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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jan 25, 2021

इतिहास में केवल विजेताओ का ही नहीं -पराजितों का भी ज़िक्र है

 

इतिहास में केवल विजेताओ का ही नहीं -पराजितों का भी ज़िक्र है



अभी हाल में ही सोशल मीडिया पर एक वीडियो वाइरल हुआ है , जिसमें देश के सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल जी कहते हैं की --- इतिहास में केवल विजयी सभ्यताओ का ही ज़िक्र हुआ हैं | पराजितों का नहीं ! वे शायद विवेकानंद भाषण माला को संबोधित कर रहे थे |

इस संदर्भ में मुझे उनका कथन कुछ अटपटा लगा , क्योंकि स्स्र्ष्टी के आरंभ में जब समस्त प्रथ्वी जलमगन थी और भगवान विष्णु शेष शय्या में योग निद्रा में थे तब उनकी नाभि के कमल पर बैठे ब्रम्हा को खाने के लिए मधु और कैटभ नामक दो दैत्य प्रयास कर रहे थे | इसका ज़िक्र दुर्गा शप्तसती के प्रथम अध्याय में हैं | किस्सा यह हुआ की पाँच हज़ार वर्षो तक उन दोनों दैत्यो से भगवान विष्णु का युद्ध हुआ , अंत में थक कर उन दैत्यो ने विष्णु से वरदान मांगने को कहा | और विष्णु ने उनसे मांगा की आप दोनों का वध मेरे द्वरा हो | इस पर उन दोनों ने कहा की जनहा जल ना हो ऐसी जगह पर हमारा वध करो !! तब विष्णु जी ने अपनी जांघ पर उन दोनों के सर अपनी जंघा पर रख कर सुदर्शन चक्र से काट दिये | अब इसमें क्या विजेता के साथ पराजित का उल्लेख नहीं हैं ? वह भी पौराणिक कथा में ! सतयुग में राजा सूर्यवंश में अयोध्या के राजा हरीश चंद्र और महर्षि दुर्वाषा की कथा में कौन विजेता और कौन पराजित इसका निर्णय करना मुश्किल हैं | परीक्षा देने वाले सत्यवादी राजा हरीश चन्द्र और और परीक्षा लेने वाले दुर्वाषा में महिमा तो राजा हरिश्चंद्र की ही हुई , भले ही परीक्षा के दौरान उन्हे अत्यंत कष्ट उठाने पड़े |

द्वापर युग में मानव के रूप में परमात्मा का अवतरण अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम के रूप में हुआ | अब भक्तो के लिहाज से तो रावण राछस था , जिसने जानकी जी का हरण किया | तत्पश्चात राम किष्किंधा नरेश सुग्रीव और हनुमान की सहायता से लंका जाकर रावण का वध किया और विभीषण को वनहा का राजा बनाया | भारत में चल रही दर्जनो राम कथाओ में रावण के वर्णन के बगैर वे पूरी नहीं हो सकती | उनमें मेघनाथ --कुंभकरण और रावण की शक्तियों और पराक्रम का भी वर्णन होता ही हैं | हालांकि थे वे भी "”पराजित "” | राम को वानर राज बाली के छुप कर तीर मारने पर लेकर विवाद हैं की क्या वह धरम युद्ध था ? धरम युद्ध उसे कहते हैं जनहा दोनों योद्धा एक दूसरे की द्राशटी में हो | इस परिभाषा से शायद यह घटना उचित ना हो | पर पराजित बाली की वीरता का वर्णन महाकवि बाल्मीकी और राम चरित मानस के लिखने वाले गोस्वमी तुलसीदास ने भी किया हैं | अब हुआ तो वह भी पराजित ही था | लेकिन उसके शौर्य का वर्णन तो किया ही गया |

त्रेता युग में महाभारत का आरंभ हुआ तो धरम युद्ध के नियमो के तहत ही था | परंतु कौरव सेनापति शांतनु पुत्र देवव्रत जिनहे लोग भीष्म के नाम से जानते हैं , जिनहे इच्छा म्रत्यु का वरदान था | जब उन्होने पांडवो की सेना का विध्वंश कर डाला , तब क्रष्ण ने अर्जुन से कहा की वे उनसे उनकी म्र्त्यु कैसे होगी --यह प्रश्न पितामह से करे | तब पितामह ने बताया की इस जन्म में शिखंडी जो पूर्व जन्म में काशी राज की पुत्री अम्बा थी | चूंकि मैंने उसे स्त्री रूप मै ही देखा हैं , अतः मैं उस पर तीर नहीं चला सकता | इस रहस्य के बाद देव्व्रत 18 दिन चले महाभारत के अंत तक वाणों की शय्या पर लेते रहे | अब देवव्रत या भीष्म को पराजित माने अथवा विजयी ? इसी प्रकार कर्ण का भी वध हुआ ,जो निश्चय ही धरम युद्ध के नियमो की अवहेलना था | परंतु यादव कुल श्रेष्ठ कृष्ण के कहने पर दोनों घटनाए हुई ------अतः वे धरम के अनुकुल मानी गयी | अब दोनों पात्रो को पराजित ही माना जाएगा ,क्यूंकी वे कौरवो किओर से लड़े थे ---जिनकी महाभारत में पराजय हुई | पर दोनों को ही अप्रतिम वीर माना गया | जबकि थे वे भी "” पराजित "” | शांतनु पुत्र देवव्रत ब्राम्ह्चर्य का जीवन भर निर्वाह किया -----इसलिए आज भी सनातन धर्मी से अपेक्षा है की वह पितरो को अघर्य देते समय अंत में भीष्म को भी जल दे |भले ही वह ब्रामहन हो या छ्त्रीय हो या वैश्य | अब थे तो वे पराजित लेकिन वेदिक वांगमय में जो स्थान अवतारो को नहीं मिला , वह इस राजपुत्र को मिला |


क्रष्ण लीला में मामा कंश को मारने के बाद मथुरा पर मगध सम्राट जरासंध के लगातार आक्रमणों से अपने स्वजनो को रक्षा के लिए सारे यादव गुजरात में द्वारका चले गए | अब पराजित कौन था --जरासंध अथवा क्रष्ण ? इसी निर्णय के कारण उन्हे "” रणछोड़ "” भी कहते हैं | लेकिन हमारे धरम ग्रंथो में उन्हे ही '’’’विजयी'’ निरूपित किया गया | हालांकि उनकी पत्नी जांबवनती के पुत्र सांब की हरकतों के कारण द्वारका के समुद्र के तट पर उगी '’काँस '’ [ एक प्रकार की घास जो बदन को काट सकती है ] ही इतनी धारदार बन गयी की क्रष्ण के समूचे कुल और वंश का नाश हो गया | यद्यपि इसका कारण गांधारी का श्राप बताया जाता हैं | सवाल अभी भी वही है की इतिहास में या धार्मिक आख्यानो में क्या पराजितों को स्थान नहीं मिलता ?

2---लिखित इतिहास ;- अगर हम लिखित एतिहासिक घटनाओ पर नज़र डाले तो – यूनान के सम्राट सिकंदर और तक्षशिला नरेश पुरू या पोरस के युद्ध में , पुरू पराजित हुए | परंतु उनके उत्तर ने उन्हे सिकंदर की बराबरी मे ला दिया | उस समय के भारत वर्ष के राजाओ की ईर्ष्य ने उन्हे सिर्फ "””अपना ही अपना "” सोच में रखा | विदेशी आक्रमण का मुक़ाबला मिल कर कर सकते थे , परंतु "” मैं श्रेष्ठ "” के अहंकार ने उहे एक नहीं होने दिया |

महमूद गजनवी द्वरा भारत पर किए गए हमलो से द्वारिका में सोमनाथ मंदिर के अलावा भी लूट पात की गयी | सिंध के अंतिम हिन्दू सम्राट दाहिर के राज्य को भी गजनावी ने लूटा , पर किसी पड़ोसी राजा ने मदद नहीं की !

ऐसा ही मुहम्मद गोरी के समय में हुआ , अजमेर और दिल्ली के राजा प्र्थ्विराज चौहान पर बारंबार आक्रमण हुए ,पर कन्नौज या मगध के राजाओ ने कोई मदद नहीं की | परिणाम "” चार बांस चौबीस गज़ अंगुल अष्ट प्रमाण ता ऊपर सुल्तान है -मत चुकयो चौहान "” चंद बरदाई का यह दोहा दिल्ली के अंतिम हिन्दू शासक के लिए था |

बाबर और इब्रहीम लोदी के पानीपत के युद्ध में राणा सांगा का निसक्रिय रहना ही लोदी की हार बनी | तथा दिल्ली में मुग़ल वंश आया | शेरशाह सूरी ने हुमायूँ को पराजित कर आमेर के किले में [ जो आजकल पाकिस्तान में है , परंतु उसके शासक आज भी राजपूत ही हैं "””] शरण लेने पर मजबूर किया |जनहा मुग़ल सम्राट अकबर का जन्म हुआ | जिनहोने काबुल से लेकर दक्षिण के गोदावरी नदी तक अपने राज्य विस्तार किया | परंतु मेवाड़ के महाराणा प्रताप सिंह ने मुग़ल सम्राट के सामने सर झुकाने से इंकार किया | परिणाम स्वरूप सीमित साधन और छोटी सेना के बल पर वे जंगल जंगल भटकते रहे | उनके छोटे भाई शक्ति सिंह ने भी उनकी मदद नहीं की !!वे पराजित हुए परंतु उनकी वीरता और यानहा तक की उनके घोड़े चेतक की तारीफ में लिखा गया | औरंगजेब के राज़ में मराठा सरदार शिवाजी भोसले लड़े परंतु संसाधनो की कमी से उन्हे औरंगजेब के समय उन्हे मुग़ल दरबार में समर्पण करना पड़ा | वे पराजित हुए , परंतु हिम्मत नहीं हारी फलस्वरूप वे मराठा साम्राज्य खड़ा कर सके |

अंत में बस इतना ही की इतिहास में विजयी और पराजित एक ही पलड़े पर नहीं रखे जाते , परंतु जिक्र उनका भी होता ही है भले कुछ कम हो |



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