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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Sep 23, 2015

आरक्षण पर संघ की बालिंग - बैटिंग और फील्डिंग

आरक्षण पर संघ की बालिंग - बैटिंग और फील्डिंग

  1. राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत जी ने संविधान मे प्रदत्त जातीय आरक्षण का पुनरीक्षिण के सुझाव ने ,, बिहार विधान सभा चुनाव मे भारतीय जनता पार्टी के विरोधियो को अनायास ही एक हथियार थमा दिया था | भगवत के बयान से संभावित चुनावी नुकसान को देखते हुए केंद्रीय सरकार के मंत्री रविशंकर ने चौबीस घंटे के अंदर ही बयान दिया की बीजेपी और सरकार भगवत जी के बयान से "”सहमत "” नहीं है | शायद यह पहली बार था की भारतीय जनता पार्टी ने अपनी मात् संस्था को अलग -थलग कर दिया | परंतु दूसरी ओर राजस्थान की वसुंधरा सरकार ने गुज़रो द्वारा आरक्षण की मांग को स्वीकार करते हुए उन्हे भी शिक्षा और सरकारी सेवाओ मे आरक्षण मे दिया जाना मंजूर कर लिया | एक सप्ताह के अंदर हुई इन दो घटनाओ ने यह साबित कर दिया की भले ही संघ के सर्वोच्च नेता की बात की किरकिरी करनी पड़े --तो करेंगे पर ,चुनाव जीतने के लिए हर जतन करेंगे | मजे की बात यह है की संघ और सरकार के मिले जुले चेहरे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने इस संवेदनशील मुद्दे पर चुप्पी नहीं तोड़ी | बस इसी बात ने साफ कर दिया की सत्तारूड गठबंधन इस मुद्दे पर "”भ्रम "”
  2. फैलाये रखना चाहता है | क्योंकि इधर हाल ही मे सोशल मीडिया मे आरक्षण के विरोध मे लहर चल रही थी | यह आंदोलन वस्तुतः सवर्ण जातियो के नौजवानो द्वारा चालय जा रहा था | क्योंकि मेडिकल मे भर्ती और सरकारी नौकरियों मे प्रतियोगिता मे काफी अधिक् नंबर पाने के बाद भी जब असफल घोशित किए जाते है तब ''अपार अशंतोष "” होता है | संघ और बीजेपी ने "”युवाओ''' के इस आशंतोष को भुनाने के लिए भगवत जी का बयान दिला दिया | इस प्रकार इस मुद्दे पर बाल फेंक दी | पर जैसे ही बिहार मे इस मुद्दे ने बीजेपी उम्मीदवारों के जातीय आधार पर "”चोट "” पाहुचाना शुरू किया वैसे ही केंद्र सरकार ने फ़िल्डिंग करते हुए भागवत जी की गुगली को "'नो बाल"” करार दे दिया |
  3. परंतु अब गलत समय पर बाल फेंके जाने के नुकसान को कम करने के लिए ,, कुछ ऐसा करना था की जिस से यह लोगो को यह लगे की ''संघ और बीजेपी "”” की प्रतिबद्धताये अलग -अलग है | इसलिए फौरन से पेश्तर राजस्थान के गुजरो की आरक्षण की मांग पर बैटिंग करते हुए उन्हे आरक्षण दिये जाने की आधिकारिक घोसणा कर दी | जिससे लोगो मे यह बात जाये की बीजेपी भी पिछड़े वर्गो को आरक्षण दिये
  4. जाने की ''पक्षधर "”” है | वैसे संघ और बीजेपी इस खेल मे काफी माहिर है | राम मंदिर आंदोलन के दौरान राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ और बीजेपी तथा विश्व हिन्दू परिषद - बजरंग दल और मजदूर संघ आदि सब अलग - अलग भाषा बोलते थे | परंतु उसके निशाने पर काँग्रेस और सरकार ही होती थी | इस रणनीति से फायदा यह होता था की एक से असहमत वोटर किसी ना किसी के "”तर्क के जाल "मे फंस जाता था | जबकि हक़ीक़त मे जाल तो एक ही था --जिसे अलग -अलग किनारो पर अलग लोग "”पकड़े हुए थे "”” |इस तर्क को पुष्ट करने के लिए आप देखे की भूमि अधिग्रहण संशोधन पर इतना
  5. हल्ला मचाने के बाद आखिर मे उसे वापस लिया | सोशल मीडिया पर लगाम लगाने के लिए "”” किसी ने इन्हे अभूतपूर्व सुझाव दे दिया जिसे सरकार ने तुरंत निगल लिया | परंतु जन प्रतिरोध का ताप इतना अधिक था की वह ड्राफ्ट चौबीस घंटे के अंदर ही सरकार द्वरा वापस लिए जाने का फैसला हुआ | लेकिन आरक्षण के मुद्दे पर इस द्रविड़ प्राणायाम से भारतीय जनता पार्टी को मनचाहा परिणाम मिलेगा --इसमे काफी संदेह है |क्योंकि जातीय बंधनो मे जकड़ा बिहार का समाज इस उलट बांसी से संतुष्ट नहीं होगा |जिस सवर्ण युवा वर्ग का सपोर्ट लेने के लिए गेंद फेकी थी वह इस पैतरे से शंकित हो गया है |और जिस महादलित का समर्थन लेने के लिए जीतन राम मांझी को साथ लिया उन्हे भी भरोसा नहीं होगा |क्योंकि उन्हे लगेगा की यहा भी तो बीजेपी ने नए - नए उम्मीदवार उतरे है जो सब के सब पिछड़े वर्ग से है | अब बिहार मे चुनाव भगवा यादव या भगवा कुर्मी अथवा मूल यादव और कुर्मी के मध्य ही होगा \

Sep 21, 2015

समय के वेग को और इतिहास को झुठलाने की नाकाम कोशिस

समय के वेग को और इतिहास को झुठलाने की नाकाम कोशिस


समय सभी सभयताओ मे निर्णायक होता है यह इसी युक्ति से सिद्ध हो जाता है :::मानुषी बली नहीं होत है ,,समय होत बलवान ,,भीललन मारी गोपिका वही अर्जुन वही बान "”” कहने का आशय यह है की समय या काल ब्र्म्हांड का सशस्क़्त पहरेदार है | जो था भी और है भी एवं रहेगा भी |
बहुत से महान लोगो या शासको ने समय को अनुकूल करने के लिए कितने ही यत्न किए परंतु वश मे नहीं कर पाया | परंतु राजनीतिक लालसा इस सत्य को झुठलाने की कोशिस जारी है | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी मे एक"” वचन"” दिया की वे वह सब कुछ पचास महीनों मे वाराणसी के लिए करेंगे जो पिछले पचास सालो मे नहीं हो पाया है | अब इस बयान को क्या समझा जाये ? हालांकि उत्तर प्रदेश मे अभी चुनावो की धमक नहीं सुनाई पड रही है | परंतु मोदी जी को चुनावी माहौल बनाने की कला आती है | क्योंकि वे शांति के नहीं युद्ध के ही नेता है | जो अपने समर्थको को जोशीले '''नारो और बयानो "”' से परिपूर्ण करते रहते है | अब उन नारो और बयानो की सत्यता को अगर तथ्य और तर्क की कसौटी पर परखा जाए तो लोगो को निराशा हो सकती है |



क्योंकि उनका कहना "”'एक वार क्राइ "” होता है | जैसे की फौज की सभी पलटनों का एक वार क्राइ होता है और एक "””इष्ट "होता है वैसे ही मोदी जी के भाषण होते है | परंतु इस बार मोदी जी ने तो समय के परिमाण को ही बदलने की कोशिस की है | क्या कोई भी सोच सकता है की की एक साल मे होना वाला काम क्या एक महीने मे हो सकता है ?? वास्तविकता मे उनके कथन को क्या फिर "”जुमला "”” नहीं माना जाना चाहिए ? क्या आज़ादी के बाद पिछले साठ साल मे हुए विकास को कोई भी देशवासी नकार नहीं सकता | परंतु अगर कोई ऐसा करता है तो दो ही बाते हो सकती है है की "””या तो उन्हे देश मे हुए परिवर्तनों की जानकारी नहीं है "””” अथवा जानबूझ कर तथ्यो की स्वार्थवस नकार रहे है |

जवाहर लाल नेहरू द्वरा देश को दिये गए तीन लौह कारखाने "”भिलाई --बोकारो और दुर्गापुर "”” ने देश की लोहे की ज़रूरत को पूरा किया | उसके बाद सिंचाई के लिए भाखरा नांगल - हीराकुड - दामोदर घाटी जैसे विशाल बांध और पनबिजली परियोजनाए दी | ट्रांबे मे डॉ होमी जेंहगीर भाभा के नेत्रत्व मे आणविक केंद्र स्थापित किया | नरौरा मे आणविक बिजली घर की स्थापना हुई | इसी दरम्यान भारत मे चार पहिया वाहनो का उत्पादन शुरू हुआ || इन्दिरा गांधी जी के जमाने मे उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी की उन्होने देश की खाद्य समस्या को हल करने के लिए डॉ नार्मन बोरलाग को बुला कर गेंहू के उत्पादन मे क्रांति कर दी थी | उधर गुजरात मे डॉ वर्गीस आमूल मे रहकर श्वेत क्रांति कर रहे थे | फिर प्रथम आणविक विस्फोट पोखरण मे हुआ | बंगला देश युद्ध की विजय और एक लाख सैनिको का आत्म समर्पण तो विश्व के इतिहास मे लिखा जाता है |
अब विगत सालो मे मिली इन उपलब्धियों को "”देश को बर्बाद करने वाला "”” निरूपित करने की कोशिस हो तो उसे "”द्वेष और कमजोर नज़र "”” ही मानाना पड़ेगा | जैसा की मैंने प्रारम्भ मे कहा था की समय सबका निर्णायक है ---वही इतिहास लिखता है ,,लोग लाख कोशिस कर ले इतिहास को ना तो झूठलाया जा सकता नहीं अपने अनुकूल लिखा जा सकता है | जिसकी कोशिस कुछ लोगो द्वारा की जा रही है | यह राजनीतिक कोशिस देश और समाज के लिए अहितकारी होगी



Sep 18, 2015

हिन्दी भाषा को मूल पाठ मानने की कठिनाई

अब हिन्दी को प्रथम रखने से अंतर प्रादेशिक समस्याओं का जन्म होगा
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति खनविलकर और न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने एक निर्णय मे कहा है की "”अब से "”” हिन्दी मे लिखे पत्र – टिप्पणियाँ तथा आदेश ही "””मूल पाठ "”” होंगे | यह भारत के संविधान की भावना के नितांत ''विपरीत '''है | यह सत्य है की संविधान निर्माताओ ने देश की "”राज भाषा"”” के पद पर देवनागरी लिखित हिन्दी भाषा को ही नवाजा है | परंतु कश्मीर से केरल तक की भाषाई - और सान्स्क्र्तइक विविधताओं को देखते हुए ही अंग्रेजी को देश की संपर्क भाषा का स्थान दिया था | किसी भी राज्य की सीमाओं के अंदर यदि किसी राजाज्ञा का पालन करना हो --तथा वह के जन जन की भाषा हिन्दी है तब कोई भी '''समस्या "” उत्पन्न नहीं होगी || क्योंकि उस आदेश के आशय को अधिकारी समझा सकेगा और जन जन समझ सकेगा | परंतु राज्य की सीमाओ से बाहर जहा हिन्दी ''आम जन"” की भाषा नहीं है वह समस्या खड़ी हो जाएगी | इसका एक उदाहरण है --- मध्य प्रदेश मे डाइरेक्टर को निदेशक कहा जाता है जबकि उत्तर प्रदेश मे उसे संचालक कहा जाता है | वन विभाग मे मध्य प्रदेश मे जिसे वन अधिकारी कहते है उसे राजस्थान मे वनपाल कहते है | उत्तर प्रदेश - बिहार -राजस्थान -हरियाणा मे "”अधिमान्य "” प्रशासनिक शब्दावली मे ही पदो के नाम तक मे समानता नहीं है | इतना ही नहीं बिहार विधान सभा मे सदस्य आसंदी को "”हुज़ूर"” कह कर संबोधित करने की परंपरा है | उत्तर प्रदेश मे ""माननीय"”” शब्द का और मध्य प्रदेश मे "”आदरणीय "”” कहने की परंपरा है | उत्तर प्रदेश मे नौकरशाही मे आईएएस जब वरिष्ठ वेतनमान के उपरांत आयुक्त बन जाता है तब यदि वह सचिवालय मे पदस्थ है तब वह सचिव पद नाम ही र्लिखेगा -परंतु उत्तर प्रदेश मे "”आयुक्त एवं सचिव "”” पद नाम लिखा जाता है | जबकि मध्य प्रदेश और राजस्थान मे ऐसा नहीं है |
इसका कारण संभवतः उत्तर प्रदेश और बिहार मे चुनाव और सरकार – अफसरशाही का चलन देश की आज़ादी के पूर्व से है | 1935 मे जब मध्य प्रदेश और राजस्थान की जनता अपने - अपने "”अन्नदाताओ और घडीखंभा "”” की प्रजा थी तब इन दोनों प्रदेशों के लोग "””ब्रिटिश राज के नागरिक थे ---प्रजा नहीं | इसीलिए इन दोनों राज्यो मे उर्दू और अङ्ग्रेज़ी के शब्दो को ग्रामीण जनता जिसकी बोली भोजपुरी अथवा अवधी थी या फिर ब्रज थी ---वह भी पटवारी और पुलिस दारोगा और सिंचाई विभाग के "”शब्दो "” को जानती थी उनही अर्थो मे जिनमे वे प्रयुक्त होते थे | जैसे ऑर्डर को परवाना तथा नीलामी और कुर्की जिसे कुर्क अमीन करता था | अमीन नहर विभाग मे भी होता था और राजस्व विभाग मे भी | मध्य प्रदेश मे इन पदो के नाम भिन्न है | म प्र मे संपाति को आस्तिया कहा जाता है | जबकि यह शब्द पड़ोसी राज्य मे बिलकुल अन जाना है | वहा संपति को चल और अचल के रूप मे जाना जाता है |

उच्च न्यायालय के फैसले प्रदेश के बाहर भी प्रभावी होते है यदि व्हा "”फैसले को उस रूप मे नहीं समझा गया --तब बड़ी समस्या हो जाएगी "”\ जिसे समय रहते ही समाधान खोज लेना चाहिए

Sep 16, 2015

क्या लोकसभा अध्यक्ष ने चुनावी खर्च गलत दिखाया ??

क्या लोकसभा अध्यक्ष ने चुनावी खर्च गलत दिखाया ??
एका अध्ययन मे भारतीय जनता पार्टी के पाँच सांसदों के चुनावी खर्च मे काफी अनियमित बरती जाने के तथ्य उजागर हुए है | जो की उनके निर्वाचन को ही "””अवैध "”” सिद्ध कर सकते है यह गड़बड़ी एक अध्ययन |मे सामने आई है | वास्तव मे यह मामला चुनावी खर्च मे पार्टी के फंड और स्वयं के द्वारा किए गए व्यय मे अंतर से स्पष्ट हुई है | जिन सांसदों के नाम इस अध्ययन मे उजागर हुए है वे सभी मध्य प्रदेश के भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता माने जाते है |
इनमे लोक सभा की अध्यक्ष श्रीमति सुमित्रा महाजन जिनहे इंदौर के लोग सम्मान से "”ताई"”” कह कर संबोधित करते है -इस शब्द का मराठी मे अर्थ होता है बड़ी बहन | विगत लोक सभा के चुनाव मे ताई इंदौर से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप मे चुनाव लड़ी थी | वे लगातार इस छेत्र से पाँचवी बार विजयी हुई है | लोकसभा मे उनकी वारिस्ठ्ता को ध्यान मे रखते हुए उन्हे इस संवैधानिक पद का उम्मीदवार बनाया था |

निर्वाचन आयोग मे 2014 के लोक सभा निर्वाचन मे सफल होने के बाद उम्मीदवारों द्वारा अपने खर्चे का हिसाब निर्वाचन आयोग मे जमा करना आवशयक होता है | इस खर्चे को किसी चार्टर्ड अकाउंटेंट द्वारा प्रमाणित किया जाना भी ज़रूरी है | इसी प्रकार राजनीतिक दल ने अपने किस प्रत्याशी को कितना "””धन "”” दिया इसका भी ब्योरा देना होता है | यदि इन विवरणो मे कोई वियस्ङ्गती होती है तब उसे चुनाव "”निरस्त "”” करने योग्य माना जाता है | :-
सुमित्रा महाजन ने अपने व्यय विवरण मे दिखाया है है की पार्टी ने उन्हे
11 लाख रुपये चुनाव हेतु दिये थे
जबकि भारतीय जनता पार्टी द्वारा आयोग को दिये गए विवरण मे
सुमित्रा महाजन के नाम -कोई भी धन राशि दिये जाने का उल्लेख
शपथ पत्र मे नहीं है |
ऐसे ही पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे और राज्य के पूर्व

मंत्री अनूप मिश्रा का है -जिन्होनें भारतीय जनता पार्टी की ओर से मुरैना
से चुनाव लड़ा था -इनहोने ने भी पार्टी द्वारा 15 लाख रुपये दिये जाने
का उल्लेख चुनाव -व्यय विवरणी मे किया है | जबकि पार्टी के शपथ पत्र
मे इनका कोई उल्लेख नहीं है की इन्हे कोई भी धन राशि चुनाव प्रचार
हेतु दी गयी हो |
इस श्रंखला मे तीसरा नाम पिछड़े वर्ग के दबंग नेता
प्रहलाद पटेल का है , जो दमोह संसदीय छेत्र से बीजेपी उम्मीदवार
के रूप मे चुनाव लड़े और निर्वाचित हुए | इनहोने भी 3.5 लाख की
धनराशि पार्टी द्वारा दिये जाने का दावा किया है | परंतु दल की ओर
से दायर शपथ पत्र मे एक भी पैसा दिये जाने का उल्लेख नहीं है |
भोपाल के युवा सांसद आलोक संजर ने पार्टी द्वारा 18 लाख
की आर्थिक सहता पार्टी द्वारा दिये जाने का उल्लेख अपने चुनावी
आय - व्ययक मे किया है परंतु भारतीय जनता पार्टी ने अपने खाते से
इन्हे मात्र 15 लाख ही दिये जाना दर्शाया है |
राकेश सिंह जो प्रदेश के महाधिवक्ता रह चुके है जो जबलपुर
से निर्वाचित हुए है उन्होने 25 .25 लाख रुपये पार्टी द्वारा दिया
जाना बताया है जबकि पार्टी ने इन्हे मात्र 25 लाख ही दिया जाना
बताया है |
|इस गड़बड़ी के कारण निर्वाचन नियमो के अधीन इन सभी लोगो ने नियत सीमा से अधिक खर्च किया है | इतना ही नहीं इनहोने खर्च बताने मे भी गलत शपथ पत्र
दाखिल किया है | इन दोनों ही मुद्दो पर इन नेताओ की लोक सभा की सदस्यता
खतरे मे तो पद ही जाएगी --वरन इन लोगो को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य बताकर
लालू प्रसाद यादव की भांति मैदान से बाहर रह कए राजनीति करने पर मजबूर किया

जा सकता है |अब देखना होगा की विपक्षी दल इस मामले को कैसे लेते है

Sep 15, 2015

मुद्दे से शुरू और मैनेजमेंट पर आई --अब झुकाव की जगह स्ट्राइक रेट

मुद्दे से शुरू और मैनेजमेंट पर आई --अब झुकाव की जगह स्ट्राइक रेट

बिहार विधान सभा की 243 सीटो के लिए राष्ट्रीय गठबंधन जिसमे भारतीय जनता पार्टी और राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति तथा उपेंद्र कुशवाहा की और जीतनराम मांझी है ,तो दूसरी ओर नितीश कुमार और लालू प्रसाद तथा काँग्रेस है | यूं तो कुछ और छूट पुट दल भी है जो भाग्य आज़मा रहे है | भाजपा के गठ बंधन मे 160 उसे मिले है और पासवान को 40 तथा कुशवाहा को 23 तथा मांझी को 20 सीट पर चुनाव लड़ना है | उधर नितीश की जदयु को 100 तथा लालू जी को 100 एवं काँग्रेस को 40 सीट मिली है |
मेरे मित्र जुगनू शारदेय के लेख मे आज चुनाव परिणामो को '''''भाखते'''' हुए एक नया शब्द खोजा है '''स्ट्राइक रेट ''' | चुनावी संभावनाओ मे पहल करते हुए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सड़क परिवहन के एक कार्यक्रम मे बिहार को '''स्पेसल पैकेज़'''' देने की और '''''डी एन ए"”” मे खोट की बात काही थी | जिसके उत्तर मे नितीश ने पैकेज़ को केंद्र की पुरानी देनदारी और का चिट्ठा बताया था | दोनों मामले मे काफी थुक्का फजीहत दोनों ओर से एक दूसरे की गयी | जिस से बिहार के विकास का ''मुद्दा '''' पीछे रह गया ,,और सीधे -सीधे वोट बैंक तथा ''''विजयी भाव ''' सामने निकाल आया | विजयी भाव का तात्पर्य जीतने की संभावना से है |जैसे जुगनू ने स्ट्राइक रेट को इसी भाव मे लिखा है | उनके अनुमान से भाजपा को 60 फीसदी सेटो पर जीतने की संभावना है | जो 102 बनता है | पासवान की शक्ति वो 25 प्रतिशत मानते है अर्थात 10 सीटो पर विजय निश्चित है | परंतु उनके अनुसार बीजेपी का विजयी भाव उन्हे दस से बारह और सीट दिला सकता है | मतलब सरकार बनाने के बिलकुल करीब | उधर नितीश और लालू के बारे मे कोई अनुमान नहीं लिखा है | जिस से उनका
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झुकाव परिलक्षित होता है | क्योंकि बिहार वासी होने के नाते और विभिन्न अंचलो के जातीय समीकरणों का उन्हे अच्छा ज्ञान है | यह भी स्पष्ट है की कौन सी जाती किस पार्टी के साथ जाएगी ,, क्योंकि बीजेपी ने भी इसी जातीय समीकरण को ध्यान मे रखते हुए उम्मीदवारों की लिस्ट की तैयारी की है | इस महामारी से बिहार मे कोई भी दल अछूता नहीं है | राजनीतिक पाखंड के चलते सभी दल सार्वजनिक रूप से इस से इंकार करेंगे | यह भी हक़ीक़त है परंतु सत्या फिर भी वही है |
उन्होने अपने आलेख मे वोट काटउआ पार्टियो का कोई ज़िक्र ही नहीं किया है -जो टाजूब वाली बात है | या तो उन्हे यह भान है की मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी जो 243 सेटो पर लड़ने का ऐलान कर चुकी है __ यह बात और है की नामांकन वापसी के दिन कितने बने रहते है यह देखना होगा | वैसे विगत चार चुनावो मे जिसमे लोक सभा भी शामिल है ---उनका रेकॉर्ड कार्ड "””शून्य "”” रहा है | परंतु 2010 के चुनावो मे उनके उम्मीदवारों को 6 लाख मत मिले थे | अब कुछ स्थानो पर ज़रूर ही वे "” घातक "”” बने होंगे -अब इसका विवरण नहीं है पर अनुमान तो है ही | दूसरी ओर सीमांचल मे जनहा मुस्लिम आबादी काफी प्रतिशत मे है और हारने - जिताने मे सक्षम है वनहा से ओवासी की पार्टी उतरेगी , ऐसा कहा जा रहा है |इस इलाक़े मे किशन गंज का इलाका आता है जहा से बीजेपी ने अपने कई कद्दावर नेताओ को चुनाव लड़ाया है परंतु "'विजय "”नहीं प्रपट हुई | उनके प्रवक्ता एम जे अकबर भी किसंगंज से निर्वाचित हुए थे --परंतु तब उनकी पहचान काँग्रेस थी | अब शायद पार्टी उन पर डाव नहीं लगाए |
एक बात स्पष्ट है की मोदी जी ने लोकसभा चुनावो का नुस्खा यानहा आज़माने की पूरी कोशिस की थी की "” मै यह दे दूँगा -मै यह कर दूँगा ....आदि "” परंतु उसका तुरंत प्रतिवाद हो जाने से मामला चल नहीं पाया | दोसरे चरण के दौरे मे उन्होने ''महा दलित ''' जीतन राम मांझी के मुख्य मंत्री आवास मे आम और लीची के पेड़ो पर पुलिस तैनात करने को उनकी जातियो का "””अपमान बताया "”” विगत दिनो दिल्ली मे बिहार निवास से मांझी जी को तीन दिन के आवंटन के पश्चात निकाले जाने का मुद्दा लाया गया | उसको चैनलो की बहस मे भी गरमाया गया | जब पत्रकार बंधुओ ने इसे '''तिल का ताड़ '' बताया तो भी कहा गया की पूर्व मुख्य मंत्री और महा दलित नेता का अपमान है | यानि अब विकास कोई चुनावी मुद्दा नहीं बचा है | क्योंकि जितना मोदी जी देश का विकास कर रहे है ----उतना विकास नितीश जी बिहार मे कर रहे है | अब वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट मे उद्योग और व्यापार के लिए "””बेस्ट "””राज्यो मे मध्य प्रदेश और छतीस गद को प्रथम पाँच मे स्थान मिला है और बिहार को 31व स्थान मिला है | अब सबको दिखाई देने वाला विकास तो सड़क और बिजली है ---तो बिहार की सड़के मध्य परदेश से बेहतर है यह काहीनल पर बैठे पत्रकारो ने भी कहा | और उद्योग के लिए कितने "” एम ओ यू "””” पर हस्ताक्षर हुए और उसमे कितने पलट कर आए यह समाचार पात्रो को "”विशेस खोज रपट "”” का विषय है जो किसी ना किसी मे अक्सर छपती रहती है | अक्सर क्या सदैव --ऐसे ''अवार्ड '''' और ;;;स्थान '''' जमीनी हक़ीक़त से कंही ''''बहुत दूर '''' होते है | रबी की फसल का रकबा कितना है और कितने मे बुवाई हुई और कितनी फसल बर्बाद हुई इसका आंकड़ा राज्य स्टार पर तो मिल जाएगा | पर अगर पड़ताल करने के लिए किसी तहसील का आंकड़ा मांगेंगे तो नहीं मिलेगा | फिलवक्त तो नामांकन के पहले सभी "””मीर "”” है अब कुछ रंग नामांकन के बाद लगेगा | तब ताक़ तो इंतज़ार करना ही होइएगा |\

इति

Sep 12, 2015

क्या हिन्दी का अज्ञान सोनिया गांधी को प्रधान मंत्री पद से दूर रखा ?

क्या हिन्दी का अज्ञान  सोनिया गांधी को प्रधान मंत्री पद से दूर रखा ?

          मनमोहन सिंह जी को जिस समय  सोनिया गांधी ने काँग्रेस संसदीय दल के नेता के रूप मे प्रधान मंत्री  के पद पर मनोनीत किया उस समय ना केवल काँग्रेस सांसद  वरन अन्य  राजनीतिक दलो के नेता भी  अचंभित  रह गए थे | उसके पूर्व  भारतीय जनता पार्टी की महिला नेताओ  सुषमा स्वराज और उमा भारती  ने सोनिया गांधी को  प्रधान मंत्री पद से दूर रखने के लिए  सर मुंडवा लेने की धम्की  भी दी | कहा जाने लगा की राष्ट्रपति कलाम  ने उन्हे उनके जन्म  स्थान इटली के कारण इस पद से विरत रहने की सलाह दी थी | यद्यपि उन्होने बाद मे अपनी किताब मे स्पष्ट किया की “”यदि सोनिया गांधी “” कहती तो मै उन्हे शपथ  दिलाने के लिए  बाध्य था | क्योंकि संविधान मे लोक सभा मे बहुमत प्राप्त दल या गठबंधन  का नेता ही प्रधान मंत्री पद का दावा कर सकता है |
          परंतु  एक विचार  यह भी आया की  प्रधान मंत्री पद ना लेने का कारण  उनका अल्प  हिन्दी ज्ञान होना भी हो सकता है |  विश्व हिन्दी सम्मेलन मे  प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने यह स्वीकार किया की उन्होने  उत्तर प्रदेश के ग्वालो को चाय बेचते  हुए हिन्दी सीखी | तब एक विचार आया की पहले तीन प्रधान मंत्री तो हिन्दी भाषा के छेत्र सेआते थे | पहले राष्ट्रपति भी बिहार से आते थे | पंडित जवाहर लाल नेहरू –लाल बहादुर शास्त्री  और इन्दिरा गांधी तो उत्तर प्रदेश से चुने गए थे | पर उनके बाद मोरार जी भाई देसाई  गुजरात के थे | उनके बाद चरण सिंह भी उत्तर प्रदेश से थे | इन सब को देश की जनता से संवाद करने के लिए हिन्दी भाषा का अच्छा ज्ञान था |  अहिंदी भाषी  नरसिम्हा राव तेलुगू थे परंतु उनका अनेक भाषाओ पर अच्छी पकड़ थी | वे साहित्यिक भी थे | उनके बाद गुजराल  मूलतः पंजाबी थे परंतु उर्दू मिश्रित हिन्दी  बोलते थे | वे संवाद कर लेते थे | देवगौड़ा  जी कडिगा यानि कर्नाटक के थे उनके लिए अङ्ग्रेज़ी ही संवाद करने की भाषा थी | फिर  राजीव गांधी प्रधान मंत्री बने वे भी हिन्दी मे धारा प्रवाह बोल लेते थे | फिर चंद्रशेखर सिंह प्रधान मंत्री बने |उनको भी हिन्दी पर पकड़ थी वे भी हिन्दी प्रदेश उत्तर प्रदेश से संबंध रखते थे | मनमोहन सिंह भी गुजराल जी की तरह पंजाबी थे परंतु उन्हे भी उर्दू - हिन्दी मिश्रित भाषा  मे भली भांति संवाद करते थे | नरेंद्र मोदी भी मोरारजी भाई देसाई की तरह गुजरात से  आते है |

           इस प्रकार यह तो स्पष्ट  हो गया की हिन्दी भाषा की जानकारी देश के प्रधान मंत्री पद के लिए नितांत ज़रूरी है | क्योंकि जम्मू –कश्मीर से लेकर राजस्थान – हरियाणा – मध्य प्रदेश और छतीसगढ के अलावा उड़ीसा  गुजरात और महाराष्ट्र  मे कम से कम हिन्दी प्रभावी रूप से  संवाद करने की भाषा तो है ही | यह सच्चाई मोदी ने सार्वजनिक रूप से से स्वीकार किया |

किसके क्षमापन पर्व पर मांसाहार पर प्रतिबंध- बलि पर भी रोक लगेगी क्या ?

किसके  क्षमापन पर्व  पर  मांसाहार पर प्रतिबंध- बलि पर भी रोक लगेगी क्या ?

          जैन समुदाय ने  राजस्थान – मुंबई –छतीसगढ़  -गुजरात मे पशु वध पर प्रतिबन्ध का मामला  अब अदालत तक मे पहुंचा दिया है |  इस संदर्भ मे दो सवाल है की ---- यह पर्व क्या सम्पूर्ण जैन समाज का है ,अथवा उसके एक वर्ग का ?  जैनियो मे मुख्यतः तीन संप्रदाय है – दिगंबर –श्वेतांबर एवं स्थानकवासी | अब क्षमापन पर्व  जो 8 सितंबर से शुरू हुआ वह  श्वेतांबर  संप्रदाय का है  जो  18 सितंबर तक चलेगा | दिगंबर संप्रदाय का क्षमापन पर्व  गणेश चतुर्थी  यानि 17 से लेकर 27 सितंबर  अर्थात अनंत चतुर्दसी  तक चलेगा | उपरोक्त तीनों सम्प्रदायो मे  सर्वाधिक मतावलंबी  दिगंबर समाज के है |   इन तथ्यो से साफ है की शाकाहार की उग्रता  और मांसाहार का विरोध  “”केवल श्वेतांबर”” समूह द्वारा किया गया है | इसे सम्पूर्ण जैन समाज की ओर से की गयी पहल नहीं मानना  चाहिए | क्योंकि यह प्रसार तंत्र मे प्रचार पाने की कोशिस ही है |
                 अभी एक जैन संप्रदाय के ही सज्जन ने मुझे यह सत्या बताया –क्योंकि हम सनातन परंपरा के लोग   इन गूढ भेदो को नहीं जानते थे | जैसा की इस्लाम मतावलंबियो मे शिया और सुन्नियों मे मुहर्रम मनाने के अलग तरीके है | वैसे ही श्वेतांबर और दिगंबर मे भी क्षमापन पर्व  की तिथिया भी अलग -अलग होंगी जैसे हमारे यहा कई  त्योहार ""सन्यासियों के अलग तिथि पर और ग्रहस्थों के अलग तिथि पर """ मनाए जाते है | संभवतः यह एक की दूसरे पर श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए किया गया प्रयास है |

         परंतु मै महान तू नीच ,, मै अच्छा तू पापी  की अवधारणा हर धर्म की अलग  -अलग है | जैन धर्म के अनुसार और बौद्ध धर्म के अनुसार  जीव हत्या पाप है | परंतु उनके द्वरा अभी भी सनातन परंपरा को ""हेय "" बताने का काम कभी नहीं किया गया | जबकि जैन और बौद्ध दोनों धर्मो का प्रवर्तन एक ही काल मे हुआ था | चीन  के कम्युनिस्ट होने और धर्म को ""गैर कानूनी ""करार ""दिये जाने के पहले बौद्ध धर्म विश्व का प्रथम था , मतावलंबियों की संख्या मे , बाद मे दूसरे नंबर पर आ गया| आज भी वह ईसाई धर्म के बराबर संख्या मे है | इस तुलना मे महावीर के अनुयायियों ने  भारतवर्ष  मे ही प्रसार नहीं किया | अब यह तथ्य ''गर्व करने योग्य है अथवा ....""""थायलैंड मे  सनातन धर्म को राजा की मान्यता है --उसके नाम मे राम का प्रयोग  अवश्यंभावी है --परंतु  वह एक प्रथा है की बौद्ध विहार मे जाकर  दो से तीन वर्ष तक अध्ययन करने की | यह है धर्म का """सह अस्तित्व ""| अगर कुछ लोगो के कारण यह टूटा तो """अल्प संख्यक  जैन संप्रदाय को ""' भरी कीमत चुकनी पड़ेगी |

                फिलवक्त तो मामला जैन संप्रदाय द्वारा  मांसाहारी लोगो के ""मौलिक अधिकारो "" पर आघात करने का है | वेदिक धर्म मे तो बलि प्रथा सनातन काल से चली आ रही है |  नरमेघ -अश्वमेघ -का तो ज्ञान लोगो ने पड़ा ही है | धीरे - धीरे  इनमे भी संप्रदाय बने ,, उनके आचार -नियम बने | मुखी तौर पर अभी चार संप्रदाय है -- शक्ति उपासक  - शिव उपासक  और विष्णु उपासक एक अति न्यून और विलुप्त होने की कगार पर ""अघोरी "" भी है | जहा  शक्ति मे बलि के द्वारा ही पूर्णाहुति दी जाती वही वैष्णव  अनेक अवसरो पर ''''कुम्हड़े '''की बलि देकर इस कर्मकांड को सम्पूर्ण करते है | यह नितांत ऐच्छिक है |  परंतु बलि करने वालों को वैष्णवों ने कमतर नहीं माना और शकतो ने भी ऐसा ही किया | सभी तीर्थों पर सभी संप्रदाय के लोग जाते है गणेश वंदना से प्रारम्भ हुआ अनुस्ठान बलि से पूर्ण होता है |
                      इन स्थितियो मे अगर शक्ति उपासक  जैन संप्रदाय की इस "" प्रयास "" को अपने ''आस्था"" पर कुठराघात माने तब तो उनका बहुत ''अहित''' हो जाएगा | मुंबई मे राज ठाकरे ""जय भवानी "" के उद्घोष के लोग है राजस्थान मे भी राजपूत शक्ति पूजते है |  अब ऐसी स्थिति मे क्या वेदिक धर्म के आचार को "" अधर्म """ घोषित करेंगे ?? तब संघर्ष  होगा क्योंकि आस्था के मामले पर ही अगर अयोध्या मे मस्जिद टूट सकती है तब \कुछ  भी हो सकता है|
यह एक भयावह स्थिति होगी | थोड़े से सिरफिरे लोग ""जैनिस्तान "" की मांग कर बैठे है --उनसे मेरा प्रश्न है की आपकी संख्या कितनी है ? क्या आप तीनों संप्रदाय इस मांग पर एक है ? क्या समस्त जैन यह ""शपथ "" ले सकते है की वे ज़ैन मुनियो के रास्ते पर चल रहे है | अभी मै एक श्वेतांबर मुनि का व्हात्सप पर प्रवचन सुन रहा था ,,जिसमे उन्होने सभा मे बैठे सभी स्त्री - पुरुषो को धिक्कारा था की आधे से अधिक लोग यहा  मांसाहार लेते है शराब पीते है | उनके बच्चे होटलो मे जाकर चिकन बर्गर पिज्जा  खाते है | सभा मे कोई प्रतिरोध करने वाला नहीं था | परोपकार  के लिए उन्होने  सिख धर्म की भूरि भूरि तारीफ की --उनही के शब्दो मे की बिना धर्म -वर्ण पूछे बिना दिन रात ""''लंगर चलाते है """ वंहा किसी भी दान दाता का नाम ना तो बोला या बताया जाता है पट्टिका लिखवाने की बात ब्दूर की है | जैन समाज को कोसते हुए उन्होने कहा था की ""देंगे थोड़ा सा और नाम लिखवा देंगे पोते -पोतियो तक का"""" | उन्होने कहा की कितनी त्रासदियों मे जैन समाज ने भोजन कराया अथवा इनके रहने की व्यसथा की ??""   दूसरा बिन्दु है की  कभी वेदिक धर्मियों ने  दिगंबर मुनियो के "" निर्वस्त्र "" रहने पर आपति जताई ? यद्यपि यह आस्था देश के कानून के विपरीत है | पर क्या किसी मुनि श्री को इस मामले मे गिरफ्तार किया गया ? यदि नहीं तो जैन समाज के थोड़े से लोग  अपनी महत्वाकांचा के लोभ मे पूरे ""समाज "" को  सनातन धर्मियों के क्रोध का शिकार बनवा देंगे |  इन धार्मिक आतंकवादियो को नहीं मालूम की ""असहिष्णुता"" की यह धार उन्हे खा जाएगी | यह कदम दूसरे  धर्म के लोगो मे उन्माद भर देगा | स्थिति विकराल हो सकती है | इन लोगो को ""सहचर """ की भावना  अपनानी पड़ेगी |