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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jul 30, 2013

तकनीकी शिक्षा और नौकरी की संभाव्नाये

  तकनीकी  शिक्षा  और नौकरी की  संभाव्नाये
                                                                अकादमिक शिक्षा  से नौकरी के  अवसरो  के धूमिल  होने के कारण आज का  युवा   किसी भी छेत्र  मे  विशेषज्ञता की डिग्री  हासिल करने  की जल्दबाज़ी मे हैं | अब  यह बात दूसरी हैं की , वह इस डिग्री के लायक हैं भी या नहीं | यह इस बात से साबित होता हैं जो असोचम के  अध्यकष ने कहा की "" इंजीन्यरिंग और प्रबंधन की डिग्री  "  प्राप्त लड़को मे केवल  पंद्रह प्रतिशत  ही इस लायक होते हैं की उन्हे काम पर रखा जा सके | यह बयान साबित करता हैं की ''हमारे''' इंजीन्यरिंग और प्रबंधन की ''दूकाने ''' कैसे लड़को को नौकरी के बाज़ार उतार रहे हैं | 
                              अब इसमे गलती किसकी हैं ? उन लड़को की जो ज़िंदगी मे सुनहरे  भविष्य  की उम्मीद पाल रहे हैं | अपनी इनहि उम्मीदों के लिए ये लड़के घर की जमा पूंजी को भी '' दाव"" पर  लगा देते हैं | घर की ज़मीन -मकान  को भी  बैंक से  ''शिक्षा'' कर्ज़  के लिए बंधक रख देते हैं | लेकिन जब डिग्री  के बाद इंटरव्यू  मे बुरी तरह से असफल होते हैं तब उन्हे पता चलता हैं की ''उन्हे क्या  पढाया''; गया हैं | लेकिन तब तक घर और पिता के दस से बारह लाख रुपये खर्च हो चुके होते हैं | और भविष्य भी अंधकार मय हो चुका होता हैं | 
                                              मध्य प्रदेश मे इस साल  यंहा के 223  इंजीन्यरिंग कॉलेज जिनमे 96000  लड़को के लिए स्थान हैं , जिनमे इस साल 65000 स्थान खाली हैं | सत्र शुरू होने मे अब बस पंद्रह -बीस दिनो का समय बचा हैं | ऐसे मे प्रश्न यह उठता हैं की आखिर क्या हुआ की इतनी सीट खाली रह गयी ? इसी प्रकार  प्रबंधन  के स्नातक भी आपको बाज़ार मे पेट्रोल पम्प पर काली पैट पहने लड़के और लड़कियां  मिल जाएंगे | आखिर  इन लोगो का  दोष क्या हैं ? 
                                       इन सब का दोष सिर्फ इतना हैं की इनहोने  एक ऐसी शिक्षा  परंपरा मे पदाई की जिसने  राजनेताओ और  धन कुबेरो द्वारा   खोली गयी इन बड़ी - बड़ी ''दुकानों'''  मे शिक्षा या ''डिग्री'' प्राप्त की हैं | इन कॉलेज  को इंस्टीट्यूट  का भी   नाम दिया गया हैं | अब इनके संचालको ने लड़को से फीस के रूप मे करोड़ो  रुपये कमा लिया हैं |वे अपने छात्रों के भविस्य के बारे मे  तनिक  भी चिंतित  नहीं होते |न तो वे प्लेसमेंट  के लिए  कोशिश  करते हैं न ही कपनियों  को बुला कर लड़को को अवसर उपलब्ध कराते हैं | ना ही वे  असल मे इंटरव्यू  के लिए तैयार करते हैं |  आखिर इनकी ज़िम्मेदारी सिर्फ डिग्री देने की ही हैं ? 

Jul 29, 2013

कितनी - कितनी पहचान ---आधार या वोटर कार्ड अथवा ड्राइविंग लाइसेन्स ........

 कितनी  - कितनी पहचान ---आधार या वोटर कार्ड अथवा ड्राइविंग  लाइसेन्स ........

                        गरीबी रेखा की परिभाषा  पर चल रही बहस को लेकर  राजनीतिक दल  अगर एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं तब अर्थ शास्त्री भी ''विकास के माडल''''को लेकर उलझ गए |देश के सामने एक बहस चल गयी की पाँच रुपये मे मे पेट भर सकता हैं या बारह रुपये मे | हालांकि यह आंकड़े है और गणित के औसत के आधार पर की गयी यह गणाना ही हैं | चलो फिर भी गलती तो योजना आयोग की हैं , जिसमे कागज़ पर लिखे  अंको और विभागो की रिपोर्ट के आधार निरण्य लिए जाते हैं | मानव की संवेदना और हालत को, यंहा के अफसर क़तई नहीं समझते हैं | यह सिलसिला  आज का नहीं वरन   आज़ादी से पहले का हैं | जब तंत्र  ही शासन करता था| परंतु आज भी हम ''बाबुओ ''की फौज के बनाए नियमो के ही गुलाम हैं , जंहा जनता की हालत -और परिस्थिति  के बारे मे  जमीनी जानकारी का अभाव होता हैं | 
                                         इस  ''तंत्र'' और  राजनैतिक नेत्रत्व के  संघर्ष  को हम ज़मीन पर अनेक दिमाग खराब कर देने वाले नियम -कायदे दिखाई पड़ते हैं | क्या आप भरोसा कर सकते हैं की आप भारत के नागरिक हैं ---- यह साबित करने के लिए आप को ''पासपोर्ट'' अथवा ''' निर्वाचन आयोग का पहचान पत्र ''' चाहिए | अब देश मे कितने पासपोर्ट धारी हैं यह आसानी से पता चल सकता हैं | अमूमन यह  संख्या  एक करोड़ से कम होगी | वोटर पहचान पत्र ज़रूर  सारे  निर्वाचको  को मिल गया हैं ऐसा विश्वास  हैं |परंतु  फिर आधार कार्ड आया , जिस पर साफ - साफ लिखा हुआ हैं की यह """नागरिकता """ का प्रमाण पत्र नहीं हैं | तब फिर क्या उपयोगिता हैं इसकी ?  फिर पहचान के लिए हैं ड्राइविंग लाइसेन्स !  इन सभी पहचान पत्र मे जन्म तिथि  भी लिखी होती हैं , परंतु इन सभी को जन्म का प्रमाण पत्र नहीं माना जाता हैं | क्यो इसका जवाब कोई नहीं  देना चाहता हैं , आखिर क्यों ? अगर यह सभी प्रमाण पत्र मान्य हैं तब ऐसा क्यो की एक दफ्तर मे एक पहचान पत्र मान्य हैं , तो सिर्फ एक उद्देस्य के लिए ? 
                       पहचान --निवास - जन्म  की तसदीक़ क्यो नहीं एक ही दस्तावेज़ को मान्य किया जाता हैं ? क्या वोटर कार्ड तीनों तथ्यो की तसदीक़ करने मे असफल हैं ? अथवा अफसरो की ''सनक''' ही इस हालत का जिम्मेदार हैं ? इतनी आसान सी बात को क्यो नहीं दिल्ली मे बैठे ''''तंत्र ""''के जिम्मेदार समझते हैं ?सिर्फ  नियमो मे बदलाव करके पहचान पत्र के इन झमेलो से क्यो नहीं देश की करोड़ो लोगो को मुक्ति दिला देते हैं ?

Jul 25, 2013

दरवाजे पर खड़ी चुनौती और तैयारी --भर्ती करते सेनापति

 दरवाजे पर खड़ी चुनौती और तैयारी --भर्ती करते सेनापति 
                                                                          जिन राज्यो मे विधान सभा चुनाव होने जा रहे हैं  वे हैं  , मध्य प्रदेश और छतीसगढ ,  जंहा भारतीय जनता पार्टी ने तो  '''आशीर्वाद यात्रा ''' के नाम से मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चुनाव प्रचार की  शुरुआत  कर दी हैं | वंही मुख्य विपक्षी दल काँग्रेस  के खेमे मे अभी भी मान - मनौवाल  और समझाइस  का ही दौर चल रहा हैं |   ऐसे मे लोग यह  पूछ रहे हैं की  ''इनकी'' चुनावी यात्रा कब शुरू होगी? सवाल मौजू  हैं , क्योंकि एक ओर सत्तारूद दल तो साजो - सामान  के साथ मैदान मे तलवार भाँज रहा हैं दूसरी ओर सामने वाला अभी अपने साजो -सामान और जिरह बख्तर  की साफ सफाई मे ही लगे हुए हैं | 
                               ऐसे मे यह भावना होती हैं की क्या काँग्रेस का हाइ कमान सोच - विचार मे ही समय गंवा देगा ? दो - दो बार प्रदेश के नेताओ की बैठक कर के पार्टी के उपाद्यक्ष राहुल गांधी ने आपसी गुटबाजी को खतम करने का हुकुम सुना दिया हैं | परंतु उसका असर ज़मीन पर नहीं दिखाई देता | बीजेपी के तीखे और धारदार प्रचार और आरोपो की झड़ी  का कोई  जवाब  प्रदेश अथवा केंद्र के स्टार से नहीं दिया गया हैं | अब इसे सहनशीलता  कंहे अथवा किंकर्तव्य  विमुड , फिलहाल कारण कोई भी हो परंतु यह  ज़ंग  की तैयारी  तो बिलकुल नहीं हैं |
                                                                 हालांकि काँग्रेस के प्रदेश स्तर के नेताओ ने अपने -अपने प्रभाव छेत्र का दौरा कर के शिवराज सरकार के खिलाफ आरोपो का पुलिंदा मतदाताओ के सामने रख दिया हैं | विधान सभा सत्र मे  अविश्वास  प्रस्ताव के बिन्दु  भी अब लोगो के बीच पेश किए गए हैं | परंतु चुनाव प्रचार मे जो गति  बीजेपी की हैं उस का मुकाबला करने के लिए काँग्रेस को काफी तैयारी और परिश्रम करना होगा |


                      दिल्ली और प्रदेश स्तर के नेताओ मे तालमेल का पूरी तरह अभाव हैं , जिसका नज़ारा संसद संदीप  दीक्षित  के  भोपाल आने पर हुआ | हुआ कुछ यूं की उन्होने प्रदेश काँग्रेस  को हवाई जहाज से आने का कार्यक्रम  दिया परंतु ऐन मौके पर उन्होने ट्रेन पकड़ी और भोपाल आ गए , उधर हवाई अड्डे पर  पीसीसी  प्रभारी  रामेश्वर नीखरा  स्थानीय नेताओ को लेकर दीक्षित  का इंतज़ार करते रहे| बाद मे किसी ने उन्हे सूचना दी की दीक्षित प्रैस  वालों से बात कर रहे हैं | हुआ ये की दीक्षित के ट्रेन से जाने की खबर प्रवक्ता और वकील विनीत गोधा को मिली थी वे स्टेशन से उन्हे ले आए | इस पर नीखरा और गोधा की तू - तू मैं - मैं भी हुई | मतलब की दिल्ली से कौन आ रहा हैं इसकी खबर किसे देनी हैं यह भी अभी तक़ तय नहीं हैं | ऐसे मे चुनाव के दौरान कितना तालमेल रह पाएगा भगवान ही मालिक हैं | पर ताओयरी मे काँग्रेस पिछड़ रही हैं ||
                                                          

Jul 23, 2013

चुनाव प्रचार --शिवराज ने मंदिर -मोदी से किया किनारा

 चुनाव प्रचार  --शिवराज ने मंदिर -मोदी से किया किनारा 
                                                                                 सावन की शुरुआत  से विधान सभा चुनाव  का  शखनाद  करके  मुख्य मंत्री शिवराज सिंह ने , यह साबित कर दिया की वे अटल और आडवाणी को अपना नेता मानते हैं परंतु नरेंद्र मोदी के लिए ''उस धरातल पर ''' स्थान  नहीं हैं | इतना ही नहीं प्रचार के लिए मुद्दे का चयन करते हुए उन्होने मंदिर ऐसे विवादास्पद  मुद्दे से अपने को दूर रखा |उनके इस फैसले को पार्टी मे भले ही कुछ लोग ''ना'''' पचा  पा रहे हों , परंतु  इस फैसले से कट्टर ''हिंदुवाद ''' के विरोधी मतदाता शिवराज की ओर खिसक जाएंगे | 

                                                                  हालांकि चुनाव प्रचार के लिए तैयार पोस्टर मे तो ''नमो '' नहीं हैं परंतु क्या  मंदिर का मुद्दा जो संघ के  ह्रदय  के काफी करीब हैं ,   उस से  देश और प्रदेश के आने वाले नेता अपने को कब तक  रोक पाएंगे ? लेकिन इस पहल से यह तो शिवराज और नरेंद्र तोमर की जोड़ी ने साबित कर दिया की वे भी अपनी ओर से फैसले  कर सकते हैं | अभी तक  भारतीय  जनता पार्टी  मे शिवराज सिंह को टेकेन फार  ग्रानटेड मान कर फैसले लिए जाते थे | परंतु पहली बार अपनी पसंद को सार्वजनिक तौर पर अमली  जामा पहना कर  शिवराज ने अपनी खुद मुख़तारी ज़ाहिर कर दी हैं | इस से यह भी साबित हुआ की प्रदेश स्तर पर पार्टी का नेत्रत्व  हिंदुवाद की कड़ी खुराक  देने के पछ मे नहीं हैं | इस से यह भी स्पष्ट होता हैं की  पार्टी  को  वे उदारवादी  छवि   का जामा  पहनाने के हामी हैं | जो प्रदेश के राजनीतिक माहौल के लिए सुखकर संकेत हैं |

Jul 10, 2013

चिटफड कंपनियो के खिलाफ कारवाई अब कलेक्टर करेंगे

चिटफड कंपनियो के खिलाफ कारवाई अब कलेक्ट र करेंगे 
                                             प्रदेश के अनेकों ज़िलो मे छोटे - छोटे  बचत खाता खोल कर रोज 50 से 100 या 200 रुपये की किश्त जमा करने वालों के  पैसे लेकर गायब हो जाने वाली कंपनियो पर अब पोलिस यह कर अपना पीछा  नहीं छुड़ा सकती यह मामला कंपनी से जुड़ा हैं | इसलिए  कारवाई रिजर्व  बैंक द्वारा की जाएगी | अब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने एक सर्क्युलर  जारी कर के  ज़िलो के कलक्टरों  को  अधिकार  दिया हैं की वे  चिटफंड  कंपनियो के खिलाफ  जनता से शिकायत मिलने पर  कानूनी कारवाई निश्चित करे | इस अधिकार मिल जाने से अब उन लाखो लोगो को राहत मिलेगी जिनके पैसे लेकर चिटफंड कंपनी  भाग जाती थी और पोलिस  और प्रशासन कानून के अभाव की शिकायत करके उन बेसहारा लोगो के कष्ट को दूर करने मे असफल रहता था |
                                                                  रिजर्व बैंक द्वारा  अधिक्ररत नान बैंकिंग फ़ाइनेंस कंपनी भी कुछ खास  स्थितियो मे ही लोगो से जमा स्वीकार कर सकती हैं |परंतु  चिटफंड के नाम पर  हजारो फ़र्म  लोगो को धोखा दे रही हैं | रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार  देश मे पाँच हज़ार से अधिक ऐसी कंपनीय कार्यरत हैं , जो पूरी तरह से  वैधानिक नहीं हैं , परंतु कानूनी  दाव-पेंच   के कारण  इनके खिलाफ केवल दीवानी यानि सिविल  कारवाई ही हो सकती हैं | दीवानी कारवाई मे  अदालते  सालो साल  लगती हैं , जब की पुलिस चाहे  तो ''अमानत मे खयानत के   केस  दर्ज़  करके '''' कारवाई कर सकती हैं , परंतु  करती नहीं हैं |  

क्या व्यक्ति की आज़ादी समाज और देश से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं ?

 क्या व्यक्ति की आज़ादी  समाज और देश से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं ?
                                                       सी आई ए के  कर्मचारी  स्नौडेन को लेकर आज कल न केवल मानव अधिकारो की रक्षा की संस्थाए चिंतित हैं ,वरन ''महाशक्ति''' कहे जाने वाला  अमेरिका  भी परेशान हैं | वह पगलाया हुआ दुनिया के सभी देशो को धम्की दे रहा हैं की ''कोई उसे अपने यंहा राजनीतिक शरण न दे | लेकिन  अमरीका  के ही पड़ोसी  देश वेनेजुयाला  ने स्नोडेन  को राजनीतिक शरण देकर इस सुपर पावर को  ठेंगा  दिखा दिया हैं |  

                             इस  घटना से यह तो साफ हो गया हैं की अमरीका की धम्की  के बावजूद भी कोई राष्ट्र अपने  संप्रभुता  का इस्तेमाल खुलमखुल्ला कर के भी दुनिया की  बिरदारी मे सर ऊंचा रख सकता हैं | यह बात हमारे देश  के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण  हैं , क्योंकि हमारे  चारो  तरफ   अगर शत्रुता का वातावरण नहीं हैं तो कम से कम अविसवास  और धम्की  का तो है ही | बंगला देश के  जन्म  से लेकर उसे अपने पैर पर खड़े होने मे भारत ने मदद की परंतु वह भी कट्टर  वादियो के दबाव मे अक्सर बेरुखी  दिखाता हैं | उधर नेपाल जो अकेला हिन्दू  राष्ट्र  था वह भी आज शत्रुता का रवैया  अपनाए हुए हैं | उसकी प्रगति के लिए नदी और बिजली की अनेक परियोजनाओ के लिए हमारे देश ने खुले हाथ से मदद की , पर वही आज चीन के प्रभाव मे आकार  दुश्मनी करे बैठा हैं | वक़्त बेवक्त बयानबाजी और  अन्तराष्ट्रिय  बिरादरी  मे चीन के साथ खड़ा हो कर परेशानी पैदा करता हैं | चीन और पाकिस्तान  की बात तो आईने की तरह साफ हैं इन दोनों से ही हमारा युद्ध हो चुका हैं | पाकिस्तान अगर सीमा पर आए दिन गोली बारी कर के अशांति पैदा करता हैं तब  चीन हमारी  सीमा पर आए दिन घुस कर हमारी संप्रभुता को चुनौती देता रहता हैं | ऐसे मे ज़रूरी हैं की हमारी सरकार भी कुछ ऐसा कर के दिखाये की लोगो का विसवास  अपने देश और उसकी सरकार पर कायम रहे |