गनीमत
हैं की विदेशी राष्ट्रपति!!!
ने
मोदी जी को फादर ऑफ इंडिया कहा
!!
ह्यूस्टन
मैं हुए हाउडी "”आयोजन
"”
मैं
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी
को अमेरिकी राष्ट्रपति त्रुम्प
द्वरा "”फादर
ऑफ इंडिया "”
कहे
जाने के बाद ,
मोदी
भक्त मंत्री ने तो यानहा तक
कह दिया जो मोदी जी को फादर ऑफ
इंडिया नहीं मानता -----वह
भारतीय नहीं हैं !!!
अब
असम के बाद पूरे देश मैं भी
भारतीय होने का प्रमाण पत्र
भारतीय जनता पार्टी के सरकारी
न्यूमाइन्दो से लेना जरूरी
हो जाएगा !
वैसे
इस सेर्टिफिकेट के लिए कब
कौन सी नयी "”
शर्त
"”
लग
जाएगी --इसका
अंदाज़ तो "”भक्तो
को भी नहीं "””
होगा
|
लेकिन
मोदी जी के राज्य मंत्री
जितेंद्र सिंह के इस बयान ने
– इन्दिरा गांधी के प्रधान
मंत्री के समय उनके पार्टी
अध्यच्छ देव कान्त बरुआ ने
भी ऐसा ही चरण वंदना करने वाला
ब्यान दिया था "”
इंडिया
इज़ इन्दिरा और इन्दिरा इज़
इंडिया "””
! जिसकी
देश मैं खूब आलोचना हुई थी |
विरोधी
दलो के नेताओ अलावा तत्कालीन
युवा तुर्क नेता चन्द्रशेखर
-
मोहन
धारीया आदि ने भी अपनी पार्टी
के नेता की आलोचना की थी |
लेकिन
आज केंद्रीय राज्य मंत्री
के बयान की लानत -
मलानत
करने का साहस सत्तरूड दल के
नेताओ मैं नहीं हैं ,
हैं
ना गजब की बात
हमारे
मित्र पत्रकार साथी की एक खबर
ने मुझे यह आलेख लिखने की
प्रेरणा दी है ---
मैंने
उनसे अनुमति ले ली हैं |
उनके
आलेख का शीर्षक हैं "”क्या
हम दो राष्ट्रपिताओ '’के
देश मैं जी रहे हैं '’
“” ,इस
शीर्षक ने मध्य प्रदेश की
विधान सभा मैं हुई एक बहस की
याद दिला दिया |
उस
समय स्व्र् अर्जुन सिंह ,मुख्य
मंत्री थे और धार के तत्कालीन
विधायक जो नेता प्रति पक़्छ
थे ,
उन्होने
अर्जुन सिंह के पिता का संदर्भ
देते हुए कह दिया था "””
की
भ्रष्ट पिता की भ्रष्ट पुत्र
की सरकार चल रही हैं "”|
इस
तरह का व्यक्तिगत आच्छेप
लगने से सदन मैं सन्न्टा छा
गया |
अर्जुन
सिंह जी ने आसंदी से अनुमति
लेकर जो जवाब दिया ,
वह
अविस्मरणीय हैं |
अर्जुन
सिंह जी ने कहा था "””
माननीय
मुझे पिता चुनने की आज़ादी
नहीं हैं शायद सदस्य विक्रम
वर्मा को यह आज़ादी हो की वे
पिता चुन सके !!!
इस
जवाब मैं छिपे अर्थ ने विपछ
को धरासाई कर दिया !
इस
शीर्षक ने भी कुच्छ ऐसी ही
स्थिति उत्पन्न कर दी हैं !!
यदि
देश का एक नागरिक अपने पिता
का नहीं चुन सकता ----तब
समग्र देश यह काम कैसे कर सकता
हैं !!
गुजरात
और महाराष्ट्र मैं बताया
जाता हैं की ऐसी परंपरा हैं
की व्यक्ति अपने नाम के साथ
पिता का नाम भी लगाता हैं
,तदुपरान्त
सरनेम लगाते हैं |
दक्षिण
के राज्यो मैं जन्म स्थान को
नाम के साथ जोड़ते हैं |
विंध्याचल
पर्वत के दक्षिण की इन परम्पराओ
से
-----हिमालय
के दक्षिण मैं बसे आर्यवर्त
मैं पिता का नाम आदरणीय होने
के नाते – केवल पुछे जाने पर
ही बताते हैं !
यही
बात जन्मस्थान के बारे मैं
भी हैं |
वेदिक
काल मैं व्यक्ति की पहचान
उसकी "””जननी
"”
से
होती थी |
तब
महिलाए स्वतंत्र थी ,
| तब
परिवार की सत्ता माताओ के हाथ
मैं थी |
दो
शब्द हैं जो आम तौर पर लोग एक
ही संबंध मैं अर्थ लेते हैं
:-----
जनक
और पिता |
पहला
व्यक्ति जन्म का कारण होता
है ,
और
पिता का अर्थ पालन करने वाला
|
उदाहरण
के लिए महाभारत मैं ध्रतराष्ट्र
-
और
पांडु के जनक ----
ऋषि
व्यास थे ,
पर
वे पिता नहीं थे |
कुंती
के छ पुत्रो के जनक अलग -
अलग
देवता थे ,
सूर्य
से कर्ण --धर्म
से युधिस्थर वायु से भीमसेन
और देवराज इन्द्र से अर्जुन
तथा अश्वनी कुमारों से नकुल
और सहदेव |
परंतु
पिता के लिए उन्हे पांडु पुत्र
ही कहा या लिखा जाता हैं !!
अब
क्या कारण रहे होंगे की गुजरात
और महाराष्ट्र मैं पिता का
नाम जोड़ कर अपना नाम बोलने और
लिखने की परंपरा शुरू हुई |
अथवा
दक्षिण मैं नाम के साथ जन्म
स्थान लिखने की प्रथा कब और
कैसे शुरू हुई ---इसकी
क्या आवश्यकता आन पड़ी ,
यह
शोध का विषय हो सकता हैं |
अब
पुनः दो राष्ट्र पिताओ की बात
करते हैं |
पहले
उन मोहन दस करमचंद गांधी का
जिक्र कर ले ,
जिनहे
राष्ट्र पिता का सम्बोधन देश
ने दिया
गुजरात
के पोरबंदर मैं जन्मे
मोहनदास करमचंद गांधी
पदने के लिए इंग्लंड गए ,
जनहा
से बैरिस्टर बन कर लौटे |
उन्होने
शुरुआत मैं ट्रांसवाल अफ्रीका
मैं गोरी सरकार से अहिंसक लड़ाई
और सामुदायिक विकास -
छूयाछुट
को दूर करने का प्रयास उन्होने
डरबन के आश्रम से शुरू किया
|
1917 मैं
उन्होने बिहार मैं चंपारण
मैं निलहे गोरो के अन्याय के
खिलाफ आंदोलन किया |
यानही
से नंगे फकीर की यात्रा शुरू
हुई |
1920 मैं
उन्होने काँग्रेस पार्टी
मैं शामिल हुए |
उन्हे
प्रयोग "””
आश्रम
"””
ने
लोगो मैं नयी जागरूकता भर दी
|
आश्रमवासी
उन्हे "”बापू
"””
कहते
थे |
फिर
आंदोलनो के दौरान सुभाष चंद्र
बोस से मतभेद हुए |
वे
हिंशा के माध्यम से "”आज़ादी
की लड़ाई "”
को
सही मानते थे |
परंतु
उनही नेता जी ने आज़ाद हिन्द
फौज के सिंगापूर पर कब्जा
करने के बाद किए गए रेडियो
प्रसारण मैं उन्होने "”
गांधी
से बापू बने को "”महात्मा
"”
का
सम्बोधन दिया "”|
बाद
मैं शांति निकेतन मैं कवि
गुरु रवीद्र नाथ टैगोर ने
राष्ट्र पिता कहा |
बाद
मैं जिसे संविधान सभा की आखिरी
बैठक मैं डॉ राजेन्द्र प्रसाद
जी ने एक सर्व सम्मत प्रस्ताव
द्वरा दुहराया |
कहने
का तात्पर्य यह हैं की मोहनदास
करमचंद गांधी से राष्ट्र पिता
बनने के पड़ाव मैं -----
सरकार
और सत्ता का विरोध था समर्थन
या सहारे की जरूरत नहीं !!
दुनिया
मैं अन्याय के वीरुध हथियार
से बहुत लड़ाइया हुई हैं ,
परंतु
बिना हथियार के सत्ता से लड़ने
के लिए जनसमर्थन – और जनता को
जागरूक करना ही गांधी के आंदोलन
का बीज मंत्र हैं |
अब्राहम
लिंकन ने भी मनुष्यो को जानवरो
की भांति बेचने -खरीदने
की प्रथा पर रोक लगाने के लिए
युद्ध किया |
परंतु
उसी अमेरिका मैं काले और गोरो
के मध्य भेदभाव के खिलाफ लड़ाई
का आगाज करने वाले मार्टिन
लूथर किंग किंग ने "””सत्ता
"”””
का
ध्यान आकर्षित करने के लिए
वाशिंगटन तक पद यात्रा की थी
|
उन्होने
भी लिखा था की अहिंसक आंदोलन
ली प्रेरणा महतमा गांधी से
मिली थी |
अफ्रीका
मैं गोरी सरकार के खिलाफ लड़ाई
के नायक नेल्सन मंडेला भी
महतमा गांधी को प्रेरणा मानते
थे |
जिन
अंग्रेज़ो के खिलाफ महतमा
गांधी ने आजड़ी की लड़ाई लड़ी
----वे
भी अपने देश मैं गांधी जी की
मूर्ति लगवाई हैं |
यह
हैं उनकी अहिंशा की सफलता
-----की
पराजित होने
वाला
यदि सभ्य समाज से है ---
गोडसे
जैसा नहीं है ,तो
वह भी उनकी इज्जत करता हैं |
अब
आ जाए "”दूसरे
राष्ट्र पिता "”
इन
मेकिंग के बारे मैं ,
नरेंद्र
दामोदर दास मोदी जी का उद्भव
ही ---
सत्ता
से हुआ हैं |
प्रधान
मंत्री बनने के पहले उनकी
भलाई --बुराई
गुजरात तक सीमित थी |
गोवा
मैं हुए भारतीय जनता पार्टी
के सम्मेलन के बाद ही देश को
उनका नाम सुनाई दिया |
पहले
वे गुजरात मैं 2002
हुए
सांप्रदायिक दंगो के विवाद
मैं उलझ गए थे |
दिल्ली
की गद्दी पर आसीन होने के बाद
ही उन्होने विदेश यात्रा करना
शुरू किया |
गुजरात
के मुख्या मंत्री रहते हुए
--अमेरिका
की मोटल मालिक पटेलों और शाह
लोगो की लॉबी भी उन्हे वीसा
दिलाने मैं असमर्थ रही थी |
जिसने
टेक्सस राज्य के हूसटन मैं
हाउड़ी का आयोजन किया |
उसी
स्टेडियम मैं अमेरिकी राष्ट्रपति
ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी
के मेजोरटी लीडर ने प्रधान
मंत्री को देखते हुए
गांधी
और पंडित नेहरू के आदर्शो का
जिक्र किया |
जबकि
देश मैं वे और उनकी बीजेपी
और संघ के लोग महतमा गांधी और
पंडित नेहरू के को बदनाम करने
मैं कोई कसर नहीं छोड़ते हैं
|
परंतु
अपने समर्थको द्वरा आयोजित
"”इवैंट
"”
मैं
अपने विरोधियो की प्रशंसा
सुन कर विदेश मैं और कर भी क्या
सकते थे ?
बीच
मैं छोड़ कर जा तो सकते नहीं थे
|
आज
विश्व के देशो मैं 519
मूर्तिया
और सैकड़ो सदको का नामकरण बापू
के नाम पर हुआ हैं |
बापू
को नंगा फकीर कह जाता हैं
क्योंकि उन्होने फैसला किया
था की जब तक देश मैं सबके तन
पर पर्याप्त
वस्त्र
नहीं होंगे तब तक वे भी एक
धोती मैं जीवन व्यतीत करेंगे
|
ट्रम्प
द्वरा फादर ऑफ नेशन कहे जाने
को – प्रमाण पत्र मान कर देश
के करोड़ो लोगो को "”
गैर
भारतीय "”
बताने
का काम सत्ता के मद मैं चूर
व्यक्ति ही कर सकता हैं |
जिनकी
वास्कट या सदरी के रंगो की
चर्चा हो जिनके पोशाको की
विविधता बड़े -
बड़े
धनिकों को लजा दे ऐसे नेता
----जिसके
प्रचार पर विगत सात साल मैं
हजारो करोड़ {{जैसा
आरटीआई से पता चला }}
खर्च
किए गए हो ---उसकी
तुलना उस महतमा से करना जो
पैसा एकत्र करने के लिए अपनी
फोटो के लिए प्रति फोटो 5
रुपये
लेते हो ,
उससे
करना कितना उचित होगा ?
सवाल
इस देश की जनता को देना हैं |