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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jun 24, 2019


सरकार के इरादे और हक़ीक़त

पाँच खरब की अर्थ व्यवस्था -आसमान मैं झण्डा -करोड़ो प्यासे और बच्चो की मौते ?
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संसद के संयुक्त अधिवेशन मैं सरकार ने नए एजेंडे की घोषणा मैं , देश मैं उत्पादन बढा कर पाँच ट्रीलियन डालर की अर्थ व्यवस्था बनाने - अन्तरिक्ष मै मानव स्टेशन निर्माण के साथ , 125 करोड़ आबादी को स्वास्थ्य सुविधा और - हर परिवार को छत 2022 तक देने का वादा मोदी सरकार ने अपनी दूसरी पारी मैं किया हैं | आयुष्मान योजना के तहत ग्रामीण -गरीब आबादी को स्वास्थ्य सुविधा का वादा , भी किया ! परंतु इसे सरकार को बदकिस्मती कहे अथवा देश और लोगो का दुर्भाग्य की ----उधर लोगो के लिए "”सुनहरे सपने "” बुने जा रहे थे और -----वनही चेन्नई मैं 65 लाखा आबादी पीने के पानी के लिए जद्दो-जहद कर रही थी | बिहार मैं मुजफ्फरपुर के श्री कृष्ण मेडिकल कालेज मैं गरीबो के कुपोषित बच्चो के प्रतिदिन मरने का आंकड़ा ऐसे बड रहा था , जैसे की महामारी या भूकंप अथवा चक्रवती तूफान मैं मैं मारे गए लोगो की गिनती हो रही हो !

ऐसे मैं राष्ट्रपति कोविद जी का भाषण , ,जिस मैं उपरोक्त सुनहरे लछ्यो को मोदी सरकार की नीति बताया गया |
इनसेफ़लाइटिस से मरने वालो बच्चो के प्रति बिहार सरकार की बेरुखी तो नहीं कह सकते बेबसी ही कह सकते हैं | क्योंकि बिहार मैं सड़के भले ही नीतिस कुमार के राजी मैं बेहतर बन गयी हो , परंतु स्वास्थ्य सुविधाओ पर खर्च घाटा हैं --- जबकि आबादी बड़ी हैं ! एक रिपोर्ट के अनुसार 2019 -2020 का स्वास्थ्य बजट विगत वर्षो से एक प्रतिशत कम हुआ हैं ! बिहार मैं शिक्षा का भी यह हाल हैं की विश्वविद्यालयो मैं परीक्षा और उनके परिणाम कभी भी समय पर नहीं होते | इसलिए हजारो छात्र प्रतियोगी परीक्षाओ मैं भाग नहीं ले पाते ! क्योंकि वे ओवर एज हो जाते हैं | और जो प्रतियोगी सफल भी हो जाते हैं ------वे भी सालो नियुक्ति पत्र पाने के लिए परेशान रहते हैं | नियुक्ति पत्र मिलने के बाद भी विभाग उन्हे अपने यानहा काम पर नहीं रखते हैं |

कमोबेश यही हालत उत्तर भारत के सभी प्रदेशों की हैं | केंद्रीय प्रतियोगिताओ के सफल प्रत्याशी भी मारे - मारे फिरने के लिए मजबूर हैं | रेल्वे की प्रतियोगी परीक्षा कराने के लिए संभन्धित केंद्र --- दूसरे प्रदेशों मैं रखे गए !! हजारो छात्र बिहार से मुंबई और भुवनेसवर जाने को मजबूर हुए | आखिर यह किसकी सुविधा का ख्याल रखा जा रहा हैं ?? कुछ थोड़े से रेल्वे अधिकारियों को कठिनाई ना हो ---इसलिए ? समय पर परिक्षये नहीं हो रही -----इसके लिए आजतक किसी को जिम्मेदार नहीं बताया गया ! सज़ा देने की बात तो दूर की हैं |

अब देश मैं वर्तमान हालत को देखते हुए --- सरकार के नियंताओ को "”लोक कल्याण "” की चिंता तो बिलकुल भी नहीं हैं | हाँ मेट्रो और बुलेट ट्रेन के बाद अब खाड़ी देशो मैं चल रही '’’ट्यूब ट्रेन "” चलाने का भी विचार चल रहा हैं !!! अब गौर करे तो पाएंगे की देश के विकास के नाम पर ठेकेदारो को काम देने के लिए योजनाए बनाई जा रही हैं | जिनके लिए विश्व बैंक - एसियान बैंक अथवा इन योजनाओ के लिए संयंत्र सुलभ कराने वाले उत्पादको और वित्तीय संस्थाओ केर समूह से खरबो के क़र्ज़ सरकार लेती हैं !!! भले ही इन परियोजनाओ के लिए लाखो किसानो को मजदूर बनाना पड़े | भले ही इन किसानो की भूमि का मुआवजा दासियो साल तक अदालतों और सरकार के दफ्तरो की फाइल मैं धूल खाता रहे -----जैसे उस भूमि का मालिक किसान !!

सरकार किसी भी दल की हो --- अधिकारी राजनीतिक आक़ाओ को नयी - नयी योजनाए और उनके लिए सुलभ होने वाले क़र्ज़े के ही रास्ते बताते हैं | कभी भी सरकार यह नहीं बताती {{बजट के अलावा }} की देश या प्रदेश के राजस्व का कितना हिस्सा इन कर्ज़ो की किश्त देने मैं भुगतान किया जाता हैं ! क्योंकि कोई भी राजनेता अपनी जिम्मेदारियो मैं '’’देनदारी और कर्तव्य के बारे मैं कोई विचार कर्ण नहीं चाहता !!! वे तो बस अधिकारो और मनपसंद अधिकारियों के बारे मैं सुनना चाहते हैं | हाँ जनता के बीच उनकी समस्याओ के निदान के लिए बस एक बात ही कहते हैं "”” जल्दी से जल्दी निराकरन होगा "” और दोषी को छोड़ा नहीं जाएगा ||| अब यह बात और है की की ना तो जनता को पेयजल मिलता हैं ---ना किसान को सिंचाई के लिए पानी और बिजली मिलती हैं ! किसान प्रदर्शन करते हैं - मार्च करते हैं ,पर सरकार उन्हे उलझाए रखती हैं ---वादे करती हैं , मुंबई की सड्को पर फटेहाल किसानो का मार्च हो अथवा --जन्नतर - मंन्तर पर महीनो तक चले धरना हो ---इन अहिंसक आंदोलनो का की गूंज ना तो मीडिया मैं और नाही जनता मैं कोई हलचल मचाती हैं ! खबरे बनती हैं जब कनही बम फूटता है -नक्सली कनही पुलिस पर हमला करते हैं - या अलगाववादी सीमा पर बम फोड़ते हैं ! क्या यह मान लिया जाये की गांधी के बताए सविनय अवज्ञा आंदोलन की उपयोगिता और सार्थकता सत्तर साल बाद समाप्त हो गयी हैं ? सोचने का सवाल हैं |

आकाशगंगा का विकास माडल :- जीवन की मूलभूत जरूरतो की अनदेखी कर के जब आसमानी और युद्धक विकास की ओर सरकरे ध्यान देने लगे ----तब उत्तरी कोरिया के तानाशाह की तस्वीर आंखो के सामने आती हैं , जनहा बहुसंख्यक आबादी भोजन की आवश्यक वस्तुओ के लिए तरसती हैं | पर हुक्मरान को परमाणु बम और मिसाइल बनाने से फुर्सत नहीं हैं | सोचे क्या भारत को आसमान मैं "”अर्थ स्टेशन "” बनाने की कितनी जरूरत हैं ? जब देश के तीन मुख्य महानगर ---दिल्ली - और उसके आसपास गुदगाओं - नोएडा पानी के भयानक संकट से जूझ रहे हो | और हैदराबाद - और बंगलुरु मैं आगामी पाँच साल मैं "”ज़ीरो "” स्थिति आने वाली हो ! अर्थात जब भूगर्भ का जल भी समाप्त हो जाएगा | तब इन नगरो मैं खड़ी बड़ी - बड़ी अट्टालिकाओ मैं बस्ने वाले लखपति लोग क्या करेंगे ? यूं तो जल विज्ञानियो ने 2050 तक उत्तर भारत का पेयजल श्रोत समाप्त होने का अनुमान लगाया हैं !
ऐसे मैं अरबों रुपयो का क़र्ज़ लेकर मेट्रो के लिए किसानो की जमीन लेना -उन्हे मुआवजा न देना , कान्हा का न्याया हैं ? आंध्र प्रदेश की नयी राजधानी '’अमरावती '’ के लिए चंद्रबाबू नायडू द्वरा किए गए भूमि अधिग्रहण की रेड्डी सरकार द्वरा दुबारा जांच से वे किसान ठगे महसूस कर रहे हैं , जिनहोने इस योजना के लिए अपनी किसानी की भूमि सरकार को दी थी | अब वे ना तो उस जमीन पर खेती कर सकते हैं , और यह भी उम्मीद संकट मैं पद गयी हैं की उन्हे अधिग्रहित भूमि का मुआवजा मिलेगा ?
बुलेट ट्रेन सिर्फ स्पीड के लिए बनाई जा रही हैं | जिसका किराया भी हवाई जहाज के बराबर होगा ! सीधा सा तर्क हैं -की जिन लोगो के लिए समय की कीमत ज्यादा हैं ----वे हवाई जहाज से यात्रा करके दिनो की यात्रा घंटो मैं पूरी कर सकते हैं | तब किन बीमार धनपतियों के लिए जमीन की यात्रा का यह प्रबंध किया जा रहा हैं ? बात यह हैं की जापान के पास उत्पादन छ्म्ता है और वे अपने कामगारों को काम जारी रखना चाहते हैं | इसलिए उन्होने बुलेट ट्रेन दी -और उसके निर्माण के लिए क़र्ज़ भी दिया | अब उनका माल भी बिका और उनकी पूंजी पर ब्याज भी मिलेगा ---भारत जरुर आने वाले 50 सालो तक इस क़र्ज़ को चुकाता रहेगा ! इससे भरत के बड़े ठेकेदारो को काम मिलजाएगा और सरकार को बताने के लिए एक मुद्दा ! पर क्या आज वर्तमान रेल्वे की हालत सुधारने - उनमैं सुविधाओ को बड़ाने की ज़रूरत हैं , अथवा - लखनऊ से दिल्ली की राजधानी ट्रेन को "””निजी "” हाथो मैं परिचालन देने की हैं !! वैसे ही मोदी सरकार ने 28 से अधिक सार्वजनिक उपक्रमो को नीलाम करने का फैसला किया हैं ! उसमैं हवाई कम्पनी एयर इंडिया भी हैं | ग्रहयुध और भुखमरी से ग्राष्ट अफ्रीकी देश इथोपिया अभी भी अपनी एयर लाइन को चला रहा हैं < क्या हम उससे भी गए बीते हैं ?

मोदी सरकार ने केंद्रीय "प्रशासन मैं लैटरल एंट्री के नाम पर देश के बड़े औद्यगिक घरानो के '’’करम्चरियों '’ को लेने का फैसला किया हैं !!! कुछ उप सचिवो की नियुक्ति भी मंत्रालयों मैं हो गयी हैं | अभी इनकी सेवा शर्तो और नियमो का खुलाषा नहीं हुआ हैं | यद्यपि यह फैसला अनुचित है -क्योंकि शासन मैं इस तरह से भर्ती नहीं होती , उसके लिए नियम हैं | यह तो बनिए की दुकान की भांति हो गया ---की मालिक ने चाहा तो कोई जांच -परख नहीं बस बना दिये गए | फिर भी अगर मोदी सरकार इस फैसले पर '’’ज़िद '’ ही किए है ------तब उसे व्यावसायिक छेत्र के इन महारथियो को इन घाटे पर चलने वाले सार्वजनिक उपक्रमो को '’’ठीक -ठाक '’’ करने मैं लगाना चाहिए| जिससे अफसरशाही द्वारा जो गलतिया की गयी हैं ,उन्हे सुधारा जा सके |
लेकिन विकास की इस आकाश गंगा से लाभ तो गिने - चुने लोगो को ही होगा देश की जनता तो नीचे से बस देखती ही रह जाएगी |