अब
हिन्दी को प्रथम रखने से अंतर
प्रादेशिक समस्याओं का जन्म
होगा
मध्य
प्रदेश उच्च न्यायालय के
मुख्य न्यायाधिपति खनविलकर
और न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने
एक निर्णय मे कहा है की "”अब
से "””
हिन्दी
मे लिखे पत्र – टिप्पणियाँ
तथा आदेश ही "””मूल
पाठ "””
होंगे
| यह
भारत के संविधान की भावना के
नितांत ''विपरीत
'''है
| यह
सत्य है की संविधान निर्माताओ
ने देश की "”राज
भाषा"””
के
पद पर देवनागरी लिखित हिन्दी
भाषा को ही नवाजा है |
परंतु
कश्मीर से केरल तक की भाषाई
- और
सान्स्क्र्तइक विविधताओं
को देखते हुए ही अंग्रेजी को
देश की संपर्क भाषा का स्थान
दिया था |
किसी
भी राज्य की सीमाओं के अंदर
यदि किसी राजाज्ञा का पालन
करना हो --तथा
वह के जन जन की भाषा हिन्दी
है तब कोई भी '''समस्या
"”
उत्पन्न
नहीं होगी ||
क्योंकि
उस आदेश के आशय को अधिकारी
समझा सकेगा और जन जन समझ सकेगा
| परंतु
राज्य की सीमाओ से बाहर जहा
हिन्दी ''आम
जन"”
की
भाषा नहीं है वह समस्या खड़ी
हो जाएगी |
इसका
एक उदाहरण है ---
मध्य
प्रदेश मे डाइरेक्टर को
निदेशक कहा जाता है जबकि उत्तर
प्रदेश मे उसे संचालक कहा जाता
है |
वन
विभाग मे मध्य प्रदेश मे जिसे
वन अधिकारी कहते है उसे राजस्थान
मे वनपाल कहते है |
उत्तर
प्रदेश -
बिहार
-राजस्थान
-हरियाणा
मे "”अधिमान्य
"”
प्रशासनिक
शब्दावली मे ही पदो के नाम तक
मे समानता नहीं है |
इतना
ही नहीं बिहार विधान सभा मे
सदस्य आसंदी को "”हुज़ूर"”
कह
कर संबोधित करने की परंपरा
है |
उत्तर
प्रदेश मे ""माननीय"””
शब्द
का और मध्य प्रदेश मे "”आदरणीय
"””
कहने
की परंपरा है |
उत्तर
प्रदेश मे नौकरशाही मे आईएएस
जब वरिष्ठ वेतनमान के उपरांत
आयुक्त बन जाता है तब यदि वह
सचिवालय मे पदस्थ है तब वह
सचिव पद नाम ही र्लिखेगा -परंतु
उत्तर प्रदेश मे "”आयुक्त
एवं सचिव "””
पद
नाम लिखा जाता है |
जबकि
मध्य प्रदेश और राजस्थान मे
ऐसा नहीं है |
इसका
कारण संभवतः उत्तर प्रदेश और
बिहार मे चुनाव और सरकार –
अफसरशाही का चलन देश की आज़ादी
के पूर्व से है |
1935 मे
जब मध्य प्रदेश और राजस्थान
की जनता अपने -
अपने
"”अन्नदाताओ
और घडीखंभा "””
की
प्रजा थी तब इन दोनों प्रदेशों
के लोग "””ब्रिटिश
राज के नागरिक थे ---प्रजा
नहीं |
इसीलिए
इन दोनों राज्यो मे उर्दू और
अङ्ग्रेज़ी के शब्दो को ग्रामीण
जनता जिसकी बोली भोजपुरी अथवा
अवधी थी या फिर ब्रज थी ---वह
भी पटवारी और पुलिस दारोगा
और सिंचाई विभाग के "”शब्दो
"”
को
जानती थी उनही अर्थो मे जिनमे
वे प्रयुक्त होते थे |
जैसे
ऑर्डर को परवाना तथा नीलामी
और कुर्की जिसे कुर्क अमीन
करता था |
अमीन
नहर विभाग मे भी होता था और
राजस्व विभाग मे भी |
मध्य
प्रदेश मे इन पदो के नाम भिन्न
है |
म
प्र मे संपाति को आस्तिया
कहा जाता है |
जबकि
यह शब्द पड़ोसी राज्य मे बिलकुल
अन जाना है |
वहा
संपति को चल और अचल के रूप मे
जाना जाता है |
उच्च
न्यायालय के फैसले प्रदेश
के बाहर भी प्रभावी होते है
यदि व्हा "”फैसले
को उस रूप मे नहीं समझा गया
--तब
बड़ी समस्या हो जाएगी "”\
जिसे
समय रहते ही समाधान खोज लेना
चाहिए
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