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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jan 6, 2014

क्या भ्र षटाचार सिर्फ नेताओ की ही करतूत हैं ?

          क्या  भ्र षटाचार सिर्फ नेताओ की ही करतूत हैं  ?
                 भ्रष्टाचार  की परंपरा मे होनेवाले  सभी कांडो को जनता उसमे लिप्त मंत्री या नेता के नाम के साथ याद रखता हैं | बोफोर्स मे राजीव गांधी और कामनवेल्थ मे सुरेश कल्मांडी कफन घोटाले मे जॉर्ज फेर्नांडीस ये कुछ उदाहरण भर हैं | परंतु यहा  यह सवाल उठता हैं की क्या इतना बड़ा घोटाला क्या सिर्फ इनके अकेले का काम हैं ? शासकीय व्यवस्था के कायदे -कानून के अनुसार किसी भी काम को करने के लिए जाने वाले फैसले के कई चरण होते हैं | मंत्रालय के क्लेर्क से लेकर सचिव तक किसी भी फ़ाइल को पाँच -छह डेस्को से गुजरना होता हैं | तब कोई फ़ाइल मंत्री के सामने रखी जाती हैं |  यह प्रक्रिया पूरी किए बिना सरकार मे  कोई फैसला नहीं हो सकता | फिर क्या इस बात को मान लिया जाये की कोई भी मंत्री अकेले ही कोई निर्णय ले सकता हैं ? क्योंकि अगर मात हतो द्वारा किसी भी मामले मे प्रस्तावित विषय पर विपरीत टिप्पणी की गयी हैं तब उसे अनदेखा नहीं किया जा सकता | किसी भी मत को अमान्य करने के लिए कारण देने होते हैं | मंत्री  मनचाहा फैसला तभी ले सकता हैं जब  छोटे  बाबू से लेकर सचिव तक एकमत न हो | यदि  फ़ाइल पर एकमत  नहीं हैं तब सचिव के स्तर पर जो सनछेपिका तैयार होगी वह सारे निर्णयो और अभिमतो का सार होती हैं |  तब केवल नेता या मंत्री को दोष किस आधार पर ? यह माना जा सकता हैं की सारे अभिमतो और निर्णयो को प्रभावित किया जा सकता हैं , या तो धन बल द्वारा अथवा दबाव की बदौलत , परंतु अगर अफसरो पर यह हथियार काम करता हैं तब यह भी मानना होगा की वही दबाव नेता अथवा मंत्री पर भी काम कर सकता हैं | 

                अब इस तर्क को तथ्य पर परखते हैं , हमारे देश मे 790 सांसद हैं और देश की 30 विधान सभाओ और विधान परिषदों मे 4561 विधायक हैं | सभी दलो के नेता या मंत्री इसी संख्या मे समाहित हैं | दूसरी तरफ सिर्फ केन्द्रीय सरकार मे ही तीस लाख से अधिक कर्मचारियो की फौज हैं | प्रदेश सरकार और उनके आनुषंगिक संगठनो के कर्मचारियो की संख्या भी लगभग एक करोड़ हैं | कुल मिलाकर यह संख्या  लगभग पौने दो करोड़ बनती हैं | अब इतने सरकारी कर्मियों की तुलना मे पाँच हज़ार नेताओ द्वारा जितना भ्रष्टाचार भी संभव हैं उसमे अधिकतर इन लोगो का हिस्सा हैं | हम दिन  प्रतिदिन देखते हैं की अस्पताल हो या पुलिस अथवा नगरनिगम  या अदालत  इन सभी जगहो  मे  बाबू अथवा उसका समकच्छ कर्मचारी  ही  वहा पर जनता से ''वसूली ''करता हैं कोई अधिकारी या नेता नहीं | हाँ यह बात ज़रूर हैं की यह वसूली सौ पचास रुपये की ही होती हैं , परंतु अगर हिसाब लगाए तो आप पाएंगे की "" यह बूंद से बूंद ''' बेईमानी का घड़ा भरने की कसरत ही हैं | अस्पताल मे वार्ड बॉय  -डॉक्टर यहाँ  तक की  कभी- कभी नर्स भी मरीज़ो या उनके तीमारदारों से वसूली करती हैं |अदालत मे पेशकार _-  मुहरीर और चपरासी तक हाथ फैलाये रहते हैं | अगर उसमे कुछ रखना होता हैं | ऐसे ही नगरनिगम मे जनम -मरण का प्रमाणपत्र लेना हो ,गुमाश्ता बनवाना हो तब भी इनकी जेबे गरम करनी होती हैं | अगर कोई यह सब नहीं करता हैं तब उसका काम नहीं होता हैं | भवन निर्माण की अनुमति पाने के लिए तो लाखो की रिश्वत देनी होती हैं | | कहने का तात्पर्य यह हैं की रेल्वे मे रिज़र्वेशन हो तो वनहा भी भेंट पुजा देनी  पड़ती हैं | अब यह सब नेता या मंत्री तो नहीं करता | हाँ कुछ बड़े मामलो मे जरूर संभावना रहती हैं की नीचे से चली फ़ाइल पर सहमति देने के लिए लंबी -चौड़ी रकम वसूली जाये | ऐसा नहीं की राजनेता भ्रषटाचार नहीं करते परंतु उनका हिस्सा थोड़ा कम ही होता हैं |