैं | क्या चुनाव में येन्केन प्रकारेन सरकार बना लेना –फिर अपने राजनीतिक विरोधयो  को प्रातड़ित  करना ही मौजूदा निजाम का काम रह गया हैं | सत्ता के पुजारी  के लिए अपनी शपथ का वह भाग भी भूल जाना की “” मै कोई भी निरण्य  बिना किसी राग या द्वेष  के लूँगा “”” भारत के लोकतन्त्र के लिए खतरा है |

लगता है जब तक देश की बहुसंख्यक  जनता इस विषमता के वीरुध सड़क पर नहीं उतरेगी ,तब तक संसद का बहुमत निरंकुश ही रहेगा | अभी सुप्रीम कोर्ट के एक नव नियुक्त जज ने कहा था इज़राइल में नेत्न्यहु की सरकार ने न्यायपालिका को पंगु करने के लिए एक कानून लाने वाले थे --- जिससे की वनहा की सुप्रीम कोर्ट  के फैसले को रद्द करने का अधिकार  संसद को दिये जाने की कोशिस थी | उन्होने कहा की अब जनता में अपने अधिकारो और सरकार की सीमाओ को नियत करने के लिए जन आंदोलन ही करना होगा |

 

 

  

Feb 26, 2023

 

 हरियाणा में पाप और नागालैंड में  गाय भोजन की सामाग्री !

 

   हाल ही में  हरियाणा में राजस्थान के के दो मुस्लिम व्यापारियो जूनिड और नासिर की उनकी बोलाइरो गाड़ी में जलाकर हत्या करने की घटना को तथाकथित  “”गौ रक्षको “” के दो गिरोहो ने की थी | इस घटना को लेकर हरियाणा पुलिस ने राजस्थान पुलिस के खिलाफ अफरन का मामला भी दर्ज़ किया |   बाद की जांच में इस लोंम्हर्शक  घटना  में मानेसर के एक नामजद अभियुक्त  को लेकर उसके समाज के लोगो ने  काफी हो हल्ला किया था –यानहा तक  उन्होने अभियुक्त के समर्थन में रैली भी निकाली ! 

                       कहने का तात्पर्य यह है की हरियाणा की खत्तर सरकार भारतीय जनता पार्टी की है | जो गाय को पूज्य  घोसीट करती हैं , परंतु नागालैंड की सरकार , जिसमें बीजेपी प्रमुख दल हैं , वनहा के बीजेपी नेता खुले आम  गौ मांस खाने का ब्यान देते है !  वनहा  अभी प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी साथ मंच पर  मुख्य मंत्री नेफियो रियो  भी मौजूद थे , जिनहोने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया की हमारे लोग गाय का मांस खाते हैं , और बीजेपी को इसमे कोई एतराज़ नहीं है !! आश्चर्य की बात यही है की  हिन्दुत्व आर हिन्दू राष्ट्र की मांग करने वाले संघ और विश्व  हिन्दू परिषद , तथा बजरंग दल के लोग , इस घोर “”पाप “” को क्या इसीलिए सहन कर रहे है की की उत्तर – पूर्व  के प्रांतो में गौ मांस  खाने वालो की सरकार  बीजेपी के साथ रहे !!!!

               इतना ही नहीं देश में इस्लाम और ईसाइयो के प्रति  संघ आर वीएचपी तथा बीजेपी का रुख  धर्मांतरण  को लेकर –सदैव  उग्र रहा हैं | इसका प्रमाण  यह है की संघ और बीजेपी में इन दोनों धर्मो के लोग पार्टी में और सरकार में एक या दो ही हैं !! उत्तर प्रदेश में पार्टी के पास इन धर्मो का कोई प्रामाणिक नेता नहीं हैं , ना ही विधान सभा में | नेत्रत्व में इन्हे स्थान केवल मुंह दिखाने भर का हैं !

                     अब इस स्थिति को को क्या कहेंगे ?  जो तथ्य एक जगह पाप या अपराध है , वह दूसरे स्थान पर कैसे  जायज या वैधानिक  हो सकता हैं ?  यह इसलिए भी  काबिले गौर  हैं जब  सरकार के नुमाइंदे और संगठन के लोग  खुले आम समान आचार संहिता की पुरजोर मांग कर रहे हो !

               अब आचार  संहिता तो सिविल या दीवानी मामलो को ही लेकर है ----अर्थात विरासत -विवाह - तलाक तथा अन्य मामलो के लिए ही होगी | परंतु  अपराध प्रक्रिया  संहिता  का छेत्र  तो समग्र भारत गणतन्त्र हैं , बिना किसी धरम या जाति के भेदभाव के बिना लागू होता हैं | परंतु अनेक राज्यो में  तो ,  जैसे उत्तर प्रदेश , पंजाब , हरियाणा और राजस्थान  में  गाय का ""वध "" सांघातिक अपराध हैं | उत्तर प्रदेश और हरियाणा में तो  विगत में अनेक मुस्लिमो को मार कर हत्या की घटनाए हुई हैं |  अब ऐसे में  बीजेपी के हिन्दुत्व  और संघ  को नागा लैंड  में वभ की नगा जनजाति के भोजन ""बीफ "" यानि की गौ मांस  को सहमति  देना  सत्तारुड दल और सरकार की ""नियत "" पर सवाल तो खड़ा करता हैं | आखिर कैसे एक अपराध सात सौ किलोमीटर  पहुँच कर भोजन  का भाग बन जाता हैं !!!

          इतना ही नहीं केंद्र की सरकार  प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के सभी कार्यक्रम को ""शासकीय "" बना देता है , भले ही वे वनहा अपनी पार्टी का चुनाव प्रचार कर रहे हो !!!  जैसे की नागा लैंड  किसभा में  ईसाई बहुल राज्य  में  मंच पर  पादरी  से प्रार्थना  करवाना  भी चुनावी  हथकंडा ही कहा जाएगा | वरना जो बीजेपी काँग्रेस नेता श्रीमति सोनिया गांधी  के धरम को लेकर हमेशा उनकी देश भक्ति पर आरोप लगाती रही हैं | वे एक कैथोलिक  ईसाई है | परंतु उनकी पुत्र राहुल और पुत्री  प्रियंका  वादरा  सनातन धरम मानते हैं |

          गौमांस  का निर्यात  वैसे तो प्रतिबंधित हैं , परंतु  भारत सबसे बड़ा इसका निर्यातक भी हैं | आंध्र आर उत्तर प्रदेश  में  अनेक कारखाने टनों मांस अरब देशो को निर्यात होता हैं |

केरल और  तामिलनाडु में  बीफ या गौ मांस  का इस्तेमाल   सार्वजनिक रूप से किया जाता हैं |  अब वनहा पर बीजेपी क्या चुनाव  में इस मुद्दे को उठा सकती हैं ? मेरे मत में तो कतई नहीं क्यूंकी यह घाटे का सौदा होगा , बीजेपी सत्ता के लिए  अपने मूल्यो और वादो को भी छोड़ देगी , क्यूंकी मोदी  जी को सत्ता चाहिए , वादे और मूल्य का कोई मोल नहीं हैं |

 

Feb 18, 2023

 

चुनाव समाज के मुद्दो पर नहीं -बाबाओ के पाखंड के सहारे होंगे ?



पहले प्रथमेश की मूर्ति को दूध पिलाया , फिर मंदिर् की गुहार लगायी और अब भोले शिवशंकर के "” रुद्राक्ष "” पर दांव लगाया ! देश की संपाती बेच -बेच कर शिक्षा -स्वास्थ्य - और रोजगार के बजट को कम किया और मंदिरो के निर्माण - पुनरुधार और कारीडोर बनाने के लिए छोटे मंदिर हटाये गए - लोगो के मकान टोडे गए , इसलिए की भगवान के दर्शन के लिए "”टिकट" की दर बढायी जाये और धार्मिक पर्यटन को बढावा मिले – भगवा धारियो को चड़ावा मिले | होटल और खाने और पीने की दुकाने चले| | पहले मंदिरो के अर्चक - पुजारी - सेवक और सहायक , दर्शन के लिए आने वालो की "”दक्षिणा "” पर्याप्त हुआ करती हैं , परंतु अब गैस - पेट्रोल और आटे दाल की मंहगाई में भक्त अब श्रद्धा निधि नहीं चड़ाते है , इसलिए सरकारी तंत्र { हालांकी इन धार्मिक संस्थानो का प्रबध यूं तो कलेक्टर या सरकार के नियुक्त नुमाइंदे ही करते है , पर बजरंग दल - विश्व हीनु परिषड और भ्ग्वधारी बाबाओ की डिमांड हैं की इन मंदिरो का प्रबंधन साधुओ को मिले }

वैसे खुद को ही "” स्वामी और संत "” की पदवी लेने वालो की शिक्षा -दीक्षा आर योग्यता की जानकारी इनके "”भक्तो और -शिष्यो"” तक को भी नहीं होती हैं | हाँ उनके आतंक और रसूख से भयभीत चेलो को बाबा राम रहीम और रामलाल और राजस्थान की जेल में बलात्कार के अपराध की सज़ा काट रहे लाखो चेलो की उम्मीद के " संत आशा राम " उदाहरण हैं | दक्षिण के एक भगवा धारी के तो महिलाओ के साथ "”भोग"” के वीडियो भी समाज और बाज़ार में हैं | अब जैसे लोगोके "”जन प्रतिनिधि "” की शिक्षा और अनुभव की कोई "” परीक्षा "” नहीं होती , वैसे ही इन सफ़ेद आर भगवा धारियो बाबाओ को भी कोई परीक्षा नहीं देनी होती | वैसे मस्जिद के मौलवी के बराबर पगार की मांग करने वाले यह भूल जाते है की उनको न्यूनतम दीनी तालिम की शिक्षा की परीक्षा पास करनी होती हैं | एवं ईसाई धरम में तो बाकायदा महिला और पुरुष "”पादरियों "” को भी परीक्षा पास करनी होती हैं |

उत्तर प्रदेश के मुख्या मंत्री वेश भूषा से भगवा धारी बाबा ही हैं | वे गोरखनाथ मठ के स्वामी भी हैं | जो शैव संप्रदाय का ही एक तरह से अंग है | परंतु एक टीवी डिबेट में उन्हे एक इस्लामिक मौलवी ने शिव श्त्रोत सुनाने को जब कहा --तो वे लड़खड़ा गये और असफल रहे !!!

शायद सनातन धरम के लोग ही अपने आराध्यों के दर्शन को भी श्रद्धा का नहीं व्यापार का मुद्दा मानते हैं , तभी तो विश्व के किसी अन्य धरम में अपने आराध्य के दर्शन के लिए "” कीमत "” नहीं चुकनी पड़ती | अब इस स्थिति को सनातन या की अहले ज़ुबान में हिन्दू लोग क्या कहेंगे ?

केदारनाथ में कुछ साल पहले का भू स्ख़्लन और अब जोशी मठ में धरती के हिलने से मकानो और सडक में दरार , का कारण धरम में अब श्रधा के स्थान पर सुविधा का महत्व हो चला है | यूं तो पर्वतीय तीर्थ स्थानो में स्थानीय लोगो द्वारा कुली के रूप में अपनी पीठ पर बैठा कर ले जाने प्रथा काफी पुरानी है ! पर क्या पैसे के दम पर आराध्य इन तीरथ यात्रियो को '’’ इस जन्म के पुणय के आधार पर अगले जनम में कुछ बेहतर मिलेगा !!! मुझे तो लगता है की अगर पैसे देकर दर्शन करना उचित है ----तब तो यह सिनेमा देखने जैसा हो गया !

पाठक गण विचार करे की - भूखे को भोजन , रोगी को इलाज़ और बच्चो को शिक्षा उपलब्ध करना बेहतर है या मंदिर की मूर्ति के दर्शन के लिए टिकट खरीदना ? भगवान क्या सोचते है --अथवा क्या करेंगे यह ---- कोई ज्यूतिशी या बाबा या मौलवी अथवा पारी नहीं बता सकता , अगर ऐसा संभव होता तो तुर्की और सीरिया के 45000 लोगो की जान बचाई जा सकती थी ! हाँ कुछ लोग भूकंप के मलवे में दस इन बाद भी जिंदा मिले , अब यह आसमानी करतब है या फिर संयोग ?? श्रद्धा और तर्क पर परखिये |

Feb 16, 2023

                राज्य  एक बड़े लुटेरे  के गिरोह के अलावा क्या है – अगर उसमे न्याय नहीं है !  

 

       कर्नाटक  उच्च न्यायालया के न्यायमूर्ति  कृष्ण दीक्षित  ने   यह आबजरवेशन  मुआवजे के एक मामले के निर्णय मे लिखा हैं ! साठ्वे के दशक  में अल्लहबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश  आनंद नारायण मुल्ला ने भी  उत्तर प्रदेश पुलिस के बारे में टिप्पणी की थी की  “उत्तर प्रदेश की पुलिस  हथियारबंद  डाकुओ का एक गिरोह हैं !  व्यवस्था  के प्रति  न्यायालयों द्वरा  यह सर्वाधिक सख्त  टिप्पणी हैं |  अगर ये  टिप्पणियॉ

  न्यायालय  द्वरा नहीं की गयी होती तो  वर्तमान हालत में  में सरकार  ऐसे कथन करने वालो के प्रति  कड़ी से कड़ी कारवाई जरूर करती ! जब  प्रधान मंत्री के वीरुध  लोकसभा  में काँग्रेस  के सांसद राहुल गांधी  के अदानी  को सरकार  के संरक्षण  के बारे तथ्य  देते हुए जो आरोप लगाये थे , उनको तो स्पेकर ॐ बिरला ने  सदन की कारवाई से विलोपित कर दिया ! मतलब ऐसा की जैसे ये आरोप कभी सदन में लगाए ही नहीं गए |  ऐसा  लोकसभा के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ | सत्तारुड दल द्वरा  राहुल गांधी  से अपने कथन  के समर्थन  में दस्तावेज़  देने के बात ही बोल सकते हैं !  आज तक यह परिपाटी रही हैं  की  सदन के सदस्य  अपने विचार  खुल कर रखते थे ,  उनसे कभी भी सरकारी पक्ष  सबूतो की मांग नहीं करता था और ना ही पीठासीन  अधिकारी  सदस्य को पूरी तरह से विलोपित करता था | यह शायद संसद की नयी सीमा हैं , अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की !!

 

                        जिस अदानी समूह  के बारे में देश और विदेश में  , हिनदेनबेर्ग  रिपोर्ट के खुलाशे के बाद  जिस तरह से  अदानी समूह  के शेयर शेयर बाज़ार में लुड़के है वह ऐतिहासिक  घटना ही हैं |  जिसने देश और विदेश की व्यापारिक   दुनिया में हलचल  मचा रखी हैं |  जब लोकसभा  में उन तथ्यो को राहुल गांधी ने रखा तब यही देश उम्मीद कर रहा था की वे इन आरोपो  पर कोई सफाई देंगे ! परंतु सदैव की भांति  वे  देश की ज्वलंत समस्याओ पर वैसी ही चुप्पी साध ली  जैसा की वे विगत  आठ सालो से करते आ रहे हैं , यानि की उन्होने सिर्फ  अपने मन की बात की ! ना की समय पर उठाए गए प्रश्नो की !

                                       न्याय की बात यह हैं की बीबीसी  के 13 साल के खाते चेक करने के लिए  इन्कम टैक्स ने

सर्वे बनाम छापा  डाला , परंतु  अदानी समूह  के पोर्ट  पर 3000 किलो ड्रग्स  की बारामदगी  के मामले  में  कोई “”भारी भरकम “” कारवाई तो दूर रही गिरफ्तार लोगो को जमानत भी मिल गयी | जबकि  नरकोटिक्स एक्ट के तहत इतनी बड़ी मात्रा  में बरमदगी  में जमानत मिल ही नहीं सकती | अभिनेता शाहरुख खान के पुत्र का मामला  सबकी यादों में है , की ड्रग्स  की बरमदगी के भी  बगैर भी उसे काफी दिन जेल में रहना पड़ा था ! एक मामले में अभी सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान के एक डोडा चुरा { अफीम के फल के छिलके }  की बरमदगी  पर ना केवल 14 साल की जेल और जुर्माना भी लगाया ! एक ओर  तो छिलके पर इतनी बड़ी सज़ा , दूसरी ओर 3000 किलो  की ड्रग्स  पर चुप्पी ! कुछ ऐसी ही बात  बीबीसी और अदानी समूह को वित्तीय गद्बाड़ियों  पर सरकार  के विभागो की आंखे बंद कर रखी है | 

                                 

                                          अदानी समूह  को जीवन बीमा निगम और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया  द्वरा  दिये गए

कर्ज़ो  के लिए कोई ठोस प्रतिभूति  नहीं दी है |  जबकि इन दोनों निकायो के पास  आम भारतीयो  का पैसा जमा हैं | जितना कर्ज़  अदानी समूह को उनके आस्ट्रेलिया के कारमाइकल  खानो के लिए दिया , उसके वापस होने की उम्मीद कम हैं | क्यूंकी यूएनओ  ने भी इस प्रोजेक्ट  को पर्यावरण के लिए खतरा बतया है , इतना ही नहीं वनहा के स्थानीय नागरिक  भी इस प्रोजेक्ट के वीरुध  आंदोलन कर रहे हैं , फिलहाल  प्रोजेक्ट  अभी निसक्रिय हैं | 

                 इतना ही नहीं  प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी  के संरक्षण के बारे में अंतराष्ट्रीय  स्तर पर जिन आरोपो को का ज़िक्र लोकसभा में किया गया ----उसमें श्रीलंका  की बदहाली  के दौरान  वनहा के आधिकारिक  प्रवक्ता ने मीडिया में कहा था की की श्रीलंका की ग्रीन एनेरजी  के करार के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने वनहा के प्रधान मंत्री से  वनहा पर लाग्ने वाली  इकाई का ठेका  अदानी समूह को देने की सिफ़ारिश की थी ! बंगला देश  के साथ अदानी समूह ने बिजली आपूर्ति  का करार किया था , जिसे बंगला देश की सरकार ने  ,  हिनदेनबेर्ग की रिपोर्ट  सामने आने पर करार रद्द कर दिया |  मोदी जी के इजरायली मित्र  प्रधान मंत्री नेत्न्याहु  ने हाइफा बन्दरगाह  का ठेका अदानी समूह को देने की बात चल रही हैं |   टाटा समूह के अलावा  किसी भी अन्य कंपनी को विदेशो  में ऐसे ठेका  नहीं मिलता !!     

 

                                                                                                                 अब  इन मामलो में न्याय का स्थान कनही है ?  जबकि बीबीसी पर सर्वे  के बारे में केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर  कहते हैं की कोई भी संस्थान या व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं हैं !  जबकि बीजेपी के नेता जो धन पति  है और जिनके बारे में  बीजेपी में शामिल  होने  से पूर्व इन्कम टैक्स और ईडी के छापे पड़े , परंतु जैसे ही उन्होने अपना राजनीतिक चोला बदला ---वैसे ही ये सरकारी एजेंसियो  ना केवल नरम पद गयी वरन  उन मुकदमो  का भी पता नहीं चला , हैं ना अद्भुत बात ---क्या इसे न्याय कहेंगे  अगर नहीं तब जुस्टिस दीक्षित  के कथन को मानना  ही पड़ेगा |                                                                          

Feb 3, 2023

 

 मोदी सरकार  क्यूँ  न्यायपालिका को   जनता के सामने खलनायक के रूप में पेश कर रही हैं ?

             

                         मोदी सरकार के  कानून मंत्री किरण ऋजुजु ने संसद में एक उत्तर में  कहा की न्यायिक पदो में 71% पद  पर सवर्ण  लोग नियुक्त हैं |   आदिवासी और अनुसूसूचित जातियो  का   हिस्सा इन पदो में अत्यधिक कम हैं | सरकार चाहती है की  आरक्षित वर्गो को  इन पदो पर हिस्सेदारी व्रद्धि हो परंतु कालेजियम सिस्टम के कारण सरकार मजबूर हैं !  अब यह उत्तर इतना  भ्रामक है की  आम देशवासी को पहली नजर में  यह  वंचितों  और कमजोर वर्ग के खलनायक के रूप में  पेश करता हैं | सरकार  ने जानबूझ कर  ऐसा उत्तर बनाया है जिससे उसकी कोशिस  को बल मिले |

                   अब मोदी सरकार  सिधान्त रूप से  स्वतंत्र न्यायपालिका को लेकर  बहुत ही “”असहज “” हैं | क्यूंकी उनकी पार्टी और संगठन की विचारधारा के अनुसार  “”प्रशासन ही सर्वोपरि है “” |  अर्थात  चुनाव  जीत कर अथवा  जोड़ – तोड़ से सरकार बना कर सत्ता अपने हाथ  में लेने के बाद उनके फैसलो में रोक -टोक करने वाला कोई न हो , ना कोई उनसे उस फैसले के कारण और उसकी प्रक्रिया के बारे में  पूछताछ  करे | नोटबंदी  के मोदी सरकार के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के समय  जब  मंत्रिमंडल के तत्संबंधी  प्रक्रिया की जानकारी मांगी  तब सरकार की ओर से कहा गया की रिजर्व बैंक  ने इस संबंध में  सरकार के फैसले को  सहमति दे दी , उसके बाद  यह प्रक्रिया सम्पूर्ण हैं | सुप्रीम कोर्ट सरकार के काम करने के तरीको  पर प्रक्रिया सम्मत  होने अथवा नहीं होने के बारे में सवाल नहीं कर सकती !    सुप्रीम कोर्ट भी यह जानकारी प्रापत करने में असफल  रहा की “”किस नियम के अनुसार  ऊर्जित पटेल को गवर्नर   नियुक्त होने के पहले से नोटो  पर उनके हस्ताक्षर  ले लिए गए थे !  अनतोतगतवा नोटबंदी करने के सरकार के अधिकार पर बात खतम हुई ; और सुप्रीम कोर्ट ने भी तकनीकी  तथ्यो को वास्तविक  घटनाक्रम और उद्देश्यों को नकारते हुए  सरकार को क्लीन चिट दे दी !

                   ऋजुजु साहब साल भर से अधिक से कालेजियम  सिस्टम में सरकार की  भागीदारी की कोशिस कर रहे हैं |  उनके दल और सरकार की कोशिस हैं की  न्यायपालिका  में उनका वर्चस्व  होना चाइए , जीससे  की सरकार के कामो पर न्यायपालिका की “”मुहर” लगती रहे , उनके फैसलो  की “”नियत “ और  क्रियानवन  पर कनही भी और किसी के द्वारा  सवाल न उठाए जा सके ! 

 

 विधायिका की सर्वोच्चता की हकीकत :-   जैसा की सभी जानते हैं की  विधायिका  का बहुमत ही सरकार अथवा व्यस्थापिका  बनता  है | अब  संविधान के दो अंग जब  एकाकार  हो जाये तब किसी ऐसे  निकाय की सख्त जरूरत होती है जो आम नागरिक  के अधिकारो की सरकार  के फैसलो और नीतियो से रक्षा करे |   नरेंद्र मोदी जी की सरकार के पूर्व  न्यायपालिका  के फैसलो को  इज्ज़त से सरकार देखती थी | भले ही  वह उसे मानने के बजाय संसद में कानून बनाए , पर कभी भी  अदालत को कमजोर करने या लांछित या कठघरे  में खड़े करने का प्रयास नहीं हुआ | शहबानों  केस में  सरकार  ने अदालत के फैसले  को निस्प्र्भवी  करने के लिए संसद का सहारा लिया | वह  विधि सम्मत तरीका था | उन्होने  अदालतों में नियुक्ति  को अपने अर्थात सरकार के हाथो में लेने की कोशिस नहीं की |

                             वह एक अवसर था , परंतु आज जब बीजेपी शासित  राज्यो में  व्यक्ति की निजता और संपाती के अधिकार को “””बुलडोजर “” संसक्राति द्वरा बड़ावा  दिया जा रहा है -----तब  सरकार के कोप से बचने के लिए नागरिकों के पास  अदालत ही एक सहारा हैं | उत्तर प्रदेश में  बलात्कार की गयी युवती की लश को  को रात के अंधेरे में  दाह संस्कार  पुलिस कर देती हैं | सुप्रीम कोर्ट के जज जोसेफ  ने अदालत में  पेश उत्तर प्रदेश के अफसरो और अधिवक्ताओ  से कहा था । “””क्या आप की बेटी के साथ ऐसा होगा तो भी आप इस कारवाई का समर्थन करेंगे ?”  सरकार  निर्लज्ज  की भांति  चुप रही | परंतु वह अन्याय सरकार की पुलिस द्वरा किया गया था , और राजनीतिक कारणो से यह कारवाई हुई थी | उत्तर प्रदेश में बुलडोजर हिनशा की चपेट में आए लोगो में नब्बे प्रतिशत अलपसंखयक  हैं | बाकी  कुछ गैंगस्टर  एकट के अपराधी है |

 

 न्यायपालिका  में आरक्षण :-   किरण ऋजुजु  जी हमेशा  मीडिया मैं  पिछड़े वर्ग के हितैषी  के रूप में “दिखने “” का रूप भरते हैं , परंतु उनही के अनुसार  पिछले 6 छह  सालो में महिलाओ और अनुसूचित वर्गो के लोगो को भी प्रथिनिधित्व मिला हैं |

                                        विधि मंत्री जी  आपको हाइ कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजो की नियुक्ति भी  आई ए एस  की भांति  कोई अखिल भारतीय सेवा लगती हैं | जिसमें आरक्षण  की व्यसथा हो !  ऋजुजु हुजूर जी  ये संवैधानिक पद हैं ! जिनमें कोई आरक्षण की व्ययस्था नहीं होती ! क्या  मंत्रिमंडल में आरक्षण की कोई विधिवत  व्यवस्था है !  क्या  राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री पद के लिए कोई आरक्षण हैं ?  नहीं हैं | ऋजुजु जी  इसरो और न्यूक्लियर  मंत्रालय में  आराकाशन की व्ययस्था हैं ? नहीं हैं | सरकार की ओर से इन मंत्रालयों और निकायो  को विशिसट  बताते हुए  आरक्षण की व्यसथा  को नामंज़ूर किया था | क्यूंकी इन स्थानो पर  “””योगयता  “” ही परम आवश्यक हैं | उसी भांति  न्याय देने की प्रक्रिया भी बहुत नाजुक व्यसथा हैं , जिसे  आरक्षण नहीं किया जा सकता |

                               फिर भी हाइ कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में  554 जजो में  अनुसूचित जाती और जनजाति  के 52 लोगो को नियुक्त किया गया | इतना ही नहीं  इस अंतराल में  84 महिलाओ को भी पदस्थ किया गया |  अब कम से कम  विधि मंत्री जी आप कालेजियम को खलनायक बनाना बंद करे |