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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jan 12, 2021

 

अदालत के फैसलो से क्या न्याय मिल जाता है ?

संविधान में न्यायपालिका की व्याख्या करते हुए कहा गया है की सर्वोच्च न्यायालय का फैसला "”सही है "” ऐसा इसलिए माना जाता है , चूंकि उसके फैसले की कोई अपील नहीं हो सकती | जो इस बात का परीक्षण करे की अदालत का आदेश "”न्यायिक " है अथवा नहीं | संविधान में मौलिक अधिकारो को इसीलिए शामिल किया गया हैं की – न्यायालय नागरिकों के अधिकारो की रक्षा - व्यक्ति अथवा समूहो और सरकार से करेगा ! यह सवाल आज इसलिए मौजू हो गया हैं की विगत कुछ वर्षो में अनेक मामलो में शायद ऐसा नहीं हुआ हैं | भूतपूर्व प्रधान न्यायाधीश मिश्रा के समय सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायाधीशो द्वरा सुप्रीम कोर्ट की कार्य प्रणाली पर

सवालिया निशान लगाए गाये थे | फिर जुस्टिस गोगोई ने पदभार सम्हालने के उपरांत अयोध्या मामले में पहली सुनवाई में कहा की अदालत भूमि के मालिकाना हक़ के बारे में सुनवाई होगी , उसके धार्मिक महत्व पर नहीं | परंतु अंतिम आदेश में स्थिति विपरीत हो गयी | बाद में जब उन्हे सरकार ने राज्य सभा के लिए नामित किया तब लोगो को उनकी न्यायिक द्र्श्ति पर संदेह हुआ | पर कुछ नहीं किया जा सकता था ,क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला अंतिम है और उसके वीरुध कोई अपील नहीं की जा सकती !

फिर आया प्रशांत भूषण का मामला जिसमे " जज की मानहानि " का मामला था | यद्यपि तथ्य बिलकुल सही थे , परंतु तब भी बार और मीडिया में अदालत के रुख की आफै आलोचना हुई | तब 1 रुपया का जुर्माना लगाया गया ! फिर आया मामला सुशांत की मौत की परिस्थिति की "” जांच "” का | क्रिमिनल प्रोसिज़र कोड के अनुसार इसकी जांच संबन्धित पुलिस थाने द्वरा की जानी थी |परंतु बिहार सरकार द्वरा इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की गयी | महाराष्ट्र सरकार ने सीबीआई को जांच देने से इंकार किया , क्योंकि बिना राज्य सरकार की अनुमति के सीबीआई जांच नहीं कर सकती थी | फिर सुप्रीम कोर्ट ने अपने चार्टर का उल्लंघन करते हुए "”एकल पीठ "” का निर्माण किया | जनहा बिहार सरकार की अर्ज़ी पर न्यायमूर्ति ने सीबीआई को सुशांत मामले की जांच के आदेश दिये ! वह एकल पीठ ने उसके बाद किसी अन्य मामले की सुनवाई नहीं की ! खैर सीबीआई ने भी महाराष्ट्र पुलिस की जांच परिणाम को ही स्वीकार किया |

1-- किसान आंदोलन और सुप्रीम कोर्ट :- लगभग 48 दिनो से दिल्ली की चरो सीमाओ पर शांतिपूर्वक तरीके से तीन क्रशि कानूनों को वापस अथवा रद्द किए जाने की मांग कर रहे हैं | अभी तक इस आंदोलन के चलते 62 किसानो की मौत हो चुकी हैं | तीन लोगो ने सरकार के रुख विरोध में आतंहत्या भी कर ली हैं |

परंतु सरकार की ओर से केंद्रीय क्रशि मंत्री तोमर 8 दौर बैठक कर चुके हैं | परंतु अदालती कारवाई की तरह किसानो को हर बैठक के बाद एक नयी तारीख दे दी जाती हैं | इसी बीच दिल्ली पुलिस और कुछ अन्य सरकार समर्थक संगठनो ने सुप्रीम कोर्ट में आंदोलन हम के खिलाफ कारवाई की मांग की | पहले दिन की सुनवाई प्रधान न्यायाधीश बोरबड़े की तीन सदस्यीय पीठ ने की | उस दिन उन्होने जो कुछ कहा वह न्यायिक भी था और वास्तविकता से परे भी था | उन्होने कहा की "हम भारत के सुप्रीम कोर्ट हैं " यह वक्तव्य निश्चित रूप से कोर्ट रूम में मौजूद लोगो के लिए तो नहीं था | क्योंकि उन लोगो को तो मालूम ही था , फिर किस के लिए कहा गया ? सरकार अथवा किसानो के लिए ? पहले दिन ही अदालत ने तीनों कानूनों के लागू किए जाने पर रोक लगा दी | परंतु यह भी कहा की हम अनिश्चित काल के लिए रोक नहीं लगा सकते ! कुछ ऐसा ही रुख सेंट्रल विस्टा के मामले भी हुआ था , जब केंद्र सरकार को फटकारते हुए कोर्ट ने कहा था की "” हम समझते थे की आप समझदार हैं -परंतु फिर भी आपने शिलान्यास किया | अब स्थिति में परिवर्तन नहीं हो | परंतु कुछ समय बाद ही 950 करोड़ की लागत से प्र्स्तवित इस परियोजना को कोर्ट ने मंजूरी दे दी ! जबकि देश की धरोहर और पेड़ो की कटाई तथा पर्यावरण की जांच को नकारते हुए सरकार को गो अहेड़ मिल गया | कुछ ऐसा ही किसान आंदोलन में हुआ पहले दिन लगा की अदालत नागरिकों के कष्ट को समझ कर कुछ करेगी | परंतु दूसरे दिन चार लोगो की जो समिति बनाई गयी -जो विवादित तीन कानूनों की व्यवख्या करेगी और दो माह में रिपोर्ट देगी -----वे चरो व्यक्ति पहले ही मीडिया में आंदोलन की आलोचना कर चुके है तथा सरकार की नीति और तीनों कानूनों का समर्थन कर चुके हैं !!! अब ऐसी समिति से क्या उम्मीद जिसके रुख का पता सबको हैं ! प्रधान न्यायधीश बोरबड़े ने आग्रह किया की आंदोलन गांधी जी के सत्याग्रह की भांति हो ! महात्मा गांधी के आंदोलन में ---- नमक सत्याग्रह ,---- विदेशी वस्तुओ का बहिसकार --- और सविनय अवज्ञा आंदोलन थे | जिनमे इतनी संख्या में ---इतने दिनो तक शांति पूर्ण तरीके से सरकार के वीरुध धरना चला हो | सिर्फ एक घटना हरियाणा में हुई जिसमे मुख्य मंत्री खत्तर की जन सभा को नहीं होने दिया गया |

सुप्रीम कोर्ट ने पहले दिन की सुनवाई में जो आशा किसानो के मन में जगाई थी -----वह मात्र 24 घंटे ही रही | उसके बाद जो हुआ वह उनके लिए वज्रपात ही था | हालांकि आंदोलनकारी अपना उद्देश्य पहले ही बता चुके हैं __की वे तीनों कानूनों की वापसी से कम पर तैयार नहीं हैं | वही कौल उन्होने कोर्ट द्वरा समिति गठित किए जाने और दो माह में रिपोर्ट देने के आदेश के बाद बरकरार रखा |

अब आंदोलनकारी गुजरात में हुए नव निर्माण समिति की तर्ज़ पर विधायकों से अपने समर्थन में त्यागपत्र देने की मांग कर रहे हैं | गुजरात में भी स्वर्गीय अरुण जेटली ने इसी तरकीब से काँग्रेस की चिमनभाई पटेल को धराशायी किया था | हरियाणा की साझा सरकार में शामिल चौटाला की पार्टी के सात विधायकों ने पहले उप मुख्य मंत्री चौटाला को बता दिया हैं की अगर हरियाणा के किसानो पर पुलिस ने कोई कारवाई की तो वे विधान सभा में सरकार के खिलाफ वोट करेंगे | गौर तलब हैं चौटाला की पार्टी में 11 विधायक हैं | उनकी समर्थन वापसी खट्टर की सरकार को परेशानी में डाल सकती हैं |

जिस प्रकार सरकार और उसके भोपू संगठन आंदोलन में '’’खालिस्तानी '’ और पाकिस्तानी तत्वो के शामिल होने की बात काही है ,जैस्पर सुप्रीम कोर्ट ने अट्टार्नी जनरल वेणुगोपाल से हलफनामा मांगा हैं | अब देखना होगा की सरकार आंदोलन के किन नेताओ पर यह छाप लगती हैं | सरकार समर्थको और दिल्ली की बहुमंजली इमारतों के रहवासी आंदोलन स्थल के इंतज़ामों से अभिभूत है --वे इसे '’’पिकनिक ;; बताते हैं | सवाल हैं कड़ाके की ठंड में खुले आसमान में बैठे लोगो का लंगर खाना - खीर खाना और गरम पानी से नहाना और वॉशिंग मशीन में कपड़े धोने के द्राशय उन्हे सुहावने लगते है , परंतु इसके पीछे छिपी उस शपथ को वे नहीं देख पाते जो उन्होने दिल्ली आने के पूर्व गुरुद्वारे में माथा टेकते हुए ली थी – – जब तक कानून वापस नहीं होते हम वापस नहीं लौटेंगे !!!! अब ऐसी प्रतिज्ञा सरकार के सांसदो -विधायकों और मंत्रियो ने ली होगी , सिर्फ दो नेताओ प्रधान मंत्री और गृह मंत्री को छोडकर जो कुछ कारणो से इन कानूनों के पीछे है |

2---- इस आंदोलन में जिन दो उद्योग पटियो के नाम सार्वजनिक रूप से आ रहे वे है रिलायन्स के मुकेश अंबानी और गौतम अदानी | अदानी के साइलों फूड कार्पोरेशन के गोदामो की जमीन में बने है | हरियाणा के एक स्थान की फोटो भी वाइरल हुई है | सवाल यह है की किसानो से खरीद एफ़सीआई करेगी अथवा अदानी एफ़सीआई के लिए करेंगे | सरकारी भूमि पर निजी व्यापारी को गोदाम बनाए जाने से यह तो साफ है की मोदी सरकार इन दोनों धन कुबेरो से उपक्रट हैं , इसलिए सरकारी एजेसी का काम निजी हाथो में दे रही हैं | जो मुनाफे के लिए भंडारण नियमो में बदलाव करा रहे हैं | जिससे की वे देश के खाद्यान्न बाजार पर एकाधिकार कर सके , और देशवासियों को भूखा मार सके | भूखी भीड़ को कोई ना कोई मसीहा मिल ही जाता हैं | इस संदर्भ में इतिहास की एक घटना हैं की मिश्र के फरौन के पुजारियों ने बड़े -बड़े मिट्टी के साइलों में गेंहू भर रखा था और भूखे यहूदी मजदूरी कर रहे थे | मूसा जो की मिश्र के राजाओ की देवताओ की बड़ी बड़ी मूर्तिया और पिरामिड बना रहे थे | उन्हे जब मजदूरो के कम काम करने का कारण पता लगाया तब उन्हे मालूम चला की वे अधपेट खा कर काम कर रहे हैं | तब उन्होने फैरो के पुजारियों के इन साइलों को तोड़ दिया और यहूदी गुलामो को गेंहू ले जाने का आदेश दिया | जब फैरो ने उनके फैसले का कारण पूछा ----तो उन्होने कहा की कमजो और भूखे श्रमिक कम काम करेंगे | अगर उनके पेट भरे होंगे तो वे अच्छे से काम करेंगे ,और फैरो ने पुजारियों को दाँत कर भागा दिया | क्या आज के फैरो इस से सबक लेंगे ----जब तक किसान खुशहाल नहीं होगा -देश खुशहाल नहीं हो सकता |

3:--- अमेरिकी और पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट ----- हाल में वाशिंगटन में राष्ट्रपति ट्रम्प समर्थको द्वरा कैपिटल हिल में काँग्रेस के दोनों सदनो पर हमला कर तहस -नहस करने की घटना के पीछे वह भासन था जो उन्होने नव निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेंन के चुनाव की आधिकारिक घोसना को रोकने के लिए की थी | इसके पहले पराजित ट्रम्प मतदान और मतगणना तथा परिणामो की राज्यो में घोषणा को लेकर लगभग 60 याचिका फेडरल सुप्रीम कोर्ट में लगा चुके थे | गौर करने वाली बात हैं की कोर्ट के 5 जजो में से 3 जजो की नियुक्ति ट्रम्प के काल में हुई थी और वे प्रारम्भिक दौर में रिपब्लिकन पार्टी के समर्थक थे | परंतु पांचों न्यायाधीशो ने एक मत से ट्रम्प की अपील को सबूतो के अभाव में खारिज किया ! जबकि बहुत से अमेरिकी सोच रहे थे की सुप्रीम कोर्ट कनही 3-2 से ट्रम्प को आगे काम करने का नहीं दे दे | वनहा के चुनाव आयोग ने भी ट्रम्प द्वरा पोस्टल वोट को अवधानिक करारा देने की अपील ठुकरा दी थी | मतगणना में धांधली के आरोप पर कई राज्यो में दुबारा मतगणना हुई , परंतु परिणाम पूर्वत ही रहे | फेडरल कोर्ट ने नागरिकों और संविधान का सम्मान करते हुए न्यायिक मर्यादा को बनाए रखा |

पाकिस्तान के फेडरल कोर्ट ने भी - खैबर पख्तूनवा इलाके के करक जिले के तेरी गाव में परमहंस जी के मंदिर को 30 दिसंबर 2020 को एक धरम उन्मादी भीड़ ने हमला कर के तोड़ दिया | इस घटना का स्वतः संगयन लेते हुए अदालत ने वनहा की सरकार को उन्मादी लोगो की और नेत्रत्व करने वालो को गिरफ्तार करने का आदेश दिया ,तथा की गयी कारवाई से अवगत कराने का आदेश दिया | फलस्वरूप तीन मौलाना सहित 45 लोग गिरफ्तार हुए | अदालत ने उन्मादी भीड़ से जुर्माना वसूल कर दो माह में मंदिर का पुनः निर्माण करने का आदेश जारी किया | इस काम की ज़िम्मेदारी सरकार पर डाली गयी | गौर तलब है की 1997 में भी उन्मादी भीड़ ने इस धरम स्थल को हानी पनहुचई थी , तब भी फेडरल कोर्ट ने संगयन लेते हुए पुनर्निर्माण का आदेश पाकिस्तान सरकार को दिया था |